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वाया मीडिया

वाया मीडिया

(उपन्यास )

गीताश्री

लिखते रहे जुनूँ की हिकायात-ए-ख़ूँ-चकाँ

हर-चंद इस में हाथ हमारे क़लम हुए

( मिर्ज़ा ग़ालिब )

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आप हम सब अख़बार रेडियो टीवी के माध्यम से समाज की सब ख़बरों से रूबरू होते हैं | ख़बरों को हम सब तक पहुंचाने के लिए एक पूरा वर्ग कार्य करता हैं और वो हैं पत्रकार | इस वर्ग की अपनी समस्याएं हैं संघर्ष हैं अपनी उपलब्धियां और पीडाएं हैं | एक समय था जब मीडिया में महिला पत्रकारों की संख्यां न्यूनतम थी | नब्बे के दशक में महिलाओ ने भी इस क्षेत्र में दाखिल होना शुरू किया जहाँ अभी तक सिर्फ पुरुषों का वर्चस्व था | माता पिता की मनाही के बावजूद , आसपास से ऐसे क्षेत्र में ना जाने की सलाह को नजरंदाज कर , कुछ अलग कर गुजरने का जूनून लिए कुछ महिलायें इस क्षेत्र में कुछ करने का ज़ज्बा लिए जब शामिल होने आई तो उनको बहुत सी समस्याओं का सामना करना पड़ा| ऐसी ही कुछ जुनूनी महिलाओं की कहानी लेकर गीता श्री ने उपन्यास की एक श्रृंखला लिखी हैं जिसका पहला भाग वायामीडिया इस वर्ष विश्व पुस्तक मेले में वाणी प्रकाशन के माध्यम से हम सबके सामने आया |

७ जनवरी को वाणी प्रकाशन के स्टाल पर जब वाया मीडिया का विमोचन और चर्चा में शामिल होने का अवसर मिला तो एक नई गीताश्री के व्यक्तित्व से रूबरू होने का मौका मिला | कुछ वरिष्ठ कुछ समवयस्क कुछ कनिष्ठ उनकी साथी पत्रकार जब जब गीताश्री के बारें में बोल रही थी तो कभी शर्माती हुये, कभी नम आँखें तो कहीं गहरे तक मासूमियत से वक्ता को तकती गीताश्री एक अलग ही व्यक्तित्व की स्वामिनी लग रही थी | आम दिनों की ग्लेमरस गीताश्री उस दिन सिंपल सा लाल सूट पहने बहुत ही आम लेकिन ख़ास लग रही थी | उस लाल रंग की आभा से उनका पूरा व्यक्तित्व रोशन हो रहा था | स्कूटी वाली गीता वाले संस्मरण पर मुझे ऐसा लगा जैसे किसी किशोरी सी मुस्कुराती गीता सामने हैं |

किताब ने पत्रकार बिरादरी के बारे में पढने को उत्सुक कर दिया | यह पत्रकारों का भी अपना एक अलग गैंग होता हैं अपनी परेशानियां खुशियाँ और तनाव होते हैं | लेकिन हर व्यवसाय की तरह यहाँ भी संवेदनाये होती हैं | एक आम धारणा हैं कि यह बोल्ड लोगों की बिंदास दुनिया हैं पर पत्रकारिता सिर्फ शुष्क लोगो की दुनिया नही हैं | परिस्तिथियाँ और काम का तनाव और बेतरतीब कार्य काल उनको थोड़ा बिंदास और रुड बना देता हैं | अनुपमा जैसी महिलायें हर फील्ड में हैं जिनको अपनी मेहनत का सही प्रतिदान नहीं मिलता हैं | दूसरी तरफ रंजना जैसी महिलायें भी बहुत हैं जो छोटे छोटे फायदों को पाने की लालसा में स्वयँ ही पुरुषों के हाथ का खिलौना बनना पसंद करती हैं | वहीँ शालिनी जैसी एक न एक दोस्त भी जरुर मिल ही जाती हैं जिसके कंधे पर सर रख कर आंसू भी बहाए जा सकते हैं और सुकून भी पाया जा सकता हैं \ अपने अपने स्पेस में जीती यह पत्रकार महिलायें जब पुरुष वर्चस्व वाले इस फील्ड में आई होंगी तो कैसे कैसे आग के दरिया से गुजरी होंगी यह सिर्फ अंदाज़ा लगाया जा सकता हैं | कुछ तो आग इनके भीतर रही होगी जों इन्होने एक आम सामान्य सी जिन्दगी न जीकर कुछ अलग बनने की चाह रखी और उसको पाने के लिए एड़ी छोटी का जोर लगाया | हर तरह के माहौल में जीना सीखा | गज़ब की जिजीविषा रही होगी जो अनुराधा ने कब्रिस्तान जाना भी स्वीकार लिया | यह अनुराधा का कब्रिस्तान जाने वाला एपिसोड तो सच में प्रेरित करता हैं कि ज्यादा से ज्यादा क्या होगा ,एक तजरबा ही होगा न | यह अंश तो मुझे अब ताउम्र याद रहेगा | मुरली का किरदार क्या गज़ब हैं | श्रीकांत, निरंजन ,राजीव इस पुस्तक के माध्यम से क्या गज़ब किरदारों से रूबरू होने का मौल्का मिला हैं |

