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दयावान चोर

एक समय की बात है| एक छोटे से गाँव में रघु नाम का व्यक्ति रहता था| उसे कोई ढंग का काम-काज मिल नहीं रहा था| मज़बूरी के चलते वह चोरी-चकारी के रस्ते पर चल पड़ा| पहले तो इस काम से उसे बहुत घिन्न आती थी| लेकिन समय बीतने के साथ अब उसे इस काम में मज़ा आने लगा था| भीड़ भाड़ वाली जगहों परा रघु बड़ी सफाई से लोगों की जेब काट लेता था|

रघु की पत्नी सिलाई मशीन पर दिन रात काम कर के गुज़ारा करती थी| उसे पता था की रघु एक दिन बुरा फसेगा| वह रघु को बार-बार समजाती लेकिन अब रघु को हराम की कमाई के आलावा कुछ सूझता नहीं था|

समय धीरे धीरे बीतने लगा| जैसे तैसे रघु और उसकी बीवी गुज़ारा करते हुए जिए जा रहे थे| गाँव में फसल कटाई के बाद त्यौहार का माहौल था| मौका देख कर जेब-कतरा रघु भीड़-भाड़ वाले इलाके में इधर उधर शिकार ढूंढने लगा|

थोड़ी देर राह तकने के बाद रघु नें एक व्यक्ति की जेब काटने का फैसला किया| वह जेब काटने में भी सफल हो गया| इस काम के बाद रघु चुपके से एकांत में जा कर बटवा टटोलने लगा| जब उसनें बटवा देखा तो उसमें से उसे 1000 रुपये नगद मिले| साथ में एक चिट्ठी भी थी|

चिट्ठी शायद उस व्यक्ति नें अपनी बीवी को लिखी थी| जो इस प्रकार थी|

चिट्ठी –

प्रिय

दिन भर काम करके थक जाता हूँ| जहाँ काम करता हूँ वहां का सेठ किसी जल्लाद से कम नहीं है| पांच मिनट बैठ जाऊं तो डंडा चुभा कर हुडकी दे कर काम पर लगाता है| मकान मालकिन बात बात पर दिमाग चाटती रहती है| आधा पेट खाना खा कर पैसे जमा कर के भेज रहा हूँ, तीन पत्ती में मत उड़ा देना|

मेरी अम्मा को प्रणाम कहना| बच्चों को प्यार देना| मेरी सायकिल का टायर फट गया था| इस लिए इस बार 1200 की जगह 1000 रुपये ही भेज पाउँगा| मेरा सेठ मुझे धुप में बाहर भेजता रहता है इस लिए बाल सफ़ेद हुए जा रहे हैं और में दिन-पर-दिन काला पड़ता जा रहा हूँ|

तुम चिंता मत करना| में कुछ महीनों बाद घर पर आऊंगा| हमारे बच्चों को अच्छे से पढ़ाना, पूरा दिन टीवी के सामने बैठ कर साँस-बहु टीवी मत देखती रहना| खमीस फट नें को आई है इस लिए अगले महीने भी हाथ तंग रहेगा| पैसे बड़ी मुश्किल से कमाता हूँ| फालतू खर्ची में उड़ाना मत|

इस चिट्ठी को पढ़ कर रघु का दिल भर आता है| उसे बटवे के मालिक पर दया आ जाती है| वह 200 रुपये ले कर बाकी के 800 बटवे में रख देता है| उसके बाद वह भीड़ में उस आदमी को खोजने लगता है ताकि वह उसका बटवा फिर से उसकी जेब में डाल सके|

थोड़ी देर बाद रघु को वह बटवे का मलिक मिल जाता है| करीब आधे घंटे की मशक्कत के बाद रघु मौका देख कर उस आदमी के पिछली जेब में बटवा सरकाने लगता है|

अब जेब काटने में तो रघु माहिर था लेकिन बटवा वापिस जेब में रखने में उसे कोई महारत हासिल नहीं थी| पिछली जेब में हो रही हरकत जान कर बटवे का मालिक चौकन्य हो गया और उसनें फुरती से घूम कर रघु का गिरेबान पकड़ लिया|

अब भीड़ जमा थी तो कुछ और उत्साही समाज सेवी गण और बटवे का मालिक रघु की धुलाई करने लगे| कुछ देर तक बड़ी तभियत से रघु की कुटाई हुई| और फिर जब लोगों का गुस्सा शांत हुआ तब रघु को लाल पिला कर के घर को जाने दिया गया|

रघु की बीवी नें पूछा की चोरी के पैसे पुरे लौटा दिए? तब रघु गुस्से में बोला, अरे हाँ... 800 तो मैं खुद लौटने गया था| उन्होंने बाकी के 200 भी ले लिए और मेरी जेब में 10 या 15 रुपये का चिल्लर था वह भी छीन लिया|

रघु रात में खुले आसमान के निचे खटिया पर लेटा-लेटा एक बात का निश्चय कर लेता है| की अब वह इमानदारी से कोई ढंग का काम करेगा| चोरी नहीं करेगा| और अगर चोरी करनी ही पड़ी तो किसी पर दया-रहम खा कर बटुआ उसकी जेब में वापिस कभी भी रखने नहीं जायेगा| समाप्त|