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चाभी

"पड़ोसी की रात मौत हो गयी है, एक बार उनकी लकड़ी में चले जाना!" सुबह हुई ही नही थी कि विनय के कानों पर उसकी माँ सुहासिनी की आवाज पड़ी।

विनय की उम्र लगभग अठारह वर्ष की हो गयी थी। इससे पहले आजतक कभी वो श्मशान नही गया था। चूंकि आज उसके पिताजी किसी कारणवश बाहर गए हुए थे, तो आज उसे ही उनकी अंतिम यात्रा में शरीक होना था। विनय उठा और नित्य कर्म करने के बाद नाश्ता किया और सफेद कुर्ते पायजामा पहन पड़ोस में जाने के लिए निकल पड़ा। हालांकि पड़ोसी से उसकी अच्छी बनती नही है, पर समय ही ऐसा था की उस वक़्त जाना जरूरी था। माँ के काफी समझाने के बाद विनय तैयार हुआ था।

पड़ोस में काफी भीड़ लगी हुई थी। सभी जैसे आंखों में काला चश्मा लगा, अपनी आँखों को छिपाने की कोशिश कर रहे थे। विनय को अजीब लग रहा था। कुछ औरतों का रोने धोने का क्रम अनवरत जारी था। वही कुछ लोग आपस मे गुफ्तगू कर अपनी अपनी दार्शनिकता का परिचय दे रहे थे। पड़ोसी की उम्र तकरीबन अस्सी के करीब थी। सुख कर कांटा हो चुका था उसका शरीर। विनय ने बहुत कम ही देखा था उनको। हमेशा वो अपने खाट पर लेटे हुए रहते और मुँह चलाते रहते जैसे कोई गाय जुगाली कर रही हो। कहते है उम्र अधिक होनेके बाद लोग अपनी जीभ को ही खाने की कोशिश में जुगाली करते रहते। खाट के नीचे एक संदूकची रखी हुई थी, जिसकी चाभी उसी बूढ़े के पास होती। उस बूढ़े का एक ही पुत्र है रविदास। कहते है कि रविदास ने भी उसे सिर्फ इसलिए घर मे शरण दे रखी थी कि शायद उसकी संदूकची में उच्च दर्जे के हीरे जवाहरात पड़े हो जो शायद बूढ़े के मरने के बाद उसे मिल जाये।

आज रविदास भी कुछ लोगो से गिरा हुआ था। ऐसे लग रहा था जैसे आज सभी उसी को सांत्वना देने चाह रहे थे। उसकी आँखें नम थी, पर आँखों मे अजीब सी बेचैनी भी थी। वैसे नार्मल दिनों में उस घर से रविदास की तेज आवाजे आती रहती। वो अपने बूढ़े बाप को रोज कोसता रहता। डांट डपटकर अंत मे भगवान से उनके जल्द मरने की कामना करता। आखिरकार बूढ़े ने दम तोड़ ही दिया था। विनय को विश्वास था कि दम तो उसने बहुत पहले तोड़ दिया था जब पहली बार उसने अपने बेटे के मुँह से खुद के मरने की प्रार्थना सुनी होगी। जो बच गया था वो तो सिर्फ हाड़ मांस का शरीर था जिसे सेवा की जरूरत थी। घर की कुछ औरते दौड़ कर रविदास के पास आई। उसके कानों में कुछ फुसफुसाई और रविदास भी हड़बड़ी से अंदर की तरफ दौड़ा। आस पास खड़े लोग अचंभित मुद्रा में खड़े रविदास का इंतज़ार करने लगे। उन्हें लगा शायद अंदर एक और अनहोनी न हुई हो। कुछ रिश्तेदार भी रविदास के पीछे हो लिए। कुछ देर बाद रविदास दौड़ता हुआ बाहर आया और उसने आस पास देखा। रविदास की नज़र विनय पर पड़ी। उसने विनय को इशारा किया। विनय थोड़ा अचंभित हुआ। क्योकि आज तक कभी रविदास ने विनय को अच्छे से न बुलाया था। अक्सर उसकी खिड़कियों के कांच तोड़ने का श्रेय विनय के सर पर होता। पर आज जैसे रविदास की आँखों की बेचैनी कुछ अलग ही बयान कर रही थी।

"बेटा! झट से दौड़कर पास वाली गली के नुक्कड़ पर एक चाभी वाला बैठा है उसे बुला ला।जा जल्दी जा। ये लेे मेरे बाइक की चाभी, जल्दी से उसे उठा ला।"

विनय के जैसे होश ठिकाने न रहे। आज तक कभी रविदास ने विनय से अच्छे से बात तक नही की थी और आज बाइक थमा दी अपनी। विनय भी कुछ न कहकर बाइक की ओर मुड़ा। पीछे से कुछ आवाजे विनय के कानों में आने लगी।

