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फोन

फोन:( पर्यावरण और हम)
नैनीताल से एक फोन आया। मैं पासपोर्ट सेवा केन्द्र, अहमदाबाद में था।अतः फोन मूक मोड में था और मुझे पता नहीं चला। रास्ते में देखा तो फोन नम्बर अनजान लग रहा था लेकिन नैनीताल लिखा था नम्बर के नीचे। मेरा मन पीछे जाने लगा। सोचा एकबार पूछूं कि किसका नम्बर है। मेरे ध्यान में वह चिट्ठी आयी जो मैंने कुछ समय पहले झील के बारे में लिखी थी। उसको पढ़ा -
प्रिय,
मैं तुम्हारी याद में सूखे जा रही हूँ।कहते हैं कभी सती माँ की आँखें यहाँ गिरी थीं।नैना देवी का मंदिर इसका साक्षी है। कभी मैं भरी पूरी रहती थी।तुम नाव में कभी अकेले कभी अपने साथियों के साथ नौकायन करते थे।नाव में बैठकर जब तुम मेरे जल को छूते थे तो मैं आनन्द में सिहर उठती थी।मछलियां मेरे सुख और आनन्द की सहभागी होती थीं।बत्तखों का झुंड सबको आकर्षित करता था। वक्त फिल्म का गाना" दिन हैं बहार के...।" तुम्हें अब भी रोमांचित करता होगा। प्रिय, अब मैं तुम्हारे कार्य कलापों से दुखी हूँ।तुमने गर्जों,गुफाओं में बड़े-बड़े होटल और कंक्रीट की सड़कें बना दी हैं।मेरे जल भरण क्षेत्रों को नष्ट कर दिया है।गंदगी से आसपास के क्षेत्रों को मलिन कर दिया है। यही गंदगी बह कर मुझमें समा जाती है।प्रिय, यह सब दुखद है।मेरे मरने का समय नहीं हुआ है लेकिन तुम मुझे आत्महत्या को विवश कर रहे हो। मैं मर जाऊँगी तो तुम्हारी भावनाएं, प्यार अपने आप समाप्त हो जाएंगे और तुम संकट में आ जाओगे।जो प्यार मेरे कारण विविध रंगी होता है, वह विलुप्त हो जायेगा।प्रिय, मेरे बारे में सोचो।अभी मैं पहले की तरह जीवंत हो सकती हूँ, यदि भीड़ , गंदगी और अनियंत्रित निर्माण को समाप्त कर दो।तुम मेरे सूखे किनारों से भयभीत नहीं हो क्या? मैंने बहुत सुन्दर कहानियां अतीत में कही हैं और बहुत सी शेष हैं।मैं जीना चाहती हूँ , यदि तुम साथ दो।
तुम्हारी
प्यारी नैनी झील।
पता नहीं किस किस को भेजा था तब, फेसबुक से।इसी चिट्ठी से फेसबुक दोस्ती बहुत लोगों से हुयी।
फोन को जेब में रख नैनीताल के बारे में सोचने लगा। खबरें हैं कि बारिश खूब हो रही है, वहाँ।लेकिन ताल अभी भरा नहीं है।किसी ने फेसबुक पर लिखा है कि अलका होटल के पास छेद हो गया है झील में ,जो पानी को कैंची की ओर ले जा रहा है। लेकिन ये अटकलें हैं। आगे यह भी लिखा है कि अमेरिका और कनाडा में भी ऐसा हुआ है। अलका होटल के सामने एक फिल्म की शूटिंग कभी देखे थे। तब उत्साह अद्भुत होता था। पुराणों से भी नैनीताल को जोड़ा गया है। कहते हैं यह शक्ति पीठ है।जब नैनीताल में था तो फोन नम्बर चार अंकों के ही होते थे। एक बार किसी का फोन नम्बर मैंने बताया था ग्यारह सौ पच्चीस, तो मेरा दोस्त मुस्कराया था। बोला फोन नम्बर बोले जाते हैं-एक एक दो पांच करके। आज यदि मुझे बोलना होगा तो ,कहूंगा- नौ अरब बयालीस करोड़ छयासठ लाख चौदह हजार दो सौ तीन। शायद सुनने वाला घबरा जाय।
नैनीताल ने मेरी तरफ देखा और मैंने नैनीताल की ओर।किसी की एक रचना आज पढ़ी जो कहती है, "तब सेल्फी नहीं थी, फोटो नहीं खींच पाते थे, पर जिन पगडंडियों पर चले, जो साथी रहे वे दिल में हैं, फोटो से भी गहरे।" यादों के पन्ने फड़फड़ाते हैं, नैनीताल की ठंडी हवा में।
घर पहुंच कर फोन उस नम्बर पर करता हूँ। उधर से आवाज आती है," आपकी बहुत याद आ रही है। मिलने को मन कर रहा है।आपका रूम पार्टनर का काफी पहले देहांत हो गया था।आपकी याद अमिट बनी है। एक बार कार्यक्रम बनाओ।आपका फोन नम्बर लेने के लिए बहुत मेहनत की। गूगल, फेसबुक सब खगाला।" मैंने कहा नैनीताल के बारे में काफी चिन्ताजनक बातें लिखी जा रही हैं। उन्होंने अपने तर्क रखे।जैसे बढ़ती आबादी, सीमेंट, कंक्रीट का निर्माण कार्य।वे आगे की बातों को विस्तार देना का सिलसिला शुरू करते, मैंने बात काट दी। कहा, पहाड़ चढ़ने में असुविधा होती है। हालांकि, आज पासपोर्ट सेवा केन्द्र में कोई बोला आप वरिष्ठ नागरिक तो देखने में नहीं लगते हैं। सुनकर मैंने आगे लिखा-
"ओह, पहाड़ को पढ़ न सका
न आकाश को पढ़ पाया
न बादलों को ,न समुद्र को
न उन पगडंडियों को
जहाँ अनगिनत बार चला,
न नदियों के परोपकार को,
न पृथ्वी के स्वभाव को।
न प्यार को जो जाने अनजाने
मिलता रहा,
न पर्यावरण को
जो चर्चा में था,
न लिखा हुआ
जो बड़े बड़े अक्षरों में था।
न देशों को, न प्रदेशों को
जो बिखरे हुए थे।
मैं एकाएक अनुभव करता रहा
हर फूल को,हर आशा को,
हर साथ को,
हर दृश्य को, हर क्षण को
जो मुझे इस पार से, उस पार करती हैं।"

जुलाई 2017
** महेश रौतेला