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92 गर्लफ्रेंड्स भाग १२

आनंद और गौरव आपस में वार्तालाप करते हुए कहते है। हमने अपने अभी तक के जीवन में बहुत आनंद उठाया है और हमें अब इससे विरक्ति महसूस होने लगी है। जब पूर्ण संतुष्टि आ जाती है तो मन के भावों में परिवर्तन आने लगता है। पल्लवी और आरती के व्यवहार ने हमारे दिलों को बहुत ठेस पहुँचायी है। यदि हम अपने मन और हृदय में चिंतन करें तो यर्थाथ के धरातल पर उन दोनों का कहना सही है। उन दोनो ने हमें मझधार में छोड दिया इसी समय राकेश भी उन्हें खोजता हुआ आ जाता है और पूछता है कि आजकल तुम दोनो कहाँ खोये हुए हो। वे कहते हैं कि राकेश तुम्हारे जीवन में मानसी के कारण बहुत परिवर्तन आ गया है। तुमने अपनी राह एकदम बदल ली है। ऐसा ही परिवर्तन हम लोग भी अपने आप में महसूस कर रहे है। हमें जितना जीवन को भोगना था वह समय पूरा हो चुका है और इसका फल भी हमें भुगतना पड रहा है। अब हम अपने इस जीवन को नयी दिशा देकर एक नई सुबह का प्रारंभ करेंगें। अब हम अपने जीवन को सेवा के लिए समर्पित करेंगें एवं अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए किसी का उपयोग नही करेगें। हम प्रकाश के उस स्तंभ के समान बनना चाहते है। जो बंदरगाह में स्थापित रहकर रास्ते से भटके हुए जहाजों को सही राह दिखाता है। आम आदमी की जिंदगी में भी कुछ घटनायें इस तरह की घटित होती हैं जो व्यक्ति के दिमाग में प्रकाश स्तंभ की तरह स्थापित होकर व्यक्ति के निर्णय के मार्ग को आलोकित करती रहती हैं और व्यक्ति को मानवीय आधार पर कार्य करने की प्रेरणा देती है। राकेश कहता हैं कि देर आयद दुरूस्त आयद।

गौरव के पास उसके मित्र सुरेन्द्र का फोन आता है कि मेरी बहन कादम्बरी बहुत परेशान है और मैं तुम्हारा मार्गदर्शन चाहता हूँ। कोई उसे सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर बदनाम करने की धमकी दे रहा है। गौरव, सुरेंद्र के पास पहुँचता है और उससे इस मामले की पूरी जानकरी देने का अनुरोध करता है। सुरेंद्र कहता हैं कि मेरी बहन का फेसबुक के माध्यम से किसी आशीष नाम के लडके के साथ दोस्ती हुयी। चैटिंग के दौरान इनकी दोस्ती बढती गयी और इन लोगों ने एक दूसरे के मोबाइल नंबर भी ले लिये। इसके बाद वह लडका इसे झूठे प्रेमजाल में फँसाने लगा और उस लडके ने कुछ अंतरंग बातों को फोन पर एवं व्हाट्सऐप पर रिकार्ड कर लिया और अब इसे ब्लेकमेल करके शारीरिक संबंध बनाने हेतू दबाव डाल रहा है। अपनी बदनामी के डर के कारण जब इसे कोई रास्ता नजर नही आया तो इसने मुझे सब बातें बतायी। अब तुम बताओं इस मामले में क्या करना चाहिए ताकि बदनामी भी ना हो और उस लडके को सबक भी सिखाया जा सके।

