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सबरीना - 16

सबरीना

(16)

हिन्दुस्तानी देवताओं का खाना!

फ्लैट में रसोई बाहर के कमरे के साथ जुड़ी हुई थी। भीतर के कमरे में बेडरूम था और बाहर वाले कमरे में जो जगह बची थी वहां पर एक बड़ी मेज रखी थी। शायद इस मेज से बहुत सारे काम लिए जाते होंगे, उस पर पड़े हुए निशान इस बात की गवाही दे रहे थे। धूसर रंग के पर्दे गर्द से भरे हुए थे। घर में जहां भी कोई खाली कोना था, वहां किताबें भरी हुई थी। किताबों के बोझ से मेज का एक हिस्सा दबा हुआ था। घर को गर्म रखने के लिए किचन के बराबर की दीवार में गर्म अंगीठी रखने का इंतजाम किया हुआ था। अंगीठी अब भी सुलग रही थी। प्रोफेसर तारीकबी सुशांत और सबरीना की इंतजार में अंगीठी सेंककर समय काट रहे होंगे। मेज के किनारे पर स्टडी लैंप को फिक्स कर दिया गया था ताकि बार-बार उठाने का चक्कर न रहे। दरवाजों के पीछे कील ठोक कर कपड़े टांगने का काम लिया जा रहा था, ठेठ हिन्दुस्तानी अंदाज में। उन कमजोर कीलों पर तीन-चार कोट टंगे थे। कोटों की उम्र देखकर लग रहा था, जैसे लेनिन ने प्रोफेसर तारीकबी से खुश होकर उन्हें अपने पुराने कोट भेंट कर दिए हों। घर के भीतर घर जैसा कोई अहसास नहीं था। कुल जमा सूरत ये थी कि वो कोई पढ़े-लिखे, लेकिन जिंदगी में बेतरतीबी से जीने वाले लापरवाह आदमी का ठिकाना था। घर देखकर सुशांत को अंदाज हो गया कि प्रोफेसर तारीकबी ने कभी गृहस्थी नहीं बसाई थी। घर के भीतर के हालात को लेकर सबरीना थोड़ी-सी परेशान दिखी। शायद उसे लगा कि प्रोफेसर तारीकबी के घर आने की बजाय उन्हें होटल बुलाना ज्यादा बेहतर होता।

‘ सर, लगता है काफी दिन से साफ-सफाई नहीं हुई। आप मुझे बता देते तो किसी दिन मैं ही तमाम चीजों को तरतीबवार कर देती। सब कुछ कितना गंदा हो गया है।’ सबरीना ने नाखुशी जताते हुए कहा।

‘ अरे नहीं, कहां गंदा है, देखो मेज कितनी साफ है, सब कुछ तो साफ है, तुम्हारा फोन आने के बाद मैंने खुद सफाई की है। देखो, कितन से लेकर बेडरूम तक कितना चमक रहा है।‘ लेकिन, सबरीना संतुष्ट नहीं हुई।

‘ तुम लड़कियों को सफाई की सनक रहती है। जितनी जरूरी है, उतनी मैंने कर ली है। अब कोई पढ़ने-लिखने पर ध्यान दे या साफ-सफाई के चक्कर में जिंदगी को नर्क कर ले। खैर, छोड़ो, देखो, क्या जोरदार खाना बनाया है मैंने, देखो जरा!’ प्रोफेसर तारीकबी ने सबरीना का ध्यान खाने की ओर खींचा। मेज के खाली हिस्से में चार-पांच बड़े प्यालों को ढक कर रखा गया था। बच्चों जैसे उत्साह के साथ प्रोफेसर तारीकबी उनके ढक्कन हटाने लगे। ये देखिए, हिन्दुस्तानी अंदाज के स्टीम्ड राइस और ये हैं फ्राइड पोटेटो विद ग्रेवी और इनके साथ ताजी दही, जो अभी जमकर तैयार हुई है। अभी और देखिए, आपके लिए ब्राउन राइस की शीर और साथ में उज्बेकी रोटी बनाई है। और टमाटर का शोरबा बनाया है काली मिर्च के साथ। वाह, वाह, क्या खूब खाना बनाया है मैंने। और हां, आज कोई नाॅनवेज नहीं, कोई ड्रिंक नहीं, बस हिन्दुस्तानी देवताओं का खाना!’ प्रोफेसर तारीकबी अपनी ही रौ में बहे जा रहे थे और खुद की तारीफ में डूबे हुए और भी बेहतरीन इंसान लग रहे थे। सबरीना ने खाना देखकर राहत भरी सांस ली-‘ कम से कम खाना घर जैसा बदसूरत नहीं है‘, उसने मन में कहा।

