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फरेब - 7



समय लगभग ६:३० शामके, हो रहा है।
इसलिए सुरज की रोशनी हल्की लग रही है। और बदन को चुभ नहीं रही थीं।
एक छोटा-सा झरना जंगल की बहार की तरफ बेह रहा है। उसके कलकल बहने की आवाज से शांत जंगल में मधुर संगीत का अनुभव होता है। उस झरने के किनारे लगा, एक बबुल का पैड झुककर ठिक उसके ऊपर आ बैठा है। और उस पेड़ पर दो नौजवान पश्चिम की ओर मुख करके बैठे हैं। उन दोनों ने साऊथ स्टाईल में लुंगी बांध रखी है। जीससे उनके घुटने साफ दिख रहे हैं। और उनके पैर पानी में डुब रहे हैं। जैसे कोई स्विमींगपुल के किनारे बेठकर पैर डुबोता है ठीक वैसे। हाथ में चीलम धरी हुई है। उसे वह दोनों बारी बारी से पी रहे हैं। जैसे कोई नशेड़ी अपने दोस्त के साथ बैठकर पीता है, ठिक वैसे ही।
कोई और इस नजारे को देखे, तो कुछ ऐसा लगेगा।
जैसे सुरज धरती को चुमने जा रहा है। और उससे निकलती पीली किरने जंगल के पेड़ों की छावनी में छनकर उन दो युवकों पर किसी, तीर की भाती पड रही हैं। उपर से उनकी चीलम का धुआं हल्के से आसपास के वातावरण में घुम रहा है। उनके हिलते पैर पानी की लहेरोको छेड़ रहे है। और लहरें शरमा कर भागी जा रही है। अगर कोई चीत्रकार ये द्रश्य देखता, तो उसे कैनवास पर उतारे बिना न रुकता।
खैर वो सब छोड़ो,
देखो वो दोनों आपस में कुछ बात कर रहे है। उनमें से एक कह रहा है।
देखो, बात कोई भी हो।
मेरा मानना है की, तुम वो नहीं, जो अभी हो। या फिर अभी बनने की कोशिश कर रहे हो।
दुसरा व्यक्ति बोला- मतलब ?
तुम कहेना क्या चाहते हो ?
देखो, मैं ये कह रहा हु, तुम अभी साधु हो। मगर तुम्हारा दिल एक प्रेमी का है। माना तुम्हे तुम्हारी महोब्बत नहीं मीली। मगर दिल में भावनाएं अभी भी है। इसीलिए अब, जब उस लड़की ने,
,, अरे क्या नाम था उसका ? व..व वृंदा। हां, वृंदा।
उसने तुझे टटोला तो तेरा दिल समझ नहीं पाया की क्या हो रहा है। क्योंकि अब से पहेले तुझे कोई प्यार जताने वाला मीला नहीं था। इसी कारण तु समझ रहा था की, ये सब फालतू की बाते हैं। पर अब तुझे कुछ महसूस हो रहा है।
तभी दुसरा बोला- क्या वीलाश, ऐसे ही फेंके जा रहा है। ऐसा कुछ भी नहीं है।
वीलाश- ठीक है, अगर ये बात है। तो मुझे सच सच बता। उसकी वो सारी बातें छोड़ दे। वो पुनर जन्म, शीकारी, धरा-कीशन सब और मुझे बता।
सीर्फ और सीर्फ उसके बारे में सोच की वह एक लड़की है और कुछ नहीं। फिर बता उसके बारे में तु क्या सोचता है ?
वो जब तेरे सामने होती है, तो क्या महसूस होता है ?
ऋषभ वीलाश की बाते सुनकर सोच में पड़ गया। कुछ देर सोचकर बोला, और कुछ नहीं लेकिन उसका चहेरा मुझे पांखी जैसा लगता है। और उसकी बातों में भी पांखी झलकती है। उसकी काफी सारी बातें बीलकुल पांखी की तरह ही है। हां, बस कहने का तरीका और लहेजा अलग है। उसकी उपस्थिति मुझे कहीं न कहीं पांखी की याद दीलाती है। बस इतना ही।
वीलाश- बस इतना ही ?
