Few- Find eternity within - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

फ्यू -फाइन्ड इटर्निटी विदिन - क्योंकि लाइफ की ऐसी की तैसी न हो - भाग-3

११) मैं सब कुछ जानता हूँ। जो ऐसा कहता है, उसे थोड़ी-सी जानकारी की ताकत का पता नहीं होता है। थोड़ा-सा ज्ञान अत्याधिक ज्ञान से कहीं बढ़कर है। सचिन सिर्फ क्रिकेट की दुनिया के बादशाह हैं। पिकासो के पास सिर्फ पेन्टिंग बनाने की कला है। जानकारी के पीछे भाग रही दुनिया में ऐसे कई दृष्टांत हैं। थोड़ा-सा जानना, उसे पूरी तरह जानना, उसमें श्रेष्ठता हासिल करना। सफलता की सबसे सच्ची कुंजी ये ही है। किसी क्षेत्र का इतना ज्ञान पा लें, जो सम्पूर्ण लगे, वो भी गलत है। जीवन से बड़ा विद्यालय कोई नहीं। इस विद्यालय की किताब का नाम अनुभव है। अपने क्षेत्र का अनुभव चाहे कितना भी प्राप्त किया हो, फिर भी वो कभी सम्पूर्ण नहीं होता। थोड़ा-सा रोज सीखते रहें, ध्यान केन्द्रित करके। सदा खुश रहेंगे!

१२) वक्त के साथ खुद में थोड़ा बदलाव लाते रहना चाहिए। वो थोड़े लोग, जो खुद को बदल पाते हैं, वो ही जीत हासिल करने में कामयाब होते हैं। अपनी आदतों से प्यार करने वाले शायद अपने आने वाले कल से कम प्यार करते हैं। जब मोबाइल नया-नया आया था, तब लोगों को आपने ये कहते हुए सुना होगा, “ये एसएमएस भेजना मुझसे नहीं होता।” अब वो ही लोग व्हाट्स-अप पर सारा दिन लगे रहते हैं। पानी हो, जवानी हो या ज्ञानी, ठहराव सबके लिए बुरी बला है। सस्ता सौदा है, आदतों का बिछड़ जाना, न कि खुद पिछड़ जाना। मुझे समझ में नहीं आता, मुझे नहीं सीखना, इस तरह की बकवास सबसे बड़ी कमजोरी है। भरी जवानी में अच्छी फिल्में बनाने वाले यश चोपड़ा ने 80 साल की उम्र में भी यादगार फिल्मों का निर्देशन किया था। बदन भले ही थक जाए, बुद्धि का थकना कभी स्वीकार्य नहीं हो सकता। आज थोड़ा-सा बदलाव लाना ज़रूरी है, क्योंकि इस कार्य को रोजाना कल पर टालने से आप कभी नहीं बदल पाएंगे। चलिए आज से ही बदलाव के लिए शुरू हो जाइए।

१३) सिर्फ थोड़ा-सा ज्यादा भरोसा, और फिर हो जाता है असम्भव भी सम्भव-सा। अरविन्द केजरीवाल के कभी दिल्ली के मुख्यमंत्री बनने की बात तो छोड़िए, एक औसत नेता भी बन पाएंगे, ऐसा किसी को नहीं लगा था। गलती या कमी केजरीवाल की नहीं थी। देश की राजनीति का हाल ही कुछ ऐसा रहा है। पर उनको खुद पर भरोसा था, इरादों के पक्के थे, इस लिए वे सफल हुए। अमिताभ बच्चन को उनकी आवाज और उनके कद के लिए हर जगह से नकारा गया। शाहरुख को उनके बालों के कारण हंसी का पात्र बनना पड़ा। उनके बोलने का अलग अंदाज भी कई लोगों को खटकता था। वे ऐसे कुछ लोग हैं, जो आलोचना की परवाह किए बिना अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहे। जानते हैं, कई बार आलोचना वो झूठा आईना बन जाता है, जो प्रतिभा, खूबी और मनोबल की शक्ति की अनदेखी कर बैठती है। मत सुनिए उन्हें, मत गौर करिए उनपर। जिन्हें कुछ कर दिखाना है, उन्हें मंजिल के अलावा कुछ भी नहीं दिखना चाहिए। थोड़ा-सा साहस, थोड़ी-सी बहादुरी और फिर देखिए, क्या से क्या हो सकता है। एक बार कदम आगे तो बढ़ाइए, अपने खुद के भले के लिए।

१४) हैरी पॉटर के रचयिता जे. के. रोलिंग का जीवन बड़ी कठिनाइयों से गुजरा। जीवन निर्वाह के लिए जब आमदनी का कोई विकल्प न मिला, तब उन्होंने रोने-धोने या ईश्वर को कोसने के बजाय कलम उठा ली। छोटी-सी हिम्मत थी, थोड़ा-सा हौसला था। उसी से हैरी पॉटर का जन्म हुआ और असाधारण सफलता और कीर्ति का भी। करोड़ों लोगों को ऐसे हालात का सामना करना पड़ता है, पर नयी शुरुआत हर कोई नहीं करता। तीस-चालीस की आयु के लोग भी यहाँ कहते हैं, “अब सेटल है सब, क्यूँ बेवजह लाइन चेंज करूँ? ठीक है यार, पहले सपने देखा करते थे, अब सच्चाई को देखना चाहिए। नहीं, सच्चाई यही है कि सेटल हो गए, अब हिम्मत नहीं होती, ये सारे आश्वासन सबसे सस्ती बेड़ियाँ हैं। दिल की आवाज़ सुनकर उन बेड़ियों को तोड़ने में कोई हर्ज नहीं होना चाहिए। जो लड़ते ही नहीं, वो हार-जीत का अनुभव कैसे उठा पाएंगे? तो लड़िए और विजयी बनिए।”

