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कल्लू-बल्लू

 "कल्लू - बल्लू"
ठंड का वो मौसम था... सुबह के 7:00 am बज चुके थे...। आज का मौसम भी बहुत अजीब था .. वैसे रोज़ मैं सुबह उठता नहीं था... लेकिन चिड़ियों की चेहकती आवाज़ से मैं उठ जाता था... मेरे घर के बाहर ही एक पतझड का पेड़ था... चिड़िया अक्सर वहा आ के बैठ जाया करती थी.. लेकिन आज न चिड़िया अाई थी.. और.. न ही उनकी आवाज़े...। अजीब सा मेहसूस हो रहा था आज... चाय की चुस्कियां भी लेने का मन नहीं था आज.... आसमान पे बादल के इर्दगिर्द (आसपास) काले बादल छाये हुवे थे.... सोचा कि पार्क में जाऊंगा तो मन की घबराहट ठीक हो जाएगी.... मैं रोज़ की तरह आज भी टेहलने के लिए निकला....। मैं फस्ट फ्लोर में रहता था.. मैं एक लेखक था... अभी मुझे यहा आये कुछ ही महीने हुवे होंगे...... मेरे घर के सामने एक पार्क ( गार्डन ) था... मैं अक्सर वहा टहलने जाया करता था.. की .. एक रोज़ मैंने दो बिले-बिल्लियों को देखा... बहुत ही प्यारे थे और मुझे बिले-बिल्ली बहुत अच्छे लगते थे... बिल्ले- बिल्ली एक दूसरे से लड़ाई,शरारतें कर रहे थे.... हमारे गांव में दो बिल्ले-बिल्ली थे... उसको हम अक्सर कल्लू-बल्लू बुलाया करते थे... तो मैं भी अक्सर दो इन बिल्ले-बिल्ली को कल्लू- बल्लू बुलाया करता था... में रोज़ पार्क में जाता था और कल्लू-बल्लू से मिलता और उनको दूध- बिस्कुट खिलाया करता था..... ऐसे ही ये सिलसिला रोज़ चलता था.... मैं पार्क में जाता था... कल्लू-बल्लू मुझे देखते ही मेरे पास आ जाते और बाहों में सिमट जाते... और .. रोज़ की तरह वो दोनों शैतानी करते थे... कल्लू-बल्लू पार्क के पीछे एक झोपड़ी जैसे घर में रहते थे... एक बार की बात है ... बल्लू को तेज की भूख लगी... उसको कुछ पीना था... उस ने कल्लू को कहा.. फिर, कल्लू उस के लिए कुछ लेने गया.. की.. कल्लू को रास्ते में ही चार-पांच कुत्तो ने घैर लिया... कल्लू... तो डर गया... कल्लू भागा- भागा .... लेकिन कुत्ते की झुंड में से.. एक कुत्ते ने उस को गले की और दबोचा... और.. दूसरे कुत्ते ने उस के पैर की और काटा... और .. कल्लू वहा पार्क के रास्ते पर गिर गया... तभी मैंने देखा कि कुत्तों की झुंड ने कल्लू को घैरा है.. तभी मैंने कुत्ते की झुंड को भगाया... फिर मैंने देखा कल्लू के गले में खून बेह रहा था और पैर में भी... कल्लू तड़प सा रहा था.. और बेहोश सा हो रहा था.. उसकी आंखे गिर रही थी..जल्दी से फिर मैंने मुल्सी पार्टी जानवर वाले डॉक्टर को कॉल किया... और थोड़ी देर बाद... बल्लू भी वही आ गई.. और डॉ.साहब भी.. वहा डॉ.साहब कल्लू का इलाज कर रहे थे.. कि... कल्लू को देखकर बल्लू रो रही थी.. उस की आंखों से आंसू बेह रहे थे... वो बस कल्लू को देखे जा रही थी...।
डॉ.साहब ने कल्लू का इलाज कर लिया... और कहा कि आप कल्लू को आपके घर रखिए दो दिन के लिए... क्यू की.. कल में वापस आऊंगा... इस का इलाज करने के लिए.. फिर, डॉ.साहब चले गए....।
