Chudhail wala mod - 7 books and stories free download online pdf in Hindi

चुड़ैल वाला मोड़ - 7

"देख डर उतना ही सताता है जितना हम उसके बारे में सोचते हैं । यह सिर्फ इत्तेफ़ाक़ है कि तेरा एक्सीडेंट और मेरा ब्रेक डाउन सेम टाइम पर हो गया । तू भूल जा इन सब बातों को, तीन दिन में तेरा डिस्चार्ज है यहाँ से । घर पहुंच और नयी लाइफ स्टार्ट कर ।" जो सुशान्त अभी बिखरा सा लग रहा था वही अब इतना ज़ब्त खड़ा था । दोस्त की परेशानी में खुद का दुःख भूल जाना ही शायद दोस्ती है ।

संकेत को भी अब सब कुछ ठीक लग रहा था । तीन दिन कब बीत गए उसे एहसास भी नहीं हो पाया । आज संकेत के घर जाने का दिन था । सब चीज़ें अपने शेड्यूल पर थीं । जैसे ही 7 बजे, संकेत पापा और माँ के साथ नीचे आया, सुशान्त अपनी डस्टर लिए गेट पर ही खड़ा था । गाडी़ की रेअर शील्ड पर एक बैनर मौजूद था ," वेलकम टू न्यू लाइफ डिअर संकेत ।"

खुश किस्मत था संकेत जो सुशान्त जैसा इंसान उसका दोस्त था । हॉस्पिटल के उस 8X10 के कमरे से निकल कर आज पहली बार बाहर की दुनिया देख रहा था । सब कुछ नया नया सा लग रहा था । घर, हॉस्पिटल से डेढ़ घंटे की दूरी पर था ।

अचानक फटाक आवाज़ आई और सुशान्त ने ब्रेक लगा दिए । सबसे पहले तो सुशान्त ही उतरा गाडी़ से और बस जम सा गया । संकेत के पापा ने सर बाहर निकाला,"क्या हुआ बेटा? "

सुशान्त के मुंह से बस अटका हुआ सा अंकल शब्द फूटा । हवा के वेग से पापा भी उतरे और सुशान्त की तरह जम गए । संकेत समझ नहीं पा रहा था कि हो क्या रहा है । दरवाजा खोल उसने भी अपने कदम धरती पर रख दिए और कार के फ्रंट की ओर बढ़ा । टूट के बिखरी हुई कांच की बोतल और खून से लिखा हुआ सन्देश ,"आई ऍम बैक" ।

होश उड़ गए संकेत के और साथ ही साथ पापा, माँ और सुशान्त के । खून की बोतल टूटना आम घटना ही थी पर खून के बिखर के सन्देश में बदल जाना वाकई डरावना था ।

"अंकल, संकेत चलो यहाँ से । कम ऑन, गाडी़ में बैठो ।" स्थिति अजीब होती देख सुशान्त चिल्लाया ।

सब तेज़ गति से कार में बैठ गए । कोई किसी से बात नहीं कर रहा था । संकेत ने देखा कि कार का स्पीडो मीटर 100 के पार जा रहा था । "सुशान्त इतनी तेज़ मत चला । तेज़ चला कर उससे बच नहीं पाएंगे ।" सुशान्त ने हलकी सी नज़र पलटी और एक्सीलरेटर पर पकड़ ढीली कर दी ।

संकेत की नज़र माँ पर गई, वो आँख बंद किये कुछ बुदबुदा रहीं थीं, पापा खिड़की के बाहर अँधेरे में आँखें गड़ाये बैठे थे, कार का स्टीरिओ बंद हो चुका था और सुशान्त बिना हिले डुले रास्ते पर नज़रें जमाये ड्राइविंग में व्यस्त था ।

पर उस माहौल में एक अजीब सा सन्नाटा था ।

घर आते ही पूरी कॉलोनी ने बिग वेलकम किया संकेत का । संकेत को तो ऐसा लग रहा था जैसे आज का चीफ गेस्ट वही है । कॉलोनी के गेट पर एक बड़ा सा बैनर,"वेलकम बैक संकेत ", मेन गेट से कॉलोनी के ग्राउंड तक बिछा हुआ वो हरे रंग का कार्पेट और ग्राउंड के एक कोने में सजा हुआ स्टेज । सब कुछ सपने जैसा महसूस हो रहा था संकेत को ।

यह सब देख कर कुछ देर पहले घटी घटना भी सब भूल चुके थे । एक के बाद एक लड़के- लड़कियाँ स्टेज पर संकेत के स्वागत में नाचना गाना करते रहे और कब रात के 1 बज गए किसी को पता ही नहीं लगा । खाना, गाना और डांस सब कुछ संकेत की पसंद का था उस कोन्सेर्ट में ।

