Bhadukada - 12 in Hindi Fiction Stories by vandana A dubey books and stories PDF | भदूकड़ा - 12

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भदूकड़ा - 12

घर के सारे आदमियों ने नाश्ता कर लिया तो काकी की आवाज़ गूंजी-

’अबै उठियो नईं लला. बैठे रओ. कछु जरूरी बात करनै है तुम सें.’

थाली में हाथ धोते बड़े दादा ने काकी की तरफ़ देखा, और थाली खिसका के वहीं बैठे रहे.

’इत्ते साल हो गये, हमने सुमित्रा खों कछु दुख दओ का?’

’आंहां कक्को’

’ऊए खाबे नईं दओ का?’

काय नईं? ऐन दओ तुमने.’

’तौ जा बताओ, सुमित्रा, जिए हम राजरानी मानत, जी की तारीफ़ करत मौं नईं पिरात हम औरन कौ, ऊ ने जा चोरी काय करी? औ केवल जा नईं, जानै कितेक दिनन सें कर रई. बा तौ आज बड़की रानी ने बात खोल दई...’

बड़े दादा अवाक!

सारे देवर आवाक!

चौके में बैठीं देवरानियां अवाक!

और रमा सबसे ज़्यादा अवाक!!

’जे देखो, सुमित्रा रानी ने कटोरी में पकौड़ीं निकार कें धर लईं औ तुमाय कोठा में लुका दईं.’

छोटी काकी ने आंचल में छुपाई, पकौड़ियों से भरी कटोरी निकाल के बड़े दादा के सामने रख दी! उन्हें कुन्ती ने एक-दो बार सुमित्रा द्वारा पूड़ियां छुपा के खाने की बात कुन्ती ने बताई थी पर उन्होंने टाल दी थी. लेकिन आज! ये तो बहुत खराब बात है. सुमित्रा को टेरा गया. लम्बा घूंघट किये सुमित्रा आ के खड़ी हो गयी ओट में. चौके के अन्दर रमा कसमसा रही थी. लेकिन बड़े दादा के सामने जाये कैसे...!

’छोटी बहू, ये क्या सुन रहा हूं मैं? तुमसे तो मुझे ऐसी उम्मीद ही नहीं थी. इस घर में आज तक किसी ने चोरी नहीं की. तुम इतने बड़े घर की , पढ़ी-लिखी लड़की हो के.....!

कटोरी सुमित्रा की तरफ़ सरका दी बड़े दादा ने. सुमित्रा को काटो तो खून नहीं! शर्मिंदगी के मारे उसे लगा कि धरती फट जाये, और वो उसमें समा जाये....!
कुन्ती मूंछों में मुस्कुरा रही थी ( भगवान ने उसे होंठ के ऊपर रोयों की एक गहरी रेख दी भी थी.)
’कुन्ती ने कई बार पूड़ियों बावत हमसे बताया, लेकिन हमने उसे गम्भीरता से नहीं लिया. लेकिन अब तो हद हो गयी.’
क्या!! कुन्ती ने बताया!!! उफ़्फ़..... सुमित्रा जी को चक्कर आ रहा था. लगा, अब और खड़ी न रह पायेंगीं. टप-टप टपकते आंसू, अब धार बन के उनके ही पांव भिगो रहे थे.
उधर चौके में बैठी रमा से अब न रहा गया. सारी मर्यादाओं को ताक पे रखती हुई घूंघट खींच, बड़े दादा और कक्को के बीच खड़ी हो गयी.
’कक्को, बड़के दादा आप औरें जैसौ सोच रय, वैसौ है नइयां. सुमित्रा जिज्जी ने कौनऊ चोरी न करी. जे पकौड़ियां तौ उनने बड़की जिज्जी के लाने धरवाईं हतीं. औ धरबे हम गये हते. औ रई बात पूड़ियन की, तौ बे सोई सुमित्रा जिज्जी अपने लाने, नईं, बड़की जिज्जी के लानै निकरवाउत हतीं. पूड़ी भी हमई सें निकरवाईं उनने. हमै सब पतौ है. बे बिचारी तौ दुपारी लौ कछु खातींअईं नइयां.’ इतना कह के रमा भी फूट-फूट के रो पड़ी. अब एक बार फिर सबके अवाक होने की बारी थी. कुन्ती का चेहरा पीला पड़ गया
(क्या हुआ होगा फिर कुंती का? क्या उसने माफी मांगी? या दादाजी ने उसे घर से भगा दिया? या सुमित्रा नाराज़ हो गयी? पढ़ें अगला अंक। )
(क्रमशः )