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तस्वीर

तस्वीर

प्रवेश द्वार खुलते ही पन्द्रह बाई बारह का हॉल कम डाइनिंग रूम, उससे जुड़ी आधुनिक रसोई, साथ में लगा हुआ स्नानागार, जिसका एक द्वार दस बाई बारह के एक शयनकक्ष में खुलता था। उसी कक्ष से जुड़ा एक और कक्ष, जिनके दरवाजे बालकनी में खुलते थे। चमचमाती टाइल्स, रोशनी का उचित प्रबंध था। एक अच्छी सोसाइटी में तीसरे माले पर स्थित वह फ्लैट मानस को बेहद पसंद आया था। उसने सराहना भरी दृष्टि से अपनी पत्नी कुहू की ओर देखा।
" क्या ख्याल है कुहू?"
" उहुँ, मुझे नही पसन्द आया ये फ्लैट , मानस ।"
" ये भी नहीं ?"
" न "
" कोई मकान ऐसा भी होगा जो तुम्हे पसन्द आ सके ? " वह कुछ झुँझला गया था।
" आपको कैसा घर चाहिए मैम ?" इस बार प्रोपर्टी डीलर भल्ला ने पूछा।
" कोई ऐसा घर जहाँ आस पास शोर शराबा न हो, बड़ा सा लॉन, हरियाली, हवादार बड़े कमरे। जहाँ जाकर मुझे सुकून मिले । ये डिब्बे जैसे फ्लैट मुझे नही समझ आते।"
" मैडम एक घर है तो, बस्ती से थोड़ा दूर जाकर, पर शायद आप ले न पाएँ । "
“ क्यों, कीमत बहुत ज्यादा है क्या ?”
“ कीमत बेहद कम है, जितनी बड़ी जगह है उस हिसाब से देखा जाए तो समझिए लगभग मुफ्त मे ही है। बरसों से खाली पड़ा है, पर उसे कोई लेना पसंद नही करता। “
“ ऐसी क्या बात है ?”
“ लोग उसके विषय मे अजीबो गरीब बातें करते हैं । मतलब भुतहा टाइप ।“ भल्ला ने हिचकिचाते हुए कहा।
“ रबिश, आज के दौर में भूत प्रेत कहाँ होते हैं। मुझे यकीन नही इन बातों पर। इंसान से ज्यादा डरावनी चीज़ दुनिया मे कुछ नही होती। “ वह हँस पड़ी।
" निर्जन स्थान पर होने के कारण लोग उसे लेना पसंद नही करते। कबसे ऐसे ही पड़ा है। बिकता ही नही । "
" आप मुझे दिखाइये। "
" ठीक है कल आता हूँ, सुबह दस बजे तैयार रहिएगा, शहर से तेरह किलोमीटर दूर है आशियाना, मतलब आपकी मंजिल। "
" ओके "
इसके बाद भल्ला अपनी बाइक स्टार्ट करके अलग दिशा में चला गया और मानस के साथ कुहू अलग दिशा में। कुहू और मानस का दो वर्ष पूर्व ही विवाह हुआ था, सन्तान अभी थी नही। पहले ही निर्णय ले लिया गया था कि सबसे पहले अपना घर बनाना है तभी दो से तीन होने के विषय में सोचना है। कुहू अट्ठाइस वर्षीय अति सुंदर युवती थी, जहाँ से निकल जाती लोग एक बार निगाह उठाकर देख अवश्य लेते थे। स्वभाव से खुशमिजाज, भावुक और और रूमानी स्वभाव की थी। उधर मानस एक अच्छे पद पर कार्यरत आकर्षक युवक था। दोनों के मध्य बहुत प्रेम था। मानस को पत्नी की सुंदरता पर नाज़ था तो कुहू को उसके समर्पित प्रेम पर। गृहस्थी की गाड़ी फर्राटे से भागी जा रही थी कि दोनों ने सर्वप्रथम एक घर लेने का निश्चय किया। कई नवविकसित कॉलोनियों के चक्कर काटे गए पर कुहू को कोई मकान पसन्द ही नही आता था।
