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सीख़..!

सीख़..!

Description : स्वाभिमान की परिभाषा आखिर कैसे एक कुत्ता सिखा देता हैं | ईसपर एक लघुकथा.

सरिता के गुज़र जाने के बाद मानो मैं अकेलासा पड़ गया | और ढलती उम्र का एहसास दिलाती पार्किंसन बीमारी ने जकड़ लिया | अब सोच रहा हूँ बच्चों के साथ जर्मनी सेटल हो जाऊँ | जाने का क्या सोच लिया पर अजीब सी बात आजकल होने लगी हैं | पिछले कुछ महिनों से एक काले रंग का कुत्ता दोपहर के वक्त आकर बरामदें में सोने लगा हैं | पर लगता तो किसीका पालतू हैं | उसके चमकीले बाल, आंखोमें कश्मकश देख ऐसा लगता दुनिया में जो भी हो रहा हैं उसकी सब समझ उसे हैं | सयाना, मासूम सा बड़ा ही भोलाभाला सा चेहरा था उसका | मन ही मन लगाव होने लगा उससे | लगा जैसे कोई प्यारा सा दोस्त मिल गया हो | पर वो मुझसे बात नहीं करता | ना ही हम एकदूसरे से वाकिफ़ थे | मैंने भी कभी उससे गुफ़्तगू करने की ओर पहल नहीं कि थी |
शाम होते ही चला जाता | वैसे तो मैं कहीं जाता नहीं | पर सोचा इस कुत्ते के बहाने देश छोड़ने से पहले थोड़ी यादें इकठ्ठा कर लूँ | मैं उसके पिछे चल दिया | एक बंगले के गेट के पास वह बैठ गया | गंभीर मुद्रा मानो कोई योगी ध्यान में लीन हो | मैं उसे निहारता हुआ अंदर गया | एक देवीजी बाहर आयी | उन्हें कुत्ते के बारे में पूछने पर पता चला के, उसके मालिक का देहांत हुआ तो घरवाले यह घर बेचकर ईसे यहीं छोड़ जा चुके हैं | देवीजीने ईसे खाना देने की भी बेकार कोशिशें की | वह नहीं खाता | लेकिन शाम होते ही घर पे पहरा देने जरूर लौट आता हैं | उसीकी वजह से घर में एक दिन चोरी होने से टली | पर ताज्जुब की बात यह थी कि, कुत्ता सुबह होते ही पता नहीं कहाँ चला जाता ? मैंने सोच लिया क्यों न ईसपर नज़र रखी जाय ?
कंपकंपाते हाथोंसे लाठी के सहारे सुबह फिर उसके पीछे चल दिया | विश्वास न हो रहा था | एक होटल के बाहर पड़ा न्यूजपेपर उठाकर कुत्ता अंदर मालिक को दे आया | मालिक ने उसके सर पर शेफ वाली टोपी पहना दी और गले में विज्ञापन लटका दिया | जैसे ही भीड़ बढ़ने लगी | उस होटल से जो गुजरता कुत्ता भौंक कर उसका ध्यान अपनी ओर खींच लेता | कुत्ते की ओर कुतूहल से देख लोग खुश होकर होटल में जाते | दोपहर में होटल बंद करते वक्त कुत्ते को खाना मिल जाता | वह मेहनत से कमाकर खा रहा था | खाना खाते ही मेरे बरामदे में सोने गया | कुत्ते की दिनचर्या देख मैं दंग रह गया | मालिक न रहा पर घर से वफादारी जारी थी | मुफ्त की रोटी उसे मंजूर न थी | मैंने झटसे कुछ सोचते हुए जर्मनी फोन लगाया और अभी आना कैन्सल बता दिया | किसी पर बोझ बनने से बेहतर यह खुली ज़िन्दगी है | और अब मुझे नया दोस्त भी तो मिल गया था |

Story by
Dip