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सैलाब - 24

सैलाब

लता तेजेश्वर 'रेणुका'

अध्याय - 24

नारियल के लंबे लंबे वृक्षों के बीच शहर के साफ़ सुथरे घर के आंगन और आँगन में आंनद उल्लास से खेलते बच्चों को देख पावनी एक शांत और सुरक्षित वातावरण को महसूस कर रही थी। मुम्बई के भागते दौड़ते शहर से पृथक पंछियों की चहचहाट के बीच बिताए ये कुछ पल उनके लिए अविस्मरणीय बन गये थे। वहां के केले के चिप्स, खाने में केरला राइस के साथ पुट्टु और नारियल का उपयोग पावनी को बहुत पसंद आया। पुट्टु पीसेहुये नारियल और चावल से बनाया जाता है। यहां के क्रिश्चियन्स पुट्टु को बीफ के साथ परोसना पसंद करते हैं।

केरल के अलपि के बोट हाउस में घूमते रहे। मोह लेने वाले सुंदर जंगलों के बीच खुले आकाश के नीचे रोमांचक वह रात, दोनोँ को काफी दिनों बाद एक साथ कुछ समय बिताने का मौका मिला। पानी में तैरती बोट पर राम के निकट बैठी पावनी ने "थैंक यू।" कहकर राम के सीने पर सिर रख सपनों में डूब गयी।

"थैंक यू किस लिए?"

"मुझे इन वादियों में ले आने के लिए। शहर की जिंदगी में रहते मिटटी की खुशबू के एहसास को भी भूल गयी थी मैं। इस ताज़गी भरी हवा और ये प्रकृति ने जैसे एक नया जीवन दे दिया है। ऐसा लगता है कि फिर से बचपन लौट आया है। इस मिट्टी की महक ने फिर से मुझे गांव से जोड़ दिया।"

"अच्छा बहुत रोमांटिक हो रही हो। "

"हाँ, क्यों नहीं आप ने भी मेरे लिए समय निकाल कर इस खुले आकाश के नीचे इस् झील की सुंदरता के बीचों बीच ऐसे माहौल में मुझे लाया है कि लगता है जिंदगी भर के लिए इस पल को अपने में समेट लूँ और यहां सिर्फ तुम और मैं और कोई नहीं, रोमांटिक होने वाली बात तो है ही।" पावनी ने मुस्कुराते हुए कहा।

"चलो अच्छा है अगर तुम खुश हो इससे ज्यादा मुझे क्या चाहिए। बोलो क्या आर्डर दिया जाए? कहो तो साथ में कैंडल लाइट डिनर का इंतज़ाम करवा दूँ?" मुस्कुराते हुए राम ने पूछा।

"अच्छा? बोट पर वॉव।" ख़ुशी से उछल पड़ी पावनी।

"चलो अब आंखें बंद करोँ ।"

"क्यों?"

"बंद करलो, सरप्राइज है तुम्हारे लिए।"

"ठीक है।" पावनी ने आँखे बंद करली।

राम ने जेब से अपना रुमाल निकला और उसके आँखों पर पट्टी बाँध कर धीरे से हाथ पकड़ कर बोट के अंदर कमरे में ले गया।

"आँखें यूँ ही बंद रखो जब तक मैं न कहूँ तब तक मत खोलना।"

"राम ये सब क्या है, क्या कर रहे हैं आप?"

"तुम अपनी आँखों से ही देख लो।" कह कर आँखों पर से रुमाल खोल दिया और कहा, "अब आंखें खोल सकती हो।"

पावनी ने आँखें खोली तो अचंभित रह गयी। छोटा सा कमरा। कमरे को फूलों, गुब्बारों और मोमबत्तियों से सजाया गया था। पूरा कमरा फूलों की खूशबू से महक रहा था। कमरे के बीचों बीच एक टेबल। टेबल के बीच एक कैक और साथ ही एक सुंदर सी कैंडल जो पूरे कमरे को रोशन कर रही थी। पावनी अपने दोनों हाथ अपने गालों पर रख कमरे की सजावट को आश्चर्य से देख रही थी। राम अपने मोबइल से पावनी के फोटोज क्लिक कर रहा था।

