Panchmukhi chouk ki haweli ka bhoot books and stories free download online pdf in Hindi

पंचमुखी चौक की हवेली का भूत


पंचमुखी चौक की हवेली का भूत★

किशोरावस्था में मैं बेहद जुनूनी और जिद्दी था। हम चार दोस्तों में मैं घोर नास्तिक, देवा-विज्ञान और आस्था के संगम का बेजोड़ समर्थक,
सागर-जिसका तर्क और विश्लेषण भारी, बंदा उसकी तरफ मतलब कि थाली का बैंगन और
मनोज-भयंकर धर्मभीरु और भूत-प्रेतों में असीम विश्वास करने वाला।
हमारी टीम वह सब करने के लिए तैयार रहती थी जिससे हमारे सामने यह साबित हो जाये कि भूत-प्रेत का वजूद होता है।
एक बार मनोज एक लकड़ी का चैट बोर्ड लेकर आया जो भूतों और आत्माओं से संवाद के लिए प्लान चैट के नाम से मशहूर है ।
मनोज उसे इस्तेमाल करने की विधि और नियम भी अपने किसी दोस्त से सीखकर आया था। अब हमें जरूरत थी तो केवल कटोरी, मोमबत्ती,एक पुराने सिक्के और अंधेरी सुनसान जगह की और यह सब चीजें एक साथ केवल इस नाचीज के पास थी ।
उस क्रिया के कठोर नियम सुनने के बाद देवा ने मुझे सम्मिलित करने से साफ मना कर दिया, कारण था मेरे पुराने कारनामे और मेरा इन चीज़ों में घोर अविश्वास। शायद उसे लग रहा था कि मैं कुछ ऐसा कांड कर सकता हूँ जिससे बाकियों की जान सांसत में फंस सकती है। देवा के इस तर्क से मनोज पूरी तरह सहमत था लेकिन मैं अड़ा रहा कि मुझे साथ लेंगे तो ही मैं जरूरत की सारी चीजें मुहैया करवाऊंगा।
इस समस्या का समाधान आखिर में सागर ने सुझाया। उसने मुझे शामिल करने के तीन बेजोड़ तर्क रखे-पहला हमें इस क्रिया के लिए चार लोग चाहिए और अनिल के अलावा शायद ही कोई और यह हिम्मत दिखाए। दूसरा घर और चीजें अनिल की इस्तेमाल कर रहें है तो मुझे नही लगता यह कोई कांड करके रिस्क लेना चाहेगा। तीसरा अनिल का पिछला रिकॉर्ड बेहद बहादुरी भरा है, जिन भुतहा जगहों पर हम तीनों मिलकर नही जा पाए वहां यह बंदा महज दस-बीस रुपये की शर्त पर अकेला अपने झंडे गाड़ आया है, तो अगर खुदा न खास्ता कोई मुसीबत आती भी है तो यह भागेगा तो बिल्कुल नहीं। देवा को यह बात बिल्कुल ठीक लगी और मनोज बेमन मान गया।
सारी तैयारियाँ हो गई, अमावस की रात लगभग बारह बजे का समय निर्धारित किया गया और मेरे घर की छत पर बना स्टोर रूम जगह के तौर पर चुना गया ।
मनोज ने नियम स्पष्ट कर दिए और किसी भी सूरत में नियमों की अहवेलना नही होनी चाहिए यह ताकीद खासतौर पर मुझे दे दी गई। कत्थई रोजवुड से बना चैट बोर्ड, किसी शतरंज के बोर्ड की तरह था।
एक भाग में ए टू ज़ेड अल्फाबेट लिखे थे दूसरे भाग में वन टू ज़ीरो तक अंक और नीचे एक गोले में यस और दूसरे गोले में नो। इस बोर्ड के चारों तरफ सुनहरी धातु से बेहद हौलनाक चित्र बने हुए थे। रूहों से गुफ़्तुगू करने के इस वाहिद जरिये का इस्तेमाल भी बेहद दिलचस्प था।
