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सामाजिक मीडिया का नैतिक संस्कारों पर प्रभाव


"Social media अर्थात् सामाजिक मीडिया।"
आज सभी जानते है और सभी मानते भी है कि सोशल मीडिया पारस्परिक जुड़ाव का अच्छा साधन है। आपस में जुड़ने का अच्छा उपाय है। लेकिन अब जो मैं अपनी बात यहां कह रहा हूं, वह अनुभव आधार है। जरा आप विचारिए कि क्या वास्तव में सोशल मीडिया आपस में जोड़ने का काम कर रहा है? क्या लोग वास्तव में सोशल मीडिया के माध्यम से जुड़ रहे हैं?
नहीं! बल्कि सोशल मीडिया से लोग और दूर होते जा रहे हैं।क्योंकि जो बेटा पहले अपने घरवालों की बीमारी के समय अपने काम से दौड़ा चला आता था, आज वही बेटा मात्र मोबाइल की माध्यम से उनसे बात करता है, तथा पैसा वहीं से भेजता है। इसे हम क्या कहें , जुड़ना अथवा दूर होना? आप विचरिए कि क्या पहले के समय में जब सोशल मीडिया नहीं था तब लोग जुड़ते नहीं थे?
जुड़ते थे बल्कि आज से ज्यादा जुड़ते थे। वे अपने नैतिक मूल्यों की वजह से जुड़ते थे, अथवा पारस्परिक संस्कार अथवा प्रेम की वजह से जुड़ते थे।परंतु आज सोशल मीडिया ने हमारी नैतिक मूल्यों को नष्ट कर दिया है और आज सभी के बीच दूरियां उपस्थित कर दी है। आज पति-पत्नी, मां-बेटा सभी के बीच सोशल मीडिया के कारण लड़ाई झगड़े होते हैं, सोशल मीडिया और नेटवर्किंग के साधनों जैसे मोबाइल, कंप्यूटर, लैपटॉप आदि इनसे हमारी तनाव की प्रवृत्ति बहुत बढ़ गई है क्योंकि इन से निकलने वाली "रेडिएशन" सीधे हमारे दिमाग पर असर करती हैं जिससे हमारी आंखें और दिमाग दोनों पर बुरा प्रभाव पड़ता है और भी अनेक प्रकार के रोग इनके कारण होते हैं। क्योंकि आज इनका प्रयोग जितना होना चाहिए था उसे कई गुना ज्यादा हो रहा है, इन्हीं से सुबह और इन्हीं से रात होती है, खाते हुए भी मोबाइल तथा यहां तक कि निकालते हुए भी आज यह मोबाइल हाथ से नहीं छूटता है।
आज का समय ऐसा हो गया है कि यदि किसी घर में कोई बच्चा ज्यादा उधम करे अथवा ज्यादा परेशान करता हो तो उसे मोबाइल दे दो वह शांत हो जाएगा। इस तरह सोशल मीडिया का प्रयोग इन कामों में हो रहा है अथवा किया जाता है अब आप विचारिये यह प्रयोग है या दुष्प्रयोग ?
जिन बाह्य खेलों से हमारी शारीरिक क्षमता बढ़ती थी, तथा शरीर स्वस्थ रहता था।उसे छोड़ कर आज हमने अपने बच्चों को और स्वयं ने शरीर को रोग पीड़ित करने वाले साधनों को पकड़ लिया है।
दिन रात इसी में लगे रहने से आज हम अपना समय यूं ही व्यर्थ खो रहे हैं। चैटिंग, ट्वीट्स आदि में पता ही नहीं चलता कि समय कब निकल गया,और अनेक लोग अपना जीवन इस कारण से खराब कर लेते हैं। क्योंकि आज मोबाइल आदि के कारण हमारा मन अधिक आलसी हो गया है, हमारा ध्यान कहीं भी अधिकतर टिक नहीं पाता है क्योंकि आज सिर्फ हमारे मन को चाहिए-
" एंटरटेनमेंट एंटरटेनमेंट एंटरटेनमेंट।"
हमारा दिमाग आज मेहनत ही नहीं करना चाहता। बस बैठे बैठे सारी सुविधाएं प्राप्त करना चाहता है। और इसी के कारण हमारी बुद्धि छीन होती जा रही है। आज कोई भी विषय के बारे में जानने की इच्छा हुई तो Google पर सर्च कर लिया, परंतु इसे हमारा दिमाग उस विषय के बारे में मात्र उतना ही जान पाता है जितना Google हमें दिखा दे। इससे हमारा ध्यान सीमित हो जाता है।Google के कारण आज अधिकतर किताबें, नोबल, कॉमिक्स आदि पढ़ने वाले कम हो गए हैं, क्योंकि सारी जानकारी Google पर मिलती है लेकिन वह जानकारी सही है या गलत इसका फैसला हम नहीं कर पाते क्योंकि Google उस विषय के संबंध में बहुत सी बातें कहता है, उस संबंधी अनेक जानकारियां देता है, इससे अनेक लोगों को भ्रम उत्पन्न होता है और लोग गलत जानकारी ग्रहण करते हैं। (बहुत सी जानकारी का मतलब है कि Google किसी विषय के बारे में कभी उससे सही बताता है कभी गलत! ऐसी भ्रमात्मक बातें बताता है।)
और ऐसी ही भ्रमात्मक बातें ही अनेक लड़ाई झगड़े का कारण बनती हैं अनेक प्रकार के दंगे फसाद का कारण बनती हैं मात्र ऐसे ही गलतफहमी के कारण अनेक लोग अपनी जान गवा देते हैं।
आज मोबाइल कंप्यूटर आदि से कितने गलत काम किए जा रहे हैं लोगों की प्राइवेट जानकारियां hack करके उन्हें ब्लैकमेल करना धमकी देना लूटना आदि उन्हें बदनाम करने के लिए उनकी Photos, Videos Edit करके कुछ और तरीके से दिखाना ऐसे अनेक क्राइम नेटवर्किंग द्वारा किए जा रहे हैं अथवा किए जाते हैं।
मैं यहां पर सोशल मीडिया या नेटवर्किंग की बुराइयां नहीं कर रहा हूं बल्कि मात्र उससे होने वाले नैतिक मूल्यों का ह्रास कैसे हो रहा है यह बता रहा हूं।
कई लोग कहते हैं कि आप उसी मोबाइल , कंप्यूटर आदि को स्वयं प्रयोग करते हो और उसी की उपेक्षा करते हो?
लेकिन ऐसा सब नहीं करते क्योंकि जब सारा समाज या देश अथवा पूरा विश्व किसी कार्य को करे तो एक या दो व्यक्ति उनसे हटकर नहीं चल सकते उस भी वही करना पड़ता है। और यहां तो आज के समय में 90% देश के काम मोबाइल, कंप्यूटर से हो रहे हैं तो अकेले हम क्या कर सकते हैं। अकेले हमारे प्रयोग बंद करने से मोबाइल आदि बंद होंगे नहीं। अत: हमें भी उसी अनुसार चलना पड़ता है। क्योंकि कुछ लोगों को मीडिया मजबूरी है उपयोगी नहीं।
इन सबसे आज लोगों के संस्कार खत्म हो रहे है। बच्चे भी इसमें लगकर बिगड़ रहे हैं। पहले लोग सुबह उठकर माता - पिता को नमन करते थे पर आज WhatsApp पर "GM" Massage करते हैं।जबकि घर में एक साथ रहते हैं।
इन सब chating आदि के कारण लोग अपनी भाषा कमजोर करते जा रहे हैं। जहां हमारे दिमाग में असीमित शब्द भंडार हो सकता है, वहीं आज Limited शब्द रह गए हैं। Whatsapp आदि पर हमने आज Short Language के प्रयोग से अपनी पढ़ने - लिखने की क्षमता भी कमजोर करली है।
इन सब बातों से सिद्ध होता है कि लोगों को जितना इन सोशल मीडिया से लाभ नहीं है, उतनी इससे हानि है। अपने नैतिक मूल्यों को , अपनी पुरानी संस्कृति को आज हम खो रहे है तो कारण है मात्र -
" social media networking"
Akshay jain