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पुराना दफ़्तर

पुराना दफ़्तर


शहेर के बीचो-बीच का एक सरकारी दफ़्तर हु मै,

जो अब पुराना हो चुका हु....

शायद एक अरसा हो गया हे मुजे बंद कीये गए,

मेरा हर कमरा, कमरे का हर सामान अब पुराना हो चुका हे....


मेरे अलग-अलग कमरे मे अलग-अलग लोग आते-जाते रहेते थे,

कुछ लोग इसी शहर के थे तो कुछ लोग दूसरे शहर या गाव से आते थे,

मगर सब लोग हर रोज़ कोइ ना कोइ यादे मेरे पास छोड जाते थे,

मै आज, उन सभी यादो का बोज लिये बैठा हु, बंद हु,

सोचता हु कि, कोइ तो ज़रुर आएगा एक दिन, जो मुजे खोलेगा ओर अपनी यादो को ले जाएगा,

जब कोइ आएगा तब उसे ये सारी यादे दे दूंगा, ओर थोडा हल्का महसूस करुंगा,

लेकिन अब कोइ आता ही नही यहा,

मै इतना पुराना हो चुका हु.......


मेरे सारे कमरे मे बहोत सारी चीजे रखी गइ थी,

मेज, कुर्सी, अलमारी, पानी का मटका, किताबे इत्यादि....

कइ सारे कागज़ भी थे जो अलग-अलग अलमारी मै अलग-अलग फाइल करके रखे हुए थे, शायद वो मुजसे भी पुराने थे,

कुछ फाइल एसी भी थी जिनका कोइ ठिकाना नही था, थोडे दिन अलग-अलग कमरे मे घुमकर कही बाहर ही चली जाती थी.....

आज वो लोग नही हे यहा मगर कुछ कागज ओर कइ सारी फाइल आज भी यही हे, कुछ बिखर गइ हे तो कुछ अलमारी मे महफूज़ हे,

मैने आजतक किसी भी कगज़ की स्याही को बहेकने नही दिया, वो आज भी वैसी ही हे जैसी चित्री गइ थी...

हा ! कुछ कागज़ हे जो कमजो़र हो गए हे, पिछले साल तुफान मे उपर छत्त से पानी टपक रहा था तो गिले हो गये थे, अगर कोइ उसे छूएगा तो तूट जाएगा, मगर खुश्बु जरुर आएगी.....

न जाने कितने सालो से मुजे सूरज की रोशनी ओर ताजा हवा नही मिलि, इसीलिये अब थोडी बास आती हे मुजमे से.....

मगर मै उसी कागज़ की खुश्बु से अपनी बदबू दूर कर लेता हु, ओर थोडी सी सास ले लेता हु...

क्या करु ! कइ सालो से मेरी मरम्मद नही हुइ, मै पुराना जो हो गया हु.....


मेरी ठीक दाइ तरफ एक बडा दरवाज़ा हे, वही से सब लोग आते-जाते हे,

ओर इस दरवाज़े और मेरे ठीक बीच मे, थोडे पीछे की तरफ़, आज एक नया दफ़्तर हे, जिसकी वजह से मे बंद हु... जिसकी वजह से मे पुराना हु....

नही ! नही !

मुजे नए दफ्तर से कोए शिकवा नही हे, बल्कि मै तो बहोत खुश हु, वो मुजसे बहोत अच्छा हे, मैने उसे बनते हुए देखा हे, मै तो तब से खुश था जब उसका बनना शुरु हुआ था, मगर....

मगर मुजे बंद कर देंगे ये सब लोग, ये नही सोचा था,

बस, तबसे मै खामोश हु, कुछ नही बोलता अब मे, मै चुप हु, मै पुराना हो गया हु........


मेरी चारो तरफ़ बहोत सारे पैड़ हे, जो मेरे होने से ही हे,

हम दोनो के बीज साथ मे बोये गये थे शायद, याद नही,

हम आजभी साथ हे, पूराना रिश्ता जो हे हमारा...

कभी कभी मै हस लेता हु और वो गुनगुना लेते हे,

मगर एक फर्क हे,

वो आज भी खुल्ले हे ओर बारीश आते ही नए लगने लगते हे,

लेकिन मै, मै तो पुराना हो गया हु और दिवबदिन पुराना होता जा रहा हु, मेरा कोइ मौसम नही, मै तो बंद हु ना ! मै पुराना हु.....


कइ सारे लोग आज भी यहा रोज़ आते-जाते हे,

सब उस बडे दरवाजे़ से ही आते हे और पहेले मेरी तरफ ही आते हे,

मगर मेरे तक पहोच नही पाते, मुजे देखते ज़रुर हे सब, मगर देख़कर मुड जाते हे, उस नए दफ़्तर की और....

हा ! कभी-कभी कुछ लोग गुज़रते हे मेरे दरम्यान से, मगर गुज़र ही जाते हे यहा से,

यहा रुक्ता नही हे कोइ, मुजे इतमिनान से देखता भी नही हे कोइ, मेरे पास नही आता कोइ, मुजे खोलता नही हे कोइ,

लगता हे, शायद मेरी आवाज़ नही सुन रहा हे कोइ,

मै बरसो से खामोश हु, बेचैन हु, अंदर ही अंदर तडप रहा हु,

पर शायद अब मेरी आवाज़ सुनना चाहता ही नही हे कोइ,

क्योकि मै पुराना हु.....

शायद एक अरसा हो गया हे मुजे बंद कीये गए,

मेरा हर कमरा, कमरे का हर सामान अब पुराना हो चुका हे....

मै पुराना हो गया हु....

मै पुराना हो गया हु....

- KALI RAJA

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