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बेंत

बेंत :
उस दिन कक्षा में अध्यापक जी ने मुझसे कहा कोई कहानी सुनाओ। मैं दो-तीन मिनट सोचता रहा। फिर बोला वह लड़की जो कक्षा आठ में पढ़ती है मैं उससे प्यार करता हूँ। इतना सुनते ही अध्यापक गुस्से में लाल हो गये और चार बेंत दांये हाथ में और चार बेंत बाये हाथ में लगा दिये। फिर दो दो थप्पड़ गालों में लगा कर कुर्सी पर बैठ गये। प्यार की कहानी जो मैं बनाने जा रहा था, वह धराशायी हो गयी थी। मैं अपने लाल हाथों को देख कर आँसू बहा रहा था।
कक्षा से निकलने के बाद मैं उसे देखने गया।उसे देखभर लेने से संतोष हो गया। मैं हाँस्टल में रहता था और वह चार किलोमीटर दूर अपने गाँव से आती थी। रविवार को छुट्टी होने के कारण उसे देख नहीं पाता था अतः एक दिन तय किया उसके गांव होकर आऊं। दोपहर की चटक धूप थी।उसके गांव को जाते समय जंगल पड़ता था। तेज कदमों से मैंने रास्ता तय किया। पहाड़ी ढलान था। गांव पहुंचने पर उसके घर का पता पूछा। उसके घर के बगल से जाते समय आत्मसंतुष्टि की अनुभूति हुई। वह कहीं नजर नहीं आयी। देखा कि गांव चारों ओर से जंगल से घिरा है। गांव के पास एक नदी बहती है। उस पर घराट है। घराट पर पहुंचा। वह वहीं थी। उसने कहा यहाँ कैसे आये हो? मैंने कहा," तुम्हें देखने आया हूँ।" वह शरमा गयी। उसने कहा ,"इस जंगल में बाघ और भालू रहते हैं।" मैंने कहा," तुम्हारे गांव को देखकर मुझे बचपन में सुनी लोककथा याद आ रही है।" उसने कहा सुनाओ। घराट की खट, खट, खट की आवाज आ रही थी। आटे के कण उसके बालों पर चमक रहे थे।वह कुर्ता,सलवार पहने थी। बहुत सुन्दर लग रही थी। मैंने कहानी सुनाना आरंभ किया-
"एक बूढ़ी महिला थी। उसकी एक बेटी थी। बहुत समय बाद उसकी  शादी दूर गाँव में हुई।दोनों गाँवों के  बीच में घनघोर जंगल पड़ता था जिसमें शेर, भालू और लोमड़ी आदि जंगली जानवर रहते थे।जब बहुत समय हो गया तो बुढ़िया का मन बेटी के पास जाने को हुआ। ममता ऐसी शक्ति है जो असंभव को भी संभव कर देती है।जंगली जानवरों का डर उसे डिगा न पाया। उसने एक पोटली बनाई जिसमें बेटी के पसंद का सामना रखा।और निकल पड़ी बेटी से मिलने।एक हाथ में लाठी और सिर पर पोटली।रास्ते में उसे पहले लोमड़ी मिली और बोली," मैं भूखी हूँ, तुझे खाऊँगी।" इस पर बुढ़िया बोली," मैं अपनी बेटी के पास जा रही हूँ, उससे मिल कर, मोटी-ताजी होकर, आऊँगी तब खाना।अधिक मांस तुझे खाने को मिलेगा।" लोमड़ी लालच में आ गयी और बुढ़िया को उसने जाने दिया।फिर कुछ मील चलने के बाद उसे भालू मिला उससे भी बोली," मैं अपनी बेटी के पास जा रही हूँ, उससे मिल कर, मोटी-ताजी होकर, आऊँगी तब खाना।अधिक मांस तुझे खाने को मिलेगा।" भालू भी लालच में आ गया और बुढ़िया को उसने जाने दिया। चलते-चलते कुछ घंटों बाद उसे शेर मिला उसे भी वह बोली," मैं अपनी बेटी के पास जा रही हूँ, उससे मिल कर, मोटी-ताजी होकर, आऊँगी तब खाना।अधिक मांस तुझे खाने को मिलेगा।" शेर भी लालच में आ गया और बुढ़िया को उसने जाने दिया।