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फरेब

समय शाम के ७-७:३० का हो रहा है, जाडे का मौसम होने के कारण सुरज अपनी उपस्थीती खो रहा है और धुंध अपना वरचश्व जमाने मे काफी हदतक कामयाब हो चुकी है।
गाँव की बहारवाली सडक से जाते, थोडा दूर एक साधुओ का तंबु दीखाई पडता है।
नजदीक से देखने पर तंबु के बाहीर कुछ साधु भोजन बनाते दीखाई पडते है। तो कुछ कपडे की पोटलीयो मे कुछ बांध रहे थे। बाझुमे नजर गई तो, ये क्या ? यहा तो सोने-चांदी, हीरो के ढेर पडे थे। वे साधु ईन्हे ही बांध रहे थे।
पर प्रश्न यह उठता है की, किसी साधु के लिए भोजन और गौमाता से बढकर क्या मुल्यवान होगा ?
खैर छोडो।
तभी एक शीष्य तंबु के अंदर घुसता दीखाई पडता है। वह देखता है, अंदर गुरुजी ध्यान मे बैठे है।
तंबु मे एक दीपक जल रहा है, और उसका प्रकाश साधु से टकराकर तंबु के कपडे पर गीर रहा है। इससे जो चीत्र बन रहा है, वो एकदम अदभूत लग रहा है। मानो भगवान शीव तप करने के लिए बैठे है। ऊपर से उनके लंबे बाल और छाती कि दाई ओर सर्प का भयानक गुदा हुआ टेटु और भी आकर्षीत लग रहा है। बदन तो मानो कोई पहलवान का हो, एकदम मजबुत और कठीला। अगर कोई लडकी देखे तो मरमीटे।
शीष्यने आवाज लगाई - ऋषभ।(ऋषभ गुरुजी का नाम है)
गुरुजीने अपने आँख जट से खोली। उनकी बडी आँखे डरावनी लग रही थी और ऊपर से बाई आँख के ऊपर घाव का छोटा सा निशान भय का हमसाथी बन गया था।
गुरुजी- मैने कितनी बार कहा है वीलाश, कि मै इस वक्त गहन सोच मे होता हु। मुझे डीस्टर्ब ना किया करो। तुम तो टुकडी के सबसे पुराने आदमी और मेरे मीत्र हो। तुम्हे तो पता ही होगा, फिर ऐसी गलती क्यो करते हो ? खैर छोडो।
मुझे मालूम है, तुम आज कि घटना के बारे मे बात करने आये होगे। सच कहु तो वीलाश, मै अभी उसी बारे मे सोच रहा था। मुझे इस टुकडी का सरदार होकर ऐसी गलतीया नही करनी चाहीए।

इतने मे वीलाश ऋषभ को रोकते हुए कहने लगा। देखो मै जबसे तुम्हे मीला हु और उसके बाद जो हमने ये साधुओ कि गीरोह बनाई है। तुम वैसे कभी नही थे जैसे कल रात थे।
तुमने एक लडकी को बडी बैरहमी से मार दीया।
एक लडकी को ! तुम्हे मालुम है, इसका मतलब ?ऐसा तो कोई अपने दुश्मन को भी नही मारता जैसा तुमने कल किया था।
हमारी गीरोह के कुछ नीयम है और जीसे तुमने ही बनाये थे। जीसमे- आजीवन ब्रमचर्य का पालन, साघु धर्म का पालन करना, एक सच्चे साधु कि भाती जीवन व्यतीत करना, साधु कि भाती उपदेश करना और सबसे अंतीम किसी भी स्त्रि का वध न करना।

हम सीर्फ कोई गाव जाते है। वहा पे अपना तंबु बनाते है। लोगो को उपदेश देने के नाम पर उनसे जानकारी हाशील करते है। फिर रात को लुट करते है।
और अपनी अस्लीयत जाहिर नही होने देते।