ये बस इतना ही नहीं है। ये तो बहुत कुछ है।
अब मेरी बात ध्यान से सुन। तुझे अपने जीवन में पांखी की जरूरत है। जो की ये लड़की वृंदा पुरी कर सकती है, और उसे तेरी तलाश थी। तो तुम दोनो एक दूसरे की मदद करो ना।
ये तो तुम्हारे ओर से बात हुई। लेकिन अगर उसकी बात मानें, तो वह पुनर जनम, अधुरा प्यार सब सच हो, तो बात किसी ओर जहां की ही हो जायेगी। और क्या पता उसकी बातें सचभी हो। अभी तक के मीले सबुतो से, तो उसकी बातें पुरी तरह सांची मालूम पड़ती है।
और फिर अगर भगवान ने चाहा हो तो, तुम इसीलिए पांखी से अलग हुए होंगे। ताकी वृंदा से मील सको। होने को तो कुछ भी हो सकता है।
ऋषभ- मैं ये सब नहीं मानता।
उसने ये वीलाश को तो बोल दिया, मगर उसके मनमें भी यही सारे सवाल थे। और उनके जवाब सीर्फ और सीर्फ वृंदा की ओर इशारे कर रहे थें।
तभी उनके पीछे से किसी के दौड़कर आने की खलबलाट सुनाई दी। उन्होंने मुड़कर देखा तो एक शिष्य भागकर आ रहा था। और आकर कहने लगा- सरदार, वो लड़की हमारे आश्रम आकर काफी हंगामा कर रही है। आप जल्दी चलीए, तभी वो शांत होगी।
वीलाश- मगर कौन लड़की ?
शिष्य- अरे वही जमीनदार की बेटी। जीनके यहां हम पुजा के लिए गये थे।
ऋषभ- ( पेड़ से उतर ते हुए कहने लगा) पता नहीं अब कौनसा नया हंगामा करेगी ये लड़की। ये बिलकुल ही मेरे समझ की बहार की चीज है।
वीलाश- चलो, अब तो वहां जाकर ही पता चलेगा। कौन सा नया हंगामा होने वाला है।
कहकर तीनों आश्रम की तरफ चल दिए।
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चीरोली का बाजार अभी सुना सुना लग रहा है। वीलाश अभी वहां ही खड़ा है। मगर लोगों की संख्या काफी कम है। क्योंकि शाम होने को आयी है। सुरज भी बड़ी-बडी जमाईया लेकर सोने की तैयारी में है। काफी सारे व्यापारी जा चुके हैं और कुछ वही दोहराने की तैयारी में है। वीशाल अपने शिष्यों के साथ कुछ सामान लेने आया हुआ है। लेकिन हालात देखकर जान पड़ता है। बहुत देर हो गयी।
वो फिर भी एक प्रयास करना चाहता था। इसीलिए एक नजर पुरे बाजार में घुमाई।
अभी वह देख ही रहा था की, पास खड़ा शिष्य बोला। देखिए गुरुदेव शायद, ये वही लड़का है, जो जमीनदार की हवेली पर खीडकी से झांक रहा था। जब हम पुजा कर रहे थे।
वीलाश- तुझे पक्का यकीन है। ये वही लड़का था।
शिष्य- लग तो वहीं रहा है। फिर बोला उठा, हां। ये वही हैं। देखिए उसके हाथ का कड़ा, वही दो हंसो की आकृति।
वीलाशने उसकी ओर नजर दौड़ाई। वो वही खड़ा था। वीलाशने कहा, चलो आज धरते है इसे। कहकर शिष्यो के साथ आगे बढ़ा, लेकिन देखता है। वो लड़का किसी से बात कर रहा है। बीच में दुकानों का सामान होने के कारण वो कोन है, दीखाई नहीं दे रहा है।
थोड़ा आगे जाने पर देखा, कोई तो लड़की है। मगर नजरें जब गौर से चहेरे पर टिकी तो, मुंह से निकल गया।
ये क्या हैं ? ये वृंदा यहां क्या कर रही है ?
