Ek Jindagi - Do chahte - 10 books and stories free download online pdf in Hindi

एक जिंदगी - दो चाहतें - 10

एक जिंदगी - दो चाहतें

विनीता राहुरीकर

अध्याय-10

दोनों बहुत सारी बाते करते। अक्सर ही परम अपने स्कूल कॉलेज के दिनों की बातें बताता कि कैसे वह स्कूल और मुहल्ले में मारपीट करने के लिए बदनाम था। उसके घर आए दिन शिकायतें पहुँचती थी। पिताजी तो नहीं मगर माँ उसे खूब जली कटी सुनाती थी।

पढऩे में परम जितना अच्छा था स्पोट्र्स में उससे भी तेज था। उसका बक्सा ढेर सारे सर्टिफिकेट्स और मेडल्स से भरा पड़ा था।

तनु सारी बातें बड़ी दिलचस्पी से सुनती रहती। परम के शुरुआती दिनों के प्रेम प्रसंग भी। हालांकि अंदर से तनु को दिल में एक कचाटे सी उठती थी जब परम कहता था कि वह आज भी उस लड़की को याद करता है जिससे उसे ग्यारहवीं कक्षा में प्यार हो गया था। शायना उसके साथ स्कूल में पढ़ती थी। एक दिन सारे दोस्त जिनमें लड़के लड़कियाँ थे। सब मिलकर लंच टाईम में स्कूल के पिछवाड़े बनी नहर के पास पुलिया पर बैठे थे। सब आपस में मस्ति कर रहे थे। किशोर वय ही तो था। सब अपने प्रेम प्रसंगों के बारे में बताने लगे कि कौन किसे पसंद करता है। सब एक दूसरे को किसी न किसी का नाम लेकर चिढ़ा रहे थे। अचानक पूजा ने परम से पूछ लिया कि वह किसे अपनी गर्लफ्रेन्ड बनाना चाहता है, उसे कौन अच्छी लगती है और बिना सोचे समझे हठात परम के मुँह से पूजा के बगल में बैठी शायना का नाम निकल गया। बस फिर पूरे स्कूल में मशहूर हो गया कि परम और शायना के बीच अफेयर है। दोनों का साथ घूमना, साथ स्कूल आना, जाना पडऩा शुरू हो गया। दो साल सब अच्छा चला। शायना के कारण परम भी मन लगाकर पढऩे लगा था।

पढऩे के साथ ही परम की स्पोट्र्स में बहुत ज्यादा दिलचस्पी थी। वह ताईक्वांडो और कराटे का बहुत अच्छा खिलाड़ी था। सन् 1996 में उसने खंडवा में अपना पहला नेशनल खेला और गोल्ड मेडल जीता फिर दूसरा नेशनल सन् 2000 में मुंबई में खेला और सिल्वर मेडल जीत कर लाया। वह इसी क्षेत्र में आगे बढऩा चाहता था लेकिन घरवालों का उसे कभी कोई प्रोत्साहन नहीं मिला। घर में खासतौर पर माँ उसमें और छोटे भाई में बहुत फर्क करती थी। छोटे की हर ख्वाहीश पूरी की जाती थी। उसके पास होने पर मुहल्ले में मिठाई बंटती थी लेकिन जिस दिन परम नेशनल जीतकर घर पर गोल्ड मेडल लेकर इस उम्मीद से खुशी-खुशी गया कि आज माँ बहुत खुश होंगी उस पर गर्व करेंगी, उस दिन माँ ने कहा- ''हाँ ये तो है ही आवारा। बस मारपीट में ही मन लगता है इसका। खेल भी सारे वही पसंद है इसको जिसमें मारपीट हो।"

परम का गोल्ड मेडल उसकी मुठ्ठी में ही पकड़ा रह गया। और तब से परम सच में मारपीट और दादागिरी में आगे रहने लगा।

स्कूल के बाद वह रोज शायना और उसकी एक सहेली ऊषा को घर छोडऩे जाता था। उस दिन भी वह उन्हें छोड़कर अपने घर वापस आ रहा था कि कुछ लड़कों ने उसे रोका। उनमें से एक लड़का ऊषा को पसंद करता था। उसे लगा परम और ऊषा का आपस में चक्कर है। लड़कों ने इसी गलतफहमी में उसे रोका और मारने लगे। परम पहले तो पिटता रहा फिर एक लड़के को मारकर जैसे तैसे अपने दोस्तों तक भागा। दोस्तों को इक_ा किया और दुबारा जाकर उन लड़कों की अच्छी खासी धुनाई कर दी।

