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पिछवाड़े का कब्रिस्तान

पिछवाड़े का कब्रिस्तान

पूर्व प्रकाशित 'दैनिंक जागरण ' ७ मार्च २०१६

लोग कहते हैं कि कहानी लिखो तो वो अक्सर हकीकत में बदल जाती है. लेकिन इतना कह देने भर से कहानी लिखना बंद नहीं हो जाता. लोग कहानियां लिखते हैं, जी भर के लिखते हैं. कुछ लोग इन्हें छापते भी हैं. और फिर बहुत से लोग इन्हें पढ़ते हैं. इसके बावजूद कुछ लोग आपको धमका भी सकते हैं जो शायद आप को कहानी लिखने में रूकावट का एहसास करवाए. लेकिन फिर भी आप कहानी लिखने से बाज़ नहीं आते.

ऐसी ही एक कहानी काव्या ने कभी लिखी थी. आज पढ़ने में आयी तो आप सब के साथ सांझा कर रही हूँ. एक औरत थी जिसे ज़िंदगी जीने का बेहद शौक था. और वो ज़िंदगी कोई ऐसी वैसी ज़िंदगी नहीं थी जैसी हम और आप जिया करते हैं. कि सुबह उठे, तैयार हुए, खाया-पिया, काम पर गए, कुछ काम किया कुछ हरामखोरी, फिर घर लौटे, खाया-पिया, सो गए और अगले दिन फिर वही.

ये औरत ज़िंदगी का इस्तेमाल करना चाहती थी और जानती भी थी. उसके घर में हर चीज़ कायदे से रखी होती, उसके बच्चे साफ़ सुथरे होते, उसके घर का खाना किसी खानसामा को एहसासे कमतरी दे सकता था. उसके कपड़े हमेशा साफ़ सुथरे होते, नयी फैशन के भी होते, उसके घर के परदे करीने से लगे होते. लेकिन उन्हीं करीने से लगे पर्दों के भीतर क्या होता था ये कोई पता नहीं लगा सकता था. लोग हमेशा इस फिराक़ में रहते कि कोई पर्दा ज़रा सा सरक जाए या फिर कोई आवाज़ बाहर तक आ जाए.

और फिर एक दिन किसी ने देखा कि उस घर के दरवाज़े पर एक छोटी सी बिल्ली बैठी हुयी रो रही थी.

लोग इकठा हो गए, घर की घंटी बजाई गयी और उस औरत से उस बिल्ली के बारे में पूछा गया. औरत ने कुछ नहीं कहा, वो बिल्ली से बात करती और पुचकारती हुयी उसे अन्दर ले गयी. बिल्ली की रोने की आवाज़ बंद हो गयी. औरत की पुचकारने की आवाज़ भी कुछ देर बाद आनी बंद हो गयी. दरवाज़ा बहुत पहले ही बंद हो चुका था. लोग उकता गए. उन्हें अब और कुछ उम्मीद नहीं रही और वे धीरे-धीरे एक-एक कर के वहां से अपने अपने घरों को लौट गए.

घर के अन्दर से हमेशा की तरह पकवानों की खुशबु आती रही. बच्चे सुबह सुबह बस्ते ले कर दरवाजे से बाहर निकलते, औरत उनके साथ होती. उन्हें बस तक पहुंचाती, लौट आती और घर के अन्दर गुम हो जाती.

घर का मर्द रोज़ ही सज धज कर गाडी की चाबी घुमाता हुआ दरवाजे से निकलता. एक नज़र बाहर बैठे लोगों पर डालता. ये लोग अलग-अलग झुण्ड बना कर हर घर की तरह उसके घर के बाहरी दरवाजे से कुछ दूर बैठे रहते. कुछ इस तरह कि उसके घर पर पूरी नज़र भी रख सकें और मर्द को किसी तरह की शिकायत का मौक़ा भी न मिल सके. कभी कभी मर्द उनकी इस चालाकी पर झुंझला भी जाता लेकिन फिर झख मार कर अपनी गाडी में बैठ कर निकल जाता.