फिर उसने उनकी बातें सुनने का प्रयास किया। लेकिन दुरी ज्यादा होने के कारण वो न हो सका। मगर उनके हाव-भाव तो देख ही सकते थै।
उन्हें देखकर मालूम पड़ता था। वो एक दूसरे को अच्छी तरह से पहचान ते थै। पर वृंदा काफी गुस्से में लग रही थी। और हाथों के इसारे बता रहे थे। वो कुछ धमकी दे रही थी। वो उस लड़के की बात सुनना ही नहीं चाहती थी। फिर काफी देर तक बात कर, वो वहा से चली गयी। वो लड़का मायुस लग रहा था।

यह सब देखकर एक शिष्य बोला,
ये बड़ी टेडी चीज है, गुरुदेव।
वीलाश- अब जो भी हो। इसका भेद तो पता लगाना ही होगा। और वह बतायेगा, ये लड़का।
उसने शिष्यो को वही ठहरने के लिए कहा। और खुद उस लड़के के पास पहुचा। वीलाशने अपना परीचय दीया। तो उसने कहा वो जानता है। फिर वीलाश और उस लड़के के बीच काफी देर तक बातें हुई। वो वीलाश को कुछ महत्वपूर्ण बातें बता रहा था। और वीलाश उसे अच्छी तरह से सुन रहा था। इससे जान पड़ता था की, वो बातें सच में महत्वपूर्ण थी।
और अंत में वीलाशने कहा। हां, मैं ऋषभको सब बता दुंगा। तुम चींता मत करो। कहकर वहां से वीदा ली।

अभी वो लड़का कुछ दुरी पर ही गया होगा की, ऋषभ घुमते घुमते वहां आ पहुंचा। और वीलाश से पुछा, कौन था वो लड़का।
वीलाश- कौन लड़का ?
ऋषभ- अरे वही, जीसके साथ तुम बाते कर रहे थै। मेने आते हुए देखा था, तुम दोनों को।
वीलाश- अरे वो, वह तो पुजा-अनुष्ठान के बारे में पुछ रहा था और कुछ नहीं।
वीलाश की ये बात सुनकर सभी शिष्य उसे ही देखने लगे। क्योंकि अभी अभी उस लड़के ने जो भी बातें कही थीं। सारी ऋषभ के लिए थी। जबकि वीलाश तुरंत मुकर गया। आखिर उसके दीमाग में है क्या ?
ऋषभ- अच्छा। तो फिर सारा सामान ले लिया हो तो, आश्रम चला जाए।
वीलाश- हां। चलो चलें।
फिर कुछ इधर-उधर की बातें करते हुए। सब आश्रम की तरफ चल दिए।
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राजभा होल में राजवीरभा के साथ सोफे पर बैठा है। और कोई महत्वपूर्ण बात पर वह दोनों एकमत होने की कोशिश कर रहे हैं।
लता और तरु रसोई में अपना काम संभाल रहे हैं।
तभी वृंदा का मुख्य दरवाजे से आगमन होता है। वह चुपचाप सी चली आ रही है। सबसे नजरें चुराते हुए। सबकी नजरों से बचना चाहती है। ऐसा उसके हाव-भाव बता रहे हैं। बाएं हाथ की कलाई पर एक भगवा कपड़ा बंधा हुआ है। ऐसा मालूम पड़ता है, उसे किसी वस्त्र से चीरा गया है।
राजभा की नजर जैसे वृंदा पर पडी। हरबार की तरह सवाल कीया, वृंदा बेटा कहां गयी थी ?
अभी शामके ७:३० बज रहे हैं। यु इस वक्त घुमना अच्छी बात नहीं।
वृंदा-( अपना हाथ पीछे छीपाते हुए) यही बाजार गयी थी, सहेली के साथ। अगली बार वक्त का खयाल रखुगी। अच्छा बाबासा अब में चलु।
राजभा- ठीक है। और फिर राजभा की नजर जमीन पड़ी कतारबंध बुंदों पर पड़ी। उनके रास्ते का पीछा किया तो पाया। वह वृंदा के हाथ पर बंधे कपड़े से गीर रही थी।
और राजभा ने आवाज लगाई। वृंदा रुको।
वृंदा-(लगया है पकड़ी गयी) जी बाबासा क्या हुआ ?