१५) अगर सुबह जागने की आदत नहीं बना पाये, या आमदनी और खर्च का संतुलन बिगड़ने पर भी अपने फिजूलखर्ची के स्वभाव को बदल ना पाये, या फिर एहसास होने के बाद भी छोटी-छोटी गलतियों में सुधार नहीं ला सके, तो समझ लीजिए कि लाइफ सुपर फास्ट ट्रेन की तरह खतरनाक मंजिल की ओर दौड़ रही है। गम्भीर रोग की शुरुआत भी छोटी-सी पीड़ा के साथ ही होती है। ताजमहल का निर्माण भी जमीन पर नींव रखने के साथ ही होती है। जो पीड़ा को बढ़ाना नहीं चाहते, वे सतर्क रहते हैं। इंसान हैं हम, हो सकता है कभी-कभी थोड़े समय के लिए भ्रमित हो जाएँ। इंसान के स्वभाव की ये निशानी है। लेकिन भ्रमित हुए, राह भूले और वक्त गंवाए बिना फौरन सँभल गए, सुधर गए, सीधी राह पर आ गए, तो ये स्वभाव की सशक्तता की निशानी है। चाहे जो भी हो, गलत स्वभाव के सामने झुकें नहीं। तभी उत्कृष्ट जीवन जी पाएंगे।

१६) दुनिया में लाखों स्कूल-कॉलेज हैं। उनमें से कुछ बेहद विख्यात हैं और उनके छात्र होना स्टैटस सिम्बल माना जाता है। मानो वहाँ एडमिशन मिलने मात्र से बच्चा वर्ल्ड फेमस पर्सनैलिटी, सफलतम मानव बन ही गया, जबकि ये सच नहीं है। यदि एेसा होता तो ऐसे स्कूल-कॉलेज के सारे छात्र जग-प्रसिद्ध होते, ना कि दो-पाँच या दस प्रतिशत। दूसरे कई स्कूल-कॉलेज, जो साधारण हैं, कम जाने-माने हैं, वहाँ भी करोड़ों छात्रों ने पढ़ाई की है। नामी स्कूल-कॉलेज की तरह ही, यहाँ से भी जो छात्र निकलते हैं, उनमें से दो-पाँच या दस प्रतिशत समाज में अपना स्थान बना ही लेते हैं। बात विद्यालय की नहीं, मनालय की है, यानी कि मनमन्दिर में विराजमान दृढ़ता, इच्छा और महत्त्वाकांक्षा की है। सचिन तेंदुलकर यदि स्वयं फोकस्ड हैं अपने काम के प्रति तो दादर हो या डरबन, कहीं पर भी हों, कोई फर्क नहीं पड़ता। इसलिए न हालात को दोष देना है, न ही शिक्षा और परिवार को। सच कहिए तो दोष देने का खयाल दिल से निकालकर आज ही से उन सपनों को हासिल करने के लिए टूट पड़ें, जो दोष देने में समय गंवाने के कारण हासिल नहीं हो पाये।]

१७) डेडलाइन! ये एक शब्द इतना असरदार और दमदार है कि उससे अच्छी-अच्छी हस्तियाँ लाइन पर आ जाती हैं। नहीं पढ़ने वाले बच्चे भी परीक्षा की डेडलाइन सिर पर मंडराने पर किताबों में खो जाते हैं। ये बचपना हालांकि सभी में होता है। हर काम में और हर बात में होता है। उसे पता है कि डेडलाइन के पहले प्राप्त पर्याप्त समय में यदि नित्य थोड़ा-थोड़ा काम कर लिया जाए, तो डेडलाइन कभी डैंजरस नहीं लगती। पर बहुत कम ही लोग इस अनुशासन का अनुकरण करते हैं। ज्यादातर लोग, “हो जाएगा, देख लेंगे, अभी तो बहुत समय है, ऐसा कह कर खुद का ही नुकसान कर बैठते हैं। गहराई से देखने पर ज्ञात होता है कि इस लापरवाही की कीमत बहुत ज़्यादा चुकानी पड़ती है। डेडलाइन का सम्मान ही आदर्श जीवन जीना है, क्योंकि ये जरूरी नहीं है कि अच्छा बैट्समैन हर बार आखिरी ओवर में तीस रन मार सकेगा? जीवन रूपी खेल को पहले से ही ध्यानपूर्वक खेलना चाहिए। फिर क्या डेडलाइन हमें डरा पाएगी, अगर हम उस पर हावी हो जाएंगे?