कभी कभी औरत भी उसके साथ होती. उसके हाथ में पर्स होता. लेकिन उस पर्स में एक लिपस्टिक, एक काजल, कुछ टिश्यू, घर की चाबी और कुछ रेजगारी के आलावा कुछ नहीं होता था. औरत ने कभी ज्यादा सामान रखने और ख़ास कर रूपया पैसा रखने की ज़रुरत महसूस नहीं की. क्यूंकि वह हमेशा मर्द के साथ बाहर जाती थी और रूपये पैसा का सिलसिला मर्द की ज़िम्मेदारी समझती थी.

एक बार घर पर मेहमान बन कर आये एक गिरगिट ने पूछा भी था, " आप हर वक़्त यूँही घर में लगी रहती हैं. क्या आप को बाहर की दुनिया को बेहतर तरीके से जानने की ख्वाहिश नहीं होती?"

औरत ने हंस कर कहा था, " दुनिया तो अन्दर बाहर एक ही तरह की होती है. हम घर में कुछ और होते हैं, बाहर कुछ और. घर के अन्दर जो हैं उनको ज़रा ठीक से समझ लूँ तो फिर दुनिया की तरफ रुख करूंगी. "

बात आयी गयी हो गयी. लेकिन मर्द को औरत की हंसी चुभ गयी. कुछ इस ख्याल से कि औरत जब हंसती थी तो उसके गलों पर बड़े दिलकश गढ़ढ़े पड़ते थे. वो नहीं चाहता था कि औरत के इन गढ़ढ़ों की बात घर की चारदीवारी के बाहर निकले. उसने गिरगिट को उसके बाद अपने घर नहीं बुलाया. औरत के पूछने पर उसने व्यस्तता का बहाना बना कर बात को टाल दिया.

औरत बच्चों को बस तक पहुंचाती और घर लाती रही.. घर में पकवान बनते रहे. बिल्ली दूध पीती रही. मर्द हर रोज़ चाभी घुमाता गाडी में बैठ कर काम पर जाता रहा. कुछ दिन सुख-शांति से बीत गए.

फिर एक दिन एक बूढ़ा कुत्ता औरत के घर के दरवाजे के बाहर खड़ा हुआ नज़र आया. लोग तो बहुत दिनों से इंतजार में थे.. उन्हें कुछ उम्मीद बंधी. वे मजमा लगा कर औरत के घर के बाहर खड़े हो गए. किसी ने हिम्मत दिखाई और घर की घंटी बजा दी. औरत बाहर निकल कर आयी. उसके हाथ में बिल्ली के खाने वाला कटोरा था जिसमें से दूध छलक रहा था. उसने लोगों को देखा, एक नज़र बूढ़े कुत्ते पर डाली और माजरा समझ गयी.

लोग एक साथ बोलने लगे. एकाएक ढेरों संवाद हवा में बिखर गए लेकिन कोई कुछ भी समझ नहीं पा रहा था. औरत ने कुछ देर समझने की कोशिश की. फिर उसका ध्यान कुत्ते की तरफ गया. कुत्ता उम्मीद भरी नज़रों से उसके हाथ के कटोरे को देख रहा था.

कुत्ते की आँखों में देखती औरत ने कटोरा कुत्ते के आगे रख दिया. लोगों के बेसाख्ता शोर के बीच कुत्ते ने लप-लप करते हुए दूध पिया और पूंछ हिलाता औरत की टांगों से लग कर खड़ा हो गया. औरत की नीले डेनिम की जीन्स पर कुत्ते के भूरे बाल चमकने लगे.

औरत ने कुत्ते को एक हाथ से सहलाया, दूसरे हाथ से खाली कटोरा उठाया और कुछ देर शोर के बंद होने के इंतज़ार में खडी रही. लेकिन लोग बदस्तूर बोलते रहे. कोई किसी की बात नहीं सुन रहा था. सब सिर्फ और सिर्फ बोल रहे थे.

आखिर हार कर औरत ने कुत्ते को सहलाते हुए अपने घर की चौखट के अन्दर क़दम रखा और दरवाज़ा बंद कर लिया. अब कुत्ता और औरत दोनों ही नज़र नहीं आ रहे थे. लोगों का अपना शोर इतना ज्यादा था कि वे अन्दर हो रहे औरत और कुत्ते के वार्तालाप को नहीं सुन सके.