पावनी की आँखें ख़ुशी से नम हो गई। राम उसके कंधे पर हाथ रख कर धीरे से टेबल के पास ले आया और एक कुर्सी को खीँच कर उस पर बिठा दिया। पावनी से कैक कटवा ही रहा था कि सोहम और सेजल का फ़ोन आ गया।

राम ने फ़ोन स्पीकर के मोड़ पर रखा और सभी ने एक साथ - 'हैप्पी बर्थडे टू यू' कहकर पावनी को चौंका दिया।

"पावनी तुम्हें एक बात बतादूँ कि ये सब हमारे बच्चों ने ही हमारे लिए प्लान किया था।"राम ने कहा।

पावनी ने कैक काट कर राम को खिलाया और राम ने पावनी को। "थैंक्स बच्चों, थैंक्स राम, आज का दिन मैं जिंदगी में कभी भूल नहीं पाऊँगी। इतने खूबसूरत एहसासों को बयान करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है।"

सेजल ने कहा, "भाई अब हम को जाना चाहिए । माँ, डैड एन्जॉय द मोमेंट।"

सोहम ने भी दोनों को "मॉम डैड आप लोग एन्जॉय कीजिये। अभी फ़ोन रखता हूँ।" कहकर फ़ोन काट दिया। दोनों बहुत देर तक टेबल पर बैठ कर उन पुराने दिनों को याद करते रहे जो उन्होंने साथ बिताये थे। नदी के दोनों तरफ जंगल की सुंदरता और हरी भरी वादियाँ बाहें फैलाये खड़ी थी।

केरला की गलियों में घूमते हुए पावनी ने अपने घर के लिए ढ़ेर सारी चीजें खरीदी की। राम के संग अकेले बिताए इस समय ने एक दूसरे का भरोसा और विश्वास पुनः हासिल किया और नई ऊर्जा पा कर वे मुम्बई लौटआये।

इस दौरान शतायु की बेबे का इंतकाल हो गया। शतायु भोपाल में बहुत अकेला पड़ गया था। पावनी ने उसे मुंबई स्थानांतरण करने के लिए कहा। शतायु को भी यही सही लगा और भोपाल छोड़ कर वह मुंबई शहर आ गया। कुछ दिन उसने पावनी के घर में ही आश्रय लिया और नौकरी मिलने के बाद स्कूल के पास एक छोटा सा कमरा ले कर खुद के रहने का बंदोबस्त किया।

सेजल कॉलेज का पहला साल खत्म कर दूसरे साल में पहुँची। सोहम आगे की पढ़ाई के लिए विदेश चला गया। पावनी भी अपनी किताब पूरी करने में व्यस्त हो गई। बिंदु नारी कल्याण संस्था में रह कर स्त्रियों की मदद करती रही और साथ-साथ अपनी पढ़ाई जारी रखी। शतायु की उपस्थिति बिंदु का हौसला बनाए रखती। वह दिल से शतायु को अपनाने के लिए तैयार थी पर शतायु के मन में क्या चल रहा था कौन जाने ?

***

शतायु के घर से दो गली छोड़ कर शबनम की चौल नज़र आती है। शबनम एक मुसलमान परिवार की लड़की है। वह, अपनी दो बहनें और एक छोटे भाई के साथ एक कमरे में रहती है। उसके पिता रहीम एक रिक्शा चालक है। रिक्शा चलाकर जो भी पैसे मिलते उन पांचों के पोषण के लिए काफी नहीं थे। शबनम घर की बड़ी बेटी होने के कारण और पैसों की सख्त जरूरत ने उसे एक दुकान में काम करने पर मजबूर किया। रहीम और उसकी कमाई से घर के लोगों का पेट तो भरता था लेकिन बहन-भाइयों की छोटी छोटी जरूरतें पूरी नहीं हो पाती थी। शबनम को उन्हें पढ़ते लिखते देखने का सपना, सपना ही रह जाता।

