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दो कॉलगर्ल की कहानी


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शहर की दो टॉप - क्लास कॉलगर्ल में , टॉप - क्लास की दोस्ती थी ।
एक दिन जब दोनो साथ बैठकर पी रही थी और उनपर सुरूर छाने लगा था । तब एक ने जाम तैयार करते हुए , मुस्कुरा कर दूसरी से कहा - “ कल रात का मेरा ग्राहक तो टी बी का मरीज़ था , रातभर सिर्फ टटोल - टटोलकर ही परेशान करता रहा । "
दोनो ठहाकामार कर हंस पड़ी ।
हंसते - हंसते दूसरी ने , जो बेहद थकी - सी लग रही थी , कहा- “ इससे ज्यादा तो उस बेचारे की बस की बात होगी ही नही । लेकिन मेरा ग्राहक तो पक्का पट्ठा था । रातभर में ही बदन तोड़कर रख दिया साले ने।"
एकबार फिर दोनो खिलखिला उठी ।
अपना जाम उठाते हुए दूसरी - अचानक बोली - "वैसे बहन , तुम तो काफी शिक्षित हो , फिर इस धंधे में कैसे फंस गई ?"
पहली का मुखमुद्रा एकाएक गम्भीर हो गया ।
“ मतपूछो बहन , बड़ी लम्बी कहानी है ।"
उसने अपना जाम खाली किया,फिर जैसे अतीत में डूबती हुई बोली - " कालेज के एक लड़के को बेहद चाहती थी । मां - बाप और समाज ने हमदोनो के बीच दीवार खड़ी करने की कोशिश की । इसलिए मन में रंगीन सपने सजाकर , एक दिन उस लड़के के साथ भागकर मुम्बई पहुंच गई । बस वही से मेरे दुर्भाग्य की शुरूआत हुई । "
कुछ क्षण रूककर उसने अपने लिए एक नया जाम तैयार किया और बातो की कड़ी जोड़ते हुए आगे बोली - “ कुछ दिन तो मौज - मस्ती में बीते . पर बाद में जब रोजी - रोटी की समस्या शुरू हुई तो वह लड़का दगा कर गया । उसने मुझे धोखे से कोठे पर बेच दिया । "
अपनी जाम गटागट खाली करने के बाद , एक लम्बी सांस छोड़कर उसने आगे कहना शुरू किया - " भूखा - प्यासा , असहाय , अकेली मैं कब तक लड़ती , अन्त में हारकर मुझे कोठेवालो की बात माननी पड़ी,और इस तरह धीरे धीरे मै पक्की वेश्या बन गई ।"
एक नया जाम तैयार करके वह आगे बोली - “ जब कोठेवालो का विश्वास मुझपर पूरा जम गया तब एक दिन भागकर मैं इस शहर में आ गई, मां - बाप को स्पष्ट बताते हुए , यहां से मैने कई पत्र लिखे , लेकिन काफी दिनो तक इंतजार के बाद भी जब एक का भी जवाब नही आया , तो हारकर फिर मैंने यही धंधा करना शुरू कर दिया। फर्क यही है , पहले जहां में कोठेवालो के लिए कमाती थी , वही अब अपने लिए कमाती हूं । अपने ढंग से रहती हूं । अपने ढंग से जीती हूं । "
एक लम्बी सांस छोडकर वह धीरे - धीरे अपना जाम पीने लगी । कमरे में चुप्पी छा गई थी ।
कुछ देर बाद पुनः पहली ने ही चुप्पी तोड़ते हुए पूछा - " और बहन तुम अपनी भी तो सुनाओ - तुम कैसे आ गई इस धंधे में ? "
“ मेरी कहानी भी बहुत कुछ तुमसे मिलती - जुलती है बहन । मैं गांव की रहनेवाली थी । मां - बाप की मर्जी से ब्याहकर शहर में आई । मेरा शौहर बहुत ही घटिया किस्म का नशेबाज था । अपनी दिनभर की कमाई का दारू पीकर , शाम में जब वह घर आता तो मेरे साथ जानवरो जैसा सलूक करने में उसे बड़ा मजा आता था, मैं सबकुछ सहती हुई - - - - - - - जीवन को एक सजा समझकर काट रही थी । "
समय बीतता रहा ।
" जब तक मैं एक बच्चे की मां बन गई , तबतक उसके नशे का तलब हद की सीमा पार कर चुका था ।
अब वह दिनभर नशे में धुत रहने लगा । कोई काम के लायक तो वह बचा नहीं था । सो जब - तब पैसे के लिए मुझे ही तंग करने लगा । हारकर मैं अपने बच्चे को लेकर मायके भाग गई ।"
वह सांस लेने के लिए रुकी,फिर नया जाम बनाते हुए आगे बोली - “ वहां पिताजी गुजर चुके थे , बूढ़ी मां विवश थी , और भाई - भावी का व्यवहार भी बदल गया था । "
कुछ दिनो बाद , जब मेरा शौहर मुझे लेने आया तो मायके से निराश होकर मुझे फिर उसी नर्क में जाना पड़ा । इस बार शहर पहुचकर मैं अपने बच्चे की खातिर मजदूरी करने लगी ।
लेकिन उसरात ----------------!!!"