अगले दिन भल्ला के साथ वे दोनों शहर से दूर उस शांत स्थान पर बने घर में गए। चारों ओर बियावान, और उसके बीच मे वह मकान। बाहर बड़ा सा लॉन था, जिसमे रात की रानी, गुड़हल, चंपा ,चमेली महक रहे थे। सुन्दर फूल, आम, अमरुद, कढ़ीपत्ता, नीम, गुलमोहर के वृक्ष से सुशोभित वो बगीचा कुहू को बड़ा पसन्द आया। अंदर खुले हवादार कमरों में पुराना सागौन की लकड़ी का फर्नीचर भी था। बड़ी सी श्रृंगार मेज, गोल पलँग, भारी सोफा, दीवार पर लगे कुछ तैल चित्र और मकान के मालिक शेरजंग बहादुर राणा की बड़ी सी तस्वीर। शेरजंग का चेहरा रोबीला, आँखें गहरी और आतंकित करने वाली और मूछें बड़ी-2 थीं। भल्ला ने बताया कि शेरजंग एक जमींदार परिवार से ताल्लुक रखता था। अपनी पत्नी शाहीन से दीवानगी की हद तक प्यार करता था। न जाने कैसे और कब शाहीन को उसके एक दोस्त से प्रेम हो गया और वह उस मित्र के साथ भाग गई। शेरजंग ने पागलों की तरह उसे तलाश किया, जगह जगह की खाक छानी और फिर एक दिन गायब हो गया। बरसों तक उसका कोई पता न लगा। फिर उसके रिश्तेदारों ने घर को बेचने की कोशिश की। एक परिवार आया भी पर कुछ समय बाद ही औने पौने दाम में बेचकर चला गया। तबसे यह घर खाली पड़ा है।
कुहू मुग्ध सी घर को देखती रही और शेरजंग की कहानी सुनती रही। मानस को घर पसन्द नही आया था। एक तो निर्जन स्थान पर था, दूसरे पुराने ढंग का बना हुआ था। फिर उसमें भारी भरकम पुराना फर्नीचर भी पड़ा था। पर कुहू को घर इतना पसन्द आया की वह अड़ गई उसे लेने के लिए। मानस सोच में पड़ गया, घर लेने का उसका दिल नही था, और पत्नी को मायूस भी नही करना चाहता था। अंततः कुहू की ही जीत हुई और जल्दी ही वह घर ले लिया गया । खरीदने के कुछ ही दिनों के अंदर वे उस घर में रहने आ गए।
कुछ दिन तो घर व्यवस्थित करने में लग गए, फिर वहाँ का अभ्यस्त होने के बाद मानस को महसूस हुआ कि घर में उसे एक अजीब सी बेचैनी महसूस होती है। जब तक वह बाहर रहता है खुश रहता है पर घर की परिधि में आते ही एक मानसिक विचलन महसूस होता है उसे। कुहु ,जो की घूमने फिरने की बहुत शौक़ीन थी , हर वक़्त खिलखिलाती रहती थी, वह भी काफी गम्भीर हो गई थी। अब वह सिर्फ आवश्यक बातें ही करती थी। धीरे -2 उसका बाहर निकलना कम होता जा रहा था, अब तो ज़रूरत होने पर भी वह बाहर नही जाना चाहती थी।
घर में वह इतनी मगन हो गई थी कि उसकी सारी चंचलता हवा हो गई थी। जब देखो शेरजंग की तस्वीर को अपलक निहारती रहती थी। कई बार मानस ने उसे टोका भी कि उस तस्वीर को क्या देखती रहती हो पर वह जवाब न देती। एक दिन मानस ने उस तस्वीर को हटाकर वहाँ अपना और कुहू का चित्र लगाने का निश्चय किया। सुनकर कुहू बिलकुल तैयार न हुई, उसका कहना था कि घर के मालिक का चित्र हटाना ठीक नही। मानस ने अपना विचार नही बदला पर जब तस्वीर हटाने चला तो उसे अहसास हुआ की तस्वीर उस दीवार में ही फिक्स है। उसी रात मानस को तेज ज्वर हो आया, दो तीन दिन में तबियत सम्हली तो उसने तस्वीर हटाने का विचार स्थगित कर दिया।
