Sailaab - 28 books and stories free download online pdf in Hindi

सैलाब - 28

सैलाब

लता तेजेश्वर 'रेणुका'

अध्याय - 28

अपना दर्द किसको भला कह सकती है। कुछ दिन तक जो हमदर्द बन कर साथ खड़े थे लेकिन कोर्ट की कार्यवाही में वे भी साथ छोड़ दिये। कोई कितने दिनों तक साथ चलता सब एक एक कर अपने कामों में व्यस्त हो गए। बिंदु कई नए मामलों में व्यस्त हो गई। कभी समय मिलता तो शबनम को मिलने आ जाती थी पर अब उसके पास भी वक्त कहाँ होता था। पावनी भी अपनी घर गृहस्थी में जुट गई।

शतायु शबनम की देखभाल कर तो रहा था लेकिन एक दिन जब वह शबनम के घर पहुँचा, शबनम के छोटे भाई ने दरवाज़ा खोला । शतायु कदम आगे बढा ही रहा था कि शबनम ने पूछा, "आप क्यों बार बार घर आते रहते हैं?"

शतायु ने कहा, "हालचाल पूछने आया था। अगर आप को पसंद नहीं तो चला जाता हूँ।"

"मुझे क्यों पसंद और क्या पसंद होना चाहिए?"

"कुछ चाहिए हो तो ले आउंगा सोच कर..."

"आप क्यों कुछ लाओगे हमारे लिए? हमारे बाप लगते हो या भाई? और क्यों लाओगे हमारे लिए चीज़ें ये हक़ आप को किसने दिया?" शतायु की नज़र में उसके लिए प्यार देख लिया था शबनम ने। उसको अपने से दूर रखने का एक ही तरीका था उसके दिल पर वार करना। अगर उसे दिल पर चोट पहुंचे तो वह खुद उसके पास आना छोड़ देगा। शबनम का एक एक प्रश्न शतायु के साथ साथ शबनम के दिल के भी टुकुड़े टुकुड़े कर रहा था।

"मैं आप का बोझ कुछ कम करना चाहता हूँ, आप सब की जिम्मेदारी लेना चाहता हूँ अगर आप की इज़ाजत हो तो।"

"क्या लगते हो जो हमारे जिम्मेदारी लोगे? अब मैं जिन्दा हूँ मरी नहीं। मैं अपने परिवार की देख रेख कर सकती हूँ।"

क्या आप मुझसे शादी करना पसंद करेंगी?" शतायु ने अचानक पूछा।

क्या मतलब शादी करना पसंद करुँगी? मैने पूछा आप से?"

"जी नहीं मैं पूछ रहा हूँ क्या आप मुझसे शादी करेंगी?"

शबनम इस सवाल से हक्का बक्का रह गयी। अचानक शतायु शादी की बात इतनी आसानी से उसके सामने रखेगा वह, यह सोच नहीं सकती थी। उसके जुबान पर जैसे ताला पड़ गया।

वह कुछ कहती इससे पहले शतायु ने फिर से कहा, "शबनम मैं तुम से प्यार करता हूँ, ये मत समझना कि मैं तुम पर कोई एहसान कर रहा हूँ। कई दिनों से मैं तुम्हें बताना चाहता था लेकिन बता नहीं पाया क्यों कि तुम कहीं ये समझ न लो कि मैं तुम पर कोई एहसान कर रहा हूँ या कोई एहसान का बदला मांग रहा हूँ। मैं तुम से प्यार करता हूँ और जिंदगी भर तुम्हारे साथ रहना चाहता हूँ।"

शबनम जैसे पत्थर की मूरत बन गयी थी। उसके जुबान से एक भी शब्द निकल नहीं रहा था। वह सिर्फ देखती रह गयी।

"अभी आप को कुछ कहने की जरुरत नहीं मैं शाम को फिर से आऊंगा तब आप के मुँह से हाँ सुनने का इंतज़ार रहेगा लेकिन ...लेकिन अगर आप मुझे नापसंद करती है तो ..तो भी कोई बात नहीं मैं हमेशा के लिए यहां से चला जाऊंगा, प्रॉमिस।" कह कर शतायु पीछे घूम कर वहां से चला गया।

