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दिल के अमीर

कहानी - दिल के अमीर

शेखर वर्षों बाद पटना अपने पैतृक घर आया था .इसके पहले वह जब भी आया दो तीन दिन से ज्यादा नहीं रहा था .इस बार अपनी पत्नी के साथ आया था और उन्हें दो सप्ताह से कुछ ज्यादा ही रहना था .


शेखर पटना के विख्यात विशाल गाँधी मैदान के निकट ही रहता था .गाँधी मैदान के दक्षिण में दो प्रसिद्द रोड हैं एक्जिबिशन रोड और फ़्रेज़र रोड .उसे सुबह सुबह वाक करने की आदत थी .उसने सोचा कि बगल में ही गाँधी मैदान है , इससे बेहतर खुली जगह और कहीं नहीं मिलेगी .बाकी दिन भर तो यह इलाका बहुत व्यस्त रहता है .


दिसंबर का महीना था , जाड़े का मौसम . सुबह के सात बज रहे थे पर काफी कोहरा छाया था .अक्सर शेखर की पत्नी भी साथ में वॉक करने आती थी . पर कल शाम को ही वे लंबी यात्रा के बाद पटना पहुंचे थे .वह कुछ थकी और अलसायी थी तो उसने कहा कि आज शेखर अकेले ही घूम आये .


शेखर गाँधी मैदान के किनारे किनारे टहलते हुए पूरब की ओर चला गया . उसी ओर पटना के तीन सिनेमा हॉल

एलफिन्सटन ,रीजेंट और मोना हैं और थोड़ी ही दूर पर रूपक सिनेमा भी है .उसने देखा कि खुले मैदान में उस कड़ाके की ठण्ड में कुछ लोग रह रहे थे . कुछ जगह आग जल रहा था और उसी के इर्द गिर्द कुछ लोग बैठे

थे .वह उनके निकट गया.


उसने देखा कि वहां लगभग सात आठ परिवार खुले मैदान में रह रहे थे . उसने सोचा मैं तो ऊपर से नीचे तक गर्म कपड़ों में ढका हूँ , हाथ में दास्ताने , गले में मफलर और सर पर ऊनी टोपी भी है .दूसरी ओर इनके बच्चों , औरतों और मर्दों सभी के तन पर नाम मात्र के फटे पुराने वस्त्र हैं .कोई गेहूं चावल के बोरे ओढ़े था तो कोई पुराने फ़टे शाल .बच्चे तो और मस्त , आधी बांह की कमीज या बड़े साइज के पुराने फटे स्वेटर पहने थे . घर के नाम पर चारों कोने में बांस के खम्भों के ऊपर प्लास्टिक की छत थी .नीचे बिस्तर के नाम पर पुआल और ओढ़ने के लिए एक गन्दी सी गुदड़ी या रजाई जो भी समझ लें .


औरतों ने काम चलाऊ चूल्हे जला रखे थे .चूल्हे क्या थे तीन पुरानी ईंटों को रख कर नीचे लकड़ी ,पुआल जला दिए थे .चूल्हे पर टूटे फूटे तवे पर रोटी पक रही थी .कुछ बच्चों के हाथ में रोटी के रोल थे जैसे हमारे बच्चे एग रोल आदि खाते हैं .औरतों ने रोटी के ऊपर कडुआ तेल ( सरसों का तेल ) में नमक मिला कर लपेट के उनके हाथ में पकड़ा दिए थे ,जैसे हम अपने बच्चों को रोटी पर चीज स्प्रेड या जैम स्प्रेड कर खिलाते हैं . वे सुबह सुबह बिना मुंह हाथ धोये ख़ुशी ख़ुशी खा रहे थे. शेखर उनके पास जाकर एक मर्द से बोला " तुमलोग बाहर से आये हो क्या ? और इतनी ठण्ड में क्यों हो ? "


वह बोला " और फ्री में कहाँ जगह मिलेगी ? हम उत्तर बिहार के कटिहार के पास से आये हैं .अभी हाल में आये बाढ़ में सब कुछ बह गया .हमारा मिट्टी का घर , बकरियां , थोड़ा खेत था .कुछ भी नहीं बचा ."


" तब यहाँ क्या कर रहे हो ? "


" काम की तलाश में आये हैं .किसी तरह दो रोटियां मिल जाए बाल बच्चों को ."


