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इंटरव्यू





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इंटरव्यू
© Ashish Dalal

Children Stories

11 मिनट 290 18


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#785 in Story (Hindi)


पिछले दो घंटों तक तरह तरह के भावनात्मक विचारों के बीच उलझते हुए इस बार हिम्मत कर उसने पत्र पूरा लिख ही दिया । पत्र के अन्त में साइन करने के बाद उसे खयाल आया कि श्रुति के लिए तो उसने कुछ लिखा ही नहीं । एक बार फिर से उसने पत्र फाड़कर कचरा पेटी के हवाले कर दिया । इस बार बड़ी शिद्दत से मम्मी – पापा, राखी और दोस्तों के संग बितायें सारे सुखद और दुखद क्षणों की स्मृति पत्र में अंकित करने के बाद चार लाइन उसने श्रुति के लिए भी लिख डाली ।


पूरा पत्र उसने गौर से एक बार पढ़ लिया और पेंट की जेब में रखकर अपने कमरे से बाहर आ गया ।


मम्मी रसोई में उसके और राखी के लिए चाय नाश्ता तैयार कर रही थी । पापा को बाहर के कमरे में न पाकर उसने उनके बेडरूम की ओर नजर डाली । उन्हें वहां भी मौजूद न पाकर वह निराश हो गया ।


‘पापा नहीं दिखाई दे रहे है मम्मी ?’ फ्रीज के पास दीवार से सटाकर रखी हुई डाइनिंग टेबल की कुर्सी पर बैठते हुए उसने पूछा ।


‘१० बज रहे है । ऑफिस के लिए निकल गए है । तुझे तो समय का कोई ध्यान रहता नहीं । रात देर तक जागता रहता है और सुबह देर से उठता है ।’ मम्मी ने शिकायती स्वर में उसकी बात का जवाब देते हुए कहा ।


तभी राखी उसके पास वाली कुर्सी पर आकर बैठ गई ।

‘भैया, आप आज किस ओर जा रहे हो ? निशा आज कॉलेज नहीं जाने वाली है तो आप मुझे कॉलेज तक छोड़ देते तो अच्छा रहता ।’


‘उससे क्या पूछती है ? नौकरी – धन्धा कर रहा होता तो बात समझ में आती । सारा दिन इधर उधर भटकते रहने से तो अच्छा है तुझे कॉलेज छोड़ने और वापस ले आने की जिम्मेदारी उठा ले । अपने भाई के साथ रहेगी तो मेरे मन को भी तसल्ली रहेगी ।’ वह राखी की बात का जवाब दे पाता इससे पहले ही मम्मी ने डाईनिंग टेबल पर नाश्ते की प्लेट रखते हुए कहा ।


‘मम्मी, आप भी क्या वक्त बे-वक्त भाई को ताना मारती रहती हो ? भैय्या नौकरी के लिए प्रयास नहीं कर रहे है क्या ? अब कोई अच्छी नौकरी नहीं मिल रही है तो उसमें उनका क्या कसूर है ?’ मम्मी द्वारा अपने भाई के लिए कही बात राखी को पसन्द नहीं आई ।


‘एक साल पूरा होने को आया है नौकरी ढूंढते हुए । समय रहते अपनी पढ़ाई पर पूरा ध्यान दिया होता तो आज यूं भटकते रहने की नौबत न आती । बारहवीं पास करने के बाद एक साल तो ऐसे ही गाने, स्टेज शो और टी.वी. शो के पीछे बर्बाद कर दिया । वह सब करके हासिल तो कुछ हुआ नहीं पर तेरी पढ़ाई के लिए की गई बचत इन सब के पीछे पानी की तरह जरुर बह गई । अब इस जमाने में जब बी एस सी जैसी डिग्री भी कोई मायने नहीं रखती तो तुझ जैसे सेकेण्ड क्लास को कौन नौकरी पर रखेगा ?’ चाय की पतीली गैस पर चढ़ाते हुए मम्मी ने अपना रोष व्यक्त किया ।


‘मैंने आप लोगो से बारहवीं पास करने के बाद ही कहा था कि मुझे इंजीनियरिंग नहीं करनी है । बारहवीं में मैंने स्कूल में टॉप किया शायद यही मेरी भूल थी, न मैं टॉप करता और न ही आप लोग मुझसे ज्यादा एक्सपेक्टेशन रखते । और सिंगिग में मैं आपकी वजह से ही आगे नहीं बढ़ पाया । स्टेज और टी.वी. शो के साथ साथ में पढ़ाई भी तो कर ही रहा था न पर आप ही ने मुझे खुद को प्रूव करने से पहले ही फर्स्ट ईयर में एवरेज मार्क्स आने से गिव अप करवा दिया ।’ क्षणिक आवेग में कही गई मम्मी की बातें वह सहन नहीं कर पाया ।


