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संन्यासी

*संन्यासी-कहानी*

*व* ह लगातार गौतम महाराज पर किचड़ उछाल रहा था। महाराज के शिष्य क्रोधित थे। उन्हें मात्र महाराज की अनुमति चाहिए थी। इतने में ही वे उस युवक की जीवनलीला समाप्त कर सकते थे। किन्तु गौतम महाराज शांत थे।

"गौतम महाराज ढोंगी है, पाखण्डी है। लोगों को मुर्ख बनाकर उनसे पैसे ऐंठता है।" संजय नामक युवक अभी भी चीख रहा था। वह नशे में था। सुमित्रा का संजय से अलगाव चल रहा था। जो महाराज के आश्रम में ही काम करती थी। सुमित्रा ने संजय के चाल-चलन से परेशान होकर उसका परित्याग कर दिया। आत्मशांति के लिये वह गौतम महाराज के आश्रम में चली आई। महाराज ने उसके दोनों बच्चों को आश्रम के गुरूकुल में अध्ययन हेतु भर्ती करवा दिया। सुमित्रा को भी आश्रम में साफ-सफाई का काम दे दिया। आश्रम के शांत वातावरण और गौतम महाराज के आलौकिक प्रभाव ने उसे बहुत प्रभावित किया। संजय की ओर से उसका ध्यान बिलकुल हटसा गया। संजय को जैसे ही सुमित्रा का महाराज के आश्रम में होने का पता चला वह आश्रम आ धमका। किन्तु आश्रम के सेवादारों ने उसे सुमित्रा तक पहूंचने नहीं दिया। संजय को जब भी अवसर मिलता, वह महाराज को अपमानित करने का पुरा प्रयास करता। उसका मानना था कि उसकी प्रताडना से प्रताड़ित होकर, हो सकता है महाराज सुमित्रा को पुनः उसके पास भेज देवे! लेकिन महाराज ने ऐसा कुछ नहीं किया। संजय अब महाराज की कथा स्थली पर जाने लगा। महाराज जहां भी राम कथा करने जाते, संजय श्रौताओं के मध्य घुसकर अपनी विरह वेदना छेड़ देता।

महाराज की कार आश्रम स्थली पर आकर रूकी। गौतम महाराज कार से निकले ही थे की भीड़ में छिपे संजय ने महाराज के चेहरे पर कालिख पोत दी। सर्वत्र सनसनी फेल गयी। सेवा दारों ने संजय की धुनाई आरंभ कर दी। महाराज ने शिष्यों को रोका। संजय अब भी महाराज को अपशब्द कह रहा था। महाराज ने उसके कंधों पर हाथ रखा।

"शांत पुत्र संजय! शांत।" इतना कहकर महाराज ने उसे हृदय से लगा लिया। संजय अब चूप था। यह दृश्य देखने वाले लोगों आश्चर्यचकित थे। कुछ द्रवित भी थे। संजय अब पुरी तरह शांत हो चूका था। महाराज उसका सिर सहला रहे थे। अकस्मात् वह पृथ्वी पर गिर पड़ा।

"इसे उठाकर हमारे कक्ष में ले चलो।" महाराज ने कहा। आदेश पाकर सेवादारों ने संजय को उठाकर महाराज के लिये बनाये गये आधुनिक सुसज्जित कक्ष में पहूंचा दिया।

महाराज ने कथा वाचन आरंभ किया मानो कुछ हुआ ही न हो। मीडीया में महाराज के संबंध में मिली जुली खबरें लम्बे समय से आ रही थी। इस घटना को मीडिया ने अलग ढंग प्रस्तुत किया। संजय ने पुर्व समय में महाराज के विरूद्ध पत्नी सुमित्रा के संबंध में एफआईआर दर्ज करवा रखी थी। प्रशासन पर मीडिया की नजरें ओर भी अधिक पैनी हो गयी। एहतीयातन प्रशासन ने महाराज के आश्रम पर छापा मार दिया। वहीं शीला नाम की सेवादार महिला ने गौतम महाराज पर यौन शोषण का आरोप लगाकर उन्हें गिरफ्तार करने की वकालत की। सम्पुर्ण आश्रम सैनिक छावनी में परिवर्तित हो चूका था। अनुयायियों पर लाठीचार्ज हुआ। और अंततः महाराज गिरफ्तार हो गये। मीडिया महाराज को जबरदस्त कवरेज दे रही थी। राजनीतिक प्रसिद्ध हस्तियों ने महाराज से दुरी बना ली। आश्रम में छानबीन आरंभ हुई। करोडों रूपयों की नकद राशी और स्वर्ण-चांदी बरामद की गई। शीला के होसलें देखकर सेवादार तमन्ना ने भी महाराज के विरूद्ध बयान दिये। महाराज को रिमाण्ड पर रखने की पुलिसयां अनुमति को हरि झण्डी मिल गई। सेवादारों ने पुलिस स्टेशन घेर लिया। उत्पातियों पर पुलिस ने लाठीयां भांजी। सैकडों गिरफ्तारीयां हुई। महिलाएं और पुरूषों का हुजूम दूखते ही बनता था। वीना को महाराज से मिलने की अनुमति मिल गई।

