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लाइफ़ @ ट्विस्ट एन्ड टर्न. कॉम - 20 - Last Part

लाइफ़ @ ट्विस्ट एन्ड टर्न. कॉम

[ साझा उपन्यास ]

कथानक रूपरेखा व संयोजन

नीलम कुलश्रेष्ठ

एपीसोड - 20

मीशा आज अब तक कमरे से क्यों नहीं निकल रही है ?| दामिनी ने जाकर उसके कमरे को नॉक किया | मीशा फ़ोन पर बात कर रही थी, बहुत गुस्से में लग रही थी | उसने ने सुना, ``कह दिया न मुझे एम बी ए में कोई इंट्रेस्ट नहीं है !क्यों बार-बार एडमीशन की लास्ट डेट की बात करती रहती हैं ?``

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मीशा किसी हिस्टीरिया के मरीज़ की तरह चीख रही थी, ``करवा दीजिये फ़्लाइट बुक जयपुर की, आ --कौन रहा है ?"

दामिनी को लगा सुबह ही सुबह दूसरे कमरे में से म्युज़िक सिस्टम से पंडित जसराज की गाती हुई आवाज़ भी चीखने लगी है, ``कोई नहीं है अपना ---अपना --अपना। ``

` `मैंने कहा न !मैं जयपुर कभी नहीं आउंगी। `` गुस्से में उसने मोबाइल ऑफ़ कर दिया। दामिनी समझ गई कि वह कावेरी से बात कर रही है।

दामिनी ने उसके सिर पर रखकर कुछ पूछना चाहा तो उसने बहुत ज़ोर से उसका हाथ झटक दिया ;

"सब पीछे पड़े रहते हैं, एम बी ए करो । इट्स माई लाइफ़ -मैं कुछ भी करूँ, न करूँ । नहीं करना है मुझे कुछ भी ---" आज अचानक बहुत दिनों बाद दामिनी ने उसे इस मूड में देखा था, एकदम विद्रोहिणी लग रही थी |

``ठीक है, मत कर एम बी ए लेकिन तेरे डांस क्लास का टाइम हो रहा है। जल्दी तैयार हो जा बच्चा !``

"आपने सुना नहीं मैंने अभी क्या कहा ?कुछ नहीं करना मुझे!" उसका चीखना ज़ारी था।

दामिनी समझ गई कि उसका गुस्सा हाई पिच पर है। वह धीरज से बोली, "ठीक है, तुम्हारी मर्ज़ी। "

उसने वन्दिता को मीशा की रिपोर्टिंग की । वन्दिता ने उसे चुप रहने के लिए कहा, करने दो जो करती है !कावेरी को कहो, अभी उससे ज़्यादा बात न करे | मुश्किल हो रहा था दामिनी के लिए लेकिन चुप्पी में ही भलाई थी, केवल डॉक्टर ही नहीं, ऎसी स्थिति में परिवार का फ़र्ज़ बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है |

उसने दूसरे कमरे में जाकर कावेरी को धीमी आवाज़ में फ़ोन किया, ``कावेरी !अभी कुछ दिन तुम सीधे ही मीशा को फ़ोन मत करो। बहुत मन करे तो फ़ोन पर सिर्फ़ इधर उधर की बात करो। एम बी ए का नाम भूलकर भी मत लो। ``

वह भी धीमी आवाज़ में बोली, ``आपने ही तो बताया था कि मीशा आपकी किसी सायकेट्रिस्ट दोस्त के डाँस सीखने जाती है और नॉर्मल होती जा रही है। इधर एम बी ए के एडमीशन के लिये फ़ॉर्म मिलने शुरू हो गए हैं। उनके सबमिट करने की लास्ट डेट आ गई है। इसी चिंता में उसे कॉल कर बैठी। ``

``फ़ॉरगेट इट। हम सब फ़िंगर क्रॉस करके बैठते हैं, उसे जल्दी अक्ल आये। ``

``ठीक है। `` कावेरी का स्वर बुझा हुआ था।

वह दिन बहुत चुप्पी भरा रहा, अगले दिन मीशा सुबह- सुबह तैयार होकर आ गई ;

"नानी! कैब मंगवाइये, मुझे डांस सीखने जाना है। " उस दिन वह फिर से काफ़ी नॉर्मल थी. लंच में बिन्दो ने उसकी पसंद का खाना बनाया जिसे उसने खूब स्वाद लेकर खाया और बिन्दो काकी की तारीफ़ भी की |

" हाँ, मीशा ! बेटा कब से पिक्चर नहीं गई ? चल आज पिक्चर चलेंगे, इनॉक्स में बड़ी बढ़िया पिक्चर लगी है|``

"नानी, मेरा मन नहीं है ---" मीशा कुछ अनमनी सी होकर बोली |

"ये मन न होना क्या होता है मीशा? ये तो मूड -स्विंग्स होते हैं जो सबके साथ होते हैं |"