गुरुजी- हा, मै मानता हु। मुझसे गलती हो गयी।
वीलाश- नही, तुम्हे आदत नही है, गलती करने की।
हमारी साधु की गीरोह चोरी के लिए कोई भी गाव जाती है। तुम हरएक चीज का खयाल रखते हो। तो इस बार गलती कैसे हो सकती है।
अब तो हमारे साथी भी पुछने लगे हैं कि तुने ऐसा क्यू किया ?
एक बात तु बता उस औरत कि गलती क्या थी ?
सीर्फ यही कि वह अपने पती के साथ सो रही थी ? और उसका नाम पांखी था ?
उपर से तुने अपनी अस्लीयतभी जाहीर कर दी। चहेरा खोलकर चील्लाने लगे-
मै मीत हु। मै हु मीत करके।
और एक बात बता, ये मीत कौन है ?
गुरुजी- कुछ नही, वो मेरे मुह से वैसे ही नीकल गया था।
वीलाश- अच्छा हुआ जो मीत नीकला अगर गलती से भी ऋषभ नीकलता तो हमारा यही राम-नाम सत्य हो जाता।
खैर, अब हम इस गावमे नही रुक सकते। उन्होने तुम्हारा मुह देख लीया है। इसलिए कल हमे दुसरे गाँव के लीए निकलना होगा। बस यही कहने आया था।
गुरुजी- तो अब तुम ही बता दो उस्ताद, किस गाँव की और प्रस्थान करना है ?
वीलास- चीरोली।
गुरुजी- चीरोली! (बोल कर कुछ खयाल मे खो गए और एक दम मौन हो गये)
तभी वीलासने अपने हाथो से ऋषभ को झंजोडकर खयालो से बाहीर नीकाला और कहने लगा।
जनाब, कहा खो गए ?
गुरुजी-(होश संभालते हुए) कुछ नही बस ऐसे ही। एक बात बताओ वीलाश, ये चीरोली जाना जरुरी है ?

वीलाश- इस दौर मे आजादी के बाद, सन १९६९ मे सभी भारतीय कंगाल हो चुके है। तो इस दौर मे ये गाव चीरोली और उसका जमीनदार आसपास के इलाके का सबसे धनवान व्यक्ती है।
लेकीन तु बता ? तुझे क्यु वहा जाने से तखलीफ हो रही है। तु तो ऐसे ही मौके ढुढंता रहता है।
गुरुजी- नही, ऐसी कोई बात नही है। हम कल ही चले चलेगे।
तभी वीलाश बोला ठीक है, तो कल हम चीरोली के लिए नीकलेगे। अब तुम सोजाओ। शुभ रात्री।
और वीलाश वहा से चला गया और ऋषभ उसे जाते देखते हुए अपनी चारपाई पर किसी रेत की बोरी की भाती गीर पडा। और फिर पता नही कौनसे गहन खयालो मे खो गया।
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आज फिर राजभा जमीनदार के घर से चीख सुनाई दी अगर कोई अपरीचीत महोल्ले मे होता तो शहम जाता और यदी हिंमतवर तो मदद के लिए दौडता। मगर वहा के पडोशीयो के कानो मे तो जु तक ना रैगी हो, वैसा लगा।
मगर वहा के चौकिदार की एक नींद पुरी होने के बाद आखे खुली और बोला। वाह, मेरा अलार्म बज गया। पास वाला नया आया हुआ चौकीदार बोला। क्या सरजुचाचा, वहा मैमसाब चीखी और आप उनहे अलार्म कह रहे है।
सरजु बोला और नही तो क्या ?
आज फिर पुराना सपना देखा होगा।
वह साधु वाला!
साथी चौकीदार सरजु से बोला, सपना! साधु वाला सपना ? चाचा हमे बताओ ना वो सपना। सरजु बोला अभी नही, फिर कभी। कहते-कहते फिर अपनी दुसरी नींद मे चला गया।