एक दिन शबनम काम खत्म कर रात को घर लौट ही रही थी कुछ लोगों ने उस पर हमला कर दिया। वह अकेली लड़की रात के 9 बजे सुनसान रास्ते पर चारों गुंडों का सामना कैसे कर सकती थी। वे उसको शारीरिक रूप से प्रताड़ित कर रास्ते के किनारे फैंक कर चले गये। सिसकती हुई शबनम रास्ते के किनारे न जाने कितनी देर पड़ी रही उसे होश नहीं था।

बिंदु जब ऑफिस से देर रात टैक्सी में घर लौट रही थी उसने शबनम को रास्ते पर दीन और गंभीर हालात में देखा। शबनम की हालत में देख कर उसने गाड़ी रोकी। वह बेहोश थी। बिन्दु ने उसके मुँह पर पानी सींच कर जगाया और पीने को पानी दिया। शबनम कुछ भी बोलने को सक्षम नहीं थी। उसके कपड़े फटे हुए थे साथ ही बदन के कुछ अंगों से रक्तस्राव हो रहा था। उसे देख कर लगा बड़ी बेदर्दी से उस पर अत्याचार हुआ है। ड्राइवर की सहायता से बिन्दु ने उसे गाड़ी में बिठाया और डॉक्टर के पास ले गयी।

घायल और बेहोश शबनम को मदद की सख्त जरूरत थी। उसे देख कर यूँ लग रहा था जैसे कि इंसानों में इंसानियत मर चुकी है। जिस बेदर्दी से उसके साथ घिनौना अपराध किया गया था। उसे देख बिन्दु बहुत सहम गयी थी। उसने पावनी को फोन कर बुलाया और डॉक्टर से उसके घावों की प्राथमिक चिकित्सा करवायी। दूसरे दिन सुबह महिला पुलिस अफसर से रिपोर्ट भी दर्ज करवायी। महिला पुलिस इंस्पेक्टर ने अंजान लोगों पर केस दर्ज कर शबनम, बिंदु, पावनी और शबनम के पिता रहीम के दस्तखत ले कर चली गयी। अस्पताल में उसके मेडिकल ट्रीटमेंट की सारी व्यवस्था कर दी गयी।

महिला डॉक्टर पद्मजा और नर्स केतकी ने शबनम का खूब ख्याल रखा। पद्मजा और केतकी की देखभाल से शबनम कुछ ही दिनों में स्वस्थ महसूस करने लगी। पावनी हर हफ्ते उसे देखने आती रही। बिन्दु ने महिला पुलिस से मिलकर अपराधियों को पकड़ने में सहायता माँगी। शतायु भी बिन्दु और शबनम की हर संभव मदद करता रहा। शबनम ने मानसिक क्षोभ में आ कर आत्महत्या करने की प्रयास की। मगर कोर्ट की पहली हियरिंग के लिए शबनम को लेने आई बिंदु ने समय पर उसे रोक लिया। शबनम को मानसिक चिकित्सक के पास ले गई। पावनी और बिंदु ने उसे हौसला देने के साथ साथ गौरव से जीने के लिए नारी कल्याण संस्था में एक नौकरी भी दी। शबनम को इज्जत की जिंदगी देने के लिए पावनी, बिन्दु और शतायु ने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की।

"शबनम तुम हौसला रखो, अपराधी जल्द ही पकड़े जाएंगे। तब तक इस संस्था में काम कर सकती हो। तुम्हे सदा हमारी मदद मिलती रहेगी। किसी तरह की भी जरुरत हो हमें जरूर बताना।" बिन्दु ने उसे हौसला देते हुए कहा।

शबनम के पास चुपचाप सुनने के अलावा कुछ कहने को बचा ही नहीं थी। बात बात पर उसकी आंखे छलक जाती रही।

***