बस तब से पूरे स्कूल में परम के नाम का दबदबा छा गया। यह खबर घर तक भी पहुँची और घर में परम का नाम और खराब हो गया। माँ ने उसे बदमाश, नालायक, नाकारा घोषित कर दिया। लेकिन माँ-बाप फिर भी माँ बाप होते हैं।

परम ने कभी माता पिता के लिये कोई बुरी भावना नहीं रखी मन में। वह पूरे मन से उनकी इज्जत करता जैसी एक आदर्श बेटे को करनी चाहिये। लेकिन फिर भी माँ द्वारा उसके और छोटे भाई के बीच किये जाने वाले भोदभाव से उसके मन को बहुत ठेस पहुँचती। छोटा भाई प्रशांत घर का आदर्श बेटा और परम नाम डूबोने वाला समझा जाता। प्रशांत जो भी वस्तु चाहता तुरंत हाजीर होती और परम अपनी जरूरतों के लिये महीनों इंतजार करता।

ऐसे कड़वे व हताश करने वाले वातावरण में दोस्तों का साथ और शायना का प्यार ही परम का सहारा थे। शायना के साथ स्कूल में पढ़ाई में दिन कैसे निकल जाता पता नहीं पड़ता था तब। लेकिन ये सुख भी ज्यादा दिन नहीं रहा। पता नहीं कैसे शायना की माँ को दोनों के बीच पनपते रिश्ते की भनक पड़ गयी और शायना को घर में बुरी डाँट पड़ी एक तो ईश्क मुहब्बत की उम्र भी नहीं थी दोनों की और दूसरे परम विजातीय था। शायना के तीखे तेवर देखकर उसकी माँ ने अपने पैतृक स्थल लौटने का निर्णय ले लिया और अपना बोरिया बिस्तर बांध लिया। परम टूट गया। किसी तरह से एक दिन शायना परम से ऊषा के घर पर अकेले में मिलने में सफल हो गयी। ऊषा परम और शायना को अपने घर में अकेला छोड़कर चली गयी। शायना अंदर वाले कमरे में थी परम बाहर ड्राइंगरूम में बैठा था। तभी शायना वहाँ आयी। उसे देखकर परम सन्न रह गया। शायना पूरी तरह से निर्वस्त्र थी। उसके शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था। परम आवाक खड़ा रह गया।

''आओ परम हम वो काम कर लें। तुम एक बार मुझसे संबंध बना लो फिर कोई हमें अलग नहीं कर पायेगा। फिर मेरी माँ भी कुछ नहीं कर पायेगी।" शायना व्यग्रता से परम की ओर बढ़ते हुए बोली।

''तुम पागल हो गयी हो शायना। ये सब गलत है। तुमने सोचा भी कैसे कि मैं तुम्हारे साथ ऐसा करूँगा।" परम की आँखों से क्षोभ से आँसू बहने लगे। उसने बहुत कसकर एक तमाचा जड़ दिया शायना के गाल पर और ऊषा के घर से बाहर निकल गया।

शायना अपने माता पिता के साथ बैंगलौर वापस चली गयी। परम के लिये उसका आखरी संदेश यही था कि ''समझ लेना मैं मर चुकी हूँ।"

परम हताश निराश हो गया। उसकी आवारागर्दियाँ, मारपीट बढ़ गयी। जैसे तैसे कॉलेज में एडमिशन मिला। प्रशांत को इंजीनियरिंग पढऩे के लिए पूना भेजा गया लेकिन परम के लिए स्पोट्र्स शूज भी नहीं खरीदे जाते। इन्हीं सब मानसिक परिस्थितियों और उलझनों के बीच जब वह बीकॉम सेकेन्ड ईयर में था तभी समाचार पत्र में एन.डी.ए. का विज्ञापन पढ़कर उसने आवेदन कर लिया और चुन लिया गया। आनन फानन में सबकुछ तय हो गया और परम ट्रेनिंग पर देहरादून चला गया। ट्रेनिंग उसकी सोच से भी कठिन थी। हड्डियाँ तोड़ देने वाली। बदन दर्द से चूर-चूर हो जाता था लेकिन शायना ने जो दर्द दिया था उसके सामने यह दर्द परम को कुछ नहीं लगता था। उसने ठान लिया था कि वह इस दर्द को भुलाकर कुछ बनकर दिखाएगा, कुछ करके दिखाएगा। उसने अपना जीवन फौज को समर्पित कर दिया, अपने देश को समर्पित कर दिया। जिस दिन पासिंग आउट परेड हुई उस दिन सब लड़कों के घरवाले वहाँ उपस्थित थे सिवाए परम के घरवालों के।

