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लाइफ़ @ ट्विस्ट एन्ड टर्न. कॉम - 11

लाइफ़ @ ट्विस्ट एन्ड टर्न. कॉम

[ साझा उपन्यास ]

कथानक रूपरेखा व संयोजन

नीलम कुलश्रेष्ठ

एपीसोड - 11

अनु हमेशा मुंबई के दिन याद करती रहती है | अनुभा को जब फ़ुर्सत मिली अनु आँटी के पास कुछ गर्मागर्म खाने पहुँच गए |एम.डी करने के बाद शादी की थी उसकी| घर थोड़ा छोटा था किन्तु लड़के का परिवार जैसे पीछे ही पड़ गया था| अनुभा भी बहुत पशोपेश में थी |

"आप ही बताओ आँटी, मेरा और इस लड़के का कोई मेल है क्या?"

"तू क्या चाहती है ?"अनु की अनुभा को से खूब दोस्ती थी |

" अरे ! होता कोई मेरे प्रोफ़ेशन का ---"

"तो कह क्यूँ कह नहीं देती पापा से या मम्मी से ? इतनी लाड़ली है तू, तेरे माँ -पापा तो एक-दूसरे की` हाँ`में 'हाँ` मिलाते ही हैं, दोनों मान जाएंगे | "

"अब क्या कहूँ, आपको तो पता ही है, पापा आजकल आसाम में हैं, बड़ी मुश्किल से तो छुट्टी मिलती है उन्हें, जब से मैंने मेडिकल किया है ज़रा ज़्यादा ही सोचने लगे हैं मेरी शादी के बारे में |"

"बेटे ! हम भारतीय माँ-बाप तो ऐसे ही होते हैं बिटिया रानी !तूने कोई पसंद किया क्या डॉक्टर ?" अनु ने बेबाक होकर उसे पूछा |

"अरे यार ! मैं बता ही न देती, अगर कोई होता तो ?" फिर कुछ रुककर बोली थी, "मुझे तो समझ नहीं आ रहा, मैं साधारण लड़की हूँ और वो देखने में सुन्दर ! पैसा भी अच्छा कमा रहा है, उसकी माँ मेरे पीछे क्यों पड़ गई?क्या राज़ होगा ?"

"बेटा ! वो तेरी डिग्री और परिवार देखकर ही ---तेरी लड़के से बात नहीं हुई क्या ?"

"हुई न ! कई बार आ जाता है, मेरे हॉस्पिटल में ---" तब तक अनुभा बंबई के एक अस्पताल में काम करने लगी थी |

"तो बात-वात ठीक करता है ?"

"हाँ, बात में क्या है, ठीक ही है | अपने फ़्यूचर-प्लान डिस्कस करता रहता है ---"

" तू मम्मी -पापा दोनों से ही खुलकर क्यों नहीं बताती ?अगर नहीं पसंद है तो ? "

"आपको लगता है, पापा मेरी बात मानेंगे ? देखिए न, मेडिकल कितनी ज़िद से करवाया है उन्होंने मेरा, जबकि मेरा मन ही नहीं था ---"

"होशियार बच्चों से उम्मीदें तो बनती ही हैं न ? अब डॉक्टर बनकर खुश है कि नहीं ?"

अनु अच्छी तरह जानती थी यामिनी के पति उसका कितना सम्मान करते हैं ! तभी तो उनका नाम 'दुर्लभ पति !' पड़ गया था | अनुभा ने बारहवीं में टॉप किया. कर्नल पिता जी को अपनी बेटी पर डॉक्टर का ठप्पा लगाने की धुन सवार हुई. उन्होंने एलान ही कर दिया, ``मैं चाहता हूँ कि मेरी बेटी हम दोनों के परिवारों की पहली डॉक्टर बने.मेरा डॉक्टर बनने का सपना तो पूरा नहीं हो पाया हालाँकि मैंने तीन बार एंट्रेंस एग्ज़ाम दिया था। ``

``ओ --नो पापा --मैं तो एम ए म्यूज़िक में करूंगी। ``

``बेवकूफ़ हो इतने अच्छे नंबर लाकर आ ---- करती फिरोगी। तुम्हें डॉक्टर ही बनना है। ``

यामिनी भी दृढ़ता से बोली थी, ``जब तेरे पापा का मन है तो मान क्यों लेती ?तेरे साइंस में कितने अच्छे नंबर आये हैं.`` ``

अनुरंजिता ने अनुभा को चिढ़ाया था, "इतने खुले और सुहृदय व्यक्ति हैं तेरे पापा पर उन्होंने भी तुझ पर अपना आज्ञा-पत्र छाप ही दिया न ?"