उधर कुहू के व्यवहार में बहुत से परिवर्तन आ रहे थे। वह खामोश और उदास रहने लगी थी,चेहरा अपनी कांति खो चुका था और पीला पड़ता जा रहा था। लगता था न जाने कबसे अस्वस्थ है। मानस की ओर से वह एकदम लापरवाह हो गई थी। सबसे अधिक हैरानी की बात तो यह थी कि अब पति के साथ अंतरंगता की चाह खत्म हो गई थी। बल्कि मानस के स्पर्श को भी अब वह बर्दाश्त नही कर पाती थी। जब भी वह उसके नज़दीक आने का प्रयास करता वह चिढ़ जाती और आग्नेय दृष्टि से उसे घूरने लगती। वह हैरान था, लगता था उसकी पत्नी को किसी ने छीन लिया हो। अब उसे शक होने लगा था कि कहीं कुहू का कोई प्रेम सम्बन्ध तो नही है।
अचानक उसे याद आया की कुहू को डायरी लिखने का शौक है जिसे वह हमेशा पति की पहुँच से दूर रखती थी। मानस ने डायरी पढ़कर कुहू में आये परिवर्तन का कारण जानने का निश्चय किया। जब वह स्नान करने गई मानस ने डायरी ढूँढना शुरू की। थोड़े प्रयास के पश्चात ही एक साड़ी की तहों के बीच रखी डायरी उसे नज़र आ गई। उसकी आँखें चमक उठीं, उसने शीघ्रता से उसपर दृष्टि दौड़ानी शुरू की। शुरुआती पन्नो में तो उनदोनो के विवाह से लेकर दो वर्ष तक के प्रेम और मीठी यादों का उल्लेख था। जिसे पढ़कर मानस का पत्नी के प्रति अनुराग और बढ़ता सा प्रतीत हुआ। फिर वह उस पृष्ठ पर पहुँचा जब वे लोग पहली बार इस घर को देखने आए थे।

26 नवम्बर-
आज हम भल्ला के साथ शहर से दूर एक वीरान स्थान पर बने शेरजंग के घर को देखने गए। घर तो काफ़ी पुराना है पर उसमे सँवारा गया लॉन देखकर दिल खुश हो गया। बड़े हवादार कमरे, एंटीक फर्नीचर, शेरजंग की तस्वीर। मैंने उसकी आँखों मे देखा तो वो मुझे अपनी ओर खींचती सी लगीं। वहाँ से नज़रें हटाने का मन नही कर रहा था। मानस को पुराना होने कारण घर बिलकुल पसन्द नही आया। वह अच्छी कॉलोनी में नया घर लेना चाहते हैं। पर मुझे ऐसा लग रहा है जैसे मेरा यहाँ से कोई नाता है। शेरजंग की कहानी सुनकर भी मुझे बड़ा दुःख हुआ। कैसी होगी उसकी बीवी जो इतने चाहने वाले पति को छोड़कर भाग गई। क्या गुज़री होगी शेरजंग पर, कितनी ज़िल्लत, बदनामी।

28 नवम्बर
घर को लेकर आज हमारे बीच खूब बहस हुई, मानस उसे लेने को बिलकुल तैयार नही हैं, पर मुझे लगने लगा है जैसे उस घर में मेरी आत्मा है। मैं अब कहीं नही रह सकती। वह क्यों नही समझते इस बात को? वैसे तो मुझसे बहुत प्यार का दावा करते हैं।

30 नवम्बर
आखिर आज मैंने मानस को वह घर लेने के लिए राजी कर ही लिया। मैं बहुत खुश हूँ, मानस सचमुच मुझे बहुत चाहते हैं। मेरी ख़ुशी के लिए उन्होंने अपनी अनिच्छा का भी त्याग कर दिया। मुझे नाज़ है अपने पति पर। अब ढेर सारी तैयारी करनी है। एक दो दिन में शिफ्ट करने होगा।

5 दिसम्बर
