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अतीत

घर के सभी दरवाजे और लाइट बंद थे l पूरे कमरे में अंधेरा था, आकर्ष कमरे के एक कोने मे बैठा था उसका शरीर डर से पीला पड़ गया था, भरी सर्दी में भी उसके माथे से पसीना बह कर उसके अंदर बसे खौफ को जाहिर कर रहा था l आकर्ष अपने कानों में हाथ लगाए जोर जोर से चीख रहा था, "चुप करो, चुप करो, भाग जाओ यहाँ से, चुप करो " l उसकी आंखों के आगे बार-बार वही खौफनाक मंजर घूम रहा था तभी दरवाजा टूटने की आवाज आई और कुछ पुलिस वाले आकर उसको पकड़ने लगे और बोले, "अबे कितनी देर से दरवाजा खटखटा रहे हैं, खोला क्यों नहीं? ले चलो इसे थाने, इस की चर्बी निकालते हैं" l आकर्ष लगातार चिल्लाता रहा, "चुप करो, चुप करो", तभी सीनियर इंस्पेक्टर ने आकर्ष को दो लात मारी और कहा बोल, "लड़की की लाश कहां है? क्यों मारा उसे?", "ये ऐसे नहीं मानेगा सर", कहकर एक इंस्पेक्टर ने आकर्ष के ज़ख्मों पर नमक लगा दिया, आकर्ष पागलों की तरह चिल्लाने लगा," मुझे बचा लो, मुझे बचा लो, मैंने उसे नहीं मारा, मुझे बचा लो, वह मुझे मार डालेगा" l पुलिस वालों ने हंसते हुए कहा, " अबे बहुत शातिर है ये, लड़की को मार कर खुद मुझे बचा लो मुझे बचा लो कर रहा है" l उन लोगों ने आकर्ष को गाड़ी में बंद किया और ले जाने लगे l आकर्ष को चन्द्रा का चेहरा बार-बार याद आ रहा था लेकिन उसी के अगले पल ही वह खौफनाक चेहरा भी उसके सामने आ जाता, जिससे उसकी रूह तक कांप जाती l

रोज की तरह उस शाम भी आकर्ष चंद्रा से मिलने उसके घर गया जिसके पास एक तालाब भी था l चंद्रा के अधजले घर को देख कर आकर्ष कई बार उस से कह चुका था वह अपना घर ठीक करा ले लेकिन चन्द्रा टाल जाती l उस दिन भी वह दोनों बात ही कर रहे थे आकर्ष इतना शर्मिला था कि अब तक उसने अपने प्यार का इज़हार नहीं कर पाया था और चन्द्रा भी सब जानते हुए उसे तड़पाती, आज ना जाने कितनी हिम्मत जुटा के आकर्ष चन्द्रा के कंधों पे हाथ रखकर उसके बालों में हाथ फेरने लगा कुछ ही देर बाद अचानक आकर्ष तेज तेज हंसने लगा और चंद्रा के बाल खींचने लगा l चंन्द्रा चीखने लगी और बोली, "क्या कर रहे हो? छोड़ दो l आकर्ष बोला," छोड़ दूं, हाँ.. मुझे छोड़कर तू इसे पति बनाएगी हाँ, मैं तुझे हा हा हा हा हा हा" l आकर्ष ने चंद्रा को बेड पर पटक दिया, चन्द्रा जब तक उठी आकर्ष किचन से केरोसिन तेल उठाकर चंद्रा के ऊपर डालने लगा l चन्द्रा ने बहुत माफी मांगी तो आकर्ष बोला मैं अपना अधूरा काम करके जाऊंगा, उस रात तू बच गई और मैं जल गया, लेकिन अब तुझे और तेरे इस बाकी घर को भी जला डालूंगा और सजा काटेगा तेरा ये आशिक, हाहाहा l मै तुझसे प्यार करता था लेकिन तूने... मेरा नाम अतीत था पर तूने मुझे अतीत बना दिया, मैं तेरा अतीत बनकर नहीं जी सकता, हाहाहा l चन्द्रा बहुत घबरा गई और आकर्ष जिसमे अतीत की अत्मा थी उसके पैर पकड़ कर रोने लगी माफी मांगने लगी लेकिन देखते देखते घर से तेज तेज चीखे और आग की लपटें निकलने लगी, तभी आकर्ष को होश आया वो चंद्रा को बचाने के लिए भागा, चंद्रा आग की लपटों सहित घर से बाहर भागी और अफरा तफरी मे तालाब में गिर गई, आकर्ष भी उसके पीछे कूद पड़ा l कुछ देर बाद जब आकर्ष पानी के ऊपर आया तो चारों ओर पानी में लाशें तैर रही थी l सड़ी बदबूदार लाशें l इससे पहले उसका दम घुट जाता तभी अतीत हंसते हुए बोला, "रास्ता नहीं मिल रहा... हा हा हा हा हा, लाशों के ऊपर से निकल जा ना, डरने की क्या बात है" l आकाश डर गया और वह फिर पानी के अंदर चन्द्रा को ढूंढने लगा पर पानी के नीचे भी कई लाशें आकर्ष के पास आने लगीं, हँसती हुई, कटी हुई, लेकिन चन्द्रा कहीं नहीं दिखी, आकर्ष फिर बाहर निकला तो फिर अतीत का खौफ l दिल मजबूत करके वह उन सड़ी लाशों पर पैर रखकर जैसे ही वो निकलने लगा, लाशें फटने लगी और हंसने लगी, भाग जा.. भाग जा.. भाग जा.. की आवाज आने लगी l आकर्ष अपनी जान बचाकर भागते भागते गिरते और लड़ख़ड़ाते सीधा अपने घर आ गया, (कहानी अब तक) l
तभी पुलिस की गाड़ी रुकी और आकाश को जेल में डाल दिया गया l 7 दिन हो गए चंद्रा की लाश पुलिस को अब तक कहीं नहीं मिली और आकर्ष रोज मार खाता और हंस हंस के कहता कि, "वो नहीं मिलेगी, हा हा हा.. वो कहीं नहीं मिलेगी, मैंने उसे मार कर खा लिया है, हा हा हा हा हा.. मैंने उसे... हा हा हा.. I 
2 साल बाद.. 
