Khushiyon ki Aahat - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

खुशियों की आहट - 3

खुशियों की आहट

हरीश कुमार 'अमित'

(3)

अगली सुबह मोहित की नींद अपने आप ही खुल गई. उसने खिड़की से बाहर की ओर देखा. आसमान में अभी हल्का-हल्का अंधेरा था. आज इतवार का दिन था, इसलिए मम्मी-पापा की ऑफिस की छुट्टी थी. तभी उसे याद आया कि मम्मी ने तो उसे कल बताया था कि पापा शनिवार और इतवार को पूरा दिन कोचिंग कॉलेज में पढ़ाने जाया करेंगे. 'इसका मतलब आज भी पापा सुबह के गए हुए रात को काफ़ी देर से वापिस आएंगे.' अचानक यह बात उसके दिमाग़ में आई. यह सोचते ही उसका मन न जाने कैसा-कैसा-सा हो आया.

मैथ्स के टैस्ट के लिए जो सवाल उसने पापा से पूछने थे 'उनका क्या होगा. पापा तो अगर कल की तरह सुबह-सुबह निकल गए और रात को देर से वापिस आए तो'. यही बात मोहित के मन में बार-बार घुमड़ रही थी.

अचानक मोहित के मन में यह ख़याल आया कि अगर वह भी जल्दी उठ जाए और पापा के कोचिंग कॉलेज में जाने से पहले उनसे उन सवालों के बारे में पूछ ले, तो कैसा रहे. रात को पापा अगर देर से लौटेंगे, तो वैसे ही थके होंगे. इसके अलावा वह ख़ुद भी कहाँ जाग पाएगा इतनी देर तक. दस बजे तक तो उसे नींद आ जाया करती है.

पर अभी तो सारे घर में सन्नाटा छाया हुआ था. बाकी सब सो रहे थे. मोहित ने सोचा कि थोड़ी देर बाद जैसे ही पापा उठेंगे, वह भी उठ जाएगा और उनसे मैथ्स के सवालों के बारे में जो भी पूछना है, पूछ लेगा. यही सब सोचते-सोचते मोहित को फिर से कब नींद आ गई - उसे पता ही नहीं चला.

मोहित की नींद जब दोबारा खुली तो काफ़ी धूप निकल चुकी थी. हड़बड़ाकर उसने दीवार घड़ी की ओर देखा - सवा आठ बजने वाले थे. 'ओह! पता नहीं उसे कैसे नींद आ गई दोबारा? उसे तो जल्दी उठकर पापा से मैथ्स के सवाल निकलवाने थे.' यही बात उसके दिमाग़ में आई.

तभी यह विचार भी उसके मन में आया कि पापा कहीं चले ही न गए हों कोचिंग कॉलेज. यह सोचते ही वह एकदम से उठ बैठा और अपने कमरे से निकलकर बाहर ड्राइंगरूम में आ गया.

पापा डाइनिंग टेबल पर बैठे नाश्ता कर रहे थे. पापा को घर में मौजूद देखकर मोहित का मन ख़ुषी से झूम उठा. 'पापा नाश्ता कर लें, तो वह मैथ्स के सवाल उनसे निकलवा लेगा.' उसने सोचा.

''हेलो, पापा.'' कहते हुए वह डाइनिंग टेबल पर पापा के सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया.

''हेलो, बेटा.'' पापा ने खाते-खाते जवाब दिया.

''पापा, रात को कितने बजे आए थे आप?'' मोहित ने पूछा.

''साढ़े ग्यारह बज गए थे.'' जल्दी-जल्दी खाते हुए पापा ने जल्दी-जल्दी जवाब दिया.

''पापा, कोचिंग कॉलेज में जाते हैं आप?'' मोहित था.

इस बार पापा ने खाते-खाते 'हाँ' की मुद्रा में सिर हिलाया.

''पापा, आपने कोचिंग कॉलेज में पढ़ाना क्यों शुरू कर दिया है?'' मोहित ने एक और सवाल कर दिया.

''बेटा, इससे बड़ा फ्लैट और बड़ी गाड़ियाँ लेनी हैं न! उसके लिए पैसा तो कमाना ही पड़ेगा.'' पापा का नाश्ता बस ख़त्म होने को था.