अब काफी हद तक घर को व्यवस्थित कर लिया है हमने। यहाँ आकर इतनी शांति मिल रही है मुझे की बयान नही कर सकती। लगता है जैसे सदियों से मैं यहाँ रहती आ रही हूँ। खिड़की से आती रात की रानी, चंपा, चमेली की महक मुझे दीवाना करने लगती है। जब भी शेरजंग की तस्वीर देखती हूँ तो लगता है जैसे वो बहुत प्रेम से मुझे देख रहा है। उसकी आँखों में एक जूनून नज़र आता है मुझे। कई बार वो मेरे कानों में सरगोशी करता हुआ सा प्रतीत होता है। मुझे उसकी आवाज़ सुनाई देती है। वो कहता है कि उसे मुझसे बेपनाह मोहब्बत है। मैं उसकी ओर खिंचती चली जा रही हूँ।

: 6 दिसम्बर
मैं बहुत आकर्षण महसूस करने लगी हूँ शेरजंग के प्रति। उसकी तस्वीर से निगाह हटाना बुरा महसूस होता है। मैं खुद पर से नियंत्रण खोती जा रही हूँ। आखिर ये एक पागलपन ही तो है , एक मृत इंसान की तस्वीर से इस क़दर लगाव। अब मेरा किसी से बात करने का मन नही करता, घर से कहीं जाने का मन नही करता। लगता है एक पल को भी मैं इस घर से जुदाई बर्दाश्त नही कर सकती। अब मुझे मानस का साथ नही भाता। उनकी नज़दीकी से घुटन होने लगी है मुझे । जब वो मेरे आस पास होते हैं तो लगता है जैसे कोई पराया मर्द मेरे पास है।

अचानक आहट की आवाज़ सुनकर मानस ने जल्दी से डायरी रख दी। कुहू स्नानागार से निकल आयी थी। उसके मन में गहरी उथल पुथल मच गई थी।
अचानक आहट की आवाज़ सुनकर मानस ने जल्दी से डायरी रख दी। कुहू स्नानागार से निकल आयी थी। उसके मन में गहरी उथल पुथल मच गई थी। ये क्या हो गया है मेरी कुहू को, अच्छी खासी ज़िंदगी गुज़र रही थी, मेरी बुद्धि में पत्थर पड़ गए जो इस घर को देखने आया। ये शेरजंग का साया मेरी ज़िंदगी को तबाह करने पर तुल गया है। एक तस्वीर से प्रेम ! कौन यकीन करेगा इस बात पर। पागल हो गई है कुहू। अब क्या करूँ मैं ? किसी साइकेट्रिस्ट से कन्सल्ट करूँ ?
ऑफिस गया तो उसने मनोचिकित्सक का पता लगाने का प्रयास शुरू कर दिया। अखिर उसे सफलता मिल ही गई। अब समस्या थी कुहू को डॉक्टर के पास ले जाने की। आगे की डायरी पढ़ने को भी मन बेचैन था। बड़ी मुश्किल से उसने समय काटा। देर रात जब पत्नी सो गई तो उसने चुपके से डायरी निकालकर पढ़ना शुरू कर दिया।
9 दिसम्बर
आज शेरजंग के ख्यालों में खोई हुई थी कि अचानक वह मेरे सामने आ गया। उसका रोबीला चेहरा, जादूभरी आँखें मुझे पागल कर रही थीं। मैं होश खोने लगी थी कि तभी उसने अपने हाथों में मुझे थाम लिया। उफ़ कितना ठंडा स्पर्श था वह, मैं कांप उठी। उसने बड़े प्यार से मुझे बैठाया और फिर अपनी कहानी बताने लगा। उसने शाहीन से बहुत प्यार किया था। पर वह बेवफा निकली, उसे छोड़कर उसके ही एक दोस्त के साथ भाग निकली। उसे तलाश करता हुआ शेर घर से चला गया। कई दिन बाद दोनों धोखेबाज उसे पहाड़ों की वादियों में मिले। उसे देखकर वो दोनों घबरा गए और उससे माफ़ी माँगने लगे। उसकी आँखों में खून उतर आया था। उसने अपने दोस्त को गहरी खाई में नीचे फेंक दिया और अपनी बेवफ़ा बीवी को अपने हाथ से फाँसी दे दी। अब दिल की जलन इस कदर बढ़ गई थी कि उसका जीना मुश्किल हो था।
