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ओड़िशा के तीर्थ

पिछले हफ्ते 20 जुलाई 2019 को हम ओडिशा प्रान्त के भुबनेश्वर, पुरी और कोणार्क के यात्रा पर थे। हम सभी ने अपने ग्रुप के साथ निर्णय लिया कि पुरी में होटल लेकर पुरी का विश्वप्रसिद्ध प्राचीन मंदिर भगवान जगन्नाथ के मंदिर को देखा जाय।इसके बाद पूरी के गोल्डन बीच पर मौज मस्ती किया जाए। चूंकि हम सभी सुबह तड़के ही पुरी में पुरषोतम एक्सप्रेस से पहुंच गए थे, और हम सभी ने समुन्दर के किनारे ही होटल लेने का निर्णय लिया,और होटल शुभम बीच मे 9 कमरे बुक कराये गये।
फ्रेश होने के बाद हम सभी होटल के डायनिंग हाल में चले गए।
नास्ता करने बाद हम सभी निकटतम बीच शुभम पर नहाने और एन्जॉय भी किया। फिर सायं की बेला में करीब 3 बजे भगवान जगरन्नाथ जी के दर्शन को निकल पड़े।
आपको बताते चले कि
पुरी भारत के ओड़िशा राज्य का एक जिला है। यह मुख्यालय भी है।
भारत के चार पवित्रतम स्थानों में से एक है पुरी, जहां समुद्र इस शहर के पांव धोता है। कहा जाता है कि यदि कोई व्यक्ति यहां तीन दिन और तीन रात ठहर जाए तो वह जीवन-मरण के चक्कर से मुक्ति पा लेता है। पुरी,भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा और बलभद्र की पवित्र नगरी है, हिंदुओं के पवित्र चार धामों में से एक पुरी संभवत: एक ऐसा स्थान है जहां समुद्र के आनंद के साथ-साथ यहां के धार्मिक तटों और 'दर्शन' की धार्मिक भावना के साथ कुछ धार्मिक स्थलों का आनंद भी लिया जा सकता है। पुरी एक ऐसा स्थान है जिसे हजारों वर्षों से कई नामों - नीलगिरी, नीलाद्रि, नीलाचल, पुरुषोत्तम, शंखक्षेत्र, श्रीक्षेत्र, जगन्नाथ धाम, जगन्नाथ पुरी - से जाना जाता है। पुरी में दो महाशक्तियों का प्रभुत्व है, एक भगवान द्वारा सृजित है और दूसरी मनुष्य द्वारा सृजित ।
पुरी का श्री जगन्नाथ मंदिर यह 65 मी. ऊंचा मंदिर पुरी के सबसे शानदार स्मारकों में से एक है। इस मंदिर का निर्माण 12वीं शताब्दी में चोड़गंग ने अपनी राजधानी को दक्षिणी उड़ीसा से मध्य उड़ीसा में स्थानांतरित करने की खुशी में करवाया था। यह मंदिर नीलगिरी पहाड़ी के आंगन में बना है। चारों ओर से 20 मी. ऊंची दीवार से घिरे इस मंदिर में कई छोट-छोटे मंदिर बने हैं। मंदिर के शेष भाग में पारंपरिक तरीके से बना सहन, गुफा, पूजा-कक्ष और नृत्य के लिए बना खंबों वाला एक हॉल है। सड़क के एक छोर पर गुंडिचा मंदिर के साथ ही भगवान जगन्नाथ का ग्रीष्मकालीन मंदिर है। यह मंदिर ग्रांड रोड के अंत में चार दीवारी के भीतर एक बाग में बना है। यहां एक सप्ताह के लिए मूर्ति को एक साधारण सिंहासन पर विराजमान कराया जाता है। भुवनेश्वर में लिंगराज मंदिर की भांति इस मंदिर में भी गैर-हिंदुओं का प्रवेश वर्जित है। उन्हें मंदिर परिसर के बाहर से ही दर्शन करने पड़ते हैं
यहां बड़ा प्रसाद भंडार है।