परम जीवन में एक और कड़वा घूँट पीकर रह गया। ट्रेनिंग खत्म होने के बाद परम की पहली पोस्टिंग बीकानेर में हुई और दूसरी नागालैण्ड में। हर जगह परम पूरी ईमानदारी और मेहनत से अपनी ड्यूटी निभाता। काम में अपने आप को बुरी तरह झोंक देता कि किसी तरह से पुरानी दर्द भरी यादों से छुटकारा मिल सके। लेकिन फिर भी शायना की आखरी मुलाकात में उसने परम के साथ जो व्यवहार किया था उसे सोचकर परम के दिल में चुभन सी होने लगती।

तनु जब शायना के बारे में सुनती तो उसे शायना की अक्ल पर तरस आता। बेवकूफ लड़की कभी समझ ही नहीं पायी कि परम जैसे व्यक्ति को तन से कभी भी जीता नहीं जा सकता। उसे तो सिर्फ मन से पाया जा सकता है। शायना उसे तन से बांधकर पाना चाहती थी इसीलिये उसने हमेशा के लिए परम को खो दिया। तनु ने अपना मन समर्पित किया, अपना जीवन समर्पित किया, अपना निश्चल प्यार न्यौछावर किया इसीलिए इतने सारे झंझटों, सामाजिक, पारिवारिक अवरोधों के बाद भी सब पर विजय प्राप्म करके परम को पा लिया था हमेशा के लिये।

शायना से रिश्ता टूटने के बाद परम अंदर तक टूट चुका था। किशोरवय के इस नाजुक दौर में, घर से आहत और दु:खी मन शायना के साथ ही अपनी सारी खुशियाँ सजा बैठा था, मान बैठा था कि बस दुनिया में चाहे कोई अपना हो या न हो, अब किसी दूसरे से क्या लेना देना। एक सच्चा, एक अपना, एक बहुत सारा प्यार करने वाला इंसान तो साथ है। उन दिनों परम अपने आपको भावनाओं के सांतवे आसमान पर उड़ता हुआ महसूस करता। उसे लगता दुनिया की जितनी खुशियाँ हैं सब उसके कदमों में है।

आज परम को अपने उन दिनों के बचकानेपन और सोच पर हँसी आती है। बचपन जैसा भोलापन और अबोधता थी और पूरी समझ भी नहीं आयी थी। लेकिन समझ न होते हुए भी अपनाआप दुनिया का सबसे समझदार लगता था। शायना उसके मन में बरसों तक बसी रही थी। वाणी से शादी के बाद तक भी।

वाणी से शादी होना उसके जीवन के साथ होने वाले खिलवाड़ में एक और अहम घटना थी। परम अपने जीवन में वाणी को स्वीकार नहीं कर पाया। बहुत कोशिशें, हर तरह प्रयत्न करके देखा, अपने मन को हर संभव तरीके से समझाकर देखा लेकिन वो वाणी से सामंजस्य नहीं बिठा पाया। बहुत बार होता है कि हम अपने पति या पत्नी के साथ तालमेल नहीं बिठा पाते क्योंकि आज भी भारतीय परिवारों में 'राईट टू चूज' नहीं दिया जाता। घर-परिवार में हमें अपनी बात करने का और इंडिविजूअल राईट्स भी नहीं दिये जाते। आज भी कई समाजों में लड़का-लड़की को निर्णयात्मक अधिकार नहीं मिलते। यह बात सिर्फ लड़कियों पर ही नहीं कई जगह लड़कों के जीवन पर भी लागू होती है। परम इसका एक बहुत बड़ा उदाहरण था। माँ ने बिना उसे पूछे, बिना बताए अचानक ही उसकी शादी तय कर दी थी। वो भी बस तेईस बरस की उम्र में। परम ने ना तो लड़की को देखा था और ना ही उसकी तसवीर ही देखी थी। उसे बस इतना ही खबर थी कि माँ अब उसके लिए लड़कियाँ देखना शुरू करने वाली है। शायद उनके कानों तक भी शायना की बात पहुँच गयी थी। उसके पुराने सामान में एक दिन अचानक ही माँ को उसके सारे मैडल और सर्टिफिकेट्स के नीचे जतन से छुपा कर रखे शायना के ग्रिटिंग्स मिल गये। उन्हें स्कूल के समय से ही भनक तो थी इस प्रसंग की। उस दिन उन्हें प्रत्यक्ष सबूत भी मिल गया। ब्राम्हण का लड़का कहीं क्रिश्चियन लड़की से शादी ना कर ले इस डर से उन्होंने जो लड़की मिली, बिना कुछ सोचे विचारे बात पक्क्ी कर दी। लड़की के भाई और माँ को वचन दे दिया। लड़की को शगुन दे दिया और...

