Dilki Baatein - 2 books and stories free download online pdf in Hindi

दिलकी बाते - २

..दिलके राज ..!

दिलके हसीन राज किसीको बताये कैसे ,

छुपाना .भी चाहे अगर ...तो छुपाये ..कैसे ??

किसीसे हो गई .है "उल्फत ".तडपते रहते है ..दिनरात ..

मगर वो ऐसे "बेखबर ".समझते ..है ना ये "जजबात "

कोई .उनसे ये जा..कह् .दे "रहम कर दे ..रहम कर दे "

ये .दिलकी "पाक " बाते है .इन्हे "नासमझी "..ना कर दे ..

वो ले ले "इम्तेहान ".अपना ..रहेंगे अब न पीछे हम ..

बस ..उनकी ."हां "..की ही खातीर ..

हमने ..रख्खा ..है ..ये .."दम " ...!

----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

भंवरें......

..एक भंवरे हो तुम..!!

..कभी यहां,,तो कभी वहां...मंडराते हो.....!

हर एक कलीको...अपनी...आगोशमें...लेना चाहते हो...

..आजकल......

मेरी भी गलियोमें...हो रहा है..चक्कर..तुम्हारे...

.जानती...हुं...चाहत हो गयी है तुम्हे...मुझसे..

....ईसलिये...आस पास...रहते हो आजकल...

..वैसे तो आसपास...मेरे भी है बहोत सारे....

...मेरे.."रुपके'...दिवाने....!!..मुझे चाहनेवाले.....

मगर....सुनो मेरे" प्यारे"...भंवरे....

तुमसे....ईतनाही कहना चाहुंगी....

"चाहत'....ओर..."प्यार"...बहोतही गहरा फर्क है..रे..

..मुझसे.".प्यार.'.करोगे...तबही ..मुझसे.'.प्यार"..पाओगे..

नही तो इस...चाहतका....कोई फायदा..नही..!

---------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

राहे................

जब सोचता हुं ...याद तुम्हारी आती...|

सोता हुं तो खाबोमें..तुम्हेही पाता हुं....|

हकीकत ये है की..

"मै तुम्हे चाहता हुं".!!

चाहत है..तुम्हारे पास रहनेकी..मगर,

जिस मोडपे..तुम हो जिंदगीके..वो कुछ ओर ही डगर है|

चाहत तो ईतनी की अपना बनानेकी..अपने दिलमे बसानेकी..

मगर चहातसे क्या होता है..??

अगर "राहे" अलग हो तो....

-------------------------------------------------------------------------------------------

------- अंजना ..

एक लडकी बडे शहरमे बसनेवाली

छोटे छोटे सपने आखोमे रखनेवाली

बहोत बरसो से दुर है अपनी शिक्षा और नोकरी के लिये

लेकिन मनमे तरसती है घरवालोके प्यारके लिये

लोग मिलते है तो बहोत बाते करती है

मगर मनमे शायद ..अकेली ही रहती है

नये नये खायालात लिये नयी नयी चीजे सिखती है

सिम्पल ..सी है मगर कभी कभी” मॉड.”भी दिखती है

बडोका आदर, मान, सम्मान, अंजना ने खुद ही सिखा है

सब कुछः स्वीकार करती है जो उसकी अच्छा दिखा है

अंजना के बारे मे मै जब सोचती हु

अपना “अतीत “ मै उसी मे देखती हु

घुल मिल के रेहेती है सबसे “हसमुख “ अंजना

जो भी मिलता है लगता है उसे चाहना

अब चाहने लगी हु मै भी अंजना की खुषी

और मांगती हु भगवान से कयामत तक

.. उसके लबोपे हसी ..!

__________________________________________-

आप

हमारे..दर्द ए दिलकी दास्ता..हम आपको सुना रहे है.

आप है के .कलाईमें चुडीया घुमा रहे हो .??

...अपने अरमानोंकी..खबर

हम आपको बयान कर रहे है...

..आप है के.आरामसे

अपनी बालोमें उंगलिया फेर रहे हो ??

.दिलकी बातोके जजबात आपके दिलमे संजो रहे है.. ...

.आप है के बातोबातोमें.सबकुछ टाल रहे हो

.यहां दिवाना"हर' कोई आपका..

..ये तो हम मान रहे है..

.आप है की हमारी पाक वफाको..

आजमा रहे हो ?

-----------------------------------------------------------------------------------------------------------

भुमिका

सुरज डूबते ही वो अपने काम जल्दी जल्दी निपटाने लगती है

उसे समझ नही आता ..घरके इतने सारे कामोमे से

पेहेले कौनसा करे ?

सब्जी पकाने के लीये वो एक चुल्हे पर रखती है

और रोटीया सेकना चालु करती है

छोटे छोटे दो बच्चे ,सांस,ससुर सबके लीये खाना पकाकर रखती है

एक बार फीरसे बाहर से पानी लेकर आती है

और घरका झाडु पोछां भी कर लेती है

वैसे उसके जाने के बाद उसकी स्कुल जानेवाली बच्ची घरमे रेहेती है

मगर इतनी छोटी क्या क्या काम करेगी ?

बच्ची के “मासूम “आंखोमे रेहेते है बहोत सारे सवाल ..

और ससुरकी नजरमे रेहेते है कई “बवाल”

क्या करे वो सब सह लेती है

जाते जाते छोटे बच्चेको दुध भी पिलाती है

फीर अलमारी से वो एक “झगमग” साडी निकालती है

“कसके “ पेहेनेती है अपने शरीर पर

और मेकअप बनाके सेंट भी लगाती है .

जाना होता है उसे अब एक नयी “भुमिका “मे ...

जब पहुचती है “बाजार” की भीड मे

तो पेहेले से ही “बाजार “ भरा हुआ होता है

अपने “जवान “शरीर की बोली लगाकर

वो भी शुरू करती है अपना ब्योपार

हर घंटे को नये नये “नाटक “करने पडते है

झूठा प्यार , झूठा इश्क जताकर मर्द उसके शरीर से खेलते रेहेते है

उसके शरीर के “उतार ,चढाव “को हर कोई टटोलता रेहेता है

न जाने क्यो उसी समय “मुन्नाकी “यादमे उसका दिल परेशान होता है

सुरज निकलने से पेहेले बाजार “बेरंग “ होने लगता है

उसे भी अब पैसे समेटकर घर जाना होता है

अब फीरसे वो अपनी पुरानी “भुमिका” मे चली जायेगी

अगले दिन की शाम होने तक ..

----------------------------------------------------------------------------