Gumshuda ki talash - 26 books and stories free download online pdf in Hindi

गुमशुदा की तलाश - 26


गुमशुदा की तलाश
(26)


मदन कालरा अपने नए रूप और पहचान के साथ पुनः अपने साम्राज्य को स्थापित करने की जद्दोजहद करने लगा। उसका केवल रूप और नाम ही बदला था। पर चरित्र की दृढ़ता वैसे ही थी। सब कुछ खो देने के बाद उसमें सब कुछ पा लेने का जुनून मरा नहीं था। उसने रॉकी के तौर पर चफिर से अपने आप को ड्रग्स के कारोबार में स्थापित करना शुरू कर दिया।
उसने जो खोया था सब पा लिया। अब उसका मकसद भारत लौट कर अपने प्रतिद्वंदी जॉर्ज डिसूज़ा को बर्बाद करना था।
मूलतः गोवा के निवासी जॉर्ज ने अब अपना ठिकाना वहीं बना लिया था। वहाँ उसने एक सात सितारा होटल खोला था। जिसकी पहचान उसके कैसीनो से अधिक थी। भारत आने पर रॉकी ने सबसे पहले राकेश ग्रुप्स की स्थापना की। जिसके तहत फिल्म प्रोडक्शन कंपनी, एक एंटरटेनमेंट चैनल, एक न्यूज़ चैनल और गुरुग्राम में एक आलीशान रिज़ार्ट की स्थापना की।
उसके बाद उसने गोवा का रुख किया। उसने वहाँ शिपिंग कंपनी खोली। इसके अतिरिक्त लग्ज़री क्रूज़ पर एक शानदार होटल खोला। जिसका कैसीनो गोवा के बेहतरीन कैसीनो में से एक था।
भारत में अपने आप को स्थापित कर लेने के बाद रॉकी जॉर्ज की बर्बादी के रास्ते तलाशने लगा। कहते हैं घर के भेदी ने लंका ढाही थी। जॉर्ज की लंका का भेदी रॉकी को मिल गया था।
जॉर्ज का कज़िन जोनाथन उसके व्यापार में उसका दाहिना हाथ माना जाता था। उससे जॉर्ज का कोई राज़ छिपा नहीं था। लेकिन जोनाथन को ये लगता था कि जॉर्ज उसे वह सम्मान नहीं देता है जिसका वह अधिकारी है। बल्कि अक्सर बात बेबात उसका अपमान करता रहता है।
जोनाथन का मानना था कि जो कुछ भी जॉर्ज का है उसमें वह बराबर का हक रखता है। वह उस समय से उसके साथ था जब जॉर्ज एक मामूली मछुआरा हुआ करता था। उसने जॉर्ज को इस स्थान तक पहुँचने में सहयोग दिया जहाँ आज वह अकूट संपत्ति का मालिक बन गया है।
इसके उलट जॉर्ज का मानना था कि उसकी सफलता का कारण उसकी सूझबूझ और आगे बढ़ने की इच्छाशक्ति है। इसमे किसी और का कोई योगदान नहीं है। जोनाथन तो मोटी बुद्धि का है। वह केवल हुक्म बजा सकता है।
यही विरोधाभास दोनों के बीच दूरियां पैदा कर रहा था। इस बीच एक घटना ने दोनों के बीच मनमुटाव को हवा दे दी।
जोनाथन को जुआ खेलना बहुत पसंद था। वह जॉर्ज के कैसीनो में यह शौक पूरा करता था। लेकिन इधर बहुत समय से उसकी किस्मत साथ नहीं दे रही थी। वह लगातार हार रहा था। उस पर बहुत सा कर्ज़ चढ़ गया था। लेनदार उसके पीछे पड़े थे।
जोनाथन ने जॉर्ज से उसका कर्ज़ चुकाने में मदद करने को कहा। मदद करना तो दूर जॉर्ज ने उसे खूब खरी खोटी सुनाई। उससे कहा कि अपनी अय्याशियों के खर्चे वह खुद उठाए। उसके पास फालतू पैसे नहीं हैं। यही नहीं उसने जोनाथन के कैसीनो में प्रवेश पर भी रोक लगा दी।
जोनाथन इस बात से बहुत चिढ़ गया। वह जॉर्ज से बदला लेने के लिए पागल हो उठा। रॉकी ने अपने आदमी जॉर्ज और उसके साथियों पर नज़र रखने के लिए रखे हुए थे। उन्होंने रॉकी को जोनाथन और जॉर्ज के झगड़े के बारे में बताया। रॉकी को अपने मकसद की पूर्ति का रास्ता मिल गया।
उसने जोनाथन को अपने जाल में फंसाना शुरू किया। उसे अपने कैसीनो में खेलने की दावत देकर अपना दोस्त बना लिया। उसके हारने पर भी वह उसे खेलने देता था। उसने उसके पुराने कर्ज़े भी चुका दिए।
जोनाथन रॉकी के इस दोस्ताना व्यवहार से उसका कायल हो गया था। रॉकी ने उसका विश्वास जीत कर उसे जॉर्ज के खिलाफ भड़काना आरंभ कर दिया। जोनाथन पहले ही जॉर्ज से खफ़ा था। वह भी रॉकी का साथ देने को तैयार हो गया।
रॉकी ने जॉर्ज के साथ वही किया जो उसने एसटीएफ को उसकी खबर देकर किया था। जोनाथन से जॉर्ज के सारे गैरकानूनी धंधों की खबर लेकर रॉकी ने अपने साथियों के ज़रिए जाँच ऐजेंसियों तक पहुँचाई।
जॉर्ज के सारे गैरकानूनी धंधों पर छापे पड़ने से उसकी कमर टूट गई। पुलिस उसके पीछे पड़ गई। मजबूरन उसे मुल्क छोड़ कर भागना पड़ा।