"क्या आपको भी होते हैं ?"मीशा एक नन्हे बच्चे की तरह पूछ रही थी |

"अरे ! मेरी बिटिया रानी, सबके होते हैं, हम बात करेंगे इस बारे में भी ---लेकिन हाँ, आज हम पिक्चर चल रहे हैं, फिर बाहर खा-पीकर आएँगे ---"मीशा चुप रही --दामिनी ने उसकी आँखों में हल्की सी चमक देख ली थी |

उस दिन मीशा बड़की नानी के साथ पिक्चर देखकर आई, पिक्चर में वह एक छोटी बच्ची तरह खुलकर हँसती रही थी, हाथ में पॉपकॉर्न का पैकेट लेकर एक-एक दाना चबाती मीशा का चेहरा अँधेरे में भी चमक रहा था |

फ़िल्म के बाद एक साउथ कैफ़े के अंदर जाते हुए दामिनी ने कहा, ``यहां के फ़्यूज़न डोसे बहुत फ़ेमस हैं । ``

``हर बात में, म्युज़िक में फ़्यूज़न, रिमिक्स और न जाने क्या क्या घुस गया है। ``

मीशा की हल्की हंसी देखकर दामिनी को चैन पड़ा। उसने बैठने के लिए एक केबिन चुना। यहां आराम से बातचीत की जा सकती है, ``पहले कॉफ़ी मंगवाई जाये। मेरा सिर कुछ भारी हो रहा है। ``

कॉफ़ी का सिप लेते हुए ने पूछा, "अच्छा, तूने दीपिका पादुकोण का कुछ साल पहले टी वी पर दिया वह कनफ़ेशन देखा था जो उसने कितनी बेबाकी से दिया था ?"

"ये अचानक आपको दीपिका पादुकोण कैसे याद आ गई ?"मीशा ने अपनी पोनी ठीक करते हुए कुछ मुस्कुराते हुए पूछा |

``इसलिए याद आ गई कि मुझे रणवीर कपूर की फ़िल्म ` ये जवानी है दीवानी `में उन दोनों की मस्ती बहुत मज़ेदार लगी थी। कहते हैं उसी फ़िल्म के कारण उनकी नज़दीकियाँ बढ़ गईं थीं। दीपिका तो बहुत उससे इन्वॉल्व हो गई थी। "

"मैं तो समझी थी कि रणवीर कपूर उससे शादी कर लेगा। "

"तू क्या सभी यही समझते थे लेकिन आज के ज़माने में कौन डिच कर जाए, क्या पता?"

ये बात सुनकर मीशा का चेहरा उतर गया, आँखें डबडबा आईं तो दामिनी को अपनी ग़लती का अहसास हुआ। बात सम्भालकर बोलीं ;"अरे पगली ! अरे ! इस उतर-चढ़ाव यानि कि ट्विस्ट एन्ड टर्न का नाम ही तो जीवन है, वर्ना सपाट सड़क पर चलते रहो, क्या मज़ा है उसमें --?होती रहती हैं ऎसी बातें ---"

दामिनी ने मीशा को पुचकारा फिर धीमे से बोली, "दीपिका पादुकोण कितनी फ़ेमस ऐक्ट्रेस है, उसने अपने इंटर्व्यू में यह बात बहुत खुलकर कही थी कि इस प्रकार की सिचुएशंस में से खुद ही निकलना होता है, दूसरों का रोल तो है -- जैसे दोस्तों का, घरवालों का पर खुद का सबसे ज़्यादा है, अरे! अपना इतना इंपोर्टेंट जीवन थोड़े ही ख़राब करना है किसी और की बेवकूफ़ी से --- ?"

``नानी! मैंने भी दीपिका का वह शो देखा था किस तरह दुनियाँ को बता रही थी कि मैंने प्यार में धोखा खाया और किस तरह से पेरेंट्स के पास बैंगलोर जाकर अपने को डिप्रेशन से निकाला। मुझे तो उसका अपने प्यार का सारे जहान में ढिंढोरा पीटने के लिए , उसकी बातें सुनकर बहुत अजीब लग रहा था |"

``वो कहते है न जैसे सुख बाँटने से ज़्यादा होता है वैसे दुःख बाँटने से दुःख कम होता है। दीपिका आज लड़कियों की रोल मॉडल बन गई है। उसने अपने को सम्भाला। फिर से हिम्मत से ज़िन्दगी का मुकाबला करके एक से एक हिट फ़िल्म दीं। फिर चमत्कार हुआ उसने सच्चा प्यार पा लिया रणवीर सिंह से !"

``या, इट्स सो इन्सपाइरिंग, वैसे नानी !दीपिका मुझे पसंद भी बहुत है ---"

"हूँ—मुझे तो दोनों दीपिका व रणबीर पसंद हैं। --" पल भर रुककर उसने मीशा के चेहरे पर अपनी नज़रें गढ़ा दीं ;

"वॉट अबाउट यू मीशा ?ज़िंदगी सबके लिए इंपोर्टेंट है, सबको अपनी ज़िंदगी को सहेजना है ---अब इतने एक्ज़ाम्पल सामने हों और हम उनसे भी कुछ न सीखें ---ये ठीक लगता है तुम्हें ?"

