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तुम मिले - 4


 
                      तुम मिले (4)


सुकेतु अपने दोस्त दर्शन के ऑफिस में बैठा था। इस वक्त दर्शन किसी और क्लांइट के साथ व्यस्त था। सुकेतु बाहर बैठा अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहा था। करीब दस मिनट के बाद दर्शन ने उसे भीतर बुलाया।
"इंतज़ार करवाने के लिए माफी चाहूँगा। वो पुराने क्लांइट थे इसलिए मना नहीं कर सकता था।" 
कुर्सी पर बैठते हुए सुकेतु बोला।
"कोई बात नहीं। मैंने भी आखिरी समय में वक्त मांगा था।"
दर्शन ने उससे उसके आने का कारण पूँछा। सुकेतु ने सारी बात विस्तार से बता दी। सब जानने के बाद दर्शन कुछ देर सारी स्थिति पर विचार करता रहा। 
"भाई सुकेतु मामला तो पेचीदा है। क्योंकी पुलिस यह साबित नहीं कर पाई है कि सौरभ ज़िंदा है या नहीं तो कानून उसे जीवित ही मानेगा। इस तरह से मुग्धा तब तक तुमसे शादी नहीं कर सकती जब तक सौरभ इस दुनिया में नहीं है इस बात को प्रमाणित कर दिया जाए।"
"यदि ऐसा ना हो सके तो ??"
"इस दशा में सात साल तक इंतज़ार करना पड़ेगा। इस बीच यदि सौरभ नहीं लौटा या उसके विषय में कोई खबर नहीं मिली तो कोर्ट में अर्ज़ी दी जा सकती है कि सौरभ को तलाशने की सारी कोशिशों के बाद भी उसका कोई पता नहीं चल सका। अतः उसे मृत घोषित किया जाए। यह अर्ज़ी देने वाले को प्रमाणित करना पड़ेगा कि लापता को खोजने के सारे प्रयास किए गए हैं। अगर कोर्ट उसे मृत घोषित कर दे तो तुम लोग शादी कर सकते हो।"
दर्शन की बात सुन कर सुकेतु सोंच में डूब गया। अभी तो तीन साल ही हुए हैं। उन्हें चार साल की प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। तब जाकर वो लोग आगे की कार्यवाही कर सकते हैं। यही सब सोंचते हुए एक सवाल उसके मन में उभरा। 
"मान लो कोर्ट द्वारा सौरभ को मृत घोषित कर देने के बाद हम दोनों के शादी कर लें और वह वापस आ जाए तो ?"
"तो भी तुम लोगों की शादी मान्य होगी। पर अगर वह सात साल के भीतर ही आ गया तो ? उसके बारे में तुम लोगों ने कुछ सोंचा है।"
दर्शन ने जो सवाल किया उसके बारे में सुकेतु ने कुछ नहीं सोंचा था। उसका सारा ध्यान तो इस बात पर था कि वह अपनी और मुग्धा की शादी की कोई राह निकाल सके। इस सवाल को सुनने के बाद वह और भी सोंच में डूब गया। उसकी मनोदशा को भांपते हुए दर्शन ने कहा।
"इसीलिए मैंने कहा था कि मामला गंभीर है। अब तुम लोगों को निश्चित करना है कि क्या करना है। यदि शादी का विचार है तो लंबा इंतज़ार करना होगा।"
सुकेतु ने कोई जवाब नहीं दिया। दर्शन को धन्यवाद देकर वह अपने घर लौट गया। 
घर पहुँचा तो उसे बहुत थकावट महसूस हो रही थी। ऑफिस से सीधा वह दर्शन से मिलने गया था। लेकिन यह थकान शरीर से ज्यादा मन की थी। दर्शन ने जो पेचीदगियां बताई थीं उनके बारे में सोंच कर वह कुछ परेशान था। खासकर दर्शन की आखिरी बात ने उसके मन में हलचल मचा दी थी। इन सबके चलते फ्रेश होने का भी मन नहीं कर रहा था। वह अपने कमरे में जाकर लेट गया।
वह आगे क्या करना है इस पर विचार कर रहा था तभी उसकी माँ कमरे में आईं।
"क्या हुआ सुकेतु आते ही लेट गए। कपड़े भी नहीं बदले। तबीयत तो ठीक है ना।"
सुकेतु उठ कर बैठ गया।
"तबीयत ठीक है। आप परेशान ना हों।"