राजभा- क्या ये तुम्हारे हाथ से खून बह रहा है ? ( राजभा उठकर सीधा वृंदा के पास गया। और देखा खून वाकई वृंदा की हथैली से बह रहा था। उसने जटसे कपड़ा हटाया।)
वृंदाने रोकने की कोशिश की मगर राजभा की बड़ी गुस्सेदार आंखों के आगे वो रुक गयी।
कपड़ा हटा दीखा। वृंदा की कलाई कटी हुई है। तबतक सब घरवाले भी नजदीक आ चुके थै। राजभाने आवाज लगाई, जल्दी डोक्टर को बुलाओ।
तरु तो यह देखकर डर गई। ये क्या हो गया, लाडो ?
मेरी बच्ची की कलाई कटी गयी। ज्यादा खून तो नहीं बह गया ? हे भगवान अब में क्या करु।
वृंदा- बाबासा, मासा शांत। ये चोट इतनी गहरी नहीं है। आप चींता न करें। और डोक्टर को बुलाने की भी जरुरत नहीं है।
राजभा- किसको बुलाना है और किसको नही। वो मे देख लूंगा। तु सोफे पर लेट जा।
थोड़ी देर बाद डॉक्टर भी आ गया। उसने दवाई पट्टी की और कहा, डरने की कोई बात नहीं है। घाव इतना गहरा नहीं था की जान चली जाए।
और वृंदा बोली देखो, मैं न कहती थी।
राजभा, तुम चुप रहो। फिर राजवीर को डोक्टर को छोड़ने को कहा।
और वृंदा से पुछने लगा। एक बात बताओ, ये तुम्हारी कलाई कैसे कटी ?
वृंदा, (हड़बड़ाते हुए) कलाई..., वो तो बाजार में चुडीया पहनते हुए। एक चुड़ी टुटी और उसका कांच लग गया मुझे। हां, बस ऐसा ही हुआ था।
राजभा, सच-सच बताओ। ये किसी चुड़ी की वजह से नहीं बल्की चाकु का कटा साफ घाव दीखाई दे रहा है।
वृंदा- नहीं बाबासा, मैं सच कह रही हु।
राजभा- ठीक है, इसका फैसला भी अभी हो जाएगा। राजभा ने एक नौकर से कहा, जाओ खुदीराम को बुला लाओ।
( खुदीराम वैसे तो वृंदा का ड्राइवर कम बोडीगार्ड है। मगर वह इस घरका सबसे पुराना और वफादार सेवक )
खुदीराम ने आते ही कहा, हुकुम क्या फरमान है ?
राजभा- खुदीराम बताओ वृंदा आजकल क्या रही है।
खुदीराम- हुकुम, बेबीजी आजकल उस साधु के आश्रम की ओर ज्यादा जाती है। और आज भी वहां गयी थी। वही पर ही इन्हें ये चोटभी लगी।
और कुछ हुकुम।
राजभा- बस खुदीराम, अब तुम जा सकते हो।
इसके बाद वृंदा, राजभा और घरवालों के बिच काफी कहासुनी हुई। और अंत में परीणाम ये नीकला की वृंदा अबसे घर से बहार अकेली कभी नहीं जाएगी।
और राजभा ये फैसला सुनाकर वहां से चल दीया। वृंदा राजभा को बाबासा नही, बाबासा नही करती रही। मगर राजभा एक बार भी मुंडे बगैर सीधा अपने कमरे में चला गया।
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आज वृंदाने किसी की बात न मानते हुए। सबको छकाके सीधा ऋषभ के तंबू में घुसने की हिमाकत की है। वो भी उसकी इजाजत के बगैर। इसका परीणाम क्या होगा ?
वो तो कोई नहीं जानता।
बस इंतजार कर सकते हैं की, क्या होगा ?