गौरव कहता हैं कि तुम मेरे साथ चलो हम पहले पुलिस अधीक्षक के पास जाकर उनको सारा मामला बताते हैं फिर जैसा वो सलाह देंगे उसी अनुसार करेंगें। पुलिस अधीक्षक ने सारी बातें सुनने के बाद संबंधित थाना प्रभारी को फोन किया और उनका आवेदन कार्यवाही हेतु भिजवा दिया। पुलिस के सायबर सेल विभाग द्वारा आशीष नामक लडके के मोबाइल की लोकेशन प्राप्त की गयी तब यह पता कि वह मोबाइल किसी हैदर नाम के व्यक्ति के नाम पर है जिसका उपयोग इसी शहर में हो रहा है। कुछ समय पश्चात थाना प्रभारी के नेतृत्व में पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया। उससे पूछताछ में पता चला कि उसका असली नाम हैदर है एवं वह फर्जी नामो से फेसबुक पर लडकियों से दोस्ती करता हैं। वह उनको बदनामी का डर दिखाकर उनसे रूपये ऐंठता एवं शारीरिक संबंध बनाने के लिए भी दबाव डालता है। पुलिस द्वारा उसके मोबाइल एंव कम्प्यूटर की जाँच से कई लडकियों के नंबर एवं विभिन्न फोन रिकार्डिंग जब्त की जाती है एवं कानून की विभिन्न धाराओ के अंतर्गत उसके खिलाफ अपराध दर्ज कर दिया जाता है। पुलिस द्वारा उस लडकी को भी समझाइश दी जाती हैं कि फेसबुक जैसी सोशल साइट्स पर किसी अनजान व्यक्ति से बिल्कुल भी संपर्क नही रखना चाहिए केवल उन्ही लोगों से संपर्क रखें जिन्हें आप व्यक्तिगत रूप से जानते हों। हमें मोबाइल पर चैटिंग एवं बातचीत के दौरान सावधान रहकर शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। आजकल इस प्रकार के साइबर क्राइम बहुत बढ गये हैं क्योंकि लडकियों के भोलेपन का फायदा उठाकर उन्हें ब्लेकमेल करने का प्रयास असामाजिक तत्व करते रहतें हैं। ऐसे अधिकांश मामले पुलिस तक बदनामी के डर से नही पहुँच पातें हैं जिसका लाभ ये असामाजिक तत्व उठाते हैं। सभी लोगों ने भी पुलिस द्वारा की गई इस त्वरित कार्यवाही की बहुत प्रशंसा की और उनके प्रति आभार व्यक्त करते हुए वापिस लौट गये।

गौरव ने पिछले सप्ताह ही उसके साथ घटित एक वृतांत बताया उसने कहा कि वह प्रतिदिन उद्यान में शाम को 5 बजे निर्धारित समय पर घूमने जाता है। एक दिन घूमने के उपरांत वह बेंच पर बैठकर कोल्ड ड्रिंक पीते हुए अपनी थकान उतार रहा था तभी दो महिलायें जिनके साथ दो बच्चे थे अचानक आये और उनमें से एक ने मेरे किसी मित्र का परिचय देकर मुझसे बातचीत शुरू कर दी। वे लोग बडे संभ्रांत एवं व्यवहारकुशल नजर आ रहे थे। उनमें से एक महिला बहुत ही सुंदर एवं आकर्षक थी एवं मुझसे दोस्ती करने की इच्छुक थी। इसी दौरान ना जाने कैसे और कब उनमें से किसी ने मेरी कोल्डड्रिंक में कुछ मिला दिया, मुझे इस बात का बिल्कुल भी अंदेशा नही था। मैं तो अपने स्वभाववश उन महिलाओं के साथ बातचीत करता रहा और उनके मित्रता के अनुरोध पर मन ही मन प्रसन्न हो रहा था। उनके जाने के बाद कोल्डड्रिंक के दो तीन सिप लेने के बाद ही मुझे नींद आने लगी और मैं बेंच पर ही टिककर सो गया। लगभग एक घंटे बाद सिक्योरिटी गार्ड के हिलाने पर मेरी नींद खुली और मुझे अजीब सा महसूस हो रहा था जैसे अर्धबेहोशी की हालत हो। गार्ड ने पानी लाकर मुझे मुँह धोने के लिए कहा और अपने साथियो को बुलाया उसने मेरे ड्राइवर को भी सूचित किया तो वह भी दौडा दौडा अंदर आया। मैंने उनको इस घटना के विषय में बताया तो उन्होने कहा कि आप अपना सामान जाँच लीजिए। मैंने जब जेब में हाथ डाला तो मेरा मोबाइल गायब था और पर्स में से पूरे रूपये भी गायब थे। इसी दौरान मेरे पास भीड लग चुकी थी। गार्ड ने कहा कि साहब पुलिस को फोन करके बुला लूँ। मैंने उसे कहा मत बुलाओ क्योंकि लगभग एक घंटे बाद मुझे दूसरे शहर जाने के लिए ट्रेन पकडनी हैं पुलिस के चक्कर में मेरी ट्रेन छूट जायेगी, मुझसे चोरी किया गया सामान तो वापिस मिलने से रहा। इसलिये मैं इस झंझट में नही पडना चाहता था और कुछ देर बाद में अपने ड्राइवर के साथ वापिस अपने घर लौट गया। मुझे भली भांति अहसास हो गया था कि किसी भी अपरिचित द्वारा मित्रता का प्रयास करने पर हमें सावधान रहना चाहिए। आज के समय में संभ्रांत परिवार के दिखने वाले व्यक्ति भी चोर उचक्के हो सकते हैं।