गुप्ता अंकल, शिवानि आंटी, सुश्रुता, अविनाश, पूरब, महेश चाचा , दरोगा जी जैसे और भी बहुत लोग शामिल था उस जलसे में । रात के 2 बजे हल्दी के टीके और आरती की थाल के साथ संकेत का स्वागत किया गया ।

आज सब खुश थे, माँ और पापा के चेहरे से तो मुस्कान हटती ही नहीं थी और सुशान्त हर वक़्त साये की तरह संकेत के आस पास ही रहा ।

" तू रुक रहा है न?" संकेत ने सुशान्त से पूछा ।

"नहीं यार कल सोनम को सुबह इंटरव्यू के लिए लेकर जाना है । चलता हूँ अभी कल शाम को आऊंगा ।" इतना बोलकर सुशान्त ने माँ पापा के पैर छुये और निकल गया । सोनम सुशान्त की इकलौती और लाडली बहन है । बहुत प्यार है दोनों भाई बहन के बीच और हो भी क्यों न, उसके पिता की मृत्यु के बाद सुशान्त ने सोनम के लिए पिता का हर फ़र्ज़ निभाया है ।

सुशान्त के जाने के बाद संकेत अपने कमरे में लेटा पिछले 2 महीनों के बारे में सोच रहा था । किस्मत ही तो थी जो संकेत बच के आ गया था इस बड़ी विपदा से । नींद कोसों दूर थी संकेत की आँखों से । उस रात की लड़की की झलक रह रह कर उसकी आँखों में उभरती, ठहरती और बिगड़ती थी ।

"अगर मान भी लिया होता कि वो लड़की ही थी तो फिर कैसे वो खून से सना सन्देश सड़क पर खुद ही लिख गया........ हो सकता है कि पहले से लिखा रहा हो...... नहीं नहीं.......वो ताज़ा खून था और बोतल से फुट कर ही निकला था । वो घड़ी भी तो इशारा कर रही थी 12 की तरफ....... और रश्मि कौन है कहाँ गई..... । अरे हाँ मैं तो भूल ही गया, पापा को कैसे पता उस लड़की के बारे में ......" संकेत का मन उसके साथ खिलवाड़ सा कर रहा था । आखिरी सवाल उसके मन में बार बार नॉक करने लगा था पर रात थी कि ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रही थी ।

पंखे के घूमते परों को देखते देखते संकेत को नींद आ गई । सपनों से जुझते उलझते कब सुबह हो गई पता ही नहीं चला । ठीक आठ बजे माँ की आवाज़ ने संकेत की आँखें खोलीं । बड़े दिनों बाद आज खुद के बिस्तर में माँ के हाथ की बनी ताज़ी कॉफ़ी पीने का मौका मिला था संकेत को ।

हलकी फुल्की चहलकदमी के बाद संकेत पापा के पास जाकर खड़ा हो गया । "पापा" संकेत ने धीमी आवाज़ में पापा को सम्बोधित किया ,"वो आप बोल रहे थे कि जब घर आऊंगा तब बताएँगे कुछ ।"

"किस बारे में?" पापा ने कंधे उचकाते हुए पूछा ।

"वो जो लड़की बैठी थी...........।" संकेत हिचकिचाहट के साथ बोला ।

"पहले तुम बताओ संकेत कि वो लड़की दिखने में कैसी थी ।" पापा ने तहकीकात शुरू कर दी थी ।

"पापा, सफ़ेद गन्दा सूट, गोरी तो थी पर चेहरा बहुत मुर्झाया हुआ था । गोल सा फेस था पापा बाकी बहुत ज्यादा ध्यान नहीं है । हाइट साढ़े पांच फ़ीट के आसपास की ही रही होगी । बाकी ज्यादा नोटिस करने का मौका मिला ही नहीं ।" संकेत याद करते हुए बताता जा रहा था ।

"आ, तेरी कार के मलबे में एक सुराग मिला है मुझे ।" बोलकर पापा एक तरफ चल दिए और संकेत छोटे बच्चे की तरह उनके पीछे चल पड़ा । पिता के कदम एक ड्रार के सामने जा कर रुके । ड्रार खुली और निकला एक काले रंग का अधजला सा पर्स ।

संकेत ने फिर से दिमाग पर ज़ोर डाला तो याद आया कि लड़की ने अपने बाएं हाथ में यही पर्स कड़े हाथों से पकड़ रखा था । अगर यह पर्स फिज़िकली मौजूद है तो इसका साफ़ मतलब यही है कि वो लड़की थी चुड़ैल नहीं ।

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