मगर वृंदा भी आज कुछ ठानकर ही अंदर गयी है। उसके चहेरे के हाव-भाव बता रहे थे की, वो आज अपनी बात मनवाए बीना यहां से नहीं जाएगी।
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ऋषभने आज पहली बार शराब पी है। ये लक्षण बता रहे हैं की, वह अब वैराग्य से दूर जाता दीखाई दे रहा है। और वीलाश ये भली-भाती देख रहा है। और देखकर सीर्फ मुस्कुरा रहा है। अब उसके दीमाग में क्या है ? वो तो वहीं जाने।
लेकिन ऋषभ के दिलो दिमाग में क्या चल रहा है, वो वीलाश काफी हद तक समझ चुका है।
ऋषभ- यार वीलाश मैं क्या करु, मुझे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा।
वो लड़की हररोज कोई न कोई बात लेकर आ जाती है, और मुझे परेशान कर देती है।
वो हरबार एक नया सवाल लेकर खड़ी हो जाती है। और रोज की तरह मेरे पास उसका जवाब नहीं होता। उसकी बातें हर तरह से सच्ची होती है, मगर ये दीमाग हरबार शक करता रहता है।
दिल तो उसे ही मानता है, मगर दीमाग आनाकानी करता रहता है।
अब तु ही बता मैं क्या करु ?
वीलाश- सच कहुं तो, इतनी परीक्षा तो किसी देवीने भी नहीं दी होगी। जीतनी ये वृंदा दे चुकी है। खुदको शाबीत करने के लिए। मानजा भाई, वो तुझसे प्यार करती है, और शायद तु भी।
ऋषभ- तु शायद ठीक कह रहा है। लेकिन हरबार ये मगर, लेकिन बीच में आ जाते हैं।
ऋषभ- तुझे पता है ? वो पीछली बार मुझे कहा ले गयी थी।
वीलाश - कहा ?
ऋषभ- तु मेरा भाई है, इसीलिए बता रहा हु। वरना मैं किसी से बात नहीं करता। ( उसकी आवाज बता रही थी। हाल उन तीन खाली बोतलों का की, हम ही हैं जीनके कारण ये इतना उछल रहा है।)
वीलाश, ठीक है, अब बता कहां ले गई थी, वृंदा तुझे ?
ऋषभ- अरे हां। वो मुझे ले गई थी। बाबा के पास।
वीलाश- उसके बाबा, राजभा जमीनदार के पास ?
ऋषभ- नहीं।
कमाल की बात देख। वो एक साधु को दुसरे साधु के पास ले गई थी। बाबा अनादी गौतम।
नाम तो सुना होगा ?
वीलाश- हां, ये तो बड़ा ज्ञानी और वीख्यात साधु है। और हमेशा सत्य का साथ देता है। उससे कुछ भी छुपा नहीं है।
फिर उसने क्या कहा ?
ऋषभ- पता है वहां उसने क्या किया ? ( हंसते हुए)
अरे तुझे कैसे पता होगा। तु तो वहा था ही नहीं।
हां तो, उसने कहा की मैं अकेला अंदर जाऊं और बाबा से मीलु। ताकी मुझे कोई शक ना रहे की, मेरी वजह से बात बदल गयी।
वीलाश- (उत्सुकता से) आगे... फिर क्या हुआ ?
फिर मैं अंदर गया। उस बाबा ने देखते ही मुझे मेरे नाम से पुकारा,
आओ ऋषभ उर्फ मीत। यहां बेठो।
मैं आगे कुछ सोचु या बोलु, उन्होंने कहा, बहोत ही उलझन में मालूम पड़ते हो क्या समस्या है।
वृंदा या पांखी, या फिर धरा-किशन ?
मैं, एकदम हैरान रह गया। इन्हें ये सब कैसे पता।
बाबा, चौंकने की जरूरत नहीं है। भगवान की कृपा और मेरे तप की महेनत है। जो मैं इतना बता सकता हु और लोगों का दु:ख समझकर, उसे जीस हद तक मदद कर सकु, करता हु।
अब बताओ समस्या क्या है।
मैंने कहा, ये लड़की वृंदा, जो बातें मुझसे कह रही है। क्या वो सच है ?