पुरी में सायं के समय हम लोगो के ग्रुप ने गोल्डन बीच पर समुन्द्र के किनारे बैठ कर लहरों का आनंद लिया। कुछ लोगो ने समुन्द्र के किनारे मोती बेचने वालों से मोती , और मोतियों से बनी मालाएं भी खरीदी।
सुबह तड़के जगने के पश्चात हम 20 सीटर कैब लेकर भुनेश्वर के लिये निकल पड़े ,और रास्ते मे रुकर एक ढाबे पर भोजन किया गया।
आज ही 21 जुलाई 2019 को उड़ीसा (ओडिशा)की राजधानी भुबनेश्वर में SOA नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ लॉ आडिटोरियम के हाल में अमूल्या हर्ब्स के AAN फंक्शन में जाने का अवसर प्राप्त हुआ। करीब दो हज़ार की क्षमता वाले वाले आडिटोरियम में जबरदस्त भीड़ उमड़ी थी। अमूल्या हर्ब्स के मैनेजिंग डायरेक्टर श्री मनीष मारवाह सर द्वारा सभी लेबल के पिन एचीवर को पिन और बोनस चेक प्रदान किया गया साथ ही बुके और स्मृति चिन्हों द्वारा भी सम्मानित किया गया।हमें भी एम.डी. सर ने रूबी मैनेजर की पिन देकर किये गए कार्यों के लिए हमें सम्मानित किया। कार्यक्रम के उपरांत शायं को कुछ लोग घर वापसी की तैयारी के साथ भुबनेश्वर रेलवे स्टेशन चले गए, जबकि मैं लिंगराज मंदिर के सनिकट दुधवा वाले धर्मशाले में अपना आशियाना बनाया जँहा रात बिताने के बाद सुबह तड़के 22 जुलाई 2019 को हम सुबह 6 बजे अपने परिवार के सभी सदस्यों के साथ जैसे
दीपक,अर्चना, मां, आर्यन,भास्कर,और पत्नी को लेकर भुवनेश्वर (ओडिशा) में स्थित लिंगराज मंदिर में पूजा अर्चना भी किया गया। ततपश्चात, किराए की 6 सीटर कार करके भुबनेश्वर के कई महत्त्वपूर्ण जगहों को देखने के लिए निकल पड़े। सर्वप्रथम हम सभी खंडागिरी,उदयगिरी पहाड़ियों के अंदर निर्मित पहली शताब्दी में हिन्दुराजा खेरावेल द्वारा निर्मित जैन और हिन्दू गुफ़ाओं को देखने गए। आज कल यह पहाड़ी गुफाएं भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है। प्रति व्यक्ति टिकेट दर 25 रुपये थे।जिसे हमें वहाँ के गाइड सरोज स्वाइन ने विधिवत जो जानकारी दी वह इस प्रकार से है।
उदयगिरि और खंडागिरी ओडीशा में भुबनेश्वर के पास स्थित दो पहाड़ियाँ हैं। इन पहाड़ियों में आंशिक रूप से प्राकृतिक व कृत्रिम गुफाएँ हैं जो पुरातात्विक, ऐतिहासिक एवं धार्मिक महत्व की हैं। हाथीगुम्फा शिलालेख में इनका वर्णन 'कुमारी पर्वत' के रूप में आता है। ये दोनों गुफाएं लगभग दो सौ मीटर के अंतर पर हैं और एक दूसरे के सामने हैं। ये गुफाएं अजन्ता और एलोरा जितनी प्रसिद्ध नहीं हैं, लेकिन इनका निर्माण बहुत सुंदर ढंग से किया गया है। इनका निर्माण राजा खारवेल के शासनकाल में विशाल शिलाखंडों से किया गया था और यहां पर जैन साधु निर्वाण प्राप्ति की यात्रा के समय करते थे। इतिहास, वास्तुकला, कला और धर्म की दृष्टि से इन गुफाओं का विशेष महत्व है। उदयगिरि में 18 गुफाएं हैं और खंडगिरि में 15 गुफाएं हैं। कुछ गुफाएं प्राकृतिक हैं, लेकिन ऐसी मान्यता है कि कुछ गुफाओं का निर्माण जैन साधुओं ने किया था और ये प्रारंभिक काल में चट्टानों से काट कर बनाए गए जैन मंदिरों की वास्तुकला के नमूनों में से एक है।
