Khushiyon ki Aahat - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

खुशियों की आहट - 4

खुशियों की आहट

हरीश कुमार 'अमित'

(4)

''खाना लगा दूँ मोहित?'' मोहित अपना होमवर्क करने में व्यस्त था, जब उसे शांतिबाई की आवाज़ सुनाई दी.

''हाँ, लगा दो.'' मोहित ने कहा और फिर अपनी स्कूल कॉपी में लिखने लगा.

''आज छुट्टी के दिन भी अकेले ही खाना खाना पड़ेगा.'' यही बात मोहित के मन में बार-बार आ रही थी. वैसे अकेले खाना खाना उसके लिए कोई नई बात नहीं थी. ऐसा तो उसके साथ अक्सर होता रहता था.

अकेले खाना खाना उसे अच्छा नहीं लग रहा था, पर खाना तो खाना ही था. उसे भूख भी लग रही थी. वैसे भी आज उसके मनपसन्द राजमा-चावल बने थे. उसने अपना होमवर्क बीच में छोड़ा और हाथ धोने के लिए बाथरूम में चला गया.

धुले हाथ पोंछकर जब वह डाइनिंग टेबल पर आया, तो राजमा-चावल की ख़ुशबू ने उसका मन मोह लिया. राजमा-चावल उसे बहुत अच्छे लगते थे. उसने अपनी प्लेट में चावल लिए और कटोरी में ढेर सारे राजमा डाल लिए. प्लेट में सलाद रखते हुए उसने देखा कि नींबू नहीं है.

''नींबू नहीं है क्या शांतिबाई?''

''ख़त्म हो गए हैं. मेम साहब कल मार्केट से सब्जी ला नहीं पाईं.'' शांतिबाई ने रसोई के अन्दर से जवाब दिया. मोहित जानता था कि वह अपने लिए रोटी बना रही होंगी. चावल अच्छे नहीं लगते न उसे.

सलाद पर नींबू निचोड़कर खाना उसे भाता है. बगैर नींबू वाला सलाद उसे न जाने कैसा अजीब-सा लगता है. पर, खाना तो खाना ही था. इसलिए उसने खाना खाना शुरू कर दिया.

'मम्मी-पापा भी इस वक्त घर में होते और उसके साथ ही खाना खा रहे होते तो कितना मज़ा आता. पापा कोचिंग कॉलेज के आसपास से कहीं कुछ खाएँगे और मम्मी ने तो ख़ैर कुछ लोगों के साथ लंच करना है.' खाना खाते हुए यही ख़याल उसके दिल में घुमड़ रहे थे.

''रोटी लोगे क्या मोहित?'' शांतिबाई ने रसोई से झांकते हुए पूछा तो उसका ध्यान टूटा.

उसने 'नहीं' की मुद्रा में सिर हिलाया और चुपचाप खाना खाता रहा. शांतिबाई के हाथ की बनी रोटी उसे अच्छी नहीं लगती. रोटी क्या शांतिबाई का बनाया कोई भी खाना उसे पसन्द नहीं आता. उसे तो अपनी मम्मी के हाथ का बनाया खाना ही अच्छा लगता है. मम्मी के हाथ में न जाने कैसा जादू है. मम्मी की बनाई हर चीज़ उसे बहुत स्वाद लगती है. उससे तो अड़ोसियों-पड़ोसियों की कभी-कभार दी हुई कोई सब्ज़ी वगैरह भी नहीं खाई जाती.

'आज तो सुबह भी उसके मनपसन्द मीठे मालपुए बने थे और अब उसके मनपसन्द राजमा-चावल बने हैं. मगर सुबह मालपुए खाते समय कम-से-कम मम्मी तो घर में थीं, कितने प्यार से उन्होंने उसे मालपुए खिलाए थे. तीसरा मालपुआ तो मम्मी के कहने पर ही उसने ले लिया था, वरना उसका पेट तो दो मालपुए खाने के बाद ही भर गया था.' खाना खाते हुए यही सोच रहा था मोहित.

'मम्मी-पापा के साथ डाइनिंग टेबल पर बैठकर खाना खाना कितना अच्छा लगता है. खाते-खाते पापा बीच-बीच में हल्के-फुल्के मज़ाक भी करते रहते हैं. कितना मज़ा आता है न तब. और एक यह हाल है - चुपचाप बैठकर खाते रहो. कोई कहने वाला नहीं कि और कुछ ले लो. बस जितनी भूख है, उतना खा लो और छुट्टी करो.' खाना खाते-खाते यही सब बातें मोहित के दिमाग़ में आ रही थीं.