रॉकी ने अपनी कहानी बता कर सरवर खान की तरफ देखा।
"मैं भी जो ठान लेता हूँ वह कर दिखाता हूँ खान साहब।"
"अच्छी बात है....पर यह ज़िद अगर सही दिशा में बढ़ने के लिए होती तो अच्छा होता। पर अफसोस कि सब कुछ पा लेने के बाद भी तुम्हारा अंत जेल की सलाखों के पीछे होगा।"
रॉकी फिर ज़ोर से हंसा। उसके बाद अचानक गंभीर हो गया। उसके चेहरे पर एक अजीब सी कठोरता आ गई।
"खान साहब आपके भीतर का पुलिसवाला अभी भी ज़िंदा है। पर एक बात याद रखिए कि रॉकी का किला अभेद है। उसमें घुस कर उस पर हाथ डालने का साहस कोई नहीं कर सकता है।"
"अच्छा तुम समझते हो कि तुम तक पहुँचना कठिन हो। पर मैं आया था ना तुम्हारे ईगल क्लब में। अब तो तुमने मुझे अपनी सारी कहानी भी बता दी है।"
रॉकी ने बड़ी कुटिल मुस्कान के साथ सरवर खान को देखा।
"खान साहब आप हैं होशियार.... पर समझ नहीं पाए। मैं कोई कच्चा खिलाड़ी नहीं हूँ। मैंने आपको सब कुछ ऐसे ही नहीं बता दिया। अब आप मेरे रहमो करम पर हैं। आपकी ज़िंदगी और मौत मेरे हाथ में है। आप बाहर जाकर किसी को कुछ नहीं बता सकते हैं।"
रॉकी अपनी कुर्सी से उठ कर सरवर खान के पास आया। उनके चेहरे पर झुक कर बोला।
"आप तो यह भी नहीं जानते हैं कि आप हैं कहाँ ?"
रॉकी कमरे से बाहर जाने लगा। सरवर खान ने उसे रोक कर पूँछा।
"मेरा साथी कहाँ है ?"
"सब इंस्पेक्टर राशिद....मेरे काम का नहीं था। मेरे आदमियों ने ठिकाने लगा दिया।"
रॉकी की बात सुन कर सरवर खान को बहुत धक्का लगा। वह गुस्से से चिल्ला उठे।
"क्यों मारा उसे ? क्या बिगाड़ा था उसने ?"
"खान साहब आप तो इतने अनुभवी हैं। फिर भी ऐसी बात कर रहे हैं। मेरे जैसे शातिर अपराधी कोई सुराग नहीं छोड़ते हैं। उसे छोड़ देता तो मेरे लिए खतरा बन जाता। उसे कैद रखने का कोई लाभ नहीं था। इसलिए मार दिया।"
"तो मुझे क्यों ज़िंदा रखा है ?"
"पता चल जाएगा...."
कह कर रॉकी कमरे से निकल गया।
सरवर खान के हाथ पैर खुले थे। पर वह जानते थे कि कमरे का दरवाज़ा रॉकी की मर्ज़ी से ही खुलेगा।

सरवर खान अपनी उस रिवाल्विंग कुर्सी पर ही बैठे रहे। सब इंस्पेक्टर राशिद का चेहरा उनकी आँखों में तैर रहा था। अभी तो महज़ पच्चीस छब्बीस साल का होगा। आने वाली ज़िंदगी के ना जाने कितने सपने होंगे उन आँखों में जिन्हें इस वहशी ने समय से पहले हमेशा के लिए बंद कर दिया।
उन्हें सब इंस्पेक्टर राशिद की अम्मी का खयाल आया। यही डर था जो वह अपनी इकलौती संतान को पुलिस में नहीं भेजना चाहती थीं।
सरवर खान की आँखों से आंसू बहने लगे। वह जानते थे कि सब इंस्पेक्टर राशिद की मौत के लिए वो ज़िम्मेदार नहीं हैं। फिर भी उनका मन कहीं ना कहीं खुद को इसका दोषी मान रहा था।
कमरे में वक्त का कोई अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता था। बहुत देर तक सरवर खान निढाल से अपनी कुर्सी पर बैठे सब इंस्पेक्टर राशिद के बारे में सोंचते रहे। फिर जब कुछ सामान्य हुए तो उन्होंने अपनी रिवाल्विंग कुर्सी को घुमा कर चारों तरफ देखा।
दीवारें गहरे नीले रंग से रंगी थीं। एक दीवार के पास बिस्तर था। बिस्तर के पास ही एक छोटी सी टेबल थी। कमरे में एक अलमारी थी। सरवर खान उठ कर अलमारी तक गए। खोल कर देखा तो उसमें उनकी नाप के कुछ कपड़े थे। एक फोल्डिंग एल्यूमीनियम की बैसाखी थी। जैसी वह तब प्रयोग करते थे जब अपना प्रॉस्थैटिक पैर निकाल देते थे। उसी अलमारी में वह क्रीम भी थी जो वह पैर को निकालने के बाद अपनी कटी टांग पर लगाते थे।
कमरे के दूसरी तरफ एक और दरवाज़ा था। सरवर खान ने उसे खोल कर देखा। यह वॉशरूम था। उसमें एक कमोड, एक वॉश बेसिन और शावर की जगह थी। वॉशरूम में ज़रूरत का सारा सामान था।
सरवर खान बेड पर जाकर बैठ गए। वह सोंचने लगे कि यह रॉकी आखिर चाहता क्या है। क्यों उन्हें इन सुविधाओं के साथ कैद करके रखा है।