शिलालेखों में इन गुफाओं को ‘लेना’ कहा गया है और इन्हें न जाने कितनी पूर्णिमा वाली चाँदनी रातों में बनाया गया था। गुफाओं के मुंह दरवाजों जैसे हैं, जहां से दिन के समय सूरज की रोशनी आ सकती है और पथरीले फर्श गर्म रहते हैं। रात को चाँद की रोशनी गुफा में आती है और गुफाओं में उजाला रहता है। इन गुफाओं में साधु लोग आकर रहते थे, जो संसार को त्याग कर अपने तन और मन की शक्तियों के प्रवाह से निर्वाण के लिए तपस्या करते थे। सुगन्धित फूलों, चहचहाते पक्षियों, पत्तों की सरसराहट, उजली धूप और शीतल चंद्रमा के सान्निध्य में वे प्रकृति के साथ एक रूप हो जाते थे। इन गुफाओं में बैठकर साधुजन शांति से समाधि लगाते थे और कठोर तपस्या करते थे। विद्वान लोग भी सत्य, शांति, मोक्ष और सौन्दर्य बोध के लिए यहां आते थे।
उदयगिरि की गुफाएं लगभग 135 फुट और खंडगिरि की गुफाएं 118 फुट ऊंची हैं। ये गुफाएं ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी की हैं। ये गुफाएं ओडीशा क्षेत्र में बौद्ध धर्म और जैन धर्म के प्रभाव को दर्शाती हैं। ये पहाड़ियां गुफाओं से आच्छादित हैं, जहां जैन साधुओं के जीवन और काल से संबंधित वास्तुकला कृतियां हैं। इन गुफाओं का निर्माण प्राचीन ओडीशा यानी कलिंग के नरेश खारावेला ने (209-170 ईसा पूर्व के बीच) कराया था। नरेश खारावेला को अशोक सम्राट ने हरा दिया था। यद्यपि नरेश खारावेला जैन धर्म को मानते थे, लेकिन धार्मिक जिज्ञासाओं के प्रति उनका दृष्टिकोण उदार था।
इन गुफाओं का निर्माण अधिकतर शिलाओं के ऊपरी भाग में होता था और गुफाओं के आवास साधना और प्रार्थना के लिए सूखे वाले स्थान होते थे, जहां वर्षा का पानी नहीं ठहरता था, इनके साथ बरामदा या आँगन होता था। छोटी-छोटी सुविधाओं की भी व्यवस्था होती थी। हालांकि छत की ऊँचाई कम होती थी और कोई व्यक्ति सीधे खड़ा नहीं हो सकता था। मुख्य रूप से ये विश्राम स्थल या शयन कक्ष थे। एक ही कक्ष में बहुत साधु रहते थे। कक्ष में एक खास बात थी कि प्रवेश स्थल के सामने की ओर का फर्श ऊँचा उठा हुआ था, जो शायद सोने के समय सिरहाने का काम देता था। ये कक्ष तंग और सपाट होते थे और इनके प्रवेश द्वार पर विभिन्न वस्तुओं की वास्तुकला कृतियां होती थीं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने इन गुफाओं की गणना कराई और इन वस्तुओं के आधार पर इनके अलग-अलग नाम रखे। इन वस्तुओं में विभिन्न प्रकार के दरबार के दृश्य, पशु-पक्षी, शाही जुलूसों, शिकार अभियानों और दैन्य जीवन के दृश्य होते थे। ये लेख ब्राह्मी लिपि में हैं और जैनियों के मूल मंत्र- णमोकार मंत्र से शुरू होते हैं। इसके बाद राजा खारावेला के जीवन और कार्यों से संबंधित दृश्य हैं, जो सभी धार्मिक व्यवस्थाओं का सम्मान करते थे और धर्म स्थलों का जीर्णोद्धार करते थे। अलग-अलग गुफाओं पर उनके संरक्षकों के नाम हैं। अधिकतर संरक्षक राजा के वंशज हैं। कलिंग विजय के बाद जब अशोक का शासन हुआ और राजा खारावेला की सभी संपत्तियों पर उनका अधिकार हो गया, तो धीरे-धीरे जैन धर्म के स्थान पर बौद्ध धर्म का प्रभाव बढने लगा।