प्रोफेसर तारीकबी फिर बोलने लगे, ‘मेरे मेहमानों आप चाहें तो हाथ धो सकते हैं चाहें तो बिना हाथ धोये भी खा सकते हैं और हां, मैं खा चुका हैं, आप दोनों लोगों को ही खाना है। खाना फेंका नहीं जाएगा, खाना कीमती है, बचेगा तो सुबह अलीतेल जाने से पहले खाया जाएगा। आप चाहें तो हाथ से खाएं या फिर छूरी-कांटों का इस्तेमाल करें, मर्जी आपकी है।’

‘ नहीं, तीसरा विकल्प भी है सर! आप चाहें तो अपने गठियल, खुरदुरे, जगह से जगह से फटे हुए कम्युनिस्ट हाथों से भी मेहमान को खाना खिला सकते हैं, क्यों प्रोफसेर ?‘ सबरीना का मजाक सुशांत को पसंद नहीं आया। दोनों खाने पर टूट पड़े और पेट भरने का सुकून उनके चेहरों पर दिखने लगा।

‘ सच बताना प्रोफेसर, आपने कभी मीट नहीं खाया, मतलब मीट से बनी कोई भी चीज....कोई भी !’

‘ नहीं, कभी नहीं! हम लोग सोच भी नहीं सकते, किसी कीमत पर नहीं‘ सुशांत ने जवाब दिया।

‘ ओह, तब तो तुम्हारी जिंदगी बर्बाद ही हो गई समझो’ सबरीना ने मुंह बिचकाकर जवाब दिया। उसके शब्दों से ज्यादा कटाक्ष उसकी भंगिमाओं में था। फिर अचानक उसने कहा-

‘ मैं, जब पाकिस्तान में थी, मैंने सुना था वहां, हिन्दुस्तान के बंटवारे के वक्त बहुत सारे लोगों को धर्म बदलने पर मजबूर किया गया। वहां एक किस्सा बताते थे, एक हिन्दू परिवार को गोश्त खिलवाकर उसका धर्म बदलने की बात तय हुई। पूरे खानदान को पकड़कर लाया गया। जो खानदान का मुखिया था, उसने कहा कि वो धर्म बदल लेगा, गोश्त भी खा लेगा, पर बिराहमन है इसलिए अपने बर्तनों में ही खाएगा। मुसलमानों के बर्तन में नहीं खाएगा। जो गिरोह उसे मजबूर कर रहा था, वो इसके लिए तैयार हो गया। बिराहमन अपने घर गया और उसने वहां जाकर खुदकुशी कर ली। गिरोह के लोग हाथ मलते रह गए।’ सबरीना के इस किस्से में सवाल छिपा था कि क्या सच में लोग अपनी जान से ज्यादा कीमत धर्म, खान-पान के तौर-तरीकों और रिवाजों की समझते हैं ?

‘ हां, ऐसी बातें मैंने भी सुनी हैं। ये सच है हिन्दुस्तान में अब भी बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं जो मीट नहीं खाते और कोई उन्हें जबरन नहीं खिला सकता। पर, एक बात बताओ, तुमने तो हिन्दुस्तानी रीति-रिवाजों पर रिसर्च की है, ये बात तुम क्यों पूछ रही हो! ‘

‘ हां, मैंने रिसर्च की है, पर कोई तुम जैसा नहीं मिला जो अपने खान-पान को लेकर इतना कट्टर हो। पहला कट्टर आदमी देखा।‘

‘ अच्छा, मैं कट्टर दिखता हूं ?’

‘ दिखते ही नहीं हो, आप कट्टर हो। मैं कल से सोच रही थी, कई बार सोचा, फिर टाल दिया। पर, अब लगता है सही सोच रही हूं, आप जो दिखते हैं, असली आदमी कहीं आवरणों के पीछे छिपा हुआ है। मुझे, थोड़ा वक्त लगेगा, शायद एक-दो दिन में बता पाऊं कि वो कौन-सी चीजें हैं जो बताती हैं कि आप आवरणों के पीछे छिपे हैं। आपको लगता है, ये आवरण आपके डर को छिपाते हैं, पर ऐसा होता नहीं है। आप एक खास कंफर्ट-जोन के आदी हैं, उससे निकलते ही कसमसाने लगते हैं! आप सोचिएगा, ऐसा है, क्यों है, मुझे नहीं पता।‘ सुशांत को सबरीना की बातें चुभती हुई लगी। प्रोफेसर तारीकब तब तक सोये नहीं थे, उन्होंने टोका, अब बहस खत्म कीजिए, सुबह निकलना है अलीतेत के लिए।

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