शाम होते-होते बुढ़िया बेटी के घर पहुँच गयी। माँ को देख, बेटी खुशी से गदगद हो गयी। और बोली," जंगल में जानवरों से सुरक्षित होकर कैसे आयी।" बुढ़िया ने पूरी कहानी उसे सुनायी।धीरे-धीरे समय बीतता गया।एक माह बाद बुढ़िया को अपने घर लौटना था।उधर शेर, भालू और लोमड़ी की प्रतीक्षा चरम स्थिति में थी कि कब बुढ़िया मोटी-ताजी होकर आय और उसके मांस का आनन्द उठाया जाय।जीभ अपने स्वाद के लिये लपलपाती है, दूसरे के जीवन के प्रति निष्ठुर बनी रहती है।बेटी की चिंता दिनोंदिन बढ़ने लगी। फिर उसके दिमाग में एक युक्ति सूझी।उसने एक बड़ी तुमड़ी ली जो स्वचालित थी।ठीक माँ के विदा होने के दिन, उसने माँ को उस तुमड़ी में बैठाया और हाथों में पिसी मिर्च की थैली थमा दी।तुमड़ी में बैठने से पहले दोनों गले मिले और अश्रुपूरित आँखों से एक दूसरे को विदा किया। मन में शंका भी थी कि कहीं यह अन्तिम भेंट न हो।क्या पता फिर अगले जनम में मिलें या न मिलें?   तुमड़ी चलने लगी, और चलते-चलते शेर दिखाई दिया।शेर सोच रहा था कि," बहुत दिन हो गये हैं, बुढ़िया अभी तक आयी क्यों नहीं?" तुमड़ी शेर के पास पहुँची तो शेर ने पूछा," तुमने बुढ़िया को देखा क्या?" तो तुमड़ी से आवाज आयी," चल तुमड़ी रह बाट, मैं क्या जाणूँ बुढ़िये बात?" और तुमड़ी आगे चल दी। शेर निराश होकर इधर-उधर देखता रह गया।थोड़े समय के बाद भालू मिल गया उसने भी पूछा, " तुमने बुढ़िया को देखा क्या?" तो तुमड़ी से आवाज आयी," चल तुमड़ी रह बाट, मैं क्या जाणूँ बुढ़िये बात?" और तुमड़ी आगे चल दी।भालू निराश हो बैठ गया और बुढ़िया की प्रतीक्षा करने लगा। चलते-चलते,कुछ समय बाद लोमड़ी मिली, उसने भी तुमड़ी से पूछा," " तुमने बुढ़िया को देखा क्या?" तो तुमड़ी से आवाज आयी," चल तुमड़ी रह बाट, मैं क्या जाणूँ बुढ़िये बात?" लोमड़ी चालक थी ,उसे लगा कि,"आवाज बुढ़िया की जैसी लग रही है, हो सकता है तुमड़ी में बुढ़िया हो।" जैसे ही तुमड़ी आगे बढ़ने लगी,उसने उसे रोका। और तुमड़ी को फोड़ दिया, तुमड़ी के फूटते ही बुढ़िया ने लोमड़ी की आँखों में पिसी मिर्च डाल दी। और लोमड़ी आँख मलते लुढ़क गयी। बुढ़िया माँ फिर अपने घर सुरक्षित पहुँच गयी।"
वह बोली अच्छी है। वह उठकर घराट के अन्दर गयी और पिसे आटे को थैले में रखकर फिर बाहर आ गयी।वह साथ में एक किताब लायी थी। गणित की थी। मुझसे उसने कुछ प्रश्न पूछे।     मैंने उन्हें हल कर उसे समझाया।इस बीच उसने अपना हाथ मुझे दिखाया। मैंने उसका हाथ देखकर कहा," तुम्हारी शादी जल्दी हो जायेगी।" वह झट से बोली किससे? क्या तुमसे ? मैं चुप रहा। वह कुछ देर तक मुझे देखती रही। शाम हो चुकी थी। मैंने कहा चलता हूँ। और पूछा," कल स्कूल आ रही हो?" उसने कहा," हाँ।"  मैं पहाड़ी चढ़ायी चढ़ने लगा। सांस फूल रही थी। उधर बाघ और भालू का डर मन को सता रहा था।   
उस साल लगा समय शीध्र निकल गया है।अगले साल बहुत दिनों तक उसकी प्रतीक्षा करता रहा, लेकिन वह विद्यालय नहीं आयी।आठवीं कक्षा के बाद उसने स्कूल छोड़ दिया था।
**महेश रौतेला