पहली और दूसरी गुफाएं तातोवा गुम्फा एकऔर दो कहलाती हैं, जो प्रवेश स्थल पर रक्षकों और दो बैलों तथा सिंहों से सुसज्जित है। प्रवेश तोरण पर तोते की आकृतियां हैं। गुफा संख्या 3 अनंत गुफा कहलाती है, जहां स्त्रियों, हाथियों, खिलाड़ियों और पुष्प उठाए हंसों की मूर्तियां हैं। गुफा संख्या 4 तेन्तुली गुम्फा है। गुफा संख्या 5 खंडगिरि गुम्फा दो मंजिली है, जो सामान्य तरीके से काटी गई हैं। गुफा संख्या 12, 13 और 14 के कोई नाम नहीं है। गुफा संख्या 6 से गुफा संख्या 11 के नाम हैं- ध्यान गुम्फा, नयामुनि गुम्फा, बाराभुजा गुम्फा, त्रिशूल गुम्फा, अम्बिका गुम्फा और ललतेंदुकेसरी गुम्फा। गुफा सख्या 11 की पिछली दीवार पर जैन तीर्थंकरों, महावीर और पार्श्वनाथ की नक्काशी वाली उभरी हुई मूर्तियां हैं। गुफा संख्या 14 एक साधारण कक्ष है, जिसे एकादशी गुम्फा के नाम से जाना जाता है।
इसके बाद हम अपने ड्राइवर के साथ भोजन करने के बाद नए डिस्टेनेशन कोणार्क का सूर्य मंदिर देखने निकल पड़े।कोणार्क का सूर्यमन्दिर
भारत में उड़ीसा राज्य में जगन्नाथ पुरीसे ३५ किमी उत्तर-पूर्व में कोणार्क नामक शहर में प्रतिष्ठित है। यह भारतवर्ष के चुनिन्दा
सूर्य मन्दिरों में से एक है। सन् १९८४ में यूनेस्को ने कोणार्क सूर्य मंदिर को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता दी है।
कई इतिहासकारों का मत है, कि कोणार्क मंदिर के निर्माणकर्ता, राजा लांगूल नृसिंहदेव की अकाल मृत्यु के कारण, मंदिर का निर्माण कार्य खटाई में पड़ गया।इसके परिणामस्वरूप, अधूरा ढांचा ध्वस्त हो गया.
लेकिन इस मत को एतिहासिक आंकड़ों का समर्थन नहीं मिलता है। पुरी के मदल पंजी के आंकड़ों के अनुसार और कुछ १२७८ ई. के ताम्रपत्रों से पता चला, कि राजा लांगूल नृसिंहदेव ने १२८२ तक शासन किया। कई इतिहासकार, इस मत के भी हैं, कि कोणार्क मंदिर का निर्माण १२५३ से १२६० ई. के बीच हुआ था। अतएव मंदिर के अपूर्ण निर्माण का इसके ध्वस्त होने का कारण होना तर्कसंगत नहीं है।
कोणार्क सूर्य मंदिर परिसर में ही अमूल्या हर्ब्स के झोले से परिचय हुआ कानपुर निवासी संजीव मिश्रा, श्री गिरीश चंद्र पांडेय जी से,जब मैंने उनके हाथ मे अमूल्या हर्ब्स का झोला देखा तो मैं उनके पास पहुँच कर उनसे जाना कि आप कहाँ से है।
धन्यवाद अमूल्या हर्ब्स,
जो अब एक पहचान बन गयी। हज़ारो लोग प्रतिदिन कोणार्क का सूर्य मंदिर जाते है कौन किसको पहचान पाता, लेकिन एक अमूल्या हर्ब्स के झोले ने अमूल्यन्स परिवार के नाते बरबस जा कर मिलना पड़ा और अपना परिचय बताना पड़ा,और कुशल क्षेम हुआ।