" काम मिला ? "


" कभी मिलता है , कभी नहीं भी मिलता .कभी बीबी बच्चे बगल के सिनेमा हॉल या पास के बाजार से भीख मांग कर लाते हैं .सब्जीवाले कोई एक दो आलू दे देता है . उसी क़ो उबाल कर उसे मसल कर नून , तेल मिला कर चोखा बना लेते हैं .और यही जो पानी देख रहें हैं उसी में डूबा कर रोटी को थोड़ा नरम कर खाकर काम खोजने निकल जाते हैं . कभी दीघा तो कभी दानापुर की तरफ जहाँ नए नए बड़े बड़े घर बन रहे हैं , ईट , बालू , सीमेंट ढोने का या राज मिस्त्री के हेल्पर का काम मिल जाता है .सप्ताह में दो तीन दिन भी मजदूरी मिल जाती है तो उसी में पूरा सप्ताह काम चला लेते हैं ."


इतना बोलकर वह हँस पड़ा था , तभी उसका तीन चार साल का बेटा मेरे पास आकर अपना ब्रेड रोल दिखा कर बोला " लोटी लो ,लोटी लो ."


उसका बाप बोला " नहीं बेटे , साहब लोग ये रोटी नहीं खाते हैं ."


सच कहा था उसने ,शेखर वो रोटी तो नहीं खा सकता था .फिर भी उसने कहा " अभी मैंने ब्रश नहीं किया है ."


वह सोच रहा था कि ये गरीब दिल के बड़े अमीर होते हैं .इतनी गरीबी में भी चेहरे पर हँसी है और यह बच्चा अपनी रोटी मुझे खिला रहा है .उसने उस बच्चे के सर के बाल सहलाये और उसके हाथ में एक दस का नोट पकड़ा दिया . देखा देखी कुछ और बच्चे भी आये तो उन्हें भी उसने कुछ न कुछ पैसे दिए . शेखर घर की ओर चल पड़ा और उससे मुड़ कर देखा न गया .वह सोचने लगा ऐसी हालत में मैं तो आत्महत्या कर लेता .इतनी तकलीफ होने पर भी हमलोगों से ज्यादा जीने की इच्छा इन्हें है .


घर पहुँच कर शेखर बालकॉनी में पत्नी के साथ बैठ कर चाय पी रहा था .उसने गाँधी मैदान वाली बात पत्नी को बताई . पड़ोसी के मैदान में बड़ा सा शामियाना लगा था और उसे झाड़ फानूसों से सजाया जा रहा था .यह देख कर उसने पत्नी से पूछा " तुम्हें पता है क्या इनके यहाँ कोई फंक्शन है आज ? "


उसने कहा " आज नहीं कल रात को .बगल में घोष बाबू हैं न , वही हाई कोर्ट के वकील साहब उनके यहाँ बहू भात है , जैसे हमलोग शादी के बाद रिसेप्शन देते हैं . हमलोग भी इन्वाइटेड हैं ."


दूसरे दिन शेखर पत्नी के साथ मॉर्निंग वाक पर निकला . जैसे ही मैं मैदान के पूरब की ओर मुड़ना चाहा वह बोली " उधर मुड़ कर नहीं देखना है आज पश्चिम की और वाक करेंगे ."


मैदान के पश्चिम में संत जेवियर्स स्कूल , बैंक और अन्य दफ्तर हैं जिनके गार्ड वहां मौजूद रहते हैं और इस तरफ बाजार भी दूर है .इसिलए इस तरफ कल सुबह जैसा माहौल नहीं था .शेखर बोला " इधर अपेक्षाकृत साफ़ सुथरा है .कल का दृश्य देख कर मुझे तो शर्म आती है कि आज़ादी के लगभग सत्तर वर्ष बाद भी देश में यह हाल है

.कितनी सरकारें आयीं और गयीं पर गरीबी नहीं मिटी .सूखा हो या बाढ़ ,गर्मी का लू हो या जाड़े की शीत लहरी, हर मौसम में दुःख तो बेचारे गरीबों को ही झेलना पड़ता है ."


पत्नी ने अपना रूमाल दिखा कर कहा " आपको शायद इसकी जरूरत है , आप तो औरतों से भी ज्यादा भावुक हैं ."


" मजाक छोड़ो ."