‘अपने होनहार बेटे के लिए कौन मां –बाप सुनहरे भविष्य के सपने नहीं देखता ? अपने निजी खर्च में कटौती कर तुझे अच्छे कॉलेज में पढ़ाया, तेरी पढ़ाई से लगती हर एक जरूरत हमनें पूरी की । इन सब में भला हमारा क्या स्वार्थ था ? तेरे अच्छे भविष्य की खातिर ही तो सब कुछ किया और तू है कि आज तेरी असफलता पर हमें ही खरी खोटी सुना रहा है ।’ उसकी बात सुनकर मम्मी की आंखों में आंसू आ गए ।


‘ओफ्हो ! मम्मी, भैया । प्लीज, अब ये फालतू की बहस बंद करों और शान्ति से चाय नाश्ता करो । मां बेटे के बीच बहस बढ़ते देख राखी ने बीच बचाव करते हुए कहा और खड़े होकर चाय के तीनों कप डाईनिंग टेबल पर लाकर रख दिए ।


अगले दस मिनिट तक तीनों के बीच मौन छाया रहा । चाय नाश्ता खत्म कर वह मम्मी के पैर छूने को नीचे झुका ।


‘बेटे के जवान होते ही हर मां एक सपना होता है कि वह नौकरी में सैटल होकर उसके लिए बहू ले आये । मैंने भी तुझे लेकर कुछ ऐसे ही सपने देख रखे है । जब तेरी उम्र के लड़कों को उनकी पत्नी और बच्चों के संग खिलखिलाते हुए देखती हूं तो मेरी यही तड़प और बढ़ जाती है ।’ उसके सिर पर हाथ रखते हुए मम्मी ने कहा ।

उसने दो घड़ी उनकी ओर देखा और राखी से जल्दी बाहर आने को कहकर बाहर की ओर जाने लगा ।

‘सुन ।’ पीछे से मम्मी की आवाज सुनकर वह रुक गया ।

‘मुझे अन्दर से ऐसा महसूस हो रहा है कि तू आज जिस इंटरव्यू के लिए जा रहा है उसमे तू जरुर सफल हो जाएगा । मैंने भगवान से मन्नत मांगी है । ले ये प्रसाद खाकर जा, तुझे आज सफलता जरुर मिलेगी ।’ उसकी हथेली पर प्रसाद रखते हुए मम्मी ने कहा ।


डबडबाई आंखों से उसने उन्हें देखा और उनसे नजरे बचाकर आंखों में उभर आये आंसुओं को पोंछकर वह बाहर निकल गया ।


राखी को कॉलेज छोड़कर उसने अपनी बाइक पास ही के एक मेडिकल स्टोर के पास पार्क कर दी । पेंट की जेब में रखा पत्र बाहर निकाल कर वह उसे एक बार फिर से पढ़ गया और उसे फिर से जेब में रखकर हिम्मत जुटाकर मेडिकल स्टोर के अन्दर दाखिल हो गया ।


मेडिकल स्टोर से बाहर निकलकर उसने अपनी बाइक शहर के दक्षिण किनारे पर स्थित बगीचे की ओर ले ली । बगीचे के बाहर बाइक पार्क कर गेट के पास स्थित दुकान से कोल्ड ड्रिंक की एक बोतल खरीद कर वह अन्दर चला गया । बचपन से लेकर अब तक वह कई बार इस बगीचे में आ चुका था । उसके अंदाज के मुताबिक इस वक्त बगीचे में चहल पहल कम ही थी । सहसा उसके कदम चिल्ड्रन एरिया की ओर बढ़ गए । यहां लगे झूले, फिसलपट्टी और सी - सा झूले समय के हिसाब से भले ही बदल चुके थे पर उसके बचपन की इसी स्थल से जुड़ी बहुत सी यादें अभी भी उसके जेहन में जैसे की वैसी अंकित थी ।


‘राजीव, धीमे से बेटे । गिर जाओगे ।’


‘नहीं मम्मी । पापा मेरे साथ है, मुझे गिरने नहीं देंगें ।’ तेजी से झूला झूलते हुए पास ही झूले की चैन पकड़कर खड़े पापा की ओर देखकर नन्हें से राजीव से जवाब दिया ।


तभी अचानक झूले पर उसकी पकड़ ढ़ीली पड़ गई और वह झटके के साथ दूर जा गिरा । मम्मी पापा दोनों दौड़कर राजीव के पास पहुंच गए । रोते हुए राजीव हाथ पैरों में लगी खरोंचों को दिखाने लगा । पापा ने उसे उठाने के लिए हाथ आगे बढ़ाए तो राजीव ने मुंह फेर लिया ।

‘पापा, आप गंदे हो । मुझे गिरा दिया । मैं आपके पास नहीं आऊंगा ।’