कोणार्क सूर्य मंदिर और कोणार्क समुन्द्र बीच पर घूमने के बाद हम सभी धौलागिरी पहाड़ी पर स्थित सम्राट अशोक द्वारा निर्मित शांति स्तूप को देखने गए। प्रमुख अवशेष पहाड़ी की शिखर तक पहुंचने वाले सड़क के किनारे, एक चट्टान के बड़े पैमाने पर उत्कीर्ण हैं।
धौलागिरी शांति स्तूपगिरि हिल्स (ओडिशा) भुवनेश्वर से 8 किमी दूर, दया नदी के किनारे पर स्थित है। इसके आसपास विशाल खुली जगह के साथ एक पहाड़ी है , और पहाड़ी के शिखर पर एक बड़े चट्टान में अशोक के शिलालेख उत्कीर्ण है। धौली पहाड़ी को कलिंग युद्ध का क्षेत्र माना जाता है।
यहां पाया गया चट्टान शिलालेखों नंबर 1-5और 14 में दो ​​अलग-अलग कलिंग शिलालेख शामिल हैं,जिसमे कलिंग ने पूरी दुनिया के कल्याण के लिए अपनी चिंता व्यक्त की है। शिलालेखों से ऊपर चट्टानों को काटकर जो हाथी बना है, वो ओडिशा के पूराने बौद्ध मूर्तियों मे से एक है।
दया नदी लड़ाई के बाद मृतकों के खून से लाल हो गया था, और अशोक को युद्ध के साथ जुड़े आतंक की भयावहता का एहसास कराने में सक्षम हुआ। कुछ सालों बाद धौली बौद्ध गतिविधियों का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन गया। उन्होंने वहां कई चैत्य स्तूपों और स्तंभों का निर्माण किया।
पहाड़ी के शीर्ष पर, एक चमकदार सफेद शांति शिवालय 1970 के दशक में जापान बुद्ध संघा और कलिंग निप्पॉन बुद्ध संघ द्वारा बनाया गया है। आस-पास के क्षेत्र में भी संभवतः अशोक के कई शिलालेखों है और विद्वानों के तर्क के रूप में टंकपाणी सड़क पर भाश्करेश्वर मंदिर में एक स्तूप पाया गया है। धौलीगिरि पहाड़ियों में एक प्राचीन शिव मंदिर है , जो शिवरात्रि समारोह के दौरान जन सभा के लिए एक बडी जगह है।
पूरी, भुबनेश्वर और कोणार्क घूमने के बाद मैं सपरिवार टाटा लौट आया। टाटा मेरे पिता जी रहते है,वे टाटा में शिक्षक थे और रिटायरमेंट के बाद वहीं पर बस गए। मैं सपरिवार लगभग 18 वर्ष बाद गया था। 24 जुलाई 2019 को मेरे छोटे भाई बिनोद केसरी जो टाटा में एक चर्चित टी.वी. रिपोर्टर हैं, उन्होंने इनोवा द्वारा जमशेदपुर टाटा स्थित कई दार्शनिक, दर्शनीय, और प्राकृतिक स्थलों को घुमाया, सुबह 8 बजे से रात्रि 8 बजे तक घूमाते हुए उन्होंने टाटा नगर रेलवे स्टेशन पर जलियावाला बाग (18103) के बोगी नंबर S7/4 में चढ़ा कर घर को चले गए। हमने जमशेदपुर में और उसके बाहरी इलाके में पहाड़ियों के प्राकृतिक रमणीय स्थलों को घुमकर बहुत ही रोमांचक आनंद उठाया। सबसे पहली शुरुवात हमने प्रसिद्ध रंकनी मंदिर से की फिर टाटा का चिड़िया घर, सूर्य मंदिर, प्रवासी पक्षियों और बोटिंग के लिए प्रसिद्ध चांडिल डैम,हाथियों के लिए मशहूर अभ्यारण्य डालमा वाइल्ड लाइफ सेंनचुरी, इत्यादि रमणीय स्थलों का आनन्द लिया ।
लेखक:-
डॉ.राधेश्याम केसरी
देवरिया,ग़ाज़ीपुर
उत्तर प्रदेश,232340
मोबाईल- 9415864535.