वाक के बाद दोनों घर लौट आये .उसी दिन रात के करीब आठ बजे वे पड़ोसी के फंक्शन में गए थे . शामियाना तीन तरफ से घिरा था ,एक ओर आने जाने के लिए खुला था .अंदर भव्य सजावट थी और धीमी आवाज में रविन्द्र संगीत बज रहा था .ठण्ड से बचने के लिए जगह जगह अंगीठी जल रही थी हालांकि सभी ने भरपूर गर्म कपड़े पहन रखे थे .खाने के दर्जनों काउंटर्स सजे थे सामिष और निरामिष दोनों ,नार्थ इंडियन और साउथ इंडियन सभी डिश थे , और बिहार स्पेशल लिट्टी चोखा तक भी .चाय कॉफ़ी से लेकर मिठाईयां और आइस क्रीम तक सभी हमलोगों का इंतजार कर रहे थे .


सजे धजे स्टेज पर वर वधू बैठे थे .शेखर ने पत्नी के साथ वहां जाकर उन्हें उपहार दिए .फिर दोनों खाने के लिए बढ़े .अपनी प्लेटें उठायीं और मनपसंद व्यंजनों से भर कर कुर्सी पर बैठ कर खाने लगे .


तभी उसने देखा गेट पर कुछ शोर हो रहा था .वह उधर गया तो देखता है कि गाँधी मैदान वाले कुछ बच्चों और औरतों को गेट पर खड़ा गार्ड डंडे भांज कर भगा रहा था .पानी का टेबल शामियाने के बाहर लगा था .कुछ लोगों ने अपनी जूठी प्लेटें वहीँ नीचे रखे ट्रे में रख दिए थे .उनमें से बचे जूठन वे बच्चे और औरतें अपने अल्युमिनियम या तामचीन के कटोरे में बटोर रहे थे . उन गंदे कुचैले लोगों को गार्ड डंडे दिखा कर भगा रहा था .


. दोनों पति पत्नी अपनी प्लेटें हाथ में लिए गेट की तरफ गए .उसी भीड़ में शेखर ने देखा कि कल सुबह वाला लड़का भी अपनी माँ के साथ था .उसने उसे बुला कर अपनी प्लेट उसके कटोरे में खाली कर दी .फिर पत्नी ने भी ऐसा ही किया .उस लड़के ने कटोरे से एक रोटी का टुकड़ा उठा कर अपनी माँ से कहा " माय रे , लोटी और पूली दोनों है .बहोत अच्छा है न . "


उसी समय गार्ड ने हवा में डंडा लहराते हुए उसे भगाते हुए कहा " चल भाग जा यहाँ से ."


उनके बच्चों की तो मानो लौट्री लग गयी हो . दरवान का डर उनके मन में नहीं था . एक हाथ में रोटी - पूरी का कटोरा लिए दूसरे हाथ से खा रहे थे . उस दिन वाले बच्चे ने रोटी दिखा कर तुतली आवाज में कहा “ औल लोटी दो न . “


वे जाने का उपक्रम कर रहे थे , दो कदम जाते फिर रुक कर पीछे मुड़ कर देखते .गार्ड बोल रहा था " मुड़ कर वापस आया तो डंडा फेंक मारूँगा ."


शेखर और पत्नी दोनों ने टेबल से पानी के ग्लास उठाये , पानी पीकर टिशू पेपर से मुंह पोंछे और घर की ओर चल दिए . रास्ते में दोनों सोच रहे थे कि हमें भगवान् ने इतना कुछ दिया है फिर भी संतुष्ट नहीं हैं और इन बेचारों की जिंदगी सुधरने की कोई उम्मीद भी नहीं है .


- शकुंतला सिन्हा -

( बोकारो , झारखण्ड )


नोट - यह रचना मौलिक है और इसे केवल आपके पास भेजी गयी है . इसे अन्यत्र कहीं भी भेजी नहीं गयी है , न ही कहीं प्रकाशित हुई है और न ही विचाराधीन है .

रचना की तिथि - 8 . 2 .2019

यह कहानी पूर्णतः काल्पनिक है और किसी पात्र या घटना या जगह का भूत या वर्तमान से कोई सम्बन्ध नहीं है .

संपादक उचित समझें तो कुछ सुधार या बदलाव कर सकते हैं .


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