वो ये सब बता ही रहा था कि तभी मानस ऑफिस से आ गए और बात अधूरी रह गई।
28 दिसम्बर
अब मेरा कुछ भी करने को दिल नही चाहता, बस लगता है कि शेरजंग से बात करती रहूँ। मानस के जाते ही वह तस्वीर में से निकलकर मेरे पास आ जाता। हम ढेरों बातें करते हैं। उसके साथ के लम्हे पलक झपकते ही गुज़र जाते हैं। आज उसने बताया की बरसों से प्यार का प्यासा उसका मन उस दिन खिल उठा जब उसने मुझे उस घर में पहली बार आते देखा। हम मकान देखने आए थे और वह मुझपर आसक्त हो उठा। वह चाहता था कि मैं हमेशा उस घर में ही रहूँ। इसलिए उसने मेरे दिमाग पर काबू कर लिया और मैं उस घर में रहने को आतुर हो उठी। अब मुझे समझ आ रहा है कि वह पूरी तरह से मुझे वश में करता जा रहा है। अक्सर मेरा दिमाग सुन्न होने लगता है। मैं मन से न चाहते हुए भी कई काम करने लगती हूँ। वह नही चाहता की मानस मेरे नज़दीक आएं इसलिए उनके करीब आते ही मैं भड़क उठती हूँ। मैं उनसे कहना चाहती हूँ कि मैं उनके साथ बुरा व्यवहार करना नहीं चाहती पर मेरी जुबान जड़ हो जाती है। अब मुझे कई बार दहशत सी होती है। शायद वह मुझे अपनी दुनिया में बुलाना चाहता है। लगता है शायद अब मैं ज्यादा दिन जीवित नही रह पाऊँ। आज बड़ी मुश्किल से अपने दिमाग को उसके असर से दूर करके डायरी लिख रही हूँ। उसने मुझे जैसे हिप्नोटाइज़ कर लिया है। वह मुझे अपने पास बुला रहा है। मैं जाना नही चाहती प …

इसके बाद डायरी में कोई एंट्री न थी। पढ़कर मानस हिल गया, उसकी पत्नी बहुत तकलीफ में है। पर क्या ऐसा सम्भव है ? आज के दौर में आत्मा, भूत प्रेत ... उसे विश्वास करना मुश्किल लग रहा था। जो देख रहा था, महसूस कर रहा था उसे झुठलाया भी तो नही जा सकता। यानि की मामला मनोचिकित्सक के हाथ से बाहर का था। अब क्या करे ? किससे मदद ले। सारी रात वह तूफानों में घिरा रहा। अंत में उसने निर्णय लिया की वह अपनी माँ के गुरु नित्यानन्द जी के पास जाएगा।
सुबह उसने कुहू से कुछ दिन उसके मायके और ससुराल चलने का प्रस्ताव रखा, जिसे उसने न सिर्फ आशा के अनुरूप नामंजूर कर दिया, बल्कि जिद करने पर झगड़ने को भी उतारू हो गई। अंत में नाराज़गी का दिखावा करते हुए वह अकेला ही घर से निकल पड़ा। मन में ईश्वर से उसकी सलामती की प्रार्थना करता रहा।
नित्यानन्द जी का निवास चित्रकूट में था। वहाँ लोगों की बहुत चहल पहल थी। हर कोई किसी न किसी कष्ट से पीड़ित है। जब कोई उपाय नही बचता तो इंसान धर्म की ओर ही रुख करता है। अपनी बारी आने पर मानस ने गुरूजी से अपना सारा कष्ट कह डाला। सुनकर वे चिंता में पड़ गए। कुछ देर उन्होंने ध्यान लगाया फिर भस्म की पुड़िया देकर घर में बिखेर देने को कहा। उन्होंने यह भी वादा किया कि वे शीघ्र ही सजे घर आएंगे और देखेंगे कि क्या किया जा सकता है। उनका आश्वासन पाकर मानस का मन हल्का हो गया। वह प्रफुल्लित होकर घर वापस आ गया। रात में जब कुहू सो गई तो उसने उठकर भस्म से पलँग के चारों ओर तथा शयनकक्ष के दरवाजे पर एक रेखा बना दी । बची हुई भस्म बाकि स्थानों पर बिखेर दी।