औरत: तुम कौन हो और कहाँ से आ रहे हो?

कुत्ता: मैं कुत्ता हूँ. बहुत प्यार करता हूँ. लेकिन आदमी मुझे सिर्फ एक कुत्ता समझता है. मैं थक गया हूँ. मुझे अब सिर्फ खाना और मरने के लिए एक जगह चाहिए. तुम दोगी?

औरत: हां. मैं भी सिर्फ मरने का ही इंतजार कर रही हूँ. अच्छा है, साथ ही करेंगे.

कुत्ता: क्यूँ? तुम तो अच्छी खासी जवान हो. बच्चे भी हैं. मर्द भी है. घर में बहुत कुछ है. परदे भी हैं. बिस्तर भी है. फ्रिज में खाना भी है. तुम्हारे बदन पे गहने भी हैं. फिर क्यूँ मरना चाहती हो?

औरत: तुम नहीं समझोगे. रहने दो. खाना खाओ. इधर एक बिस्तर तुम्हारे लिए भी लगा देती हूँ. मेरे बिस्तर के साथ ही. इंतजार करो.

कुत्ते का बिस्तर औरत की बगल में लग तो गया लेकिन बिल्ली को इससे परेशानी होने लगी. इसकी वजह थी बिल्ली का रात का कार्यक्रम. बिल्ली रात देर तक घर के बाहर घूमती रहती थी. जहाँ दिल चाहता जाती, जो दिल चाहता खाती. घर का दूध तो जब चाहे मिल जाता था. बाहर जब जी चाहता घात लगा कर एक आध चूहा मार लेती और दावत उडाती. घर कब आती कोई जान नहीं पाता था. चुपचाप घर में दाखिल होती और सो जाती. कुत्ते के आने से उसकी इस आजादी में खलल पड़ गया.

अब जब वो घर में दाखिल होती तो कुत्ता उसकी गंध सूंघ कर शोर मचा देता. घर भर को उसके आने का एहसास हो जाता. इस बात का भी कि वो कितनी देर रात गए तक बाहर मटरगश्ती किया करती है. उसकी आजादी के साथ साथ उसकी इज्ज़त में भी सेंध लगने लगी.

लिहाज़ा बिल्ली ने कुत्ते की जड़ें काटनी शुरू कर दीं. पहले उसने कुत्ते को पड़ोसी के घर का निकाला हुआ कुत्ता साबित करना चाहा. लेकिन पड़ोसी ने साफ़ कर दिया कि उसका उस कुत्ते से तो क्या किसी भी कुत्ते से कभी कोई रिश्ता नहीं रहा.

अब बिल्ली ने एक नयी चाल सोची. उसने घर में चोरी छिपे छोटे मोटे नुकसान करने शुरू कर दिए. उसे लगता था कि इलज़ाम कुत्ते के सर आएगा. लेकिन औरत चुस्त थी. उसने गुनाहगार की जल्दी ही तलाश कर ली और बिल्ली को अल्टीमेटम दे दिया गया कि या तो वो अपनी आदतें सुधार ले या फिर किसी और घर का रास्ता देखे. बिल्ली चालाक थी. जानती थी इस औरत जैसी दूसरी ढूंढनी मुश्किल होगी. सो मन मार कर सीधे रास्ते पर चलने लगी.

लेकिन अन्दर ही अन्दर बिल्ली कुछ ताना बाना बुनने लगी. वो मौके की तालाश में रहने लगी. और एक दिन उसे मौक़ा मिल ही गया. मर्द ने अपने एक दोस्त चूहे को उसके परिवार के साथ दावत पर बुलाया था. उस दिन सुबह से घर के अन्दर बाहर पकवानों की खुशबु और दिनों से भी ज्यादा उड़ रही थी.