अगर वो मेरे जन्मों जनम की साथी है ?
तो फिर पांखी कौन है ?
बाबा, तुम क्या चाहते हो ?
तुम्हे किससे प्रेम है ?
मैने कहा, मैं तो पांखी से ही प्यार करता हु। मगर वो अब नहीं रही। लेकिन वृंदा की बातों में और कामों में मुझे पांखी दीखाई देती है।
ऐसा क्यूं ?
बाबाजी थोड़ा मुस्कुराए फिर बोले, देखो मैं तुम्हारे सभी सवालों का जवाब एकसाथ देता हु।
तुम पढे लिखे इन्सान हो, तो पुनर जन्म की बात नहीं मानोगे। स्वभावीक है, और मैं मानने को कहुंगा भी नहीं। लेकिन अगर तुम पांखी से प्यार करते हो। और उसे अपने जीवन में उसे चाहते हो। तो तुम्हें वृंदा को अपनाना होगा। क्योंकी एक तरह से ये ऐसा है, वृंदा और पांखी एक-दुसरे में है। उनकी आत्मा एक है। पांखी के जाने के कारण वृंदा की उत्पत्ति हुई है, ऐसा कह सकते हैं। शरीर अलग है मगर दील एक। अब इसमें से तुम जो समझो वो ठिक। और हां, एक ओर बात, वृंदा का मतलब तुलसी होता है। और राधाजी का एक नाम तुलसी था। ठिक नाम की तरह वृंदा का जीवन भी काफी हदतक राधाजी की तरह ही है। बस इतना कहकर मुझे भेज दीया।

अब बता मैं इसका क्या मतलब नीकालु ?
और इतना कहकर ऋषभके अंदर की शराबने उसे रुला दिया।
वीलाश- ( वो समझ गया की अब इस पीयक्कड के साथ बैठना। मतलब खुदका वक्त बर्बाद करना।) इसलिए उसने कहा, सब ठीक है भाई। अब तु सो जा। रात बहोत हो गई है।
ऋषभ- ऐसा हे क्या ? तो ठिक है, मैं सो जाता हु। फिर ऋषभ अपनी पलंग पर लेट गया। और वीलाश भी वहां से चला गया।
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ऋषभ सुबह उठा, उसका सर काफी दर्द कर रहा था। और क्यू न करें। तीन बोतल शराब की कम नहीं होती। उसने खुदको किसी तरह संभाला और तंबुसे बहार नीकल ने के लिए पलंग पर से पैर नीचे किए। लेकिन उसके पैरों से कोई चीज टकराई।
उसने क्या चीज है, देखने के लिए नीचे देखा। और देखते ही, वह पीछे की ओर उछलकर पलंग को पार करते हुए, जमीन पर आ गीरा।
ऋषभ का सारा नशा जा चुका था। उसकी आंखें फटी की फटी रह गई थी। ये उसने क्या देख लिया। वह यकीन नहीं कर पा रहा था।
ऋषभ के पलंग के आगे वृंदा सो रही थी। जमीन पर कोई चद्दर नहीं। उसका बाया हाथ वहां पड़ी छोटी सी खुरशी पर था। दुसरा जमीन को छु रहा था। बायां पेर आधा मुंडा हुआ जमीन से चीपका हुआ था और दायां पेर ठीक उसके ऊपर आराम कर रहा था।
मगर असल बात ये थी, की राजस्थान की इस कड़कड़ाती ठंड में वृंदा वहां केवल सो नहीं रही थी। बल्की चरीत्रवान तुलसी(वृंदा) के बदन पर एक भी वस्त्र न था। वो पुरी तरह नग्न थी। और यही द्रश्य ऋषभ को वही पर बैहोश कर गया।
बैहोशी में भी उसके दीमाग में यही सवाल घुम रहे थे। ये यहां कैसे, क्यू और इस अवस्था में क्यू ?
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- जारी..