‘नहीं बेटा । ऐसा नहीं बोलते । इसमें पापा की कोई गलती नहीं है । पापा हर जगह तो तुम्हें सम्हाल नहीं सकते ।’ मम्मी की समझभरी बातें उसके कानों में गूंजने लगी ।


शर्ट की जेब से मोबाइल निकालकर उसने उसमें सहेज कर रखी पापा की फोटो पर एक नजर डाली और उनका नम्बर डायल करने लगा ।


‘हैल्लो ।’ पापा की आवाज सुनकर उसकी आंखें भर आई ।


‘हैल्लो राजीव, बोलो कैसे फोन किया ?’ उसकी ओर से कोई जवाब न पाकर फिर से वही आवाज आई ।

‘कुछ नहीं पापा । इन्टरव्यू के लिए जा रहा था । आप से घर पर सुबह मिल नहीं पाया तो सोचा फोनकर आपका आशीर्वाद ले लूं ।’ बड़ी मुश्किल से वह बोल पाया ।

‘जीता रह बेटा । मेरा आशीर्वाद सदा तेरे साथ है । आज तू जरुर सफल होगा ।’


‘बाय पापा ।’ तुरंत ही उसने फोन कट कर दिया । वह और ज्यादा बात करने की स्थिति में नहीं था ।


तभी उसकी नजर सामने शान से खड़े उस घने पेड़ की ओर जाकर टिक गई । भारी कदमों से वह उस ओर चला गया । पेड़ के पास लगी बेंच पर जाकर वह बैठ गया ।

‘राजीव, अब और इन्तजार नहीं होता । मैं कब तक मम्मी पापा से बहाने बनाकर अपनी शादी की बात टालती रहूंगी ?’ श्रुति ने अपना सिर उसके कन्धे पर टिकाते हुए कहा ।


‘दो – तीन जगह नौकरी के लिए ट्राई किया है । एक बार कहीं जॉब मिल जाए बस फिर घर पर बात करूंगा ।’ उसने एक आश भरी मुस्कान के साथ जवाब दिया ।

‘बाय द वे ...तुमने अपना रेजयूंम ऑन लाइन पोस्ट कर रखा है न ?’


‘अब यह सब तुम मुझे सिखाओगी ? रात देर लेपटॉप लेकर यही सब करता रहता हूं ।’ श्रुति के पूछने पर उसने कहा ।


‘अच्छा ! और गाने कब सुनते हो ? गाने सुने और गाये बिना तो तुम्हारा दिन पूरा होता ही नहीं ।’


‘नहीं, श्रुति । जाने क्यों अब सब कुछ छूटता जा रहा है ।’ उसके स्वर में निराशा थी ।


‘अरे वाह, ऐसे कैसे गाना छोड़ दोगे । अपनी आत्मा के बिना भला कोई जी पाया है ? चलो मुझे वो मेरा वाला गाना सुनाओं ।’ श्रुति ने अधिकार पूर्वक उसका हाथ पकड़ लिया ।


‘नहीं, आज मूड नहीं है ।’


‘तुम आर्टिस्ट लोग न, बहुत ही मूडी होते और भाव भीबहुत खाते हो । ठीक है, मैं अपने मोबाइल से प्ले करती हूं जो पिछले हप्ते यहीं बैठकर रिकार्ड किया था ।’ कहते हुए श्रुति ने राजीव का गाया हुआ गाना प्ले कर दिया ।


राजीव को उसकी यह हरकत पसन्द नहीं आई और उससे उसका मोबाइल झपटते हुए गाना स्टॉप कर दिया ।

‘अरे यार । ये नौकरी के टेन्शन ने तो तुमसे तुम्हारा रोमान्टिक रूप ही छीन लिया । एकदम नीरस हो गए हो तुम ।’


राजीव ने कुछ जवाब नहीं दिया ।


‘राजीव, तुम्हें नौकरी मिल जाए, बस इसी बात का इन्तजार है । फिर तो तुम शान से बाजे और बारातियों के संग आकर मुझे पूरे हक से मेरे पापा से मांग कर ले जाना ।’ उससे कुछ जवाब न पाकर श्रुति ने फिर से उसका हाथ पकड़कर कहा ।


‘हां, श्रुति । नौकरी मिलते ही मैं घर पर मम्मी पापा से हमारी शादी के बारें में बात कर लूंगा । बस अब हमारे मिलन की घड़ी समझो आने ही वाली है ।’ इसी बेंच पर बैठकर श्रुति से ८ महीने पहले किया गया वादा उसे याद आ गया । आंखों में उभर आये आंसुओं को पोंछते हुए वह वहां से खड़ा हो गया । उसने एक क्षण उस बेंच को एक बार फिर से देखा और आगे बढ़ गया ।


चलते चलते बांस के उन झुरमुट के पास पहुंच कर उसके कदम वहीं थम गए ।


‘अरे यार, एक कश खींