Jin ki Mohbbat - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

जिन की मोहब्बत.. - भाग 4

ज़ीनत ने सबा की अम्मी को कहा ।
"खालाजान में घर जा रही हूं मेरी तबियत ठीक नहीं लग रही , आप सबा को बोल देना l"
ज़ीनत वहा से चली गई...!
अचानक उसका सिर भारी होने लगा..l कंधो पर बोज बढने लगा उससे वहां खडा भी न रहा गया.. l अब आगे।


भाग 4

"ज़ीनत घर जा रही थीl उसे कुछ ऐसा मेहसूस होने लगा जैसे उसका शरीर भारी हो रहा होl कोई अनदेखी चीज उसके शरीर में आने को है ।
ज़ीनत घर जा कर अपने बिस्तर पे ऐसे गिरी जैसे उसके शरीर में जान नहीं थी ।
यहां सबा को उसकी अम्मी ने बताया कि 'ज़ीनत की तबियत ठीक नहीं लग रही थी तो वो घर चली गईं।'
रफीक सबा के घर दो-चार दिन रुकने वाला था ।
ज़ीनत के अब्बू ने देखा बोले l
"बेटा ठीक तो होना?"
ज़ीनत ने कोई जवाब नही दिया ।
"रशीद खान ने देखा ओर घबराकर ज़ीनत को जगाया कहाl
" ज़ीनत बेटा क्या हुआ है?"
"ज़ीनत को हाथ लगाया और ज़ोर से हिला दिया l ज़ीनत ऐसे घबराके उठ कर बैठ गई जैसे बुरा सपना देख कर नींद खुली हो।
"रशीदखान ज़ीनत की हालत देख हैरान थे कि ऐसा क्या हुआ?"
"ज़ीनत बेटा कोई बुरा ख्वाब देखा क्या ? इतनी क्यू डरी हुई हो बोलो बेटा ?"
ज़ीनत कुछ भी कहने की हालत में नहीं थीl वो पसीना-पसीना हो गई थी।
रशीदखान को कुछ समझ नहीं आ रहा था lआखिर क्या हुआ ज़ीनत को?
"अब्बू ने ज़ीनत को सीने से लगा लियाl
कहा l
"बेटा मुंह धोलो ठीक लगेगा।"
कुछ देर में ज़ीनत नॉर्मल हो गई, जैसे कुछ हुआ ही नहीं था।
दूसरे दिन सबा के होने वाले शौहर ने पूछाl
" सबा आपकी दोस्त की तबियत अब कैसी है ?"
सबा ने कहाl
" में उसे मिलने जा ही नहीं पाई, पता नहीं कैसी है अभी ज़ीनत ?"
रफीक ने कहा l
"हम ज़ीनत को मिलने जा सकते है अम्मी जान आप इजाज़त दे तो?"
सबा की अम्मी ने कहाl
" हा क्यू नही !"
"सबा रफीक को ज़ीनत के घर लेे जाओ l थोड़ा घुमा भी लेना ।"
सबा ओर रफीक दोनो ज़ीनत से मिलने आएl देखा ज़ीनत घर के काम में बिज़ी थी।
सबा ने आवाज़ दी l
"ज़ीनत अब कैसी तबियत है तुम्हारी?"
ज़ीनत सबा को देख खुश हो गई ।
ओर कहा l
" में अच्छी हूं आप लोग आओ ना अंदर l वहा खड़े क्यू हो?"
सबा ने कहाl
" ज़ीनत तेरी फिक्र हो रही थी तेरे जीजू कोl वहीं अम्मी से इजाज़त लेे कर तुझे मिलने आए है।"
ज़ीनत ने कहा l
"अच्छा किया तुम लोग आ गए l मुझे तो अब्बू घर से निकलने नहीं दे रहे।"
तब सबा ने कहा l
'चल हम घूम कर आते है अम्मी ने बोला हे रफीक को सब दिखा देना बाज़ार तालाब।"
ज़ीनत ने कहा l
"तुम लोग नाश्ता करो l में थोड़ा काम खत्म कर के चलती हू।"
तीनों घर से निकल गए l तालाब किनारे पहुंचे ! सबा कुछ दूरी पे थी रफीक ज़ीनत के साथ में था।
रफीक ज़ीनत से बोला l ज़ीनत तुम बहुत खूबसूरत होl मुझे तुम जैसी लड़की पसंद है ।"
ज़ीनत ने उसकी बात को मज़ाक में लेते हुए कहाl
" रफीक साहब हमारी सबा भी कुछ कम नहीं, लाखो में एक है ! आपके घर को जन्नत बना देगी ।"
बाते करते करते हंसी-मज़ाक करते हुए ये लोग बरगद के पेड़ के पास पहुच गए।
जहा ज़ीनत झूला झूलने अाती है l
ज़ीनत जा कर झूले पर बैठ गई।
रफीक ने ज़ीनत के चेहरे पर खुशी देखी तो उसे लगा ज़ीनत मेरी बातो से मन ही मन खुश है।
लेकिन रफीक ये नहीं जानता था की ज़ीनत की खुशी झूला झूलने से है।
सबा ने ज़ीनत को झूले से उतरा और कहा l
"अब मुझे भी झूलने दोगी फिर घर भी जाना है ।"
सबा झूला झूलने में लगी हुई थी l रफीक ज़ीनत के करीब आया और बोला l
"ज़ीनत तुम 'हा' बोलो तो में तुम से शादी करना चाहता हूं l मुझे सबा से ज्यादा तुम पसंद हो !"
ज़ीनत ने कोई जवाब नहीं दिया l
रफीक ने फिर से वही बात दोहराईl जब ज़ीनत का कोई जवाब नहीं मिला तो उसने चुप के से ज़ीनत का हाथ पकड़ लिया।
ज़ीनत ने उसकी तरफ गुस्से से ऐसे देखा की रफीक के होश उड़ गए ।
ज़ीनत की आंखो में जैसे उसे कुछ ओर ही दिखाई दियाl
उसकी आंखे गुस्से से जैसे लाल हो गई थी ।
ये सब देख रफीक ने सबा को बोलाl
" सबा मुझे घर लेे चलो जल्दी सबा को सब कुछ अजीब सा लगाl
कुछ बुरा होने वाला है..! जैसे कोई मुझे यहां रोक लेगा..! भागो जलदी यहां से घर..! "

क्रमश: