Das Darvaje - 19 books and stories free download online pdf in Hindi

दस दरवाज़े - 19

दस दरवाज़े

बंद दरवाज़ों के पीछे की दस अंतरंग कथाएँ

(चैप्टर - उन्नीस)

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सातवां दरवाज़ा (कड़ी -1)

जैकलीन : यह कैसा मुकाबला

हरजीत अटवाल

अनुवाद : सुभाष नीरव

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हम वैंबले की विक्टोरिया रोड पर खड़े हैं। मैं नक्शा खोलकर ट्रैवलर्ज़ कैम्प दीखने जैसी जगह खोज रहा हूँ। जैकलीन ने ही मुझे बता रखा है कि जिप्सियों को आज की सभ्य भाषा में ट्रैवलर्ज़ कहा जाता है - सफ़र पर रहने वाले लोग। जैकलीन कार से उतर कर पैदल चले जा रहे कुछ लोगों से पूछती है, पर किसी को कुछ नहीं पता। कुछ आगे जाकर बैशली रोड पर एक गली-सी नज़र आती है। जैकलीन कहती है -

“आओ, ज़रा इस तरफ देखते हैं। शायद आगे चलकर कैम्प लगा हो।”

“पर नक्शे के हिसाब से इधर रेलवे लाइन है, कैम्प लायक जगह नहीं लगती।”

“शायद आगे चलकर हो, चलो तो सही।”

मैं स्टेयरिंग उस ओर मोड़ लेता हूँ। भीड़ी-सी गली है। यदि सामने से कोई वाहन आ जाए तो निकलना कठिन हो जाए। थोड़ा आगे जाते हैं तो कैरावैन नज़र आने लगती हैं। जैकलीन मेरी तरफ देखती खुश हो जाती है, पर शीघ्र ही उसके चेहरे पर गंभीरता-सी पसरने लगती है। मैं उसका कंधा दबाता हूँ। कुछ और आगे जाते हैं तो कैम्प दिखाई पड़ता है, पर यह कैम्प दूसरे कैम्पों से कुछ अलग है। जैकलीन कहती है-

“पक्के बॉथरूम्स को देखकर लगता है कि यह स्थायी कैम्प है, लोगों का आना-जाना लगा रहता होगा।”

दस-पंद्रह मरले की पक्की बाउंड्रियाँ हैं। हर बाउंड्री में चौड़ा लेकिन छोटा-सा गेट लगा हुआ है। हर बाउंड्री में एक पक्का कमरा बना हुआ है और एक अस्थाई-सा। एक एक कैरावैन खड़ी है। किसी बाउंड्री में दो भी। हर बाउंड्री में महंगी महंगी कारें पॉर्क हैं। कैरावैनें भी बहुत ही खूबसूरत हैं। शरबती रंग के गन्दे-लिबड़े से बच्चे इधर-उधर दौड़े फिरते हैं। हमें देखते ही वे हमारी तरफ गन्दे-गन्दे इशारे करने लगते हैं। कोई दो उंगलियाँ दिखा रहा है और कोई बीचवाली उंगली। बीच में ‘एफ’ शब्द वाली गन्दी गाली भी सुनने को मिल रही है। कई गेट खुले भी हैं, पर बच्चे इनके ऊपर से कूदकर ही इन्हें पार करते हैं। कुछ स्त्रियाँ और पुरुष भी हमारी ओर निरंतर देखते जा रहे हैं। जैकलीन पूछती है -

“सिंह, अब यह कैसे पता लगे कि माइको की कैरावैन कौन-सी है?”

वह शीशा नीचे उतारकर एक लड़के से पूछती है, पर लड़का प्रत्युत्तर में कंधे उचका देता है। एक मर्सडीज़ हमारे करीब से गुज़रती है। मैं उसे रोककर पूछता हूँ -

“हम माइको को खोज रहे हैं।”

वह व्यक्ति मेरी बात का जवाब देने से पहले ही जैकलीन के नयन-नक्श को पहचानता है और ‘ना’ में सिर हिलाने लगता है। फिर वह दूर कैरावैन के पास खड़े एक आदमी को इशारा करके बुलाता है और पूछता है -

“ये इंडियन किसी माइको को पूछ रहा है।”

“माइको कौन? मैटल स्क्रैप वाला?”