"मुग्धा के बारे में सोंच रहे थे। उसने कहा है ना कि सोंच कर जवाब देगी।"
सुकेतु जब मुग्धा से मिल कर लौटा था तब उसकी माँ ने पूँछा था कि क्या हुआ। वह सच बता कर उन्हें परेशान नहीं कर सकता था। उसने टालने के लिए कह दिया था कि मुग्धा ने सोंचने का समय मांगा है। पर आज उसके सामने वस्तुस्थिति बहुत साफ थी। अभी लंबा समय लगना है। वह अब माँ से कुछ छिपाना नहीं चाहता था। उसने अपनी माँ को सारी बात सच सच बता दी। सारी बात सुनने के बाद उसकी माँ ने कहा।
"इतने दिनों तक भगवान से प्रार्थना की कि तुम्हारा घर दोबारा बस जाए तो मैं भी निश्चिंत होकर मर सकूँ। भगवान ने मेरी प्रार्थना सुनी भी तो बीच में यह विघ्न आ गया। लगता है कि मेरी किस्मत में ही नहीं है कि मैं चैन से मर सकूँ।"
सुकेतु अपनी माँ के दुख को समझ रहा था। वह तो दुनिया की दसरी माओं की तरह अपने बेटे को खुश देखना चाहती थीं। लेकिन वह भी मुग्धा को नहीं छोड़ सकता था। उसने अपनी माँ को समझाने का प्रयास किया। 
"मम्मी आपने तो देखा है कि सुहासिनी के जाने के बाद मेरा क्या हाल था। केवल ऑफिस जाने के लिए घर से निकलता था। घर लौट कर अपने कमरे में पड़ा रहता था। किसी से भी मिलता जुलता नहीं था। लेकिन मुग्धा के आने से सब बदल गया। मुग्धा ने ही मुझे अपने बनाए पिंजड़े से बाहर निकाला। अब मैं उसे नहीं छोड़ सकता हूँ।"
"ठीक है बेटा जो तुम्हें ठीक लगे। किंतु बहुत धैर्य से काम लेना होगा। अभी तो शुरुआत है। ऐसा ना हो बाद में मुश्किल हो।"
अपनी बात कह कर माँ ने सुकेतु को खाना खाने के लिए आने को कहा। सुकेतु उन्हें और दुखी नहीं करना चाहता था। इसलिए इच्छा ना होने के बावजूद कपड़े बदल कर खाने चला गया।
खाना खाने के बाद जब वह दोबारा अपने कमरे में आया तो माँ की कही बात दिमाग में घूम रही थी। 
'अभी तो शुरुआत है। ऐसा ना हो बाद में मुश्किल हो।'
सुकेतु समझ रहा था कि यह इंतज़ार आसान नहीं होगा। ऐसा नहीं था कि मुग्धा को लेकर अपनी भावनाओं के प्रति उसके मन में किसी भी तरह की कोई दुविधा थी। मुग्धा के लिए अपने प्यार को लेकर उसका मन पक्का था। हाँ पर जैसा माँ ने कहा था कि बहुत धैर्य रखने की ज़रूरत होगी। इंतज़ार के अतिरिक्त और कोई उपाय भी नहीं था। उसने एक बार फिर अपने मन को सारी परिस्थितियों के लिए मजबूत कर लिया।
वह सोंच रहा था कि मुग्धा को सारी बात किस तरह बताए। कैसे उसे धैर्य बंधाए जिससे वह परेशान ना हों।
यह सब सोंचते हुए उसके विचारों की धारा दूसरी तरफ बहने लगी। आखिर ऐसी क्या बात है कि पुलिस इतने दिनों में सौरभ के बारे में कुछ पता नहीं लगा सकी। उसके परिवार वालों की समाज में प्रतिष्ठा है। रसूखदार लोगों से जान पहचान है। फिर भी उनकी तरफ से कोई खास प्रयास नहीं किए गए। कौन हो सकता है जो सीसीटीवी फुटेज में उसके साथ दिखा था। क्या सौरभ के अतीत में कुछ ऐसा था जिसके कारण किसी की उसके साथ दुश्मनी रही हो। ऐसे बहुत सारे सवाल उसके मन को मथने लगे। इन्हीं विचारों में गोते लगाता हुआ वह सो गया।
अगले दिन संडे था। नाश्ते के बाद सुकेतु ने मुग्धा को फोन कर मिलने की इच्छा जताई। क्योंकी मुग्धा की फ्लैटमेट लौट आई थी इसलिए तय हुआ कि दोनों सुकेतु के घर पर ही मिलेंगे। मुग्धा ने कहा कि वह दोपहर तक आएगी।
सुकेतु मुग्धा की राह देखने लगा।