"खूसट बुड्ढा! मर तो गया पर अंत तक नही बताया कि संदूकची की चाभी कहा रखी है। संदूकची खोलू तो जान में जान आये। खूसट का अंतिम संस्कार रो कर करना होगा या हँस कर ये तो संदूकची खुलने के बाद ही पता चलेगा।" रविदास अपने किसी रिश्तेदार से कह रहा था जो शायद उसका साला था।

विनय ने बाइक पर चाभी लगाई और थोड़ी ही देर में बाइक से विनय उस चाभी वाले को साथ बिठा ले आया। रविदास की आँखों मे चमक लौट आई थी। रविदास तुरंत उसे लेकर अंदर गया। बाहर लोग सकते में थे कि बुड्ढे की लाश तो बाहर आंगन में रख कर रविदास कहाँ दौड़ चला चाभी वाले के साथ? विनय पास ही खड़ा लोगो की बाते सुनने की कोशिश कर रहा था।

"अरे भाईसाहब! कलयुग आ गया है! कलयुग! बेटा बाप की लाश को छोड़ उस संदूकची को खोलने में लग गया है। कही उसके हीरे जवाहरात दौड़े जा रहे थे भला! बाद में भी कर लेता ये काम! ये तो सभी करते है। वहाँ चिता ठंडी हुई नही की यहाँ आपस मे घरवाले बंटवारे की गणित में फंस जाते है। इसी गणित में हिसाब किताब गलत होने पर एक दूजे के सर भी फोड़ देते यही लोग आपस मे!" इतनी बात सुनते ही ठहाका गुंजा उस छोटी टुकड़ी में।

"भैया आपने इस गणित को नही समझा। अगर उस संदूकची से माल निकला तो इस बूढ़े का अंतिम संस्कार ठाट बाट से होगा। इसका बारहवाँ तेरहवाँ भी अच्छे से गुजरेगा। श्राद्ध में खाने को लड्डू भी मिल जायेंगे। पर अगर कुछ न निकला तो फेक आएंगे इसे किसी मेडिकल कॉलेज में। वहाँ इसका चिर फाड़ कर इसे फेक देगे भट्टी में।" अब बारी दूसरे की थी।

"राम! राम! राम! कैसा घोर कलयुग आ गया है? जिस बाप ने इसे सींचा, पढ़ाया लिखाया और बड़ा किया। आज वही उसके क्रियाकर्म पर अपनी गणित लगा रहा है।"

"भैया स्वर्ग भी यही है और नर्क भी! देखना एक दिन इस रविदास की भी ऐसी ही हालात होगी।"

विनय को यह बात सुनकर गुस्सा तो आ रहा था पर मरता क्या न करता। बूढ़े की लाश को आंगन में अर्थी पर लिटा दिया था और लोग अपनी अपनी घड़ियों में समय देख रहे थे। तभी चाभीवाला और रविदास बाहर आते है।

"ताला बहुत पुराना है। इसे तो कटर से काटना पड़ेगा। इसकी चाभी बननी मुश्किल है। कटर के लिए आपको वेल्डिंग वाले को बुलाना पड़ेगा।"

"वो मैंने बुलाया था पर पता नही किस धातु से निर्मित है कि कटा ही नही उससे। उसी दिन से बापू ने खाना पीना छोड़ दिया था। उस बात को चार दिन हो गए और आज बापू ने अंतिम श्वास ली। लाख पूछने पर भी जवाब नही दिया। सोचा तुमको बुला लाऊंगा तो काम हो जाएगा। पर तुमने भी जवाब दे दिया।" अब तो चाभी कहा रखी कभी पता नही चलेगा। सुबह से बूढ़े का पूरा कमरा छान मारा, सारे बिस्तर कपड़े, अलमारी को खंगाल लिया पर कुछ पता न चला।" इतना कह रविदास ने अपने सर पर हाथ दे मारा।

विनय उस चाभीवाले को दुबारा अपनी जगह छोड़ आया। वापस आने पर पाया कि रविदास आंगन में बैठा अपने बाप की लाश को कोस रहा था। गुस्से में आग बबूला हो रहा था।लोगो ने काफी समझाइश करी पर उसके गुस्से का लावा सातवे आसमान पर था। कुछ देर की चिल्ल पौ रुकने के बाद उसका साला उसके पास गया और उसके कान में बुदबुदाया।

रविदास ने उसे झिड़कते हुए कहा "ले जाओ इसे मैं नही आ रहा इसके साथ श्मशान में मरने।"

साले ने हिम्मत कर सभी से आग्रह किया और कुछ लोग आगे आये बूढ़े को कंधा देने पर रविदास अपनी जगह से टस से मस न हुआ।

शमशान घाट में जाते वक्त लोगो मे अजीब सी बहस छिड़ गई थी। कोई बूढ़े के पक्ष में अपनी बात रखता तो कोई रविदास के पक्ष। कई कई बार बात यहाँ तक पहुँच गयी थी के आपस में हाथा पाई ही होने वाली थी पर अंतिम संस्कार में ये शोभा नही देता वाला कोई राग गाता और लोग फिर अपनी अपनी बहस को सिद्ध करने में लग जाते। कुछ लोग शांत होकर अपने अपने मोबाइल में अपना स्टेटस अपडेट कर रहे थे। तो वही कुछ लोग स्टॉक मार्किट के उतार चढ़ाव पर ध्यान दे रहे थे।