यह सुनकर राकेश बताता है कि एक बार उद्यान में उसके साथ भी एक विचित्र हादसा हुआ। वह उद्यान में घूम रहा था तभी उसके फेसबुक पर एक भानु नाम की लडकी की फ्रैंड रिक्वेस्ट आयी। मैंने उसे स्वीकार कर लिया। इसके बाद उसका मैसेज आया कि वह मुझसे मिलना चाहती है। मैंने उसे जवाब दिया कि मैं अभी एक घंटे तक उद्यान में हूँ आप चाहे तो आ सकती हैं। उसने कहा कि ठीक है मैं आ रही हूँ। लगभग 20 मिनिट के बाद वह वहाँ पहुँच गई। उसने बातचीत के दौरान बताया कि उसका तलाक हो चुका है एवं उसका पति सेना में कार्यरत था। उसका एक लडका है जिसे पढाई के लिये उसे पूर्व पति से पाँच हजार रू. महीना प्राप्त होता है। वह अपने परिवार से अलग रहती है एवं उसका जीवन यापन उसके भाई एवं भाभी पर निर्भर है। इस कारण वह काफी दुखी है। मैंने उसे सांत्वना देते हुये कहा कि आप कोई अच्छा जाब देख लीजिए इससे आप व्यस्त भी हो जायेंगी और धनोपार्जन का साधन भी बन जायेगा। उसने मुझसे पूछा कि क्या आपकी नजर में ऐसा कोई नौकरी है जो कि मेरे लायक हो तो बताइये। मैं इसके लिए तैयार हूँ। मैंने कहा कि मैं आपको बताऊँगा और हमारे बीच में वार्तालाप विभिन्न विषयों पर बढती गई उसने अपना चेहरा मुझे दिखाते कहा कि मुझे एलर्जी हो रही है एवं मैंने एक चर्मरोग विषेषज्ञ डा. मुखर्जी से समय लिया हुआ है अतः अब मुझे वहाँ जाना होगा क्योंकि वहाँ काफी समय लगता है। यह सुनकर मैंने उसे कहा कि वो डाक्टर मेरे परिचित है। आप मेरे साथ चलिए मैं आपको फौरन मिलवा देता हूँ। वह बोली कि मैं कार से पहुँच रही हूँ आप भी वहाँ पहुँच जाइये। मैंने उसे डाक्टर से मिलवा दिया और जाते समय उसने बताया कि यह कार उसकी भाभी की है वे शाम को 6 बजे के बाद अपनी नौकरी से आ जाती है तो मुझे मिल जाती है।

दूसरे दिन वह वापिस मुझसे मिलने आयी। उसके साथ उसकी मित्र अर्चना एवं दोनो के साथ बच्चे भी थे। हमारी बातचीत होती रही इसके बाद मैंने उन्हें रेस्टारेंट में भोजन करने के लिए पूछा तो वे तैयार हो गये। रेस्टारेंट में ही बातचीत के दौरान उनकी बातों से लगने लगा कि इनको रूपयों की आवश्यकता है और इसके लिये ये सेक्स के लिये भी तैयार हो सकते है। इसके बाद मैंने उनसे सीधी सीधी बात की तो उन्होंने कहा कि उन्हें बीस हजार रू. की जरूरत है। मैंने कहा कि अगर मैं इंतजाम कर दूँ तो मुझे क्या मिलेगा ? उन्होंने कहा कि आप जो चाहे हम वो करने के लिये तैयार हैं। दूसरे दिन मैंने उन्हें अपने गेस्ट हाऊस में मिलने के लिये बुलाया। वे दोनो आयी और ये जानने के बाद कि मैं रूपये लाया हूँ उन्होंने बीयर पीने की इच्छा जाहिर की। बीयर पीने के बाद अर्चना नशे में डोलने का नाटक करने लगी। मैं कुछ देर के लिए बाथरूम गया और वापिस आया तो देखा कि अर्चना कही चली गयी थी और भानु ने उसे ढूँढने के लिये आवाज लगाना शुरू किया और सभी कमरों में जाकर देखा फिर उसने कि लगता है वह बाहर चली गयी उसे फोन करती हूँ और अपने पास मोबाइल में बैलेंस ना होने की बात कहकर उसने मुझसे मोबाइल लिया और फोन लगाती हुयी कमरे से बाहर चली गयी। मैंने सोचा शायद नेटवर्क प्राब्लम की वजह से बाहर गयी होगी परंतु जब मैंने अपनी जेब में हाथ डाला तो पाया कि मेरा पर्स चोरी हो चुका था एवं भानु भी बाहर नही मिली। मैं समझ गया था कि मेरे साथ ठगी हो चुकी हैं।

भानु के बताये हुये पते पर मैंने खोजने की कोशिश तो पता चला कि वहाँ पर इस नाम का कोई नही रहता। मेरे मन में विचार आया कि पुलिस में इसकी रिर्पोट दर्ज की जाए परंतु तभी याद आया कि मुझसे भी पूछा जायेगा कि आप उन लडकियों को अपने गेस्ट हाऊस क्यों ले गये थे ? यह सोचने के बाद मैंने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराने का विचार त्याग दिया। इस घटना ने मुझे जीवन पर्यंत एक सीख दे दी अंजान महिलाओं से दोस्ती करते समय बहुत सतर्क रहना चाहिए एवं पर्याप्त खोजबीन के बाद ही उनसे निकटता बढानी चाहिए।

समय की गति बहुत तेज होती है। दिन,माह कैसे गुजरते जाते है हमें स्वयं पता नही चलता है। राकेश की पढाई पूरी हो जाती हैं और उसका विवाह मानसी के साथ संपन्न होकर वह गृहस्थ जीवन में प्रवेश करता हैं। इसके कुछ माह बाद ही आनंद और गौरव भी अपनी शिक्षा पूरी करके व्यापार में व्यस्त हो जाते है। जब भी वे राकेश का व्यवस्थित गृहस्थ जीवन देखते तो उन्हें रह रह कर पल्लवी और आरती की याद आने लगती थी परंतु वे इसे अपने भाग्य की नियति और कर्मों का फल समझकर इसे भूलकर पुनः अपने कार्य में व्यस्त हो जाते। अब उन्हें वासनामय जीवन से विरक्ति हो चुकी थी और उनके मन में उनके अनुभवों के आधार पर समाज में व्याप्त कुरीतियों को समाप्त करने की प्रबल इच्छा होने लगी थी परंतु वे क्या करें और कैसें करें आदि प्रश्नो में उलझे हुये थे। उनके मन में शादी करने की तमन्ना लगभग समाप्त हो चुकी थी और परिवारजनों द्वारा ज्यादा दबाव दिये जाने पर वे इसे किसी ना किसी बहाने टाल देते थे।

तीनों मित्र आर्थिक रूप से काफी संपन्न थे और उनके मन में अपने धन को समाज के हित में उपयोग करने का भाव निर्मित हो गया था। उन्होंने आपस में चर्चा करके जनसेवार्थ एक ट्रस्ट का गठन किया और उसके अंतर्गत एक परामर्श केंद्र की स्थापना की जिसका कार्य युवा पीढी को उचित मार्गदर्शन देकर उनकी आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक, भावनात्मक एंव अन्य किसी भी प्रकार की समस्या का निराकरण करने का हरसंभव प्रयास करना था। इस परामर्श केंद्र में उन्होंने चिकित्सक, अधिवक्ता, धार्मिक गुरू एवं समाज सेवा से जुडे कुछ प्रतिष्ठित लोगों को भी उसका सदस्य बनाया था।