शतायु के जाते ही शबनम बहुत देर तक सोचती रह गयी। शाम होने के पहले ही उसने अपने भाई और बहन को बाहर भेज दिया। अलमारी से उसकी माँ की शादी की हरे रंग की साड़ी निकाल कर बहुत प्यार से देखने लगी। हरे रंग की साड़ी पर चमकी और मोती से एम्ब्रॉइडरी की हुई थी। उसे अपने हाथों से सहलाया माँ की शादी की निशानी उस साड़ी को प्यार से पहना। माथे पर टिका और रंगीन चूड़ी लिपस्टिक लगा कर खुद को आईने में देखा। गुलाबी रंगत पर हरे रंग का शादी का जोड़ा बहुत अच्छा लग रहा था। वह अम्मी और आब्बू की तस्वीर के पास खड़ी हो गयी और उन्हें याद करते उसकी आँखें भर आई।

बिलकुल उसी वक्त शतायु शबनम के घर पहुंचा शबनम को दुल्हन के पहनावे में देख ख़ुशी से हुर्रे कहकर चिल्लाते हुए रुक गया। शबनम कुछ कहती उससे पहले ही शतायु ने कहा, "बहुत बहुत शुक्रिया शबनम मैं ... मैं कैसे तुम्हारा शुक्रिया अदा करूँ? मुझे यकीन नहीं हो रहा कि तुम शादी के लिए मान गयी। मैं खुश हूँ बहुत खुश हूँ, आज मेरी दुआ कुबूल हो गयी। सच मानो ..." वह ख़ुशी से कहने लगा।

"शबनम, हम अपनी एक अलग दुनिया बसाएँगे। जिसमें तुम, मैं और तुम्हारे भाई बहन होंगे। यकीन करो मैं उनके अच्छे जीवन के लिए हर प्रयास करूँगा। हमारे छोटेसे घर में तुम्हारे साथ मेरा जीवन महक जायेगा। तुमने मुझे कुबूल कर लिया बस उतना काफ़ी है, अब देखना हमारे बीच में दुःख का साया भी नहीं आ सकता। तुम पर आने वाले हर ग़म को मुझसे हो कर गुजरना होगा।"

"मैं सब ठीक कर दूँगा शबनम, मैं सब कुछ ठीक कर दूँगा।" शतायु ने यह कहते हुये वह पीछे मुड़कर शबनम के पास आके पूछा, "क्या तुम कुछ कहोगी नहीं शबनम आज हमारे जीवन का बहुत बड़ा दिन है। कुछ तो कहो.. तुम खुश हो न?" कहते हुए उसे अपने तरफ घुमाकर देखा शबनम चाकू से अपने हाथ पर बार बार आघात कर रही थी। जैसे शतायु की एक एक बात उसके दिल पर चोट कर रही थी। मजबूरी में खुद पर गुस्सा उतार रही थी। इस हठात परिणाम से शतायु अचंभित रह गया।

"शबनम ये क्या कर रही हो और क्यों?" कह कर उसके हाथ से चाकू लेकर दूर फैंक दिया।

शबनम के पास कोई जवाब नहीं था। वह पत्थर की तरह खड़ी रही। शतायु ने अपने जेब से रुमाल निकाल कर उसके हाथ पर पट्टी बांध दी और तुरंत ही शबनम को ले कर अस्पताल में भर्ती कराया।

शतायु पागलों की तरह कहे जा रहा था, "अगर तुम्हें ना ही कहना था तो साफ़ साफ़ कहदेती। मैं चुपचाप चला जाता तुम्हें ये सब करने की क्या जरुरत थी। देखो तुम अगर यही चाहती हो कि मैं तुमसे दूर चला जाऊँ .... ठीक है मैं चला जाता हूँ तुम से बहुत दूर।"