मीशा ने कुछ जवाब तो नहीं दिया लेकिन पहली बार पूरे आत्मविश्वास के साथ बड़की नानी की आँखों में "नानी, आप बहुत उस्ताद हैं । "

" अच्छा ! कैसे ?"

" अपने मुझे नहीं बताया था कि वन्दिता आंटी एक मनोवैज्ञानिक है --पर जिस तरीके से मुझे वो ट्रीट करतीं थीं, मैं समझ गई थी पर मुझे उनके साथ अच्छा लगता था| आपकी यह बात भी दिल में घर कर गई थी कि मुझे इस चक्रव्यूह से निकलना है ---तो मैंने भी आपको कुछ नहीं बताया | ``

" थैंक्यू मेरा बच्चा । "

***

सुबह पैरों में घुँघरू बांधते हुए वन्दिता ने मुस्कुराते हुए पूछा, "अच्छा लग रहा है मीशा तुम्हारा चमकता हुआ चेहरा देखकर --- तुम्हें ऐसा क्या मिल गया ?"

"आँटी ! कुछ ऎसी फ़ीलिंग हो रही है जैसे आकाश में उड़ने के लिए मेरे बंद पँख खुलने लगे हैं । "

" अच्छा ! वो कैसे ?" उसने जान-बूझकर मीशा का दिल टटोलने का प्रयास किया, वह उसके दिलोदिमाग़ की स्थिति बहुत अच्छी तरह समझ रही थी और उसका पूरा विश्वास था कि अब उनके सामने एक नई मीशा होगी |

"मैं यह सोच रही हूँ ----" मीशा चुप हो गई |

"अरे भाई, ज़रा जल्दी सोचो न ---" लस्सी के ग्लास को उठाने का इशारा करते हुए वन्दिता ने हँसते हुए कहा और दोनों खिलखिलाकर हँस पड़ीं | श्याम, उनका रसोइया अपने हाथ में ट्रे लिए खड़ा था | वन्दिता को मालूम था मीशा को ठंडी लस्सी बहुत पसंद है, यह भी उसके ट्रीटमेंट का एक अंतिम पड़ाव जैसा ही था |

"अरे वाह ! श्याम भैया ! आपके हाथ की लस्सी तो बहुत मज़ेदार होती है | "श्याम ने मुस्कुराकर जैसे उसे धन्यवाद दिया और वहाँ से चला गया |

"वन्दिता आँटी !मैं सच में कितनी पागल थी, किसी ऐसे के लिए अपना जीवन बर्बाद करना जिसके मोह के धागे इतने कच्चे हों ---यानि पैसा उसके लिए मुहब्बत से ज़्यादा था ---" उसने लस्सी का एक बड़ा सा घूँट भरा और मुस्कुराकर बोली, " मैं जल्दी ही जयपुर वापिस लौटना चाहतीं हूँ, एम बी ए में एडमिशन लेने के लिए | अगर कल की फ़्लाइट मिल जाए तो कल ही चली जाऊँगी ---"वह बिलकुल नॉर्मल व खिली हुई कली लग रही थी| वन्दिता के मुख पर एक संतुष्टि की मुस्कान फैल गई |

"हम भी तो बहुत मिस करेंगे तुम्हें और तुम्हारी प्रैक्टिस भी । ``-वन्दिता ने उसे लाड़ लड़ाया |

" मैं क्या कम मिस करूँगी आप सबको, सच मैंने सीख लिया इस दुनिया में रहने का सलीका, आप लोगों से ---और जहाँ तक प्रैक्टिस का सवाल है, जयपुर जाकर मैं लगातार प्रैक्टिस करूंगी, कला के बिना जीवन कहाँ वन्दिता आँटी !?" मीशा भावुक हो चली थी|

दामिनी का घर पर बिलकुल मन नहीं लग रहा था। सोचा वह वन्दिता के घर जाकर मीशा को ले आये। वह वन्दिता के घर के ड्राइंग रूम के दरवाज़े पर ये बातें सुनकर चित्रलिखित सी खड़ी रह गई। वह कुछ नहीं बोली, बस चुपचाप मीशा की बातें सुनती रही, उसका खिला चेहरा देखती रही | मिस तो वह बहुत करेगी अपनी इस बच्ची को --संतुष्टि इस बात की थी कि मीशा ज़िंदगी जीने का सही तरीका सीखकर जा रही थी |

***

अगले दिन एयरपोर्ट पर मीशा दामिनी से ऐसे चिपटी जैसे उसे छोड़ना ही न चाहती हो ;

" मैं जल्दी ही आऊँगी बड़की -----" उसने जानबूझकर `नानी `शब्द गोल कर दिया और दामिनी को भींचकर वह खिलखिलाई और आगे बढ़ गई |

दामिनी ने ऊपर सिर उठाया, कोई विमान अभी टेक-ऑफ़ हुआ था, उसे लगा यह उसकी मीशा है जो पँख फैलाकर नीले गगन में अपनी सफ़लता की ध्वजा फहराने निकल पड़ी है |

समाप्त

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प्रणव भारती

ई -मेल ---pranavabharti@gmail.com