"आप पुलिस को सबकुछ बता क्यों नहीं देते महाराज।" गौतम महाराज की शिष्या वीना बोली।

"समय आने पर सत्य सबके सम्मुख आ जायेगा।" गौतम महाराज बोले।

"आप ही तो कहते है, बिना प्रयास कुछ भी संभव नहीं।" वीना बोली।

"कौन कहता है कि प्रयासों में कमी है?" गौतम महाराज ने मंद मुस्कान बिखेर दी। वीना को समझते देर लगी। वह भी हंसते हुये लौट गई।

वीना महाराज की वर्षों पुरानी शिष्या थी। उसने महाराज की गिरफ्तारी की सुचना पाते ही उनसे मिलना निश्चित किया। वीना वहीं थी जिसे लेकर आश्रम में कई तरह की चर्चा होती आई थी। महाराज और वीना के आंतरिक संबंधों पर बहुत कुछ देखने-सुनने को मिला। महाराज की अधिक बदनामी न हो इसलिए वीना ने आश्रम से दुरी बना ली। वीना महाराज को अपना सबकुछ मानती थी। किन्तु महाराज एक दृढ़ सन्यासी थे सो उन्हें अपने निश्चय से ढिगा पाना वीना के वश में न था। महाराज ने स्वयं वीना से कहा था कि वे वीना को स्वीकार नही कर सकते। यदि भाग्य से उन्हें दुसरा जन्म मिला तब ही वे वीना को अपना सकेंगे। वीना यह सब जानते हुये भी महाराज को अंध प्रेम करती थी। वह पुलिस-प्रशासन और उनके भक्तों के बीच पहूंचकर महाराज की बेगुनाही की पैरवी करती। अदालत में उसने महाराज के पक्ष में गवाही दी। सुमित्रा और संजय भी महाराज का हितैषी बनकर कोर्ट पहूंचे। शीला और तमन्ना के बयानों को परिवर्तित करने में वीना ने पृथ्वी-आकाश एक दिया।

"शीला! थोड़े से लाभ के कारण ईश्वर रूपी गुरू के प्रति इस तरह का व्यवहार क्या तुम्हें उचित लगता है?" वीना बोली।

"जिस गुरू ने पुत्री समान स्नेह दिया, उसे अमानवीय कृत्य का दोषी ठहरा दिया। जो उन्होंने कभी किया ही नहीं।" वीना के तर्कों ने शीला को प्रभावित किया। उसकी आंखों से झर-झर अश्रु धारा बह निकली। वीना के चरणों में गिर उसने स्वयः के लिये क्षमा याचना की। वह जानती थी कि महाराज वीना को बहुत मानते है। यदि वह शीला के लिये उनसे प्रार्थना करे तब अवश्य ही महाराज उसे क्षमा कर देंगे। शीला के पश्चाताप को देखकर तमन्ना भी सहम गई। उसने भी महाराज के विरूद्ध झूठे बयान की बात स्वीकार ली।

मजिस्ट्रीयल जांच में सामने आया कि महाराज के व्यक्तिगत नाम पर आश्रम की कोई संपत्ति नहीं थी। ट्रस्ट में उन्होंने कोई पद धारण नहीं किया था। यहां तक कि आश्रम में दानपेटी तक की व्यवस्था नहीं थी। सेवादार स्वयं महाराज के आश्रम में गुप्त दान दिया करते। सेवादार ही दान में प्राप्त सामग्री की व्यवस्था और उसका उचित प्रबंध स्वंय करते। आश्रम ने कभी शासन-प्रशासन से किसी तरह की कोई वित्तिय मदद कभी नहीं हीं ली। और न ही कभी इस संबंध में मांग की। महाराज को षडयंत्र के माध्यम से फंसाया गया। आश्रम मे तथाकथित लोभ के वशीभूत जीवन और उसके साथियों ने ही इस संपूर्ण घटनाक्रम को अंजाम दिया। षडयंत्र कारियों को गिरफ्तार कर जेल भिजवा दिया गया। महाराज को ससम्मान स्वतंत्र किया गया। आश्रम की रौनक पुनः लौट आई थी। महाराज फिर अपने शिष्यों के मध्य थे। वीना अब भी महाराज की चरण वंदना में संलग्न थी।

महाराज गौतम की ख्याति में वृद्धि निरंतर जारी थी।

समाप्त