''पापा, मेरा कल मैथ्स का क्लास टैस्ट है.'' मोहित कहने लगा.

''तो तैयारी करो उसकी अच्छी तरह से.'' पापा ने नाश्ते का आख़िरी कौर उठाते हुए कहा.

''वो पापा, आपसे कुछ सम्स (सवाल) पूछने थे. बुक-कॉपी ले आता हूँ.'' मोहित बोला.

''अभी?'' मोहित की बात सुनकर पापा सकपका-से गए.

''पापा, शाम को तो आप देर से आएँगे न!'' मोहित था.

''भई, अभी तो टाइम नहीं है मेरे पास. नौ बजे क्लास शुरू हो जानी है और आधा घंटा कोचिंग कॉलेज पहुँचने में भी लगता है.'' पापा ने जल्दी-जल्दी कहा और कुर्सी से उठ खड़े हुए.

''दस-पन्द्रह मिनट लगेंगे पापा. बस पाँच-सात सम्स ही तो हैं.'' मोहित की आवाज़ में हल्की-सी ज़िद थी.

''भई, मैंने कहा न, अभी तो टाइम है नहीं. रात को वापिस आने के बाद देखूँगा. नहीं तो कल सुबह देख लूँगा.'' कहते हुए पापा हाथ धोने के लिए जल्दी से बाथरूम की ओर चले गए.

पापा की बात सुनकर मोहित चकरा-सा गया. अगर पापा कल रात साढ़े ग्यारह बजे वापिस आए थे, तो आज भी तो उसी वक्त आएँगे न. तब तक तो वह सो ही चुका होगा. उसे पता है जागने की कितनी भी कोशिश वह कर ले, इतनी देर तक तो वह जाग ही नहीं पाएगा.

सुबह तो उसे स्कूल जाने की जल्दी रहती है और मम्मी-पापा को ऑफिस जाने की. तब तो टाइम मिलेगा नहीं.

तभी 'बाय, बेटा' कहते हुए पापा हाथ में कार की चाबियाँ लेकर घर से निकल गए. मोहित बालकनी में आ गया. करीब एक मिनट बाद पापा कार में बैठे जाते हुए दिखे. मोहित ने बालकनी में खड़े-खड़े हाथ हिलाया, मगर पापा शायद बहुत जल्दी में थे. उन्होंने मोहित के हाथ हिलाने का कोई जवाब नहीं दिया और तेज़ी से कार चलाते हुए चले गए.

मोहित एकाध मिनट बालकनी में खड़ा रहा. यहाँ पर वह ज़्यादा लोगों को जानता नहीं था. आसपास के ज़्यादातर लैटों के दरवाज़े बन्द थे. सिर्फ दो-तीन लोग ही अपनी-अपनी बालकनी में खड़े या बैठे दिख रहे थे. वरना अधिकतर बालकनियाँ खाली पड़ी थीं.

मोहित बालकनी से घर के अन्दर आ गया. मम्मी रसोई में थीं और शांतिबाई से कुछ बात कर रही थीं.

''बेटा, ब्रश कर लो. ब्रेकफास्ट तैयार है.'' मम्मी ने रसोई में खड़े-खड़े कहा.

मोहित का मन कर रहा था कि मम्मी से ढेर सारी बातें करे, पर मम्मी तो किचन में काम कर रही थीं. 'चलो, कुछ देर बाद मम्मी जब खाली हो जाएँगी, तो बातें करेगा उनसे.' सोचते हुए वह ब्रश करने के लिए बाथरूम की ओर चल पड़ा.

ब्रश करके वह डाइनिंग टेबल पर आया और एक कुर्सी पर बैठ गया. तभी मम्मी उसका नाश्ता ले आईं. नाश्ता देखते ही मोहित का दिल ख़ुश हो गया. मीठे मालपुए बने थे, जिनसे भीनी-भीनी खुशबू आ रही थी. मीठे मालपुए उसे बहुत अच्छे लगते थे. गरमागरम मालपुए के टुकड़े तोड़-तोड़कर खाते हुए मोहित को मज़ा आ गया.

दो मालपुए खाकर ही मोहित का पेट भर गया था, पर जब मम्मी ने एक मालपुआ और लेने के लिए कहा तो वह अपने आप को रोक नहीं पाया और उसने एक मालपुआ और ले लिया.

मीठे मालपुए बहुत दिनों बाद बनाए थे मम्मी ने. मोहित को याद नहीं आ रहा था कि इससे पहले उसने मालपुए कब खाए थे. ''शायद दो-तीन महीने तो हो ही गए होंगे''- उसके दिमाग़ में बात आई.

'टाइम ही कहाँ होता है मम्मी के पास भी. हफ्ते में पाँच दिन तो दफ्तर की नौकरी होती है - सुबह से शाम तक. बाकी के दिनों में मम्मी को कवि सम्मेलनों और सभाओं में जाना होता है. कई बार तो मम्मी दफ्तर से छुट्टी लेकर भी कवि सम्मेलनों में जाती हैं. दफ्तर के बाद के वक्त में भी मम्मी को अपना पढ़ने-लिखने का काम करना होता है.' आखिरी मालपुआ ख़त्म करते हुए यही बातें आ रही थीं मोहित के मन में.

नाश्ता ख़त्म करके मोहित अपने कमरे में आ गया. 'कुछ देर आराम कर लूँ, फिर पढ़ाई करूँगा.' सोचते हुए उसने म्यूज़िक सिस्टम पर अपने मनपसन्द फ़िल्मी गाने लगा लिए और आरामकुर्सी पर बैठकर गाने सुनने लगा.

कुछ देर बाद मम्मी उसके कमरे में आई. उसे आँखें बन्द करके आरामकुर्सी पर बैठे-बैठे गाने सुनता देख वे एकदम से कहने लगीं, ''अपनी पढ़ाई करो मोहित. सारा दिन गाने मत सुना करो.''

मम्मी की बात सुनकर मोहित ने आँखें खोलीं और कहने लगा, ''अभी थोड़ी देर पहले ही तो लगाए हैं गाने. सारा दिन कहाँ सुनता हूँ मम्मी.''

''मुझे पता नहीं है जैसे.'' मम्मी कह रही थीं.

''सारा दिन घर ही कहाँ होती हो मम्मी आप?''

मोहित की यह बात सुनकर मम्मी चुप रहीं. कोई जवाब नहीं दिया उन्होंने.

''और पापा भी कहाँ रहते हैं घर में! शाम को ऑफिस से आकर ट्यूशनें पढ़ाने चले जाते हैं. पहले शनिवार इतवार को ट्यूशनें पढ़ाने के बाद तो कुछ देर घर में रहते थे, पर अब तो कोचिंग कॉलेज में सुबह से रात तक जाने लगे हैं.'' मोहित के मन का गुबार बाहर निकलने लगा था.

''बेटू, पापा हम सब के लिए ही कर रहे हैं न इतनी मेहनत.'' मम्मी ने मोहित को समझाते हुए कहा.

''कल मैथ्स का क्लास टैस्ट है और कितने सारे सम्स पूछने हैं पापा से. पर टाइम है कहाँ उनके पास?'' मोहित की आवाज़ में शिकायत का भाव था.

मोहित की बात सुनकर मम्मी थोड़ी देर चुप रहीं, फिर खिसियाए-से स्वर में कहने लगीं, ''रात को तो देर से आएँगे पापा. कल सुबह-सुबह पूछ लेना उनसे जो कुछ भी पूछना है.'' कहते-कहते मम्मी मोहित के कमरे से बाहर चली गईं.

मोहित को यह भी याद आया कि अभी उसे होमवर्क भी पूरा करना है. मैथ्स के टैस्ट की तैयारी तो करनी ही है. पर आज के छुट्टी के दिन को वह थोड़े अलग तरीके से बिताना चाहता था. पापा घर में होते तो उसकी बात समझ लेते और उसे थोड़ी बहुत मस्ती करने देते, पर मम्मी तो ऐसी बातों को समझती नहीं है न! उनके लिए तो पढ़ाई करना ही सबसे बड़ी बात है.