“हाँ हाँ, वही।”

जैकलीन कह उठती है। वह व्यक्ति कहता है -

“उसका अड्डा तो तुम शुरू में ही छोड़ आए हो, बायें हाथ।”

बात करता वह व्यक्ति भी जैकलीन की ओर ही देखता जा रहा है मानो कुछ पहचान रहा हो। हम अपनी कार को वापस मोड़ लेते हैं। जैकलीन बेचैन-सी है। वह चार साल बाद माइको को देखेगी। शायद इसबार भी न देख पाती यदि माइको खुद ही फोन करके उसको मिलने की इच्छा प्रकट न करता। जैकलीन की माँ रोज़मरी ने चलने से पहले मुझे ख़ास हिदायत कर रखी है कि ध्यान रखना, कहीं माइको जैकलीन को संग चलने के लिए राजी न कर ले। सामने एक स्कूल की बस आती दिखाई देती है। जैकलीन बताने लगती है -

“यह बस बच्चों को स्कूल ले जाने के लिए आई होगी। सरकार तो चाहती है कि इनके बच्चे पढ़ें, पर ये नहीं पढ़ते। ज्यादा से ज्यादा प्राइमरी तक जाते हैं।”

वह एक पल के लिए चुप होकर फिर कहने लगती है -

“सिंह, मैं बच गई। मॉम ने संभाल लिया, नहीं तो मैं भी इन्हीं में से एक होती।”

हम माइको के घर की बाउंड्री के पास पहुँच जाते हैं। अन्दर छोटा-सा लोहे का कबाड़खाना बना हुआ है। हम गेट खटखटाते हैं, पर कोई जवाब नहीं मिलता। जैकलीन गेट खोलकर अन्दर चली जाती है। उसके पीछे ही मैं भी। सामने एक ठिगना-सा मोटे-से पेट वाला व्यक्ति व्हील-बैरो धकलेता हुआ चला आ रहा है। सिर पर बड़ा-सा हैट है, पर कमीज़ उतारी हुई है। वह हमारी तरफ अजीब नज़रों से देखने लगता है। फिर वह व्हील बैरो नीचे टिकाता हुआ जैकलीन की ओर दौड़ पड़ता है। दौड़ते-दौड़ते वह कह रहा है -

“ओ... जैकी... ओ मेरी बेटी जैकलीन!”

दोनों पिता-पुत्री आलिंगनबद्ध हो जाते हैं। जैकलीन की आँखें भरी हुई हैं। माइको उसको पांव से लेकर सिर तक निहारता है, माथा चूमता है और कहता है -

“ओ जैकी, सो नाइस टू सी यू!”

फिर वह मेरी तरफ देखता है।

“जैकी, यह आदमी तेरे साथ कौन है?”

“डैड, यह मिस्टर सिंह है, मेरा दोस्त।”

माइको मेरे साथ हाथ मिलाता है और हमें अपनी कैरावैन की ओर ले चलता है। उसकी पिकअप लोहे के कबाड़ से भरी पड़ी है और साथ ही, नई रेंज रोवर भी। वह कैरावैन में से कुर्सियाँ निकालता है। हमें बैठने के लिए कहते हुए मुझसे पूछता है -

“मिस्टर सिंह, बियर पियेगा?”

“नहीं, अभी तो बहुत सुबह है।”

मेरी बात पूरी सुनने से पहले ही वह जैकलीन से कहता है -

“मेरी बेटी तो बहुत ही खूबसूरत निकली है। कद बेशक मेरी तरह छोटा रह गया।”

वह हँसने लगता है। उसका अंग्रेजी बोलने का लहजा काफ़ी भिन्न है। वह फिर कहता है-

“जैकी, सच जान, तुझसे मिलकर बहुत अच्छा लगा। रोजमरी का क्या हाल है?”

“ठीक है, काम करती है, पर आज घर पर ही है।”

“अच्छी औरत है, बहुत अच्छी, पर ईश्वर की रज़ा में रहना पड़ता है... यह अच्छा हुआ कि तू मिलने आ गई। वैसे तो एक महीना रहना है मुझे यहाँ, फिर हम यूरोप की ओर चले जाएँगे। मैंने सोचा, तुझे मिलता जाऊँ और पूछता जाऊँ, अगर तू मेरे संग चलना चाहे।”

“नहीं डैड, मैं नहीं जाऊँगी।”

“जाएगी मेरी बच्ची, जाएगी एक दिन। तेरे अन्दर मेरा खून है, मेरा खून तुझे आराम से नहीं बैठने देगा।”

कहता हुआ वह उठकर कार में से तम्बाकू वाला बटुआ निकाल लाता है। एक सिगरेट बनाता हुआ जैकलीन से पूछता है -

“ये इंडियन तेरा ब्वॉय फ्रेंड तो नहीं?”

“डैड, यह मेरा ब्वॉय फ्रेंड ही है।”

“नहीं जैकी, यह नहीं हो सकता! यह तेरे से उम्र में बहुत बड़ा है। कितनी उम्र हैं तेरी?”