पूरी तरह से अंधेरी जगह में इस बोर्ड को बीचोंबीच रखकर चार शख्स इस बोर्ड के चारों कोनों की तरफ बैठ जाते हैं। बोर्ड के बीच में एक मोमबत्ती जलाई जाती है।
कोई भी पुराना सिक्का बोर्ड पर रखकर उसके ऊपर छोटी-सी कटोरी उल्टी रखी जाती है।
उसके बाद उस आत्मा का आवाहन किया जाता है जिससे हम कुछ पूछना चाहते हैं।
इसमें भी कुछ नियम है जो कि बकौल मनोज पालन करना बेहद जरूरी था अन्यथा वह आत्मा फिर कभी वापिस नही जा पाती।
कुछ काबिले-गौर नियम यह थे कि किसी भी ऐसे व्यक्ति की आत्मा का आवाहन नही किया जाना चाहिए जिसकी अस्वाभाविक मृत्यु हुई हो ,यहां पर अस्वाभाविक मृत्यु का मतलब निसन्देह रूप से आत्महत्या,हत्या या दुर्घटना से है।
आमंत्रित रूह से शुरुआत में केवल ऐसे सवाल पूछे जाएं जिसका जवाब यस या नो में हो, उसके बाद ऐसे सवाल जिनका जवाब मात्र एक शब्द से पूरा हो जाता हो।
उसके बाद के चरण में जाने की नौबत आने से पहले हमें आमंत्रित रूह को वापस भेजना था, क्योंकि बकौल मनोज अगला चरण बेहद ख़ौफ़नाक था जिसमें रूह हम चारों में से किसी एक को अपना माध्यम चुनती और उसके जरिये हमसे बात करती और मनोज नही चाहता था कि रूह हम लोगों में से किसी के शरीर पर काबिज हो ।
सारे साजो-सामान के साथ सब मेरे घर की छत पर पहुँच गए। स्टोर रूम में जाने से पहले हमने जो भी गंडे-ताबीज, धागे या किसी देवता की मूरत वाले लॉकेट पहने हुए थे वह सब निकाल कर बाहर रख दिए।
कमरे में बेकार सामान के अलावा कुछ नही था। हम पालथी मारकर बोर्ड के चारों तरफ बैठ गए। एक काबिले-गौर बात यह थी कि उस कमरे में बिजली-आपूर्ति करने वाले एकमात्र बल्ब का होल्डर टूटा हुआ था और ऊपर से बेहद ठंडी अमावस की रात इसलिए हमने मोमबत्ती उस रूम में जाने से पहले ही जला दी थी ।
मेरे घर की पच्चीस सौ वर्गफीट की अंधियारी छत पर वह एकमात्र दस×बारह वर्गफीट का रूम बना हुआ था, मतलब यह कि गड़बड़ होने की स्थिति में हमें फौरी तौर पर कोई मदद हासिल नही थी।
वह मोमबत्ती हमने बोर्ड के बीचोंबीच टिका दी।
"सागर ...तुम दरवाजा बंद करो" ठंड से सिकुड़ते देवा ने आदेश दिया ।
इस क्रिया के सारे सूत्र देवा ने अपने हाथ में ले लिए थे ।
दरवाजा बंद होते ही अचानक से पूरे रूम में गर्माहट और नीरवता छा गई ।
मनोज ने सिक्के को बोर्ड पर लिखे यस और नो के बीच में रखकर उसके ऊपर कटोरी उलटी करके रख दी । हम चारों ने पूर्वनियोजित तरीके से एक-दूसरे के हाथ पकड़कर बोर्ड के चारों तरफ मानो एक घेरा बना लिया ।
देवा ने उस वक्त स्वाभाविक मौत मरे हुए मेरे पड़ोसी अशोकलाल की आत्मा का आवाहन किया। हम सब की आंखे बंद थी, बकौल मनोज- जब आत्मा आती है तो कोई न कोई सिग्नल देती है, तो अगर हम चारों में से किसी को भी कुछ अजीब लगे तो उसे चुपचाप अपने हाथ छुड़ाकर कटोरी उठानी थी और अपनी तर्जनी उस सिक्के पर रखनी थी फिर बाकीयों को भी उसका अनुसरण करना था ।