फिर भी कुछ भी हो, कुछ देर तो मौज-मज़ा किया ही जा सकता है - यह सोचते ही मोहित ने अपने आप को ढीला छोड़ दिया. और म्यूज़िक सिस्टम पर बज रहे गानों में खो गया.

वे लोग इस हाउसिंग सोसाइटी में कुछ महीने पहले ही आए थे. यह जगह अभी पूरी तरह बसी नहीं थी, इसलिए इस तरफ़ आबादी काफ़ी कम थी. यही कारण था कि मोहित के यहाँ पर ज़्यादा दोस्त नहीं थे. अब तक उसके तीन-चार दोस्त ही बन पाए थे, जिनके साथ वह शाम को क्रिकेट खेला करता था. शाम के समय के अलावा उन दोस्तों से मोहित की मुलाक़ात बहुत कम होती थी. एक तो वे अलग-अलग हाउसिंग सोसायटी में रहते थे और दूसरे उन सबका स्कूल अलग-अलग था. इसके अलावा उन सब पर भी स्कूल की पढ़ाई का बोझ था. फिल्मी गाने सुनते हुए आरामकुर्सी पर बैठे-बैठे मोहित को कब नींद आ गई, उसे पता ही नहीं चला. उसकी नींद तब खुली, जब मम्मी ने उसे झकझोरकर उठाया. मम्मी उसके लिए मैंगो शेक लेकर आई थीं. मोहित ने मम्मी के हाथ से मैंगो शेक का गिलास ले लिया और घूँट-घूँट करके पीने लगा. मम्मी कितनी अच्छी हैं! कितना ख़याल रखती हैं मेरा! मैंगो शेक पीते हुए मोहित यही सोच रहा था.

तभी मोहित का ध्यान मम्मी के कपड़ों पर गया. मम्मी तो जैसे कहीं जाने के लिए तैयार हो चुकी थीं.

''आप कहीं जा रहे हो, मम्मी?'' मोहित ने मैंगो शेक का गिलास हाथ में पकड़े-पकड़े पूछा.

''हाँ, आ जाऊँगी शाम तक.'' मम्मी ने उत्तर दिया.

''कहाँ जा रहे हो आप?'' मोहित नहीं चाहता था कि मम्मी कहीं जाए. वह तो उनसे आज की छुट्टी के दिन खूब बातें करना चाहता था.

''बेटू, एक पुस्तक का विमोचन होना है, उसमें जाना है. दूसरे शहरों से भी कई कवि आ रहे हैं.'' मम्मी कह रही थीं.

माँ के कवयित्री होने के कारण मोहित पुस्तक के विमोचन का मतलब अच्छी तरह जानता था. एक-दो बार तो मम्मी उसे भी ऐसे समारोह में ले गई थीं. ऐसे समारोहो में होता यह था कि स्टेज पर बैठे तीन-चार बड़े-बड़े लोग कागज़ में लिपटी हुई किसी नई छपी पुस्तक पर बँधे फीते को खोला करते थे. उसके बाद कागज़ का कवर हटा दिया जाता और किताब हाथ में लेकर फोटो वग़ैरह खिचवाई जाती थी.

''मम्मी, क्या यह प्रोग्राम शाम तक चलेगा?'' मम्मी के शाम तक घर पर न होने की बात से उसका दिल बैठा जा रहा था.

''बेटू, प्रोग्राम तो जल्दी ख़त्म हो जाएगा, पर उसके बाद कुछ कवियों के साथ लंच का प्रोग्राम है. इसलिए वापिस आते-आते शाम तो हो ही जाएगी.'' मम्मी की आवाज़ में थोड़ा उतावलापन था.

मोहित समझ गया कि मम्मी को जाने की जल्दी है. फिर भी वह पूछ बैठा, ''मम्मी, लंच पर जाना जरूरी है क्या? लंच घर पर ही क्यों नहीं करतीं आप मेरे साथ? आज छुट्टी का दिन है. कल से तो स्कूल जाना है.''