बूढ़े को लकड़ियों पे लिटाया गया। भट्टी उस दिन बिजली न होने से बन्द थी। लोगो को गुस्सा आ रहा था क्योंकि लेट तो पहले ही हो चुके थे और ऊपर से बिजली न होने से अब श्मशान में भी थोड़ा समय और वेट करना पड़ेगा।

रविदास के साले ने पंडित जी से जल्दी जल्दी मंत्र पढ़ने को कहा। पंडित जी ने एक दो श्लोक सुनाए और तुलसी और गंगाजल को बूढ़े के मुंह मे डालने को कहा। साले जी ने कहा ये सब तो यहां नही है। तभी एक शक्श भीड़ में से बाहर आया और उसने अपनी पास ही उगें हुए तुलसी के पत्ते तोड़ साले जी के हाथ मे दिए। साले जी ने वो पत्ते पंडित के हाथ मे पकड़ाए। पंडित ने पहले तो लेने से मना कर दिया पर जब साले जी ने फीस बढ़ाने की बात कही तो खुशी खुशी लेकर बूढ़े के मुख को खोलने की कोशिश की। बूढ़े का मुंह कुछ कोशिश के बाद खुल गया। मुख खुलते ही पंडित का मुख खुला का खुला रह गया। बूढ़े के मुख में कोई चीज थी। ध्यान से देखने के बाद पता चला कि वो चाभी थी। साले जी की आंखों में चमक आ गयी उसने तुरंत अपने जीजा रविदास को फ़ोन किया। रविदास भी तुरत फुरत अपनी बाइक पर दौड़ता हुआ शमशान आ पहुंचा। साले जी के हाथ मे एक पुरानी सी चाभी थी। रविदास की आँखों मे तो नही परंतु मुँह में तो पानी जरूर आ गया था। रविदास ने असली घी के डिब्बे मंगवाए और बूढ़े के शरीर को असली घी से लेप लगाया। गंगाजल मंगवाया गया और बूढ़े के मुख में डाला गया। लकड़ी में अग्नि प्रज्वलित की और खुशी खुशी घर की ओर लौटा।

विनय को ये देख बड़ा ही अजीब लगा। वह भी अपने घर को लौटा। लौटते समय वही फुसफुसाहट उसके कानों में दौड़ी।

"बूढ़ा श्याना था। उसे पता था कि अगर रविदास ने मुख में गंगाजल और तुलसी के पत्ते न डालता तो शायद चाभी से सदा सदा के लिए हाथ धो बैठता। वो तो भला हो पंडित का। वरना क्या पता रविदास का? इसी बहाने रविदास ने अपने हाथों से मुख में गंगाजल तो डाल दिया। बूढ़ा अब स्वर्ग सिधार गया।"

विनय घर पहुंचा ही था कि फिर से पड़ोस में जोर जोर से आवाज आने लगी। विनय तुरंत दौड़कर पड़ोस गया तो संदूकची खुली हुई पड़ी थी। उसमें कुछ कपड़े, बूढ़े की बीवी की फ़ोटो और कुछ कागजात पड़े थे।

"पूरी उम्र मुझसे झूठ बोलता रहा की इसमें अमूल्य चीजे है। पर इसमें कचरे के अलावा कुछ नही है। मैं सेवा चाकरी में लगा रहा और बूढ़े ने धोखा किया मेरे साथ।" इतना कह रविदास फुट फुट कर रोने लगा जैसे आज ही उसके भी प्राण पखेरू उड़ने ही वाले है।

हवा का एक झोंका आया और कुछ कागजात उड़कर विनय के पैरों तक आ पहुंचे। विनय ने उन कागजातों को उठाया और पढ़ने लगा। ये कागजात और कुछ नही पर बूढ़े और उसकी बीवी के बीच लिखे गए खत थे। दोनों में प्रेम खूब था। जब रविदास होनेवाला था तब उसकी पत्नी मायके मे थी। अपनी पत्नी को बड़े ही प्यार से उसने खत लिखा था कि कृष्ण अपने घर पर जन्म लेगा और तू घबराना मत! धीरज रखना! कृष्ण हम सबका बेड़ा पार करेगे। उसके घर आते ही घर का मौहाल खुशनुमा हो जाएगा। बड़ा ही समझदार बच्चा होगा। बुढ़ापे तक ध्यान रखेगा अपना! वगैरह वगैरह न जाने कितनी बाते उन खतों में लिखी थी।

विनय मुड़ा और अपने घर को चला। उसे विश्वास था की ये वाकई अमूल्य खजाना था जो रविदास अपनी नज़रों से देख नही पा रहा था। स्वर्ग और नर्क यही है। आज रविदास को नरक की अनुभति हो रही थी।

******समाप्त******

भरत ठाकुर

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