अचानक वह हांफने लगी , चेहरा तमतमा गया । एक ही सांस में जाम खाली करने के बाद , वह आगे बोली – " उसरात मेरे शौहर के साथ एक और आदमी मेरे घर आया । दोनों साथ बैठकर पीने लगे । वह आदमी बार - बार मुझे कामुक नजरो से घूर रहा था । उसके नजरो से बचने के लिए मैं अपने बच्चे को साथ लेकर , जल्दी ही सोने चली गई । "
" लेकिन रात गहराने के बाद , वह आदमी मेरे कमरे में घुस आया और मेरे साथ जबरदस्ती करने लगा । मैं जब चीखकर अपने शौहर को बुलाने भागी तो उसने मुझे किसी कबूतरी की तरह पकड़ लिया और बोला - "क्यो वक्त बरबाद करती हो ? वह क्या करेगा ,उसी ने तो मेरे साथ तेरा सौदा किया है , सिर्फ एक रात का सौदा । '"
"इसके बाद तो मैं चीखती - चिल्लती रही , उसके आगे गिडगिडाती रही और वह मेरे साथ जबरदस्ती करता रहा । "
बाहर मेरा नकारा शौहर पता नहीं जानबूझकर या नशे में बेहोश पड़ा रहा ।
उसने एक नया जाम बनाते हुए आगे कहा - " बस उसी दिन के बाद में इस गर्म गोश्त के बाजार में उतर गई । "
" उसने एक लम्बी सांस छोडकर आगे कहा -
“ और तो और जो लोग समाज सुधार और वेश्या - उद्वार पर दिन में लम्बे - लम्बे भाषण देते हैं , वे लोग भी रातों में इस गर्म गोश्त की मण्डी में अपना मुंह काला करने आते हैं , दलाली करते हैं ,और मौका मिलने पर कमसिन और बेसहारा लड़कियो का खुद इस्तेमाल कर , इस मण्डी में फेंक देते हैं !
खैर ---------।"
उसने आगे कहा - " इस धंधे से मुझे जो कुछ भी मिलता है , उसे बच्चे की भविष्य के लिए खर्च करती हूं या सहेजकर रखती हूं । अपने बच्चे को एक बढ़िया स्कूल के हॉस्टल में रखवा दिया है मैंने । अब मैं बेफिक्र और आजाद हूं । बस एक ही चिन्ता है - बच्चा बड़ा होकर मेरे इस रूप को सहन करेगा , या नहीं ? ' "
वह एक ही सांस में अपना जाम खाली करके चुप हो गई ।
" तुम्हे एक चिन्ता है तो अपना कहने के लिए एक बच्चा भी है , लेकिन मेरे पास तो सिर्फ चिन्ता ही चिन्ता है , पर अपना कहने के लिए कोई भी नहीं । "
एक आह भारकर दूसरी भी चुप हो गई ।
वह नया जाम तैयार करने लगी ।
कमरे का वातावरण अचानक बोझिल हो गया । दोनो अपना - अपना जाम उठाकर गटागट पीने लगी, जैसे अपने दुर्भाग्य का जहर पी रही हों।
दोनो खामोश थी - - - - - इतनी खामोस कि घड़ी की टिक - टिक भी सुनाई दे रही थी ।
रणजीव झा
भोपाल
स्वरचित।