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अकेली नहीं हूँ मैं

कभी कभी छोटी सी है तो कभी हद से ज़्यादा, कभी चाँद लम्हो की है तो कभी वर्षों पुरानी. क्यों होती है ये घुटन. क्यों ये दिल अरमान रखता है. क्यों ये दिल कुछ मांगता रहता है. क्यों नहीं ये वैसा करता जैसा बोला जाता है. ख़ुशी के कुछ पल खो से जाते हैं जब ढेर साड़ी घुटन दिल में घर कर गयी हो. काश मैं स्वार्थी न होती. काश ये मैं मशीन होती जिसको जो बोला जाता वो ही होता. काश मेरे अरमान ना होते. काश मैं प्यार की तलाश में ना होती. काश मैं खुद को जान पाती, खुद को ढूंढ पाती. ना जाने क्यों गुस्से को सच्चा माना जाता है, जाने क्यों गुस्सा प्यार की निशानी मानी जाती है. जाने क्यों रिश्तो मैं गुस्से को एहमियत दी जाती है. और ना जाने क्यों मेरा दिल उस गुस्से को प्यार नहीं बोल पा रहा है. क्यों मैं उड़ना चाहती हु लेकिन मेरे पैरो को पकड़ के नीचे खींच दिया जाता है. क्यों मैं लड़की हूँ तो सिर्फ घर का ही रहना ज़रूरी है. काश की मैं पत्थर की होती, शायद मेरी इज़्ज़त ज़्यादा होती. क्यों आखिर अपनों ने धुत्कार दिया. क्यों नहीं मैं मन की सुन सकती. क्यों मेरी आँखें छलक जाती हैं और अक्सर काश शब्द के आगोश में खो जाती हैं. गुस्सा प्यार की निशानी ज़रूर होगा कई लोगो के लिए लेकिन ये वो दर्द भी है जो दिल की गहराइयो में अक्सर घुल जाता है जो केवल पालो के लिए नहीं, दिनों के लिए नहीं बल्कि सालो के लिए घर कर जाता है. काश मैं इतनी स्वार्थी ना होती, काश मैं मेरे लिए जीना ना चाह रही होती. काश की मैं इस घुटन को मिटा सकती. काश की इस भीड़ में अकेले होने से बेहतर मैं खुद के साथ अकेले रह पाती. काश की मैं खुदको चुन पाती. काश की मैं पत्थर की होती तो मुझमे भावनाएं ना होती. काश की ये घुटन ना होती.

जब प्यार के दो शब्द खो जाते हैं हज़ारो नफरत भरे शब्दों मे तो यकीन नहीं होता जब सबका कहना होता है की प्यार है ये. दिल में दर्द, डर, नफरत, हिचक, अधूरापन और टूट जाने के एहसास रह जाते हैं. काश इस मन को काबू करना आसान होता तो शायद ये सब ना होता. इन सवालो के जवाब भी हैं मेरे पास लेकिन फिर भी बार बार पूछना चाहती हु खुदसे ही शायद कुछ हल मिल जाए. घुटन की गहरायी इतनी है की अक्सर खुद को ही खो देती है और हम भटक जाते हैं. खो जाते हैं खुशिया ढूंढ़ने में. कभी कभी सालो बीत जाते हैं. कभी कभी नसीब कुछ दिनों में ही खुल जाता है.

जानती हु अभी अभी उदास हु तो ऐसा एहसास हो रहा है लेकिन खुशिया ढूंढ़ने मे देर नहीं लगती. चाँद ही पालो में खुश भी हो जाना है. कभी छोटी सी किसी बात पे हलके से मुस्कुरा जाना है तो कभी ठहाके मार्के हसना है. ज़िन्दगी तो यु ही चलती रेहनी है. इन सारे सवालो का हल हमारे ही पास है. बस खुदसे पूछने की देरी है और लड़ना है. इन सब सवालो से की क्यों ये घुटन मेरी खुशियों के आड़े आ रही है. मैं मेरे दिमाग को खुद पे हावी नहीं होने दे सकती. मुझे तो अभी और सीखना है. पेरो पे खड़ा होना है तो क्यों अभी से मायूस हो जाऊ. माना सवाल आते है दिमाग मे लेकिन अपनी ताकत खुद ही तो बनना है. खुदसे प्यार करना है. रौशनी बनना है. बोलकर बयान नहीं कर पाती तो लिख लेती हु. खुदसे बातें कर लेती हु. लेकिन अकेली नहीं हूँ इतना भी जानती हु. आस है, भरोसा है, विश्वास है की दिमाग के बहकना चाँद लम्हो का है लेकिन मैं इसकी मोहताज नहीं. चुन सकती हूँ इसकी ना सुन्ना. चुन सकती हूँ घुटन को ताकत बनाना. क्यूंकि अकेली नहीं हूँ मैं.