वह मेरी तरफ देखता हुआ मुझसे सवाल करता है। मैं कहता हूँ -

“सैंतीस साल।”

“पर जैकी तो अभी उन्नीस की हुई है। तू इसका ब्वॉय फ्रेंड नहीं हो सकता।”

मुझसे पहले ही जैकलीन कहने लगती है -

“डैड, यह मेरी ज़िन्दगी है, तुम्हें इससे क्या?”

“तुझ अकेली की नहीं, तू मेरी बेटी भी है। मुझे यह आदमी चालबाज लग रहा है जिसने कम उम्र की लड़की फंसा रखी है। मैं यह हर्गिंज नहीं होने दूँगा। जैकी, तू इसको एकदम छोड़ दे, नहीं तो मैं बहुत बुरा साबित होऊँगा।”

वे बाप-बेटी परस्पर बहस करने लगते हैं। मैं उठकर उसके कबाड़ को देखने लग पड़ता हूँ। अजीब-सी गंध आ रही है। ऐसी गंध मेरे मित्र टोनी के कबाड़खाने से आया करती है। कुछ देर बाद माइको मेरे पास आकर ऊँचे सुर में बोलता है -

“क्या देखता है? देख रहा है कि यहाँ चोरी का माल तो नहीं? याद रख, मैं दूसरों की तरह चोरी का माल नहीं लेता-बेचता।”

“नहीं माइको, मैं यह नहीं देख रहा... मेरा एक मित्र भी इसी बिजनेस में है। बस यूँ ही अंदाजा-सा लगा रहा हूँ कि तुझे इसमें से कितना लाभ होता होगा।”

“कौन है तेरा मित्र?”

“टोनी, टोनी कौर्क।”

“वह वैबल्डन वाला टोनी?”

“हाँ, वही।”

मेरी बात सुन माइको ज़रा नरम पड़ जाता है और कहने लगता है -

“मैं भी उसके साथ डील किया करता हूँ, पर इस बार हमारा सौदा नही बन पा रहा। वो कीमत सही नहीं दे रहा।”

वह कैरावैन में जाता है और बियर की कुछ बोतलें ले आता है। एक ठंडी बोतल खोलकर मेरे हाथ में दे देता है और कहता है -

“मिस्टर सिंह, मुझे यह पसंद नहीं कि मेरी बेटी तेरे रंग और तेरी उम्र के आदमी के साथ दोस्ती रखे, पर नया जमाना है, मैं अधिक कुछ नहीं कर सकता। मगर मैं तुझे चेतावनी देता हूँ कि अगर तूने मेरी बेटी का कोई नाजायज़ फायदा उठाया तो मैं बहुत बुरा आदमी साबित होऊँगा।”

मैं माइको की बात का कोई उत्तर नहीं देता। जैकलीन मेरे साथ सटकर मेरे कंधे पर हाथ फेरने लगती है। माइको बियर का घूंट भरता फिर बोलता है -

“मिस्टर सिंह, अगर हो सकता है तो मेरा टोनी कौर्क से सौदा करा दे। मैं शीघ्र ही यहाँ से चले जाना चाहता हूँ। पैसे बेशक वह मेरे लौटने पर दे दे।”

“माइको, टोनी अपनी इच्छा का मालिक है। पता नहीं मेरी बात माने या नहीं।”

“मुझे पता है उसके बारे में, पर तू एकबार कोशिश कर। सच तो यह है कि मेरा माल अटका पड़ा है।”

वह ऐसे कहता है जैसे मिन्नत कर रहा हो।

हम कुछ देर वहाँ रुककर चल पड़ते हैं। वापस लौटते समय जैकलीन शांत-सी है। मैं पूछता हूँ -

“तू ठीक है न?”

“हाँ, ठीक हूँ। हाँ, थोड़ी देर के लिए जज्बाती हूँ। अजीब स्थिति है मेरी, पिता ट्रैवलर और माँ अंग्रेज। दोनों में से किसको अपना कहूँ और किसको नहीं।”

“जैकी, दोनों ही तेरे हैं। बस, बात इतनी है कि तेरा पिता ट्रैवलर है, घुमक्कड़ है, यह एक जगह नहीं बैठ सकता। इस हिसाब से तेरी माँ ही तेरे करीब हुई जिसने तुझे पाला-पोला।”

“सिंह, यह बात तो तेरी ठीक है, यदि मॉम मुझे न पालती, माइको को दे देती जैसा कि यह पहले दिन से ही मुझे मॉम से मांगता रहा है, तो मेरी हालत क्या होती, सोचती हूँ तो डर लगने लगता है।”

हम कैम्प से बाहर आ जाते हैं। मैं ट्रैवलर्ज़ कैम्प में बसी अलग-सी दुनिया के बारे में पलभर के लिए सोचता हूँ और एक्सीलेटर दबा देता हूँ। कुछ देर बाद कहता हूँ -