इस केंद्र में एक दिन मीना नाम की छात्रा का मामला आया उसके परिवारजनों को शिकायत थी कि वह पढाई में ध्यान ना देकर केवल टेलीविजन और मोबाइल पर अपना समय नष्ट करती थी। इस मामले में एक शिक्षाविद् की मदद ली गई जिसने उसे बुलाकर बहुत अपनत्व एवं स्नेह से समझाया। उन्होने कहा कि अध्ययन एक लक्ष्य प्राप्ति का साधन है और शिक्षा से हमारे अंदर विद्यमान गुण व योग्यताऐं विकसित होकर हमे मार्गदर्शन देती हैं। हम ज्ञान का उचित समय पर व्यवहारिक उपयोग करके अपने जीवन की उलझनों को सुलझाने में समर्थ होते हैं। जब तुम्हें कोई समस्या के समाधान की आवश्यकता होती है तो हमारे ज्ञान के संचित भंडार का उपयोग करके हम निदान करते हैं। जो छात्र पढाई नही करता वह विपरीत परिस्थितियों में घबराकर अपने को लज्जित अनुभव करता हैं और समाज में उसकी कोई पूछ परख नही होती और वह जीवन में कभी प्रगति नही कर पाता। वह अस्तित्वहीन होकर तिरस्कृत जीवन जीता हैं।

शिक्षा जीवन को दिशा देती है और हमें ईमानदारी, परिश्रम एवं समर्पण से जीवन जीना सिखाती है। जिनका पालन करते हुए हम अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक रहकर जीवन को सार्थक बनाते हैं। अब तुम बताओं कि तुम्हें शिक्षा प्राप्त करने में क्या कठिनाई है ? वह बोली कि मेरी रूचि इतिहास एवं कला के विषय में परंतु मेरे परिवाजनों ने जबरदस्ती मुझे विज्ञान विषय में प्रवेश दिला दिया है जिसे पढने में मेरा मन नही लगता और इसी कारण में शिक्षा से विमुख होकर टी.वी और मोबाइल की तरफ आकर्षित हो गयी हूँ। इसके बाद उन शिक्षाविद् महोदय एवं परामर्श केंद्र के अन्य लोगों ने उसके परिजनों को समझाया कि शिक्षा में कोई भी विषय छोटा या बडा नही होता। हर विषय का अपना महत्व हैं और जबरदस्ती किसी विषय को पढाने से उस छात्र की प्रतिभा का विकास अवरूद्ध हो जाता है और वह कहीं का नही रह पाता। परामर्श केंद्र की समझाईश के बाद उन्होंने अपनी बेटी मीना को उसकी इच्छानुसार विषय में प्रवेश दिला दिया। इस घटना के लगभग दो माह बाद उनसे संपर्क करने पर उन्होंने बताया कि अब मीना बिल्कुल बदल गई है अब तो उसका अधिकांश समय किताबों में ही बीतता है।

राकेश गौरव और आनंद के द्वारा बनाया गया परिवार परामर्श केंद्र काफी प्रसिद्ध हो जाता है। इसमें कई गंभीर मामले भी आने लगते हैं। गौरव ने बताया कि एक अजीब मामला परामर्श केंद्र में आया था। एक दिन कजरारी बाई नामक एक महिला जो कि मजदूरी करती है उसका विवाह पास ही के गांव के एक व्यक्ति किशोर से होता है दोनो बढ़िया सुखमय वैवाहिक जीवन व्यतीत कर रहे थे एवं उनका एक साल का बेटा भी था। एक बार किसी व्यक्ति की हत्या के कारण किशोर एवं उसके भाइयों को न्यायालय द्वारा आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। कजरारी बाई अकेले होने के कारण अपने मायके में रहने लगी। उसे भ्रम था कि उसका पति अब जीवन भर जेल में रहेगा तो उसकी यह जिंदगी कैसे कटेगी। उसके इसी अकेलेपन के कारण उसके गांव मे ही एक सजातीय युवक राजा से संबंध बन गए और उससे विवाह करके सुखमय जीवन व्यतीत करने लगी। राजा से विवाह के उपरांत कजरारी बाई की तीन और संताने हुईं परंतु कुछ समय बाद उसका सुखमय जीवन दुखी हो गया जब उसके पूर्व पति सुरेश को उसके अच्छे आचरण के कारण सजा से मुक्ति मिल गई और वह कजरारी बाई को उसके दूसरे पति एवं बच्चों को छोडकर उसके पास वापिस आकर रहने के लिए परेशान करने लगा। इसकी शिकायत गांव की ही पंचायत में की गई थी वहाँ से यह मामला हमारे परामर्श केंद्र में आया। कजरारी बाई अपने को भयभीत महसूस कर रही थी क्योंकि वह दूसरे पति और बच्चों को छोडकर जाना नही चाहती थी और कानूनन उसका पहले पति से तलाक भी नही हुआ था। बहुत कोशिशो के बाद परामर्श केंद्र के परामर्शदाताओं ने उसके पूर्व पति सुरेश को इस बात के लिये राजी कर लिया कि वह अपनी पूर्व पत्नी को छोडकर दूसरा विवाह कर ले क्योंकि विवाह का अर्थ होता है कि दोनो खुशी खुशी जीवन जिये यदि एक भी पक्ष दुखी होकर रहेगा तो जीवन सुखमय और शांतिमय नही रहेगा अतः सुरेश इस बात के लिये तैयार हो गया कि वह पूर्व पत्नी को विधिवत तलाक देकर अपना दूसरा विवाह कर लेगा और भविष्य में उसे परेशान नही करेगा।