शाम को जब मेहमान घर पर आ गए तो बिल्ली दुबक कर बैठ गयी. कुत्ता अपने स्वभाव के मुताबिक सब से खुशी से मिल रहा था. बातें कर रहा था, उनके कदमों में बिछा जा रहा था. अचानक चूहे के बेटे ने एक चीख के साथ शोर मचाना शुरू कर दिया. उसका इलज़ाम था कि कुत्ते ने उसके पैर में काट लिया है.

औरत और मर्द ने बहुत कोशिश की किसी तरह उसे समझाने की कि कुत्ते की फितरत में ही काटना नहीं है. उसे कोई ग़लतफहमी हुयी होगी. क्यूंकि पैर पर काटे जाने का कोई निशान भी नहीं था. बिल्ली ने अपना काम बड़ी चालाकी से अंजाम दिया था. अगर सच में काट लेती तो उसके दांत के निशान से उसकी शिनाख्त हो सकती थी.

बेकुसूर कुत्ते को सर नीचा कर के इलज़ाम उठाना पढ़ा. चूँकि चूहा मर्द का बॉस था. सो बात बहुत ज्यादा बढ़ गयी. घर के बाहर मजमा लग गया. घर के अन्दर बाहर शोर ही शोर था. देर रात गए तक ये सिलसिला चलता रहा. इस सब के बीच औरत ने सब को खाना खिलाया. कुत्ते की प्याले में भी डाला लेकिन कुत्ते ने प्याले की तरफ नज़र भी नहीं फेरी. वो भूखा प्यासा चुपचाप अपने बिस्तर पर जा कर लेट गया.

देर रात तक शोर शराबे और गीत संगीत के बीच दावत चली. बाहर का मजमा भी थक हार कर अपने अपने घरों को लौट गया. आखिर आधी रात के कुछ देर बाद मेहमान अपने घर को गए. मर्द और औरत ने उन्हें खुश कर के भेजा था. मर्द भी खुश था लेकिन औरत के चेहरे पर गहरी मायूसी थी.

रात भर औरत अपनी मायूसी और दावत के सफल होने की खुशी के बीच तैरती डूबती कभी सोती कभी जागती रही. कुत्ते के खर्राटों की आवाज़ कुछ देर के बाद आनी बंद हो गयी.

सुबह जब औरत सबके उठने से पहले उठी तो कुत्ते को सोया जान कर उसे हैरत हुयी. उसने उसे उठाने को जब हाथ लगाया तो जान गयी कि कुत्ता उसका साथ छोड़ कर जा चुका था. औरत ने चुपचाप कुत्ते को घर के पिछवाड़े ले जा कर दफना दिया. इसके साथ ही उसने खुद अपनी एक खुशी भी दफ़न कर दी.

औरत अब भी उसी तरह घर में रहती है. कभी कभी बाहर जाती है, मर्द के साथ. बच्चों को बस तक पहुंचाती है, वापस लाती है. मर्द चाभी घुमाता हुआ रोज़ काम पर जाता है.

घर साफ़ सुथरा है. परदे और बिस्तर बिलकुल झकाझक. फ्रिज में भरा हुआ खाना. रसोईं में लगातार बनते पकवानों की महक. जो दूर दूर तक जाती है. मैले कपडे रोजाना धुलते हैं, इस्त्री होते हैं, औरत घर को घर बनाने में हर पल जुटी रहती है. बिल्ली रोजाना दूध पीती है. बच्चे खेलते हैं, स्कूल जाते हैं.

कभी कभी कोई चूहा या गिरगिट मेहमान बन के घर में आते हैं. अच्छा खाना खाते हैं. मीठी मीठी बातें करते हैं. औरत बिल्ली को अब भी पुचकारते हुए ही दूध देती है. लेकिन जिस दिन बिल्ली कोई और चालाकी करती है औरत अपनी एक और खुशी कुत्ते की कब्र की बगल में दफ़न कर के फिर से घर में जुट जाती है. औरत के घर के पिछवाड़े क़ब्रों का एक ढेर सा लग गया है.

लोग अब भी घर से दूर इधर उधर छितरे हुए किसी आहट, किसी आवाज़, किसी हादसे के इंतजार में जिए चले जा रहे हैं.

प्रितपाल कौर

पूर्व प्रकाशित 'दैनिंक जागरण ' ७ मार्च २०१६