"ठीक है, मेरा मन नहीं था --पर अपने इकलौते पापा की इच्छा कैसे टालती मेरी प्यारी आँटी !---" लाड़ में आकर अनुभा अनु के गले चिपट गई थी | अनुरंजिता को वो बड़ी प्यारी लगती, बिलकुल गुड़िया सी ----दोनों खिलखिलाने लगीं थीं |

अपनी बिटिया अनुभा के लिए जो लड़का कर्नल हैरी ने पसंद किया था, उसके साथ अनुभा कुछ कम्फ़र्ट लेवल नहीं फ़ील कर रही थी | अनु ने यामिनी से भी बात की थी, पता चला जन्मपत्री में बहुत से गुण मिल रहे थे |

"पता नहीं, मैंने तेरी मम्मी से भी बात की थी, बता रही थी बहुत से गुण मिल रहे हैं उस लड़के के तेरे से --"

"पता नहीं आँटी, ये पापा कबसे इन सब गुणों-वुणों को मानने लगे --वो तो बहुत मॉडर्न हैं, उनके विचार तो --" अनुभा की समझ में पापा आ ही नहीं रहे थे | जैसे पापा का यह रूप वह पहली बार देख रही थी, बहुत आश्चर्य से --!

"ऐसा है बेटा, जब अपने बच्चे की बात आती है तो मॉर्डनिटी धरी रह जाती है ---"

``हाँ, पता नहीं मेरी मम्मी को क्या हो गया है ?एक पंडित को पकड़कर पच्चीस हज़ार रूपये देकर मेरी जन्मपत्री का मंगल शांत करवाया है।

अनुरंजिता प्रिया से बात करते हुए भी पुराने दिनों में कुछ देर के लिए भटक गई, प्रिया के चुटकी बजाते ही वह वर्तमान में लौट पड़ी, "अनुभा के बेटी होने की व उसके सिंगापुर जाने की उड़ती उड़ती ख़बर मिली थी|"

दोनों सहेलियाँ अपनी-अपनी व अन्य साँझी सहेलियों की पीड़ाएँ एक-दूसरे से साँझा करने में इतनी व्यस्त हो गईं थीं कि अनिल कब कॉफ़ी और खाने-पीने की ढेर सी सामिग्री लेकर खड़े हो गए, पता ही नहीं चला |दोनों को होश आया जब उनके हाथों में कॉफ़ी पकड़ा दी गई और पास की बैंच पर पैकेट्स रख दिए गए |

" कब ? क्या हो गया था उन्हें ?" अनिल न जाने कब से जानने के लिए उतावले हो रहे थे |

" दो साल हो गए, कुछ ख़ास नहीं, केवल बुख़ार था --"

"तुम ठीक हो न ?"

"देख लीजिए, फ़र्स्टक्लास ! मुझे कुछ होने भी नहीं वाला ---" कहकर वह भरी हुई आँखों से खुलकर हँस पड़ी, ज़िन्दगी है अनिल, जैसे नाच नचाएगी, नाचना होगा --"

पति-पत्नी एक दूसरे का चेहरा ताकने लगे | एनाउंसमैंट हुआ, उनकी फ़्लाइट तैयार हो गई थी | बोर्ड कराने के लिए उसकी कुर्सी के साथ जो बंदा था, वह आ गया था |

"चलो, फिर अंदर मिलते हैं -----" वे दोनों आगे निकल गए | उसकी व्हील चेयर भी पीछे ही थी | दोनों सहेलियाँ सोच रही थीं कि साथ बैठ सकें तो अभी कुछ और समय मिल जाएगा बात करने के लिए |बंबई में तो इतनी दूर-दूर जगहें हैं कि एक-दूसरे के पास जाना बहुत आसान नहीं होता | प्लेन में अनु की सीट चौथी पंक्ति में थी और अनिल सीमा व की शायद छटी पंक्ति में ! एयर-होस्टेस भी बड़ी कोऑपरेटिव ! उसने एक यात्री से रिक्वेस्ट करके फिर से दोनों सहेलियों को पास बैठा दिया था | अनिल पत्रिका पलटने लगे थे |

