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हमारी अंतरा

हमारी अंतरा

अंतरा के माता-पिता नहीं थे। वह अपने चाचा-चाची के साथ रहती थी। चाची में अंतरा अपनी माँ की छवि को ही देखती थी पर उसकी चाची उससे घर का सारा काम करवाती थी। साथ ही बोलती भी रहती, न जाने क्या पाप किए थे जो यह निठल्ली हमारे पल्ले पड़ गई। अगर घर में कोई उसे प्यार करता था तो वह थी उसकी दादी। उसकी दादी बड़बड़ाती रहती, ‘इस कर्कशा को कभी सुख न मिले जो मेरी फूल-सी गुड़िया से काम करवाती है।‘ बूढ़ी दादी अंतरा के लिए अक्सर अपनी बहू से झगड़ती रहती थी।
अंतरा के स्कूल में बाल मेले की तैयारियाँ जोर-शोर से चल रही थी। इस बार बालभवन में बच्चों के लिए पेंटिंग-प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था। जब अंतरा की टीचर ने उसे पेंट-प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए कहा तो उसने मना कर दिया। भाग लेती भी कैसे, उसके पास तो कलर खरीदने के लिए पैसे ही नहीं थे। टीचर के बार-बार पूछने पर भी जब उसने प्रतियोगिता में भाग लेने से मना कर दिया तो टीचर ने कहा कि कल तुम पेरेंट्स मीटिगं में अपने चाचा-चाची को बुलाना।
दूसरे दिन जब अंतरा के चाचा-चाची स्कूल आए तो टीचर ने उनसे कहा कि आपकी अंतरा बहुत होशियार है पेंटिंग में तो उसका जवाब ही नहीं। अगले महीने बालभवन में पेंटिंग प्रतियोगिता है, पर न जाने क्यों अंतरा ने उसमें भाग लेने से मना कर दिया है। आप लोग उसे मनाओगे तो वह मान जाएगी।
घर वापस आने पर उसकी चाची ने उसे बहुत डाँटा और बोली ‘तू कहाँ की महारानी है, जो हम तुझे मनाएँगे तू आखिर चाहती क्या है,? अंतरा डरते-डरते बोली, ‘चाची मेरे पास कलर के लिए पैसे नहीं हैं, इसलिए मैंने मना कर दिया था। उसी समय उसकी दादी आई और बोली, ‘ले बिटिया! मेरे पास पैसे हैं, तू अपने लिए कलर ले आ। मैं देखती हूँ तुझे कौन रोकता है।
प्रतियोगिता वाले दिन अंतरा सुबह उठी। उसने रोज की तरह पहले घर के सारे काम किए फिर दादी के कमरे में जाकर बोली, दादी माँ मुझे आशीर्वाद दो ताकि मैं जीत सकूँ। उसकी दादी बोली, ‘मेरा आशीर्वाद तो हमेशा तेरे साथ है गुड़िया, जीत तेरी ही होगी।
जब प्रतियोगिता का परिणाम आया तो पता चला अंतरा ने 200 स्कूलों में प्रथम स्थान प्राप्त किया है। यह सुनकर उसकी दादी खुशी से फूली न समाई।
पुरस्कार वितरण समारोह में इनाम लेने के लिए अंतरा को मंच पर बुलाया गया। मंच पर जब उससे इस सफलता का राज पूछा गया तो उसने अपनी सफलता में चाचा-चाची के सहयोग व दादी के आशीर्वाद को ही कारण बताया। उसने कहा, ‘मैं बिन माँ-बाप की बच्ची हूँ, परंतु मेरे चाचा-चाची ने कभी मुझे इसका एहसास नहीें होने दिया। हमेशा मुझे सहयोग दिया। मेरी दादी माँ तो मेरी बैस्ट फ्ऱेंड है। मैं अपना यह ईनाम अपने चाचा-चाची व दादी माँ को देना चाहती हूँ, सर आप उन्हें यह पुरस्कार देंगे तो मुझे बहुत अच्छा लगेगा।
मंच पर जब चाची को अंतरा ने अपने हाथों से पुरस्कार थमाया तब चाची को अपनी गलती का एहसास इुआ। उन्होंने सबके सामने अंतरा को अपने गले लगा लिया। अंतरा भी रोते हुए उनके गले लग गई। आज अंतरा को माता-पिता का वह प्यार मिल गया था, जिसके लिए वह न जाने कब से तरस रही थी।
आशा रौतेला मेहरा
मकान न-4 नाँगलोई,
दिल्ली-110041