और सब बातें तय होने के बाद परम को खबर दी गयी।

सबसे आखीर में।

परम उतनी कच्ची उम्र में शादी नहीं करना चाहता था। एक तो वैसे भी वह शायना को भूल नहीं पाया था इसलिए वह मानसिक रूप से किसी भी दूसरी लड़की के साथ जुडऩे की स्थिति में नहीं था। दूसरे अगर शादी करनी ही थी तो वह एक बार लड़की को देख तो लेता। ऐसे अचानक ही उसकी डोर किसी अजनबी, अनजान लड़की के साथ बांध दी।

आज के आधूनिक युग में यह बात सबको हास्यास्पद ही लगेगी। लेकिन यह परम के जीवन की सबसे दु:खद सच्चाई थी। जिसे उसका मन कभी भी स्वीकार नहीं कर पाया। जैसे ही चाची से उसे इस बात की खबर मिली उसने तुरंत अपने पिता को फोन लगाया, चाचा-चाची, बुआ, मौसा-मौसियों से बात की। सबसे मिन्नते की कि माँ को समझाओ पर कोई क्या करे। घर के फैसले में शुरू से ही माँ का वर्चस्व चलता था। पिता भी घर की कलह से बचने के लिए माँ के हर फैसले पर मौन की स्वीकृति लगा देते थे। परम की बात पर पिता भी लाचार स्वर में कह कर रह गये ''बेटा क्या करूँ माँ ने वचन दे दिया है।

परम दु:खी स्वर में मन मसोसकर बोला ''पापा मेरा जीवन है ऐसे कैसे आप मेरे जीवन का इतना बड़ा फैसला मुझसे पूछे बिना कर सकते हैं। मेरा क्या मेरे जीवन पर इतना भी अधिकार नहीं है कि मुझे किसके साथ जीवन बिताना है, किसके साथ नहीं फैसला भी कर पाऊँ।"

परम के पिता निरूत्तर रह गये। उधर वाणी के कानों तक शायद ये सुगबुगाहट पहुँच गयी कि लड़का शादी से इंकार कर रहा है। वाणी ने जिद ठान ली कि शादी करूँगी तो इसी लड़के से चाहे कुछ भी हो जाये। इधर परम की माँ तो वचन दे ही बैठी थी। परम पर सब ओर से एक अजीब दबाव बन गया था।

और परम एक बार फिर से हालात और अपनी माँ की ईच्छा के आगे टूट कर रह गया। उसे रह-रह कर वाणी पर भी गुस्सा आता रहता था। अजीब लड़की है, पागलों सी जिद पकड़कर बैठी है। ये भी नहीं समझ पा रही कि जबरदस्ती तय किये गये रिश्ते कभी सफल नहीं हो पाते। बेमन से की गयी हाँ जिंदगी को बोझ बनाकर रख देगी। जब पहली बार बाणी से मिला तो उसने वाणी से प्रार्थना कि वो अपनी बेमानी जिद छोड़ दे वह वाणी से शादी नहीं चाहता लेकिन वाणी ने वहीं रोना-पीटना मचा दिया की वह अब परम को मन से अपना पति मान चुकी अब वह किसी दूसरे से शादी नहीं कर सकती।

परम सिर पीटकर रह गया। हमारे घर ''राईट टू चूज" के ना होने की वजह से समाज में विवाहेतर संबंधों की तादाद बड़ी तेजी से बढ़ती जा रही है। क्योंकि अगर व्यक्ति को उसके विचारों के अनुरूप जीवनसाथी नहीं मिला तो वह उसके साथ तालमेल नहीं बिठा पाता और मानसिक रूप से उसके साथ जुड़ नहीं पाता। तब व्यक्ति मानसिक स्तर पर अपनेआप में कहीं बहुत अकेला रह जाता है, बहुत अकेला। यही अकेलापन और खालीपन जब एक दिन असहय हो जाता है तो मन एक तलाश में रहने लगता है, उस व्यक्ति की तलाश में जो मन और व्यक्ति के स्तर पर उसे समझ सके।

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