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हनुमान जी महाराज


गोस्वामी जी हनुमान चालीसा में लिखते हैं कि हनुमान जी महाराज शंकर सुवन हैं; केसरी नंदन हैं; अंजनी के पुत्र हैं ;और पवन सुत हैं, जिन्हें इन सभी नामों से पुकारा जाता है । वे अतुलित बल के धाम है अर्थात उनकी शक्ति का आकलन नही किया जा सकता ।

देखा जाय तो आज के समय मे हम जैसों का हनुमान जी महाराज के बारे में लिखना सूर्य को दीपक दिखाने के समान है। पर कथाओं के अध्ययन से जितनी समझ विकसित हो उतना तो कहना ही चाहिये,ताकि उनकी रहस्यमयी लीला को उन लोगों को समझने में कुछ सफलता प्राप्त हो सके, जो प्रारम्भिक अवस्था से गुजर रहे है । जिनके दिमाग मे तर्क ज्यादा हावी रहता है ।

आमतौर पर कथा प्रसंगों को सुनकर और पौराणिक कथाओं को पढ़ते समय घटनाक्रमों के प्रति तर्क उठना स्वाभाविक है । आज जबकि भौतिकी, रसायन विज्ञान के साथ तकनीक की आधुनिक दुनिया मे हम जी रहे है ,तब हम विश्वास कम और जिज्ञासा ज्यादा रखते हैं, साथ ही हम अपने तर्क को सन्तुष्ट करना चाहते हैं । ऐसा नही होने पर उस पर अविश्वास और संदेह करते है, साथ ही अपनी बुद्धिमत्ता का अहंकार पाल कर उसे उपहास का विषय बनाते हैं ।

मुझसे एक व्यक्ति ने सवाल किया कि ,जब हनुमान जी लंका के प्रवेश द्वार में मच्छर के समान हो गए तब उन्होंने प्रभु श्री राम जी की मुद्रिका को कहाँ रखी ,जो उन्होंने सीता जी को देने के लिए उन्हें दिया था ? इस सवाल का तर्क एक नजर में लाजवाब लगता है कि वाकई जब उन्होंने मच्छर के समान अति लघुरूप रख लिया तब न केवल वह अंगूठी बल्कि अपनी गदा को भी वे कहाँ रखे होंगे ?

इस सवाल पर पहले हमें हनुमान जी की शक्ति पर विचार करना होगा । हनुमान जी पवन पुत्र हैं, उन्होंने अपनी योगिक शक्ति से हवा को साध लिया था ,वे हवा में पंछियों की तरह तैर सकते थे , अतः उनमें हवा में तैरने की शक्ति तो सहज ही थी ही इसी कारण वे हवा में तैरकर लंका तक चले आये ।
अब सवाल उनका बार बार अपने आकार को बदलने का है । सुरसा के सामने वे उससे दुगुने हो जाते हैं ,फिर उससे बहुत छोटे हो जाते हैं, तो उनमें किसी भी वस्तु या देह से आकाश तत्त्व को निकालने की क्षमता थी । कहा जाता है कि किसी वस्तु का आकार उसके आकाश तत्व के कारण बड़ा या छोटा होता है । यदि किसी वस्तु से उसका आकाश तत्व निकाल दिया जाय तो उसका अति लघुरूप हो जाता है । सो इसी शक्ति का उपयोग हनुमान जी समय समय पर करते हैं।
अस्तु, सवाल का जवाब यह है कि लंका के प्रवेश द्वार पर जिस आकार में उन्होंने खुद को रखा उसी अनुपात में वह मुद्रिका हो गयी ।

अशोक वाटिका में सीता जी की अवस्था को वे अतिलघुरूप में देखते हैं और उन्हें विश्वास दिलाने के लिए स्वयं पर्वताकार ,भूधराकार देह धारण कर लेते हैं ।
सूक्ष्म रूप धरि सीयहिं दिखावा।।
बिकट रूप धरि लंक जरावा।।।

रावण जब उनकी पूंछ पर आग लगाता है, तब वे हवा में ऊपर उठ कर लंका का दहन करते हैं । यहां उन्होंने वायु के साथ अग्नि को भी साध लिया था, जिसके कारण लंका दहन का भीषण ताप उनकी देह का बाल बांका नही कर सका । लंका जारी असुर संघारे।।

वे तो अत्यंत जाज्वल्यमान सूर्य को फल समझ कर निगल जाते हैं,,,
जुग सहस्त्र जोजन पर भानु।।।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू

कहने का आशय यह कि योग में वह शक्ति है ,जो प्रकृति के पांचों तत्वों को अपने वश में कर सकती है । बहुतों को आपने कई दिनों तक जमीन के भीतर समाधि लेते हुए सुना है, कइयों को पानी के भीतर, कईयों को आग के बीच काफी देर तक रहते सुना है ,और हममें से बहुतों ने ऐसा देखा भी है । जब आज का कोई व्यक्ति योग साधना से प्रकृति की शक्ति को वश में कर सकता है ,तब हनुमान जी के साथ यह अदभुद क्यों नही हो सकता ।

इसलिए हम अपने विश्वास को किसी तर्क से प्रभावित न होने दें,क्योकि हम वो नही जानते जो हमे जानना चाहिए । और तब तक हम विश्वास करें और धैर्यपूर्वक अपनी यात्रा जारी रखें । एक दिन हमारे सभी सवालों का जवाब मिल जाएगा ।

रेडियो,टेलीविजन,कम्प्यूटर,मोबाईल आने से पहले के आदमी को उस वक्त यदि इन सब के बारे में और उनके उपयोग के विषय मे बताया जाता तो वह उस बताने वाले को निरा बेवकूफ कहते,पागल समझते ।
ज़रा अपने जीवन को देखें हम आप स्वयं उस वक्त की पैदाइश हैं, जब हमारा बचपन बिना टेलीविजन,कंप्यूटर और मोबाइल फोन के बीता। मतलब 60 70 के दशक में पैदा हुआ आदमी इन सबसे अंजान था । उस वक्त यह सब सुनना या कल्पना करना किसी ईश्वरीय चमत्कार से कम नही लगता था । आज यह सब हमारे जीवन मे आसानी से समा गया है , अब हमे कोई अचंभा नही होता ।

इसलिए महत्वपूर्ण बात ये है कि हम उस परमसत्ता के प्रति विश्वास रखें। हमारी आस्था हमे बहुत से मानसिक विकार से बचाती है ,हमारी समझ को बढ़ाती है, हमे जीने का बेहतर नजरिया देती है और तब हर विपरीत परिस्थिति का सामना करना हमारे लिये आसान हो जाता है।।।।
इसलिए उस विराट शक्ति के नाम गोस्वामी जी की यह सुंदर पंक्तिया गुनगुनाइए,,,

विद्यावान गुनी अति चातुर,,,
राम काज करिबे को आतुर
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया
राम लखन सीता मन बसिया।।।।।



जय हनुमान,,,