अचानक सागर ने अपने हाथों को छुड़ाकर कटोरी उठा ली और तर्जनी सिक्के पर रख दी। हम सभी ने भी अपनी-अपनी तर्जनी सिक्के पर रख दी।
बकौल मनोज- अपनी उंगली सिक्के पर बिल्कुल हल्के से रखनी थी और किसी तरह का दबाव या सिक्के को सरकाने की कोशिश बिल्कुल नही करनी थी क्योंकि जो भी होने वाला था वह सब वहां उपस्थित आत्मा के किये से होनेवाला था ।
बकौल देवा -बिना शरीर के आत्मा की शक्ति बेहद क्षीण होती है इसलिए वह अकेले यह सिक्का नही हिला सकती इसके लिए उसे हमारी उंगलियों के पोरों पर स्थित स्थिर ऊर्जा की जरूरत होती है ।
बकौल सागर- वह इन दोनों से सहमत था।
बकौल मैं- पहली ही बार में ही एक ताकतवर मतलब की अस्वाभाविक मौत मरे इंसान की आत्मा को आमंत्रित करो और सिक्के को खुद-ब-खुद हिलते हुए देखो। ये बात दीगर है कि मेरे तीनों दोस्त इसे न केवल बकवास बल्कि एक खतरनाक मंसूबा करार दे चुके थे ।
चारों उंगलियों के सिक्के तक पहुँचते ही सभी ने अपनी आंखें बंद कर ली और कमरे में देवा की आवाज गूंजी।
"अशोकलाल अगर तुम यहाँ आ चुके हो तो हमें इशारा दो...इस सिक्के को यस तक पहुँचाओ"
दो-तीन बार यह घोषणा करने के बाद भी सिक्का टस से मस न हुआ।
आखिरकार दो-तीन और स्वाभाविक मौत मरे लोगों के नामों का आवाहन किया गया पर नतीजा सिफर रहा।
सागर की नजरें मुझसे मिली और डरते हुए उसने देवा से कहा
"अब अनिल का तरीका भी आजमा के देख लेते हैं"
"नही ..बिल्कुल नही मुझे पता था यह अनिल पक्का कुछ कांड करेगा अगर सागर की बात मानी तो मैं तुम्हारे साथ नही हूँ" मनोज की आवाज में डर साफ तौर से परिलक्षित हो रहा था ।
देवा ने मेरी तरफ देखा और संयत स्वर में पूछा ।
"क्या गारंटी है कि कुछ गड़बड़ नही होगी?"
"देख भाई ...वैसे भी अपन रिस्की वाले चरण तक पहुँचने से पहले ही आत्मा को विदा कर देने वाले है, तो फिर आत्मा ताकतवर आये या मरगिली हिलाना तो उसे सिक्का ही है"
मैंने पूरे आत्मविश्वास से अपना तर्क रखा।
देवा ने मेरी आँखों मे देखा और बोला
"तो ठीक है ..यही बचा है तो यही सही, वैसे भी इतनी कोशिश करने के बाद भी नाकामयाबी ही मिली है, तो यह कसर क्यों बाकी रखें ?"
"पर..पर " मनोज तीनों को एक साथ देख दुविधा में फंस गया ।
"क्या पर पर ? ...अगर बीच में तेरी फटे तो भाग जाना बाहर जहां हमने अपने गंडे-तावीज रखे है" सागर पूरे जोश में था ।
"अरे! मैं तो केवल यह पूछ रहा था कि, पर हम आमंत्रित करेंगे किसे ?" मनोज ने भी आखिरकार सहमति दे दी ।
"दिलीप... दिलीप अंकल को आमंत्रित करेंगे" मैंने कुछ देर सोचने के बाद सुझाया ।
"वही जो मनोज के अपार्टमेंट में रहता था और पिछले साल टैरेस से कूद कर आत्महत्या कर ली थी, अपार्टमेंट वालों के मुताबिक उसकी वाइफ ने कत्ल करवाया उसका ?"