" सारी बहनें हम सबकी दोस्त थीं, कितना मज़ा किया है साथ मिलकर हमने !" और वातावरण में एक खुली खनक पसर गई | सहयात्री चेहरा घुमाकर उनकी तरफ़ देखने लगे, अधिकतर तो सबने ईयर-प्लग ही कानों में ठूंस रखे थे |यह बहुत बढ़िया है | सबके कान बंद ! | दोनों ने एक-दूसरे के हाथ दबाए, और मुस्कुराई | पुराने दोस्तों का नाम भी मोह के रेशमी धागे से जुड़ा रहता है, कितने भी दूर क्यों न हों |

"दो-दो साल का तो फ़र्क है सारी बहनों में -----लगभग हम उम्र ही लगती थीं "

"हाँ, यार --पहले होते भी तो थे कितने बड़े परिवार, अधिकतर साथ रहते, कहाँ पलते --पता भी नहीं चलता था | सबका साथ में खेलना-कूदना, लड़ना-झगड़ना और फिर शक़्कर में दूध सा मिल जाना ! कितने अच्छे दिन होते थे !"

"हाँ, कुछ भी कहो, सबका साथ तो अलग ही आनंद देता था, मेरे मामा के यहाँ जब सब भाई -बहन इकठ्ठे होते थे क्या लुत्फ़ आता था | याद है एक बार हम सारी सहेलियाँ गए थे मामा जी के गाँव ! तब पेड़ों पर चढ़कर आम तोड़ते हुए दामिनी के पैर में मोच आ गई थी, वहीं वैद्य जी से पट्टा बंधवा दिया गया था और जब उसे कहा कि तुम्हें शहर छोड़ आते हैं, मानी ही तो नहीं थी, पूरे हफ़्ते भर वहीं जमी रही थी | "

प्रिया और अनुरंजिता जीवन को वो सुहाने पृष्ठ खोलकर बैठी थीं जो एक बार जाने के बाद कभी लौटकर नहीं आते |

"आज के परिवारों को देखकर अफ़सोस होता है, कैसे कुल्हियों से फ़्लैट्स में रहकर हम आधुनिक बन गए हैं पर वो खुलापन ! वो बालपन की मस्ती, उसका कोई मुकाबला नहीं | "

``दामिनी भी एक ही थी, मुझे अब भी अक्सर उसकी याद आ जाती है। उस ज़माने में वह पहली लड़की थी जो अपने छोटे शहर के एकमात्र में डिग्री कॉलेज में प्रवेश लेकर न केवल शिक्षण में आगे आई थी.सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए हर समय तत्पर रहती थी, वह अपनी छोटी बहनों के साथ अपनी व उनकी सखियों को भी आगे बढ़ने की न केवल सलाह देती, मदद करने से भी कभी पीछे नहीं हटती थी |``

``ये बात तो है। ``

प्रिया उसे पीछे कहीं ले गई, उसके शब्द जैसे ग़ुबार से उड़ते हुए दिल की धड़कनों में समाए जा रहे थे और अनुरंजिता मानो उसके शब्दों के साथ किसी स्वप्न में डूबी जा रही थी |

इस यात्रा में अचानक मिली इस ख़ुशी में भी एक कील मन में कसक रही थी काश ! एक बार फिर से पुराने दिन लौट आएँ और कम से कम एक बार तो सब सहेलियाँ आपस में मिलकर पुराने दिनों को दुबारा जी सकें | उससे अब सब्र नहीं हो रहा था. उसने प्रिया से लिया यामिनी का नंबर मोबाइल पर डायल किया व यामिनी की `हैलो `सुनकर बोली

, ``पहचानो, मैं कौन बोल रहीं हूँ ?``

``अरे क्या मैं अपनी अनु की आवाज़ नहीं पहचानूँगी ?`

```वॉट्स अ सरप्राइज़ !मैंने युगों बाद तुझे कॉल किया है। ``

``तो क्या हुआ इस खनकदार सुरीली आवाज़ के बूते कितने ग्रुप सांग स्कूल कॉलेज में गाये हैं। ``

``लेकिन तेरी आवाज़ की वह खनक कहाँ गई ?``

``तुझे सुनकर दुःख होगा कि कामिनी की बेटी निशी ने अपने पांच वर्ष के बेटे के साथ मुम्बई में आत्महत्या कर ली है। ``

``ओ ---नो। कामिनी कहाँ रह रही है ?``

``वह भोपाल में रह रही है लेकिन अब वह रात की गाड़ी में बैठकर सुबह अहमदाबाद आ जायेगी हम सबसे मिलने। ``

अनु अब आगे क्या बात कर पाती ?

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प्रणव भारती

ई - मेल--pranavabharti @gmail.com

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