राजनीति और पत्रकारिता दोनों का साथ सब्जी रोटी सा हैं | अलग अलग खाने की कोशिश भी करों तो स्वाद नहीं आता हैं | पोलिटिकल स्टोरी कैसे बन जाती या बनायीं जाती हैं जानकर अच्छा लगा |

एक बात हैं इस उपन्यास को पढने के बाद मेरे तो अनेक मिथ टूटे, कुछ बातों पर अचानक हआव्व कर उठी और उसी समय गीताश्री को कॉल करके जोर से ठहाके भी लगाए | यह पत्रकारों की अनूठी शब्दावली पर हंसी भी आई हैरानी भी हुयी लेकिन मजा भी आया | साथ ही यह भी समझ आया कि वादे तो वादे हैं वादों का क्या हैं | सो कभी व्यवसायिक जिन्दगी में किसी पर गहन विश्वास नहीं करना चाहिए |

अजब गज़ब है यह दुनिया जो अहसास कराती हैं कि साहित्य वालों क्या एक कहानी के रिजेक्ट होने पर हाय तौब्बा मचा देते हो | यहाँ तो मुख्य संपादक गहनविश्लेषण और खोज कर मेहनत से लिखी पूरी कवर स्टोरी कचरे में फेंक देते हैं फिर उनके ही उस आईडिया पर संपादक के प्रिय लोग( बिना मेहनत किये ) लिख कर वाह वाही बटोर ले जाते हैं |

सहज लेखन , भाषा का प्रवाह और गज़ब की किस्सागोई इस उपन्यास की विशेषता हैं | कथानक को आगे ले जाने में अगर काल्पनिकता का सहारा लिया भी गया हैं तो वो कहीं से भी कृत्रिम नहीं लगता हैं | संघर्ष और जिजीविषा एक पत्रकार की जिन्दगी का मुख्य भाग हैं | आसान नहीं होता पत्रकार होना लेकिन एक बार पत्रकार हो गये तो बहुत आसान होता हैं बहुत कुछ होना |

यह कोई सूचनात्मक उपन्यास नही कि पत्रकारिता एक वृतचित्र सी दिखाई दें यहाँ हम सब अनुपमा के माध्यम से इस दुनिया में घूम कर आते हैं और इस क्षेत्र के नए नए आयामों से परिचित हो जाते हैं |

उपन्यास लिखते हुए अपने पात्रों के मुख से गीताश्री ने अनेक ऐसे सूक्त वाक्य बुलवा दिए हैं जिनको बार बार व्यवहारिक रूप में कोट किया जा सकता हैं |

यह ९० के दशक की पत्रकारिता हैं जब हम महिला चेहरों को प्रिंट और डिजिटल मीडिया पर छाते हुए देखते थे | उनके संघर्ष और तनावों को पढना मानो उनके दिल की सुन लेना लग रहा था | उनको अपने कन्धा देकर दो पल सुकून देने की चाह उत्पन्न हो गयी |

बधाई गीताश्री को इस अनूठे उपन्यास के लिए | अगले भाग की प्रतीक्षा अभी से शुरू हो चुकी हैं |यह कोई समीक्षा नहीं हैं बस एक सामान्य सी पाठकीय प्रतिक्रिया हैं .जिसको रूबरू न कहकर चन्द लफ़्ज़ों में लिख दिया गया हैं |

इस उपन्यास को अमेज़न से खरीदा जा सकता हैं |

1. पुस्तक का नाम- वाया मीडिया

2. पुस्तक के लेखक- गीताश्री

3. प्रकाशक का नाम- वाणी प्रकाशन

4. आई एस बी एन नंबर-९७८-९३-८९५६३-४९-८

5. पुस्तक की कीमत- २२५ रूपये

नीलिमा शर्मा neavy41@gmail.com

८५१०८०१३६५