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अंदाज


अंदाज
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"अपनी उम्र देखो बहू , दूसरा पड़ाव खत्म होने को है, लेकिन समझ नाम की चीज नही है तुम्हारे पास। अरे हम भी तो हैं मजाल है जो सास ससुर के सामने कभी सर से पल्लू जरा भी हिले तो। एक ये महारानी हैं कभी जीन्स तो कभी स्कर्ट,अब तो बाजू भी लगवानी बन्द कर दी कुरतों में। खुद के बच्चे ब्याहने को आये लेकिन इसका फैशन पूरा होवे तो किसी दूसरे काम की ओर ध्यान दे। कसम खा रखी है बड़े बूढ़ों की इज्जत न करने की।"
नेहा मुस्करा रही थी और जल्दी जल्दी रसोई समेटने में व्यस्त थी। उसकी मंद मंद मुस्कान सासू माँ के आक्रोश की आग में घी का काम कर रही थी और सासू माँ का क्रोध बढ़ता ही जा रहा था।
"ऐसे क्या दांत निकाल रही हो, देख मीरा की बहू को, आज तक किसी ने ऊँगली न देखी होगी गज भर घूंघट रहता है और तुझे मटकते सब देखते हैं जब वो घाघरा पहन के निकलती हो। न पहनावे का सलीका न रहने का, जब देखो तब दाँत निपोरती रहती हो। पता नही किस मिट्टी की बनी है? पीहर वालों ने कोई लच्छन भी सिखाये या बस स्कूल कालेज के चक्कर ही लगवाते रहे पढ़ने के नाम पर।"
नेहा का धैर्य धीरे धीरे जवाब दे रहा था। आज तक उसने कभी भी माँ जी को पलट कर जवाब नही दिया था। उनकी कही हर बात को मुस्कुरा कर टाल देने की कोशिश रहती थी।
राहुल से कई बार कह चुकी थी कि माँ को जरा तो समझाए लेकिन राहुल भी उसकी शिकायत को अनसुना कर चुका था। बस इतना ही कह पाता - " जाने दो नेहा, पल भर का गुस्सा है माँ का। तुम चुप रहोगी तो वह भी शांत हो जाएगी।"
आज जब बात पीहर पर पहुंची तो सालों से भरी हवा का दबाव न सह पाया और मन का गुब्बारा फट ही गया -"सुनिए माँ "
"आप जब बीमार हुई थी किसने संभाला, जब बाबूजी को खून की कमी पड़ी तो किसने दिया। सारे कामो की फ़िक्र से दूर हैं आप और आपके साहेबजादे, वो किसकी बदौलत। मेरा खुल कर जीना, हँसना, बोलना आपको रास नही आता न, लेकिन क्या कहीं से भी मेरी शिकायत आई आपके कानो में। मानती हूँ कि मीरा की बहू की ऊँगली किसी ने नही देखी लेकिन कर्कश आवाज में गालियाँ सबने सुनी हैं आपने भी, जिन्हें थाली में भर भरकर सास ससुर को परोसती है वह घूंघट के अंदर से ही। हां मैं मटकती हूँ और मेरा मटकना सभी को दिखाई भी देता है लेकिन अपने बल बूते पर, कमाती हूँ, दफ्तर के साथ घर सम्भालती हूँ,अपने बुजुर्गों को मान सम्मान देना भी जानती हूँ,पति के साथ बच्चों की हर जिम्मेदारी समय से पूरी करती हूँ।"
एक पल को रुकी और गहरी साँस लेते हुए फिर से नेहा ने कहा-"और अपने लिए भी जीती हूँ,याद रखियेगा माँ, जिस दिन मैं अपने लिए नही जी पाऊँगी, मैं किसी के लिए कुछ नही कर पाऊँगी। मेरे जीने का अंदाज छीनने की कोशिश मत कीजिये। पहली बार जबान खोली है मैंने, उम्मीद है दोबारा नही कहना पड़ेगा।"
सास को स्तब्ध छोड़कर नेहा ने राहुल की तरफ देखा जो आज भी मूक दर्शक बना खड़ा था, पिछले 25 सालों की तरह ही।

विनय.........दिल से बस यूँ ही