एक दूसरे वृतांत में नारायण प्रसाद नाम के 25 वर्षीय विवाहित पुरूष का अजीबो गरीब मामला आया। उसका एक वर्ष पूर्व ही पडोस के गांव की एक लडकी सुजाता से विवाह हुआ था। सुजाता की 5 बहनें थी और उनके घर में पुत्र का जन्म नही हुआ था। यह जानकर नारायण प्रसाद मन में बहुत भयभीत हो गया था कि सुजाता से भी पुत्री का ही जन्म होगा और पुत्र रत्न की प्राप्ति नही होने के कारण वह पितृऋण से मुक्त नही हो पायेगा।

परिवार परामर्श केंद्र द्वारा उसे समझाने के बहुत प्रयास किये गये, वर्तमान समय में पुत्र और पुत्री में समान अधिकारों की व्याख्या भी की गई परंतु उसे समझाने के सारे प्रयास बेकार हो गये और वह अपनी पत्नी को तलाक देने के लिए अडा रहा। एक परामर्शदाता को उसके एक रिश्तेदार के विषय में ज्ञात हुआ कि उसके दो पुत्र हैं और वह एक पुत्री की चाहत रखता हैं उससे चर्चा के उपरांत वह इस बात के लिए सहमत हो गया कि यदि नारायण प्रसाद को पुत्री होती है तो वह उसे गोद ले लेगा। इस शर्त पर नारायण प्रसाद भी सहमत हो जाता है। कुछ समय पश्चात उसकी पत्नी सुजाता गर्भवती हो जाती है। गर्भाधान के समय उसे काफी तकलीफ होती है एवं डिलेवरी के समय स्थिति गंभीर हो गयी कि चिकित्सकों ने उसे स्पष्ट कह दिया कि बच्चा और माँ दोनो का बचाना संभव नही है इसलिये किसी एक को ही बचाया जा सकता है। आप क्या चाहतें हैं ? नारायण प्रसाद कहता है कि उसकी पत्नी को तो बचा ही लीजिए यदि संभव हो सके तो आप लोग अथक प्रयास करके मेरे बच्चे को भी चाहे वह लडका हो या लडकी, बचा लें। मैं जीवनभर आपका उपकार नही भूलूँगा एवं आपका ऋणी रहूँगा। उसके मन लडके औ लडकी का भेदभाव समाप्त हो चुका था और वह अपने बच्चे के जीवन के लिए सच्चे हृदय से प्रभु से प्रार्थना कर रहा था। यह उसका भाग्य था या प्रभु की कृपा कि माँ और बच्चा दोनो ही डाक्टरों के प्रयास से बचा लिये गये और उसे जब पता हुआ कि सुजाता सुरक्षित है एवं उससे उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई है वह खुशी से पागल हो गया। कुछ माह पश्चात वह पुनः परिवार परामर्श केंद्र आकर सभी लोगों का आभार व्यक्त करता हैं।