राजमा-चावल मोहित को इतने अच्छे लगते थे कि पेट भर जाने के बाद भी वह थोड़े-से और ले लिया करता था, पर आज उसका मन कुछ उखड़ा हुआ-सा था. पहली बार लिए राजमा-चावल से उसका पेट लगभग भर चुका था, मगर आज उसने और लिए ही नहीं और प्लेट सरकाकर उठ खड़ा हुआ.

बाथरूम में कुल्ला करते हुए उसके दिमाग़ में आया कि मम्मी या पापा से फोन पर बात करे, पर तभी उसे लगा कि इस वक्त उन्हें फोन मिलाना शायद ठीक नहीं होगा. पापा तो कोई क्लास ले रहे होंगे और मम्मी भी व्यस्त होंगी.

कुल्ला करके वह अपने कमरे में आ गया. खाना खाने के बाद उसे सुस्ती-सी आने लगी थी. उसने सोचा कि कुछ देर आराम कर लिया जाए. वह अपने बिस्तर पर लेट गया. कुछ ही देर बाद वह गहरी नींद में था.

***

मोहित की नींद खुली तो शाम हो चुकी थी. उसने दीवार घड़ी की ओर देखा. साढ़े चार बजने वाले थे. 'अरे, कितनी देर तक सोता रहा वह!' उसके दिमाग़ में आया. उसे अब भी कुछ सुस्ती-सी लग रही थी, इसलिए वह थोड़ी देर बिस्तर में ही लेटा रहा.

पाँच-सात मिनट बाद वह उठा. 'अभी स्कूल का होमवर्क भी पूरा नहीं हुआ. मैथ्स के टैस्ट की तैयारी भी अभी ख़त्म नहीं हुई. दूसरा चैप्टर तो अभी शुरू भी नहीं किया.' उसके दिमाग़ में आया. 'क्या आज क्रिकेट खेलने न जाए?' उसके मन में ख़याल आया.

बाथरूम में जाकर उसने मुँह-हाथ धोया और स्टडी टेबल पर बैठकर अपना होमवर्क पूरा करने लगा. होमवर्क करने के दौरान उसने बीच-बीच में कुछ दिक्कत महसूस हो रही थी. कोई-कोई चीज़ उसे पूरी तरह या बिल्कुल ही समझ नहीं आ रही थी, पर वह कुछ पूछता भी तो किससे. न पापा घर में थे, और न मम्मी.

वे दोनों घर में होते तो मैथ्स और साइंस की कोई बात वह पापा से पूछता और हिन्दी, इंगलिश और सामाजिक विज्ञान की मम्मी से. पढ़ाई से सम्बन्धित उसकी हर समस्या का समाधान वे कर दिया करते थे, मगर उस वक्त तो उन दोनों में से कोई भी घर में नहीं था. मम्मी के तो फिर भी शाम तक लौट आने की उम्मीद थी, पर पापा ने तो कल की तरह रात के ग्यारह-साढ़े ग्यारह बजे से पहले वापिस कहाँ आना था.

लेकिन कुछ भी हो, होमवर्क तो पूरा करना ही था. इसलिए मोहित जैसे भी हो उसे किए चला जा रहा था. कभी-कभी वह फोन पर अपने किसी सहपाठी से भी कुछ पूछ लेता. कई बार तो उसके सहपाठी उसे कुछ बता पाते और कई बार उन्हें भी वह बात पता नहीं होती थी.

मोहित होमवर्क करने में व्यस्त था कि शांतिबाई उसके कमरे के दरवाज़े तक आई और पूछने लगी, ''मोहित, दूध ठंडा पियोगे या गरम?''

''मुझे नहीं पीना दूध.'' मोहित का मन उस समय दूध पीने को कर नहीं रहा था.

''तो कुछ और चीज़ खा लो.''

''पाइनएप्पल क्रीम वाले बिस्किट दे दो.'' मोहित ने होमवर्क की कॉपी पर झुके-झुके शांतिबाई को उत्तर दिया.