“माइको तो अपनी उम्र के अन्तर को लेकर ही झगड़ा किए जाता था, यदि उसको पता चल जाता कि मैं विवाहित हूँ और मेरे दो बच्चे भी हैं तो पता नहीं क्या करता।”

“मैंने उसको सब बता दिया है।”

जैकलीन बाहर की ओर देखते हुए कहती है।

मैं अपने परिवार सहित वैस्ट रोड के इस घर में मूव हो रहा हूँ। हम नए घर में सामान रख रहे हैं। हमारी पड़ोसन एक अंग्रेज स्त्री है। वह हमें देखकर मुस्कराती है। मैं भी उसको देखकर हाथ हिलाता हूँ। वह मेरे पास आ जाती है। मेरी ओर हाथ बढ़ाकर कहती है -

“मिस्टर सिंह, मैं रोजमरी हूँ, तेरी पड़ोसन। कई सालों से यहाँ रह रही हूँ। किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो झिझकना नहीं।”

“शुक्रिया रोजमरी, तुमसे मिलकर मुझे बहुत खुशी हुई। आशा है कि हम अच्छे पड़ोसी साबित होंगे।”

“मिस्टर सिंह, जीसस सब अच्छा करेगा। इस घर के पहले मालिक के साथ भी हमारी खूब निभती थी।”

“रोजमरी, यह बताओ कि तुझे कैसे पता कि मैं मिस्टर सिंह हूँ?”

“बहुत आसान। इंडियन लोग या तो मिस्टर सिंह होते हैं, या मिस्टर खान या पटेल। मिस्टर खान होता तो उसकी औरत के कपड़े दूसरे ढंग के होते और मिस्टर पटेल के और तरह के। मैं पहरावे से ही पहचान लेती हूँ और किसी हद तक चाल से भी।”

“यह भी खूब रही!”

“मैं जानती हूँ कि घर बदलना कितना कठिन होता है। कई बार तो नए घर में आकर वस्तुएँ मिलती ही नहीं। किसी चीज़ की ज़रूरत पड़े तो मिस्टर सिंह मुझसे कहना।”

वह कहती है। फिर मैं उसको अपनी पत्नी से मिलवाता हूँ और अपनी दोनों बेटियों से भी।

एक दिन... मैं गार्डन में खड़ा हूँ। रोजमरी मुझे हाथ हिलाकर ‘हैलो’ कहती है। उसके साथ एक लड़की भी खड़ी है, पर वह लड़की अंग्रेज नहीं लग रही। उसका जिप्सियों जैसा शर्बती रंग है और कुछ भिन्न प्रकार का नाक और माथा भी। रोजमरी बताती है -

“यह मेरी बेटी है, जैकलीन।”

“हैलो जैकलीन, आज स्कूल नहीं जाना।”

मेरे कहने पर रोजमरी हँसने लगती है और जैकलीन भी। रोजमरी बताने लगती है -

“इसने स्कूल तो कर लिया है, अब कालेज जाती है। सिक्सथ फोर्म में है, ए लेवल कर रही है।”

“सॉरी रोजमरी, देखने में यह ज़रा...।”

“यह अपने पिता पर गई है, कद में छोटी रह गई है, पर तेज़ बहुत है।”

जैकलीन पूछने लगती है -

“मिस्टर सिंह, नए घर में आकर खुश महसूस कर रहे हो?”

“हाँ जैकलीन, बिल्कुल ठीक है। अच्छी बात तो यह है कि मुझे तुम्हारे जैसा बढ़िया पड़ोसी मिला है।”

कुछेक अन्य बातें होती हैं। जैकलीन हाथ हिलाकर अन्दर चली जाती है। रोजमरी कहती है -

“इस घर के पहले मालिक भी अच्छे लोग थे, दुख-सुख में पड़ोसी ही काम आते हैं।”

“यह बात तो सच है।”

“मिस्टर सिंह, मुझे दूसरे कल्चर को जानने का बड़ा शौक है। ख़ास तौर पर तुम्हारे। मैं इंडियन फिल्में देखती हूँ और शादी-ब्याहों में भी शामिल हुई हूँ।”

“अच्छी बात है, हर संस्कृति में से कई बातें अच्छी मिल जाया करती हैं।”

“हाँ मिस्टर सिंह, यह बात सच है। जिप्सियों की रंगीन संस्कृति के कारण मैं माइको से जुड़ गई थी।”

वह कहती है और अपने तथा माइको के रिश्ते के बारे में बताने लगती है कि कैसे वह अपने पिता के विरुद्ध माइको के जिप्सी कैम्प में चली गई थी, पर फिर शीघ्र ही नित्य के सफ़र वाली ज़िन्दगी से ऊब गई थी। माइको कहीं भी टिककर नहीं रहना चाहता था इसलिए दोनों की बिगड़ गई थी।

(जारी…)