सुबह कुहू की आँख खुली तो बहुत दिनों बाद उसने पति की ओर मुस्कुराकर देखा। कुछ बातें करने के बाद वह रसोई में चाय बनाने चली गई। उसने तस्वीर की ओर व्यंग्य से देखा तो उसे लगा की शेरजंग उसे जलती निगाहों से घूर रहा है। काफी समय बाद आज कुहू सामान्य नज़र आ रही थी।उसका मन प्रफुल्लित हो उठा, उसने फैसला किया कि वह जल्दी से जल्दी इस घर को छोड़ देगा। हल्के मन से वह ऑफिस चला गया ।
लौटकर आया तो देखा कुहू मंत्रमुग्ध सी तस्वीर को निहार रही थी। एक पल को वह घबरा गया, उसका नाम लेकर पुकारा तो कुहू ने गुस्से से उसे देखा।
मानस के मन में धमाका सा हुआ, यानि ये साया एक फिर कुहू के दिमाग को काबू में कर चुका है। पर कैसे ? उसने गौर से घर का जायजा लिया तो पाया की घर एकदम साफ सुथरा पड़ा था। अर्थात उसके ऑफिस जाने के पश्चात कुहू ने घर की साफ़ सफाई की और अभिमंत्रित भस्म बुहारकर फेंक दी। इतना होते ही शेरजंग ने फिर से उसके दिमाग पर कब्जा कर लिया । तस्वीर की ओर निगाह पड़ी तो लगा जैसे वह मूछों ही मूछों में मुस्कुरा रहा है। परेशान हाल में वह बेडरूम में आया और हाथ मुँह धोकर रसोई की ओर चल दिया। अब कुहू के चाय बनाकर देने का तो सवाल ही नही उठता, उसे स्वयं ही बनानी पड़ेगी। रसोई में आया तो चीख निकलते निकलते बची। कुहू ने दाहिने हाथ में तेज छुरी पकड़ रखी थी और अपने गले पर रेतने वाली थी। मानस तेजी से चीखता हुआ उसकी ओर दौड़ा । उसने छुरी छीनने की कोशिश की तो कुहू ने उसे जोर का धक्का दिया। वह पूरी शक्ति से दीवार से टकराया। फिर दोबारा वह उसकी ओर दौड़ा और देर तक छीना झपटी चलती रही। अंत में वह चाकू दूर फेंकने में कामयाब हो गया। पर अब उसकी पत्नी के जीवन पर संकट साफ साफ नजर आ रहा था।
परेशान हाल में वह बहुत देर तक चहलकदमी करता रहा। एक एक पल भारी गुज़र रहा था। जब बहुत थक गया तो वापस पलँग पर लेट गया। आधी रात बीत चुकी थी और उसका शरीर बुरी तरह से थक चुका था। न चाहते हुए भी नींद ने उसे अपने आगोश में ले लिया। कुछ देर वह सोता रहा फिर हड़बड़ा कर उठ गया। बगल में लेटी पत्नी की ओर देखा तो वह नही थी। वह शीघ्रता से उठा और दौड़कर रसोई की ओर भागा। वहाँ कोई न था। दूसरे कमरे, बैठक, लॉन, बाथरूम, कहीं भी वह नही दिख रही थी। कहाँ होगी कुहू ? यह सवाल ज़हन में कौंध रहा था। सिर्फ छत ही बची थी जहाँ उसे ढूंढा नही गया था। ख्याल आते ही वह दो दो सीढियाँ फलांगता हुआ ऊपर भागा। लेकिन वहाँ भी कोई न था , यह देखकर उसने चैन की सांस ली। वापस सीढ़ियां उतरकर वह नीचे आया। फिर से सब जगह ढूँढना शुरू किया। अचानक उसकी निगाह शेरजंग की तस्वीर की ओर गई। उसे देखकर उसका चेहरा सफ़ेद पड़ गया। आँखें फ़टी की फ़टी रह गईं। वहाँ शेरजंग के साथ उसकी कुहू भी बगल में मुस्कुराती हुई खड़ी थी। वह उन्ही वस्त्रों में नज़र आ रही थी जिसमे रात में थी। मानस को अच्छी तरह याद था कि उन वस्त्रों में उसकी कोई तस्वीर नही थी। उसके मस्तक पर पसीने के बिन्दु दिखाई देने लगे।