" आकर्ष उठ कोई तुमसे मिलने आया है" कहकर हवलदार ने जेल का दरवाजा खोला आकर्ष लड़खड़ाते पैरों से रुक रुक के बाहर आया, जिस आकर्ष को देख कर लड़कियां दांतो तले उंगली दबा लेती थी , उस आकर्ष को देख कर आज नजरें घुमाने का दिल करता था, उसकी हालत बहुत दयनीय थी तभी आवाज आई," आकर्ष भैया इधर इधर आ जाओ" l आकर्ष उस बच्चे को पहचानने की कोशिश करने लगा लेकिन पहचान न पाया पूछने पर पता चला, " अरे मैं रिंकू, वही जो चंद्रा दीदी से ट्यूशन पढ़ने आया करता था" l आकर्ष को याद आगया l "इतना सब हो गया मुझे तो कुछ पता ही नहीं चला, वरना मैं कब का यहां आ जाता, उस दिन जो आप लोगों के साथ हुआ वह मैंने देखा था, रोज की तरह चंद्रा दीदी से मैं उस दिन भी ट्यूशन पढ़ने आया था, दरवाजा खुला था तो बिना घंटी बजाय घुस गया और देखा आप और चन्द्रा दीदी बातें कर रहे थे, मुझे लगा मैं बीच में डिस्टर्ब ना करूं और मैं वहीं चुपचाप पर्दे के पीछे खड़े देखता रहा और फिर जो हुआ उस पर मुझे आज भी यकीन नहीं होता, वह बुरी आत्मा मुझे भी देख लेती इससे पहले मैं घर से भागा और बगीचे के पेड़ के पीछे छुप गया, मैं कुछ और समझ पाता इससे पहले ही पूरा घर जलने लगा और चन्द्रा दीदी घर से बाहर जलती हुई निकली और उनको बचाने के लिए आप भी उसके पीछे पीछे आए और दोनों लोग तालाब में गिर गए l इसके बाद मैं इतना घबरा गया कि मैं अपने घर भाग गया, मैंने आज तक किसी को कुछ भी नहीं बताया और फिर मैं अपनी नानी के यहां पढ़ाई के लिए चला गया जब यहां आया तो मुझे पता लगा आप जेल में हो इसलिए मैं आप को बचाने के लिए अपनी गवाही दे रहा हूं कि आप निर्दोष हैं"l 
 रिंकू का बयान सुनकर आकर्ष को जेल से रिहा कर दिया गया l सालों बाद आकर्ष आज खुश था, रिंकू आकर्ष को लेकर सीधा चंद्रा के यहां आया , आकर्ष के पूछने पर रिंकू ने कहा," भैया चलो हम दोनों कुछ चंद्रा दीदी की यादें ताजा कर लेते हैं "l यह कहकर दोनों चंद्रा के घर में घुस गए, आकर्ष चुपचाप जमीन पर बैठ गया तभी रिंकू पागलों की तरह जमीन खोदने लगा, उसका चेहरा लाल होने लगा , आंखों से खून बहने लगा वह पागलों की तरह हंसने लगा," ले अपनी चंद्रा देख ले ", रिंकू ने करीब 20 फीट गहरा गड्ढा खोद डाला और जिसमें थी चंद्रा की लाश जो कंकाल में तब्दील हो गई थी l रिंकू गला फाड़ फाड़ कर हंसने लगा और उसका चेहरा बदल गया आकर्ष घबरा गया उसे नहीं पता था कि रिंकू के भेष में अतीत उसे लेने आया है l आकर्ष कुछ कहता इससे पहले अतीत ने आकर्ष को भी धक्का देकर गड्ढे मे डाल दिया और चंद पल में गड्ढे को भर दिया और उस पर बैठकर तेज तेज से हंसने लगा l