''बेटू, तुम्हें पता नहीं ये सब बातें. बड़े-बड़े कवियों-कलाकारों से मेल-जोल बनाए रखना पड़ता है. अच्छा, मैं अब निकल रही हूँ, वरना लेट हो जाऊँगी. तुम्हारे मनपसन्द राजमा-चावल बना दिए हैं. दोपहर को खा लेना. कुछ और बनवाना हो तो शांतिबाई से बनवा लेना.'' कहते-कहते मम्मी ने मोहित के सिर पर हाथ फेरा और उसके कमरे से बाहर निकल गईं.

कुछ देर बाद ड्राइंगरूम का दरवाज़ा खुलने और फिर बन्द होने की आवाज़ आई. मोहित समझ गया कि मम्मी चली गई हैं और शांतिबाई ने दरवाज़ा अन्दर से बन्द कर लिया है.

एक बार तो मोहित का दिल किया कि बालकनी में जाकर मम्मी को कार में जाते हुए देखे, पर फिर पता नहीं क्यों उसकी इच्छा नहीं हुई. वह वहीं कुर्सी पर बैठा रहा. न जाने क्यों उसे सुस्ती-सी महसूस हो रही थी.

तभी उसकी नज़र सामने लगी दीवार घड़ी पर पड़ी. सवा ग्यारह बजने वाले थे. न तो वह अब तक नहाया था और न ही अपनी पढ़ाई शुरू कर पाया था. वह कुछ देर असमंजस में रहा कि पहले नहाकर फिर पढ़ाई शुरू की जाए या फिर कुछ देर पढ़ाई करके नहाया जाए. आख़िर उसने यही तय किया कि पहले नहा ही लिया जाए. पढ़ाई नहाने के बाद करेगा.

नहाने की बात तय करने के बाद भी वह कुछ देर कुर्सी पर बैठा रहा, क्योंकि उसका मनपसन्द फिल्मी गाना बजने लगा था. गाना ख़त्म हुआ तो वह नहाने के लिए बाथरूम में चला गया.

मोहित नहाकर निकला ही था कि उसका मोबाइल फोन बज उठा. उसने झपटकर फोन उठा लिया. फोन उसके सहपाठी प्रशांत का था. उसे भी मैथ्स के कुछ सवाल आ नहीं रहे थे. मोहित ने एक-दो सवालों का हल तो उसे बता दिया, पर बाकी के सवाल तो ख़ुद उससे भी हल नहीं हो पा रहे थे.

''यार, तेरे पापा तो मैथ्स की ट्यूशनें पढ़ाते हैं. तुझे ये सम्स करवाए नहीं क्या उन्होंने?'' प्रशांत पूछ रहा था.

''वो ऐसा है कि पापा किसी काम से बाहर गए हुए हैं. वे वापिस आएँगे न तो उनसे इन सम्स के हल पूछ लूँगा मैं और तुझे कल स्कूल में बता दूँगा.'' मोहित ने किसी तरह बात सँभालने की कोशिश की.

''पर कल तो मैथ्स का टैस्ट है यार! मैथ्स के पीरियड से पहले तो इंगलिश और हिन्दी के पीरियड हैं. उनमें मैथ्स थोड़े ही न कर पाएँगे. मैम गुस्सा होंगी.'' प्रशांत कहने लगा.

मोहित समझता था कि प्रशांत सही कह रहा है, लेकिन उसकी भी तो अपनी मजबूरी थी. पापा के पास जब टाइम होगा, तभी तो बताएँगे न उसे कुछ. टाइम तो बाद की बात है, पहले पापा घर में मिलें तो. पहले दफ्तर के बाद का वक्त ट्यूशनें पढाने में चला जाता था और अब यह कोचिंग कॉलेज का नया चक्कर शुरू हो गया है.

उसने किसी तरह प्रशांत से अपनी बातचीत ख़त्म की और अपनी स्टडी टेबल पर आकर बैठ गया. पहले होमवर्क कर लेने की बात उसने सोची. मैथ्स के क्लास टैस्ट की तैयारी के चक्कर में होमवर्क को तो कल हाथ ही नहीं लगा पाया था. एक बार होमवर्क पूरा हो जाए, टैस्ट की तैयारी बाद में कर लेगा. कुछ तैयारी तो कल कर ही ली थी. यही सब सोचते-सोचते वह होमवर्क करने लगा.

***