* बल्लू बस कल्लू की और देख रही थी... वो कुछ न खाती थी और न ही कुछ पिती थी..... कल्लू को थोड़ा बेहोश देख के बल्लू रो रही थी... कल्लू की और देख के  बल्लू कहती.. ये सब मेरी गलती है... मेरी वजह से ही ये सब हुआ.... ना मुझे भूख लगती और न ही मैंने कल्लू को एैसे अकेले जाने दिया होता... और न ही ऐसा होता... और फिर वो मायूस हो गई... एैसे ही देखते देखते बल्लू सो गई... कल्लू की आंखे खुली.. उसे होश आया फिर बाद में वो सो गया....।
       दूसरे दिन डॉ.साहब आए.. कल्लू का इलाज कर के वो निकल गए... कल्लू अब पहले की तरह हो गया था .. लेकिन वो थोड़ा पैर से लंगड़ा के चलता था... ऐसे  फिर कल्लू और बल्लू रोज़ मेरे घर की खिड़की से आते और वो मेरे साथ शरारते किया करते..... कभी कभी मां घर पे आ जाया करती तो परेशान हो जाती... कहती कि ये कल्लू बल्लू को यहा मत लाया करो बेटा...।
        एक बार की बात है.... सुबह के 7:00 am बजे थे.. चिड़ियों का चि चि जैसा चेहकना था... मौसम भी ठंड था.. ठंड के मौसम में... गरमा गरम चाय की चुस्कियां ले रहा था मैं... मैंने जैसा की कहा है कि.. मैं अक्सर कल्लू-बल्लू को दूध पिलाया करता था.. चाय की चुस्की के बाद ... मैं पार्क में गया.. कल्लू-बल्लू पता नहीं कहा थे.. दिख ही नहीं रहे थे.. बड़े शैतानी थे... घूमते रहते थे...।... जैसे कि पार्क के बगल ही एक छोटी सी गली पड़ती थी... वहा तीसरी मंजिली तक फ्लैट थे.. उसी तीसरी मंजिली में शर्मा जी का घर है... उन के पास एक स्कूटर है... स्कूटर चलता है बड़ी तेज़ रफ़्तार से, लेकिन रुकता नहीं.. उन के स्कूटर में ब्रेकर ही नहीं था... वो ब्रेकर डलवाते ही नहीं थे... तो वहा अक्सर कल्लू-बल्लू खेला करते थे... की एक रोज़ मैंने देखा कि शर्मा जी के स्कूटर की तेज़ रफ़्तार से कल्लू- बल्लू बच गए.. फिर मैंने उन को कहा कि कल्लू-बल्लू  तुम यहा इस छोटी सी गली में मत आया करो... फिर वो दोनो मेरे पास आ के प्यार से दूध पीने लगे और शैतानी करने लगे.... और, आज सुबह से पता नहीं क्यूं घबराहट सी हो रही है... कल्लू-बल्लू से मिलूंगा तो मन थोड़ा हलका सा हो जाएगा...। लेकिन कल्लू-बल्लू आज पार्क में दिख ही नहीं रहे थे.. पता नहीं कहा चले गए थे.. बहुत बार ढूंढने के बाद मैंने सोचा कि.. वही, गली में तो नहीं गए शायद... फिर मैं वहीं ढूंढते-ढूंढते गली की और पहोंचा... और देखा की कल्लू-बल्लू वहीं थे... लेकिन बल्लू वहां गली के बिचो-बिच सोया पड़ा था... पता नहीं उस के मुंह से खून निकल रहा था.. और उसकी आंखे बाहर की बाहर टिकी थी.. न हिलती , न डुलती थी... और कल्लू उस के पास बैठा उस को ही तांक रहा था...उसकी आंखों में शायद आंसू दिख रहे थे... वो बल्लू के इर्दगिर्द घूम रहा था... कल्लू.. बल्लू को उठाने की कोशिश कर रहा था..। फिर मैंने बल्लू को मेरे घर के बगल की एक छोटी सी झोपड़ी में मूंद दिया... फिर मैं कल्लू को अपने घर पे ले गया... बाहर तेज़ बारिश हो रही थी... बिजलियों की कड़कड़ाहट सी आवाज़े आ रही थी... उस दिन से कल्लू.. न कुछ खाता, न कुछ पिता था .. बस उसकी आंखों में बारिश की तरह आंसू बेह रहे थे.....। दो दिन ,तीन दिन,और फिर पांच दिन तक उस ने कुछ नहीं खाया... और वो मेरे घर के बगल की झोपड़ी में जाता ... और वहीं बल्लू के इर्दगिर्द घूमता था... ।
     फिर एक दिन कल्लू सुबह  एक छोटी सी झोपड़ी में सोया हुआ मिला.. 'शायद' .. बल्लू ने उसे बुला लिया था...।