Sabreena - 19 books and stories free download online pdf in Hindi

सबरीना - 19

सबरीना

(19)

जारीना ने सुशंात को खींचा...

सबरीना और सुशांत की चुप्पी के बीच में डाॅ. साकिब मिर्जाएव के खर्राटे बार-बार बाधा बन रहे थे। डाॅ. मिर्जाएव मुंह खोलकर सो हुए थे और उनके खर्राटे इंजन की आवाज को टक्कर देते दिख रहे थे। उनकी गर्दन एक ओर झुकी हुई थी और हरेक आती-जाती सांस के साथ उनका मुंह और चैड़ा होता दिखता था। सोते वक्त की बेख्याली में उन्होंने अपनी टांगे इतनी फैला दी थी कि उनके बराबर में बैठे हुए प्रोफेसर तारीकबी के लिए बैठे रहने की जगह ही नहीं बची। वे सीट छोड़कर खड़े हो गए, उन्हें खड़ा देखकर एक साथ कई स्टूडेंट्स ने उन्हें अपनी सीट देने की बात कही, पर वे नहीं बैठे।

‘ अब, क्या बैठना, ज्यादा दूर तो हैं नहीं, सामने ही तो चिमगन पहाड़ दिख रहा है।’ प्रोफेसर तारीकबी की बात पर सुशांत ने चैकन्ना होकर देखा। अब बर्फ से लदे पहाड़ ज्यादा दूर नहीं थे। रियान-शाॅन चोटी दिखाई दे रही थी। प्रोफेसर तारीकबी ने सुशांत का ध्यान खींचा, देखिए इन पहाड़ों को, आपको कश्मीर याद आ जाएगा। सुशांत मुस्कुराया, जैसे प्रोफेसर तारीकबी की बात से सहमत हो, पर वो कहना चाहता था कि हिन्दुस्तान में कश्मीर के पहाड़ों से भी खूबसूरत कई इलाके हैं, कई घाटियां हैं। ये कश्मीर जैसा नहीं, सुमेरू पर्वत जैसा लग रहा है।

गाड़ी पहाड़ की तलहटी में बने एक चैकोर मैदान में रूक गई। स्टूडेंटस तेजी से उतरे, सभी लोग नीचे आ गए, लेकिन डाॅ. मिर्जाएव अभी खर्राटे भर रहे थे। जारीना को मजाक सूझा, ‘सर को सोने दिया जाए, जब जागेंगे तो खुद ही हमें ढूंढ लेंगे, हम लोग चलते हैं।‘ डाॅ. मिर्जाएव को यहीं छोड़ देने पर सब लोग सहमत हो रहे थे, लेकिन तभी एक औरत ने उन्हें जगा दिया जो दूध से बने नमकीन लड्डू बेच रही थी। उस औरत ने डाॅ. मिर्जाएव के मोटे-ताजे शरीर को देखकर अनुमान लगाया कि वे ही लड्डू खरीदने की सामथ्र्य रखते हैं। सुशांत ने दूध से बने नमकीन लड्डुओं के बारे में पहली बार सुना था। भारत में तो नमक और दूध को एक साथ मिलाकर कुछ भी बनाने से मना किया जाता है। आयुर्वेद कहता है कि ऐसा भोजन करने से कोढ़ हो जाता है। प्रोफेसर तारीकबी ने कुछ लड्डू लिए और एक सुशांत की ओर बढ़ा दिया। उनका स्वाद ऐसा था जैसा कि लंबे समय से दूध दे रही भैंस के दूध का स्वाद थोड़ा नमकीन हो जाता है। प्रोफेसर तारीकबी ने बताया कि ये भेड़ के दूध से बने हैं और इनमें अलग से नमक नहीं मिलाया गया है।

बातचीत करते हुए पूरा समूह उस ठिकाने पर पहुंच गया जहां केबल कार द्वारा रियान-शाॅन चोटी पर जाना था। केबल कार के रास्ते और चोटी के बीच की गहराई को देखकर सुशांत को सिहरन हुई, बल्कि उसे डर लगा। केबल कार काफी पुरानी लग रही थी। वहां कार जैसा कुछ नहीं था, लोहे के मोटे तार के साथ दो लोगों के बैठने लायक सीटों को जोड़ा गया था। ये सीटें वैसी थी, जैसी भारत में गांव-देहात में लगने वाले झूलों में होती हैं। लकड़ी के एक फट्टे के चारों ओर लोहे का फ्रेम कस दिया गया था, आगे का हिस्सा खुला हुआ था और उसमें बैठने के बाद लोहे के एक सरिये को दोनों ओर के कुंडों में फंसा लेना होता था ताकि उसमें बैठे लोग नीचे गिरकर बर्फ में न फंस जाएं। केबल कार एक बार चल पड़ती थी तो पूरा दिन चलती रहती थी, उसके रूकने या ब्रेक लगाने की कोई सुविधा नहीं थी। वो थिर गति से बढ़ती जाती थी। केबल कार के स्टेशन (प्लेटफार्म) पर लगभग दौड़कर उसमें बैठना होता था। यदि चूक गए तो फिर वो आगे बढ़ जाती थी।

स्टूडेंटस काफी माहिर निकले और वे बेहद तेजी के साथ सीटों बैठते गए, स्टूडेंट्स के बैठते वक्त कोई भी सीट खाली नहीं गई। दानिश ने सुशंात की ओर देखा और उसका हौसला बढ़ाया, ‘आप मेरे साथ चलिये सर, एक झटके में बैठ जाएंगे।‘ सुशांत ने कोशिश की, लेकिन जब तक वो बैठ पाता, दानिश को लेकर केबल कार आगे बढ़ गई। उसके ठीक पीछे प्रोफेसर तारीकबी भी केबल कार में सवार हो गए। सुशांत को उस वक्त शर्मिंदगी जैसा अहसास हुआ जब डाॅ. मिर्जाएव भी किसी मंझे हुए कलाकार की तरह केबल कार पर जा बैठे। हालांकि, उनके साथ कोई दूसरा नहीं बैठा क्योंकि उनके बैठने के बाद नाममात्र की जगह बची थी।

अब सबरीना और जारीना बैठने की तैयारी में थी और सुशांत अभी तक उलझन में फंसा हुआ था। ऊपर से स्टेशन की ओर आ रही केबल कार को देखकर जारीना तेजी से आगे बढ़ी और उसने सुशांत को इस तरह पकड़कर आगे की ओर खींचा कि जब तक वो कुछ समझ पाता तब तक उसने अपने आप को केबल कार में बैठा पाया। उतनी ही तेजी से पीछे वाली केबल कार में सबरीना भी सवार हो गई। जारीना ने केबल कार के सरिये को दोनों ओर के कुंडों में फिट कर दिया। केबल कार मोटे तार के साथ हिचकोले खाती हुई आगे बढ़ने लगी। सुशंात को ऊंचाई से डर लगता है, लेकिन यहां तो ऊंचाई के साथ गहराई भी थी। आगे बढ़ती हुई केबल कार ऊंचाई की ओर जा रही थी और नीचे मौजूद खाई और गहरी हो रही थी। कुछ देर उसने आंखें खोलकर रखी, लेकिन फिर उसका धैर्य जवाब दे गया। सुशांत ने आंखें बंद कर ली, लेकिन डर ने वहां भी पीछा नहीं छोड़ा। उसकी हालत ऐसे पक्षी की तरह हो गई थी जिसके पंख बांधकर उसे अनंत ऊंचाई पर लाकर छोड़ दिया हो। एक-दो बार सुशांत ने आंखें खोलकर देखा तो उसे लगा कि कोई उसके पैरों को नीचे की ओर खींच रहा है और वो बड़ी मुश्किल से संतुलन बना पा रहा है।

जारीना खुशी से चिल्ला रही थी, अपने आगे-पीछे चल रही केबल कारों पर कमेंट कर रही थी, सबरीना भी उसकी बातों का जवाब दे रही थी। पर, सुशांत दम साधे खामोश बैठा था। जल्द से जल्द चोटी पर पहुंचने की कामना के साथ वो बीच-बीच में आंखें खोलता और बंद करता रहा, लेकिन केबल कार बहुत धीती चलती दिखाई दी।

सबरीना पीछे से चिल्लाई, ‘ जारीना, प्रोफेसर का ध्यान रखना, कहीं नीचे न गिर जाएं, उन्हें ठीक से पकड़ लो।’

सुशांत को बुरा लगा, वो उसका मजाक बना रही थी। जारीना ने बोली, ‘ सर, आपको डर लग रहा है ? आप मुझे पकड़कर बैठ सकते हैं!‘

‘ नहीं, मुझे कोई डर नहीं लग रहा है, मैं क्यों डरूंगा ?‘ सुशांत ने काफी हिम्मत के साथ जवाब दिया।

‘ फिर, आप चुप क्यों बैठे हैं, आंखें क्यों बंद कर रहे हैं!’ जारीना ने किसी वकील की तरह क्राॅस-क्वेश्चन किया। जवाब में सुशांत ने आंखे खोल दी और गहराई देखकर उसे चक्कर आ गया। अनजाने में ही उसने जारीना को कसकर पकड़ लिया। जारीना ने खुद को छुड़ाने की कोई कोशिश नहीं की, पीछे से सबरीना बोल पड़ी, ‘देखा, मैं कहती हूं ना प्रोफेसर, आप डरपोक हो, हो ना!‘ सुशंात को बुरा लगा, उसने डर का सामना करना तय किया, लेकिन तब तक केबल कार चोटी के प्लेटफार्म पर पहुंच चुकी थी। इस बार सुशांत ने जारीना की मदद लिए बिना ही केबल कार से उतरने का फैसला किया और जैसे ही उसने नीचे पैर रखा वो चिकनी बर्फ पर दूर तक फिसलता हुआ चला गया।

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