शांतिबाई ज़्यादा पढ़ी-लिखी नहीं थी, पर कई सालों से इस घर में काम करते-करते कुछ अंग्रेजी शब्दों के अर्थ उसे पता चल गए थे.

शांतिबाई कुछ ही देर में मोहित के मनचाहे बिस्कट एक प्लेट में डालकर रख गई. एक हाथ से बिस्कुट खाते हुए मोहित अपना होमवर्क पूरा करता रहा.

अभी काफ़ी सारा होमवर्क पूरा करना बाकी था. और इससे भी बड़ी बात मैथ्स के टैस्ट की तैयारी पूरी करनी थी. मोहित जल्दी-जल्दी हाथ चलाने लगा.

होमवर्क करते-करते मोहित ने दीवारघड़ी की ओर देखा. पौने छह बजने वाले थे. 'अगर क्रिकेट खेलने गया तो वापिस आकर सोने से पहले तक एक ही काम कर पाऊँगा. या तो होमवर्क पूरा हो पाएगा या फिर मैथ्स के टैस्ट की तैयारी हो सकेगी.' यही सोच उसने आज क्रिकेट न खेलने की बात सोच ली. फिर मोबाइल फोन उठाकर अपने दोस्त, अजय, को बता दिया कि आज वह क्रिकेट खेलने नहीं आएगा. अजय के पूछने पर उसने अपने न आने की वजह भी बता दी.

'चलो, अब कुछ ज़्यादा टाइम होगा उसके पास.' सोचते हुए उसने अपना होमवर्क करना जारी रखा.

तभी उसे ध्यान आया कि मम्मी अभी तक वापिस नहीं आई थीं. 'चलो थोड़ी देर और देख लेता हूँ. अगर होमवर्क ख़त्म होने तक मम्मी नहीं आईं, तो उन्हें फोन करूँगा.' उसने तय किया. हिन्दी और इंगलिश का होमवर्क करते समय जो-जो उसे समझ नहीं आया, उसके लिए कॉपी में उसने जगह खाली छोड़ दी थी. उसने सोचा कि मम्मी आएंगी तो सबसे पहले वह वही चीज़ें उनसे पूछ लेगा.

मोहित का होमवर्क ख़त्म होने ही वाला था कि दरवाज़े की घंटी बजी. कुछ देर बाद दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई और फिर उसकी मम्मी की. मम्मी की आवाज़ सुनते ही मोहित ख़ुशी से उछल पड़ा. वह एकदम से अपनी कुर्सी से उठा और ड्राइंगरूम की तरफ लपका.

मगर ड्राइंगरूम में पहुँचते ही मोहित ठिठककर रूक गया. मम्मी अकेली नहीं आई थीं, उनके साथ एक आंटी भी थीं.

मोहित को देखते ही मम्मी बोलीं, ''हाय मोहित. कैसे हो?''

''ठीक हूँ, मम्मी.'' मोहित ने कहा और आगे बढ़कर उन आंटी को नमस्ते की.

''कुमुद जी, ये मेरा बेटा है, मोहित. आठवीं क्लास में पढ़ता है.'' मम्मी उन आंटी जी को उसके बारे में बता रही थीं.

कुमुद आंटी ने मुस्कुराकर मम्मी की ओर देखा. तभी मम्मी ने उन्हें सोफे पर बैठने के लिए कहा. साथ ही शांतिबाई को उन आंटी जी के लिए चाय-नाश्ता लाने के लिए कहा.

मोहित को अपना होमवर्क पूरा करके मैथ्स के टैस्ट की तैयारी करनी थी, इसलिए वह वापिस अपने कमरे में लौट आया. 'कहाँ तो सोचा था कि मम्मी आएँगी तो उनसे हिन्दी और इंगलिश के होमवर्क के बारे में जो पूछना है, वह पूछूँगा और कहाँ अब यह आंटी जी आ गई हैं मम्मी के साथ. अब पता नहीं कितनी देर बैठेगीं यहाँ. हो सकता है आधे घंटे बाद चली जाएँ, लेकिन अगर मम्मी ने अपनी कविताएँ इन आंटी जी को सुनानी शुरू कर दीं, तब तो हो सकता है डेढ़-दो घंटे भी लग जाएँ.' होमवर्क पूरा करते हुए यही सब चल रहा था मोहित के दिमाग़ में.

***