“ कुहू “ उसने चित्र पर हाथ फेरा। तभी लगा शेरजंग की निगाह से शोले उठ रहे हैं। उसने घबराकर हाथ पीछे कर लिया। मस्तक का पसीना पोंछा । कुछ देर वह अवाक सा देखता रहा। फिर धीरे धीरे भय का स्थान क्रोध लेने लगा। इस दुष्ट ने मेरी पत्नी को मुझसे छीन लिया। पता नही अब वह मुझे वापस मिलेगी या नही। यह ख्याल ही उसे बेचैन कर गया। तस्वीर में वह दोनों जैसे उसका उपहास उड़ाते हुए मुस्कुरा रहे थे। अब मानस को ज़रा भी भय नही लग रहा था। फर उसने दृष्टि फेरी तो दीवार पर एक जगह लगी ढाल तलवार पर अटक गई। कुछ पल वह देखता रहा, फिर न जाने किस शक्ति के वशीभूत होकर उसने तलवार निकाल ली तस्वीर पर वार किया। वह दीवानावार तस्वीर पर वार करता जा रहा था। तसवीर में से लहू बहने लगा और फिर एक धमाके के साथ वह कुछ पल को अचेत हो गया। जब चैतन्य हुआ तो देखा उसके बगल में कुहू भी अचेतावस्था में पड़ी है। तस्वीर लहूलुहान थी और उसमें से शेरजंग का चित्र गायब था। मानस कभी तस्वीर को तो कभी कुहू को देख रहा था। फिर उसने पत्नी का नाम लेकर पुकारा। कोई असर नही हुआ। वह शीघ्रता से एक मग में पानी लेकर आया, उसके छींटे कुहू पर डाले। वह तब भी नही जागी। घबराकर मानस ने उसे झिंझोड़ डाला।
झटके से उसकी आँख खुली तो देखा वह अपने पुराने शयनकक्ष में था और बगल में कुहू सोई हुई थी।
‘ यह क्या, मैं स्वप्न देख रहा था ?’ उसने स्वयं से प्रश्न किया। पर इतना वास्तविक स्वप्न ? बहुत देर तक हैरान बैठा रहा। फिर कुहू जाग पड़ी, मुस्करा कर उसने गुडमार्निंग बोला। मानस ने उसे जवाब तो दिया पर खामोश रहा। कुहू ने कई बार पूछा कि क्या बात है, वह परेशान क्यों है, पर उसने टाल दिया। अंत मे जब उससे रहा न गया तो वह उठा और तैयार होकर शेरजंग की हवेली की ओर चल दिया। तेज कदमो से वह उस स्थान पर गया जहां वह तस्वीर लगी थी। सभी सामान यथावत था पर शेरजंग की आकृति का हिस्सा बिल्कुल काला सा पड़ गया था। इस वक़्त कोई नही जान सकता था कि वहाँ किसी इंसान का चित्र था। मानस आश्चर्य में खड़ा देखता रहा फिर वापस अपने घर की ओर चल दिया।
“ अचानक कहाँ चले गए थे ? कुछ कहा भी नही “ कुहू ने शिकायत की तो वह उसे देखता रहा फिर दृढ़ स्वर में बोला
“ कुहू, मैंने फैसला कर लिया है कि हम शेरजंग वाली हवेली में नही जाएंगे “
“ ठीक है, तुम्हे नही पसन्द तो नही जाएंगे। “कुहू का शांत स्वर उभरा। उसकी प्रतिक्रिया से वह हैरान रह गया। कहाँ तो वह उस घर को लेने के पीछे पड़ी हुई थी और कहाँ एकदम से मान गई। यह सब जो मैंने देखा वह ख्वाब था या हकीकत ?


समाप्त