देवा ने संशय दूर करने के लिए पूछा ।
"न...नही द..दिलीप अंकल नही , कोई और चुन लो" मनोज के चहेरे पर पसीने की बूंद छलक आई ।
"क्यों बे ! क्यों नही ? अंकल ने तेरे को दीप्ति की वजह से फटके दिए थे इसलिए या इस वजह से तूने ही दिलीप नाम का कांटा निकाल दिया इसलिए ?" हंसते हुए सागर ने माहौल कुछ हल्का करने का प्रयास किया ।
"फिर तो आने दो अंकल को इसके सारे हिसाब यहीं चुकता होंगे" मेरी हंसी भी रुक नही रही थी ।
देवा ने बेहद संजीदगी से चुप रहने का इशारा किया और फिर वही क्रिया दिलीप अंकल की आत्मा का आवाहन करने के लिए दोहराने को कहा ।
सच कहूँ तो अबकी बार सब अंदर से डरे हुए थे क्योंकि सब को पता था कि ऐसी आत्माएं बेहद ताकतवर होती है और अगर उस आत्मा को निजी तौर पर जानने पहचानने वाला भी इस क्रिया में शामिल हो तो उसके आने के चांस बढ़ जाते हैं ।
हम सभी के हाथ एक-दूसरे से जुड़े हुए थे मानो हमने अपने हाथों से स्टार ऑफ डेविड बना रखा था। आंखे बंद थी पर कानों में देवा की आवाज गूंज रही थी। आवाहन पूरा होते ही, मुझे दूर कहीं कुते के रोने की आवाज सुनाई दी।
सुना था कि कुत्तों को रूहें दिखाई देती है और अमावस की रात में कुतों की इंद्रियाँ खासकर घ्राण शक्ति बेहद संवेदनशील हो जाती हैं ।
तो क्या मैं इसे आत्मा द्वारा भेजा इशारा समझ लूँ ?
मैंने कटोरी उठाकर बाजू में रख दी और तर्जनी सिक्के पर रख दी ।
कुछ ही सेकंडों में बाकी तीनों ने भी उसी सिक्के पर अपनी उंगली रख दी ।
"दिलीप अंकल अगर आप यहाँ आ चुके हो और हमें सुन रहे हो, तो इस सिक्के को यस तक पहुँचाने में हमारी मदद करें"
पहली बार स्याह ठंडी रात में देवा की आवाज डरावनी लग रही थी ।
सिक्का हिला ....
और यस पर आकर रुक गया। हमने अपनी आंखें खोली और पहले सिक्के को फिर उसके बाद एक-दूसरे को देखा ।
हमारी सिक्के पर रखी उंगलियाँ कांप रही थी ।
सिक्का फिर हिला और 'आई' पर जाकर रुक गया देवा ने मनोज को इशारा किया ।
मनोज ने एक हाथ से अपने साथ लायी पेन से कोरे कागज पर 'आई' लिखा ।
फिर हमारी उंगलिया लरजी और सिक्का चल पड़ा, पहले 'ए' पर फिर 'एम' पर फिर कुछ पल रुकने के बाद 'एच' से होते हुए 'वाई' और 'आर' फिर 'ई' पर आकर रुक गया ।
मनोज का एक हाथ सिक्के पर और दूसरा हाथ अल्फाबेट लिखने में व्यस्त था ।
"आई एम हायर" मनोज ने जोर से पढ़ा ।
"हायर ? नही हियर होगा शायद" सागर धीरे से बोला ।
"दिलीप अंकल हमने केवल आपको अपनी मदद के लिए बुलाया है, अगर आप हमें सुन रहे हो तो हमें बताएं कि आपकी मृत्यु कैसे हुई ? सुसाइड या मर्डर? सिक्के के द्वारा हमें बताएं" देवा बेहद डरे हुए पर उत्सुक स्वर में बोला ।
हम सब की धड़कनें बेहद तेज हो गई थी।
कमरे का वातावरण काफी भारी लग रहा था ।
अचानक मैंने अपनी उंगली सिक्के से ऊपर उठा ली ।
"म..र.र्डर हुआ है.. मेरा मर्डर!