उस दिन अस्पताल में शबनम खूब रोई। शबनम के दुखों में शायद ही कोई कमी रह गयी थी जो भगवान ने उसे एड्स के रूप में वह कमी भी पूरी कर दी। उसे याद है जिस दिन शतायु ने उससे अपने दिल की बात बताकर शादी की अनुमति माँगी उस दिन वह इसी कशमकश में थी कि क्या उसे शतायु की बात मान कर उसे अपनी जिंदगी में आने देना उचित रहेगा? यही सोचते हुए रिपोर्ट लेने लैब में गयी। 2 दिन पहले सब्जी काटते हुए उसके हाथ पर छुरी लग गयी थी और रक्तस्राव चालू हो गया था जो कि बहुत समय तक बंद नहीं हो रहा था। तब उसे डॉक्टर के पास जाना पड़ा तब डॉक्टर ने रक्त परीक्षा के लिए ब्लड सैंपल लेकर दूसरे दिन रिपोर्ट ले जाने को कहा।

उस दिन शतायु के चले जाने के बाद सोचते हुए वह क्लिनिक पहुंची। लैब से रिपोर्ट लेते हुए डॉक्टर का व्यवहार उसे कुछ अजीब सा लगा। डॉक्टर ने उसे दवाई देने के साथ एक बात कही जिससे शबनम की जिंदगी पूरी तरह अँधेरे में डूब गयी। डॉ पद्मजा जिन्होंने उसपर अत्याचार होने के बाद उसका ट्रीटमेंट किया था उसी डॉ. पद्मजा ने उसे इस भयानक सच से रू ब रू कराया। शबनम वैसे ही कुर्सी पर पत्थर बन गयी थी। जब पद्मजा ने पीछे से आ कर उसके कंधे पर हाथ रखा उसकी आँखों से सैलाब फूट पड़ा।

मैं मर क्यों नहीं गयी डॉ मुझे मौत क्यों नहीं आयी?" कह कर शबनम रो पड़ी।

शबनम को रोकना डॉ पद्मजा के बस में नहीं था। बहुत देर बाद हिम्मत करके वह घर वापस जाने को निकली। जिंदगी में पहली बार बुर्के को धन्यबाद कहा उसने। वापस आते हुए शबनम ने अपनी आँखों से बहते आँसुओं को दुनिया की नज़र से बचाते हुए उस बुर्के से चेहरा ढकलिया।

मन ही मन उसने शतायु से माफी मांगी, "मुझे माफ कर दीजिए शतायु मैं जिन जिन मुश्किलों से गुजर रही हूँ उन मुश्किलों का सामना तुम्हें भी करने नहीं दे सकती। जिस नरक में मैं जी रही हूँ रोज रोज उसका सामना तुम करो ये मैं हरगिज बरदाश्त नहीं कर सकती। मेरे जीवन में आप का कुछ दिनों का साथ और इन कुछ ही दिन मे आपका प्यार अपनापन जिंदगी भर मुझे जीने का हौसला देता रहेगा। लेकिन मेरी इन सारी मुसीबतों को आप पर डाल मैं आप के जीवन को मुश्किलों में ड़ाल नहीं सकती। मुझे माफ कर दीजिए शतायु ..... मुझे माफ कर दीजिए।"

शबनम की इस हालात के लिए जिम्मेदार शतायु को कुछ दिनों तक पुलिस थाने में भी रहना पड़ा लेकिन शबनम ने अस्पताल से बाहर निकलते ही केस वापस ले लिया और शतायु को रिहा करवाया। शबनम की मन: स्थिति को समझते हुए शतायु ने उस से दूर रहने का फैसला लिया। शबनम सही सलामत रहे इससे ज्यादा शतायु को क्या चाहिए था। इस घटना से शतायु ने शबनम को उसकी जिंदगी में छोड़ कर जाने को विवश कर दिया। सब भूल कर उसने अपने जीवन में खुश रहने की कसम खाई। शबनम को भूलने का उसके पास एक ही रास्ता था कि वह शादी कर ले।

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