यहा महल मे भी सब आराम से शो रहे थे। जमीनदार की बेटी भी अपना भाग्य समझकर पानी पीकर आँखो मे नींद डालने का प्रयास कर रही थी।
लेकीन जीन्हे नींद नही आ रही थी, वो थे जमीनदार और उसकी पत्नी तरु।
तरु पलंग पर से उठ खडी हुई और रोने लगी। कह रही थी। ये क्या लीख दीया भगवानने मेरी बेटी के जीवन मे और कहने लगी एक बेटी तो पहेले ही तु छीन चुका है भगवान और दुसरी का जीवन पता नही क्या है ?
राजभा नींदको अपने से दूर करता हुआ। तरु के पास आकर बोला।
देखो तरु, तुम ही ऐसे हिंमत हार जाओगी। तो कैसे चलेगा। वैसे तो हम सारे डोक्टर-वैदो को दीखा चुके है। लेकिन शायद तुम्हारा कहना ठिक है। हमे किसी अच्छे साधु के पास जाना चाहीए।
राजभा की यह बात सुनकर तरु एकदम खुश हो गई। क्योकी राजभा इन सब बातो मे मानता नही था। पर बेटी की महोब्बत क्या न करवाये।
तरु बोली हम कल ही जाएगे। मै एक अच्छे साधु को जानती हु। मुझे चंपाने बताया था।
राजभा बोला कौन चंपा ?
तरु कहने लगी अरे वही जो हमारे महोल्लेमे शब्जी बैचने आती है।
राजभा, अच्छा ठिक है। कल कि बाते कल। अभी मुझे बहुत नींद आ रही है। कहते हुए बिस्तर पर जा गीरा। तरु बोली मै बेटीको देख आती हु। कह कर वो उसके कमरे कि ओर चलदी।

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गाव चीरोली। अभी सुबह के ६:१८ समय हो रहा होगा। लेकीन रात का राजा अंधकार, एक बुढे शक्तिशाली राजा कि तरह अपने शिहासन पर विराजमान है। जीसका शासन बहुत कम है मगर रोब किसी से कम नही।
एक आम साधु कि दीनचर्या के अनुसार ऋषभ भी स्नान करने के लिए नदी किनारे पहुच रहा है।
ऋषभ अभी नदी का बहाव देख रहा है कि किस तरफ नहाया जाए। अभी उसने अपने वस्त्र उतारे ही थे कि उसे एक चीख सुनाई दी। वैसे ऋषभ कोई डरने वाले व्यक्तिओ मे नही था। इसीलिए आवाज का पीछा कीया। थोडी दूर जाने पर झाडीयो कि बीच मे से दीखाई दीया की एक कुत्ता किसी लडकी का पीछा कर रहा था। और शायद उसी के डर के कारण वह लडकी चील्लाई होगी।
अभी के लिए डरने की बात न थी क्योकि लडकी कुत्तेसे काफी दूर थी। तो ऋषभ को कोई महेनत करने की आवश्यकता नही थी। और वह वापस नदी की ओर प्रयाण करने वाला ही था की, ऋषभ की धुंधली नजर लडकी पर पडी। तभी दीखाई दीया कि लडकीने शलवार-शुट पहन रखा था। हलका पीलारंग और नीचे खरा नीला हरी घास मे रंग जच रहा था। पर इससे एक साधुको क्या ?
पर उसके आधे खुले बाल जो उसकी कमर से भी नीचे पहुच रहे थे। और वह उसके दौडने के कारण हवामे एक सुंदर तीतली कि भाती फरफरा रहे थे। उपर से उन बालो पर लगा मोर के चीत्र का एक नायाब बाध ऋषभ को उस लडकी का पीछा करने पर मजबुर कर गया। शो वह, उसने किया भी पर हाथ लगी सीर्फ नाकामयाबी।
और कुछ खयालो मे ही गुनगुनाते हुए, उसने नदीकी तरफ रुख किया।
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- जारी......