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नारी की विड़म्बना

" कितनी बेचेन हैं,
                       नारी प्रथा हमारी जहां कल तक "सीता" और "द्रोपदी" की भावनाओ का कत्ल हुआ छिन्न भिन्न हो गई इज्जत उनकी,'सीता' फिर भी कितने समय तक रावन की पन्हा में रही फिर भी ढ़की रही,रावन ने मर्यादा ना लांघी,...दुसरी और जहाँ 'द्रोपदी' का अपमान हुआ ,भरी सभा में अपनो के बीच कायरो द्वारा लज्जित़ हुई ,,और उन्ही अपनो का सर भरी सभा में झुका रहा,सभी ज्ञानी बडे़ बुजुर्ग तमाशा़ देखते रहे शर्म सार हो रही थी नजरे़ सभी की और वो रोती रही बिलखती रही,परंतु धेर्य बंधा रहा द्रोपदी का डटी रही और आँच ना आने दी कभी अपने दामऩ पर जख़्म तो दोनो को ही लगे।
एक अपहरण का शिकार हुई,तो एक जिल्लत का शिकार हुई,पर यहं मन पर उनके छोड़ गए छाप गहरी__
कल और आज भी हर किसी की जुबा़न पर कहानी इन्ही की हैं,,,,पर आज भी कुछ नहीं बदला...
पीडी़ दर पीडी़ नारी की भावनाएँ कुचली जाती हैं नारी आज भी आसुरक्षित हैं,नारी के जिस्म को ऐसे टटोला जाता हैं,जैसे की वो कोई वस्तु हो, घर में हो या बाहर हो,अकेली हो या भीड़ में हो हर जगहा इज्जत़ उसकी तार तार हो ही जाती हैं।।
अजीब ही व्यथा हैं/ना कानून ना समाज,ना ही कोई वर्ग इन अपराधो को मिटा सका ,सीता, और द्रोपदी के अपराधियों को तो दण्डं मिल ही गया था परंतु आज का क्या--सरकार नीत नए कानून बनाती हैं,फिर भी सभ्यता शर्म सार हो रही हैं मांसिकता भरी पडी़ हैं इस समाज में क्यों नहीं मारा जाता ,लकवा, अपराधियों की नजरो़ को,
परंतु एक गहरा सत्य यह भी हैं ना कल नारी सुरक्षित थी ना आज नारी सुरक्षित हैं,परंतु इसके विपरित आज जब जब उठाती हैं नारी कदम अपने लिए तो उसकी जुबा़न बंद कर दी जाती हैं अपनी आखरी साॅस तक लड़ती रहती हैं व्यभिचारियों को मुह तोड़ कर जवा़ब देती हैं,फिर भी दबोची जाती हैं।
सरकार कहती हैं की नारी आजाद़ हैं यदि हैं तो आजा़दी कहाँ हैं,बस और बस सरकारी कागजो़ पर ही आजाद हैं,,
समाज के छोटे से लेकर बडे़ वर्गो की नजरो़ में आज भी आजाद़ नहीं हैं,कितना बनावटी हैं ना समाज,निर्भया बलात्कार कांड़ और आसिफा़ जैसे छोटी बच्चियों बक्शी नहीं जाती हैं जहाँ भी देखो कंई ना कोई नया किस्सा हैं ना जाने कितनी जिन्दगीयां बर्बाद हो रही हैं,,कुछ सामने आ जाती हैं तो शौर मच़ जाता हैं और जो सामने आ नहीं पाती हैं वो अंधकार में ही सिमट जाता हैं,शोषण दर शोषण बड़ता ही जा रहा हैं,जीसे पता हैं वो खामोश़ हैं डर हैं ना जाने किस बात का वो यह नहीं जानते एक चुप सो अपराधो को जन्म देता हैं----बेशर्मी की हदे हर जगहा लांघी जाती हैं।।
बात केवल यहीं तक ही आकर खत्म नहीं होती जो निकले घर से बाहर अपना या अपनो का पेट पालने को भी कहीं तो भी नजरे़ होती हैं खराब दरिंदो की ताना देते हैं वस्त्रो का उनकी ,पर यह तो बताओ की ,सीता, और ,द्रोपदी, के वस्त्रो पर क्या कहेगे वो तो देवी थी,फिर उनका या कसूर था__छोटी छोटी मासूम बच्चीयों का या कसूर...?