और इस कु..कुत्ते ने किया है" मेरी आँखों की पुतलियाँ फैल चुकी थी और मेरा स्वर काफी भारी हो चुका था ।
मेरी यह आवाज सुनकर सबकी आंखे खुल गई। सब मनोज और उसकी ओर उठी मेरी उंगली को देख रहे थे। मनोज को जैसे काठ मार गया था ।
"मरेगा तू अब ...मरे.. गा" मेरी भर्राई आवाज निकली और मनोज की आंखों से आंसू फूट पड़े ।
"न ..न..नही सॉरी अ.. अंकल आपको मैंने नही मारा" मनोज फूट-फूट कर रोने लगा ।
"हा..हा... हा" मैं जोर से हँसा मेरे दोनो हाथ मेरे पेट पर थे ।
मेरी वहशी हँसी सुन मनोज भागने की कोशिश में गिर पड़ा ।
सागर ने चैट बोर्ड मोमबत्ती के साथ उठाकर मेरी ओर दे मारा पर निशाना चूक गया ।
देवा खड़ा होकर मुझपर लातों से प्रहार करते हुये चिल्लाने लगा "हरामखोर ..हिंदी मीडियम के कीड़े .. तेरी इंग्लिश देखकर ही मैं समझ गया था कि तू किस फिराक में है।"
मैं हँसते-हँसते जमीन पर लोटकर दोहरा हो गया, तब तक मनोज और सागर भी सारा माजरा समझ चुके थे और उनके बुक्कों की बौछार भी मेरी पीठ और कंधों पर पड़ने लगी थी ।
दूसरे दिन जब मनोज की नामुश्की की दास्तान सारे दोस्तों को पता चल गई तो मनोज ने सब दोस्तों के सामने मेरी ओर चैलेंज उछाला ।
"इतना घमंड है न तुझे खुद पर तो पंचमुखी चौक की हवेली में अकेला जाकर दिखा कोक और वड़ापाव की पार्टी मेरी तरफ से हम चारों दोस्तों को "
"और नही कर पाया तो ?" सागर ने सवाल किया।
"तो जिंदगीभर यह मुझसे रोज माफी मांगेगा अपने किये की "
देवा मंद-मंद मुस्कुराकर मेरी ओर देख रहा था
और मैं क्या बोलता? इस बार सही में फटी पड़ी थी।
देवा मुझे देखकर मुस्कुरा रहा था कोक की वजह से ! उस वक्त कोक का केवल तीन सौ तीस मिली का टिन आता था, वह भी तीस रुपये का जिसको पीना अमीरों की शान थी ।
देवा खुद तो कोई कोल्डड्रिंक नही पीता था पर उसे पता था, कि कोक के टिन के बदले अगर मनोज मुझे उस भूत को जिंदा या मुर्दा पकड़कर लाने के लिए भी बोलता तो मैं वह भी कर लेता ।
पंचमुखी चौक की हवेली और उसका भूत कितना पुराना था, यह तो मुझे नही पता पर मेरे दादा ने कभी मुझे बताया था कि यह हवेली और उसके भूत की कहानी, बँटवारे के समय हमारे परिवार के करमपुर (सिंध) से जलगांव (भारत) आने से भी ज्यादा पुरानी है ।
कहते हैं इस भूत के आतंक ने ही लोगों को उस चौक पर पंचमुखी हनुमान का मंदिर बनाने को मजबूर किया। कालांतर में उस चौक का नाम पंचमुखी चौक के नाम से मशहूर हुआ ।
मंदिर बनने के बाद शायद उस भूत के वर्किंग आवर्स और कार्यक्षेत्र सीमित हो गया था ।
मगर फिर भी रात को कोई भी उस हवेली के अंदर जाने की जुर्रत नही करता था ।

चैलेंज तो मैंने सबके सामने स्वीकार कर ही लिया था पर मनोज ने दो शर्तें उसमें और जोड़ दी। पहली शर्त कि आनेवाली अमावस की रात को बारह बजे के बाद ही जाना है और दूसरी शर्त मुझे हवेली का विशाल बरामदा पार करते हुए अंधियारी हवेली का दरवाजा खोलकर उसके अंदर प्रवेश करना होगा और सीढियां चढ़कर हवेली की छतपर जाकर 'फतह' का सिग्नल देना होगा ।
इसमें मेरी विनती विशेष पर श्री श्री एक हजार आठ मनोज जी महाराज ने केवल एक बित्ते भर की पेंसिल टॉर्च ले जाने की इजाजत दे दी और छत पर पहुँचकर मुझे इसी टॉर्च से चौक पर खड़े अपने दोस्तों को सिग्नल देना था ।
यह कहना तो गलत होगा कि मुझे डर नहीं लग रहा था या मैं कोई बहुत बड़ा घोस्ट हंटर हूँ जिसके पास भूतों से निपटने को अपने औजार होते हैं।
मेरे पास कोई गंडा-तावीज या गले में देवता का लॉकेट तक नही था लेकिन मेरे पास एक बहुत बड़ी चीज थी 'साहस' और भूतनाथ का आशीर्वाद।
मेरे दादा कहते थे 'या ईश्वर का वजूद हो सकता है या तो भूतों का'
मैं उनसे पूछता था 'कैसे?'
मेरे दादा जवाब देते 'सबसे बड़े ईश्वर शिव हैं, जिन्हें भूतनाथ भी कहा जाता है, वे भूतों को अपने वश में रखते है अगर उनका वजूद है तो भूत यहाँ नही हो सकते और अगर भूत इस दुनिया में है तो इसका मतलब फिर भूतनाथ नही हो सकते'
मेरे पहले के कारनामों के सामने यह चैलेंज इतिहास बनाने का मौका था और कई बार इतिहास साहस करनेवालों के खून से भी लिखा जाता है ।
आखिरकार आ ही गई वह रात जिसको मैं कई दिनों से टालता हुआ जी रहा था। मुझे उस हवेली के गेट तक छोड़ने के लिए तोे दोस्त आये पर आगे का रास्ता मुझे ही तय करना था।
मैंने दो-तीन बार टॉर्च जला-बुझाकर तसदीक कर ली फिर गेट खोला सामने कोई बीस फुट लंबा बरामदा था और उसके आगे हवेली के अंदर जाने के लिए अधखुला बेहद पुराना दरवाजा था। जिस पर लटकते मकड़ी के साबुत जाले इस बात की गवाही दे रहे थे कि इस हवेली के अंदर सालों से कोई नही गया। स्ट्रीट लाइट की रौशनी में झाड़ियों से बचते हुए मैंने बरामदा पार कर लिया। टॉर्च जलाकर उस अधखुले दरवाजे के अंदर प्रकाश डाला तो मुझे कहीं भी ऊपर जाने की सीढ़ियाँ दिखाई नही दी।
अब तो मुझे लगने लगा कि भूत-पिशाच मुझे मारें न मारें सांप-बिच्छू जरूर इस हवेली में मेरी जान ले लेंगे ।
अंदर घुसने से पहले मैंने अपनी जीन्स के पायचों को अपने लंबे जूतों में खोंस लिया।
मेरे सींकिया शरीर को दरवाजा पूरा खोलने की जरूरत नही पड़ी।
अब मैं उस हवेली के विशाल हॉल के अंदर था, जहाँ चूहों और अन्य जानवरों ने गंद मचा रखी थी। मैं दौड़ता और जाले हटाता और कई बार दीवारों से निकलती पेड़ों की जड़ों को हटाता आगे बढ़ा ।
हॉल के अलावा मैने शायद दो और कमरे पार किये होंगे, तब नमूदार हुई लकड़ी की दीमक लगी हुई सीढियाँ।
मैने टॉर्च की रोशनी से मुआयना किया तो समझ आया कि अधिकतर सीढियाँ पूरी तरह सड़ चुकी थी केवल उसका आधार जो कि एक बहुत बड़ी बल्ली थी उससे कुछ उम्मीद बंधी।
अचानक हवेली के बाहर कुछ कुत्ते जोरों से रोने लगे और चारों तरफ से बंद हवेली में जाने कैसे मुझे एक सर्द हवा का झोंका महसूस हुआ।
मैने बिना सोचे-समझे टूटी हुई दो सीढ़ियाँ छोड़कर तीसरी सीढ़ी पर छलांग लगाई, आधार वाली बल्ली जोरों से चरमराई। मेरा संतुलन बिगड़ा और खुद को संभालने के चक्कर में टॉर्च नीचे गिर गई।
कुछ चमगादड़ सीढ़ियों के ऊपरी हिस्से से निकले और कुत्ते फिर रोने लगे मैंने नीचे उतरकर टॉर्च लेने का ख्याल त्याग दिया और ऐसे ही नीचे गिरी टॉर्च की रोशनी में तेजी से आगे बढ़ने लगा। सीढियाँ मेरे अंदाजे से ज्यादा दूर तक फैली निकली।
अब जहाँ मैं पहुँचा वहाँ घुप्प अंधेरा था मैंने टटोलकर अनुमान लगाया कि सीढियाँ वहाँ से मुड़ रही थी।
जल्दी-जल्दी चढ़ते हुए मैं कई बार गिरा जिससे किसी लिसलिसे द्रव से मेरे कपड़े भर चुके थे।
अचानक मुझे रोशनी का चौरस दिखाई दिया, जिसमे से शायद बाहर की स्ट्रीट लाइट की रोशनी आ रही थी।
बस कुछ ही पलों में मैं छत पर था। जल्द ही मैने चौक की ओर वाला कोना ढूँढ लिया और दोनो हाथ उठाकर चिल्लाने लगा। चौक पर मौजूद सारे दोस्तों ने खुशी की किलकारी मारी।
सागर ने दो उंगलियाँ मुँह में डालकर विजयी सीटी बजाई लेकिन जल्द ही मेरी खुशी काफ़ूर हो गई जब मेरे मन मे वापस उस नरक से गुजरकर जाने का ख्याल आया, वह भी बिना टॉर्च के ।
मैंने जल्दी-जल्दी पूरी छत का मुआयना किया। केवल एक कोने पर मुझे खिड़की के ऊपर बनी परछत्ती दिखाई दी। मैने बिना कुछ सोचे समझे आठ-नौ फुट नीचे उस परछत्ती पर छलांग लगा दी।
अब मुझे वहाँ से जमीन लगभग चौदह-पंद्रह फुट नीचे दिखाई दे रही थी। अबकी बार मैने गेट पर खड़े देवा को आवाज दी।
देवा और सागर तुरंत उस परछत्ती के नीचे पहुँच गए। देवा ने जल्द ही उस परछत्ती के लगभग छह फुट नीचे दीवार में एक बड़ा सुराख़ ढूंढ लिया जोकि मुझे परछत्ती पर होने के कारण दिखाई नही दे रहा था। मैं परछत्ती पर अपने हाथ टिकाकर लटक गया और जूतों से सुराख़ टटोलने लगा देवा और सागर के मार्गदर्शन से मुझे जल्द ही कामयाबी मिल गई।
एक हाथ से खिड़की की ग्रिल पकड़कर पैर सुराख़ में टिकाए और "जय बजरंग बली" का उद्घोष करते हुए जमीन की ओर छलांग लगा दी।
यह फतह तो हासिल हो गई पर मेरे जीवन की सबसे बड़ी रोमांचक घटना होना अभी बाकी था।दूसरे दिन सुबह दोस्तों के बीच मेरे ही चर्चे थे लेकिन मैं नदारद था। कई दोस्तों ने मेरे ऊपर भूत के काबिज होने का अंदेशा जताया। इस बात से शायद मनोज किसी हद तक इत्तेफाक रखता था, इस वजह से तीनों दोस्तों ने ग्रुप स्टडी के बहाने रात मेरे घर गुजारने का फैसला किया ।
वैसे भी मनोज से पार्टी भी लेनी थी जो कि मेरे निजी कमरे में संभव थी। थकावट की वजह से मुझे कमजोरी महसूस हो रही थी इसलिए मैं उस दिन घर से बाहर नही निकला सका।
रात को तीनों दोस्त पार्टी का सारा सामान स्कूल बैग में भरकर मेरे घर पहुँच गए।
देवा ने अपने हिस्से की कोक मुझे दे दी और मनोज ने मुझे एक की जगह तीन वड़ापाव खिलाये। पढ़ाई तो कुछ की नही,ग्यारह बजे ही सब कंबल ओढ़कर सो गए।
अचानक मेरी नींद खुली। कमरे की लाइट बंद थी। घुप्प अंधेरे में मैने मेरे बाजू में सोये देवा को टटोलने के लिए हाथ उठाया, तो ऐसा लगा जैसे हाथ किसी ने मजबूत रस्सी से बांध दिए हो। कुछ ही पल में समझ आ गया कि गर्दन के नीचे का भाग इस तरह आचरण कर रहा था जैसे पूरे धड़ को किसी ममी की तरह पट्टियों से बांध दिया गया हो।
अचानक से पूरे कमरे में कोई तेज बदबू फैल गई। मेरा दम घुटने लगा, मैं सांस लेने के लिए छटपटा रहा था। चिल्लाने की कोशिश की पर आवाज निकल नही रही थी। मुझे लगा यह उसी पंचमुखी चौराहे वाली हवेली के भूत का कारनामा है। मैने काफी जद्दोजहद के बाद आवाज दी पूरे जोर से।
"ब..चाओ ...भूत"
और ...और अचानक कमरा रोशनी से नहा उठा, मेरे तीनों दोस्त मुझे आंखे फाड़े देख रहे थे। "आगे से तू यह फालतू एडवेंचर वाले काम बंद कर दे, सुबह-सुबह हमारी हालत खराब कर दी" देवा ने संयत स्वर में समझाया ।
"किया क्या मैंने ?"
मेरे पल्ले कुछ नही पड़ा ।
"मेरे बाप...तू कंबल मुँह तक ओढ़कर सोया था, यहाँ तक कि कंबल के सिरे भी अपने शरीर के नीचे दबाये हुये थे और कंबल के अंदर ऐसे छटपटा रहा था, जैसे तेरे अंदर भूत घुस गया हो...उसके बाद तू ऐसे चिल्लाया कि हम सब डर गए" मनोज की आंखे ये बताते हुए आतंकित नजर आ रही थी।
अब मुझे सब समझ आ गया था। "पर...पर वह तेज बदबू काहे की थी " मुझे अब भी कुछ शंका थी ।
"अबे .. रात को तीन-तीन वड़ापाव और दो गैस के सिलेंडर पीकर सोएगा...तो कंबल के अंदर तो भोपाल गैस कांड होयेगाइच न "सागर ने वैज्ञानिक कारण स्पष्ट किया और चारों की हंसी छूट गई।
(समाप्त)

उपसंहार- मेरे इस कारनामे के कुछ महीनों बाद ही वह हवेली एक बड़े बिल्डर ने खरीद ली।

मौलिक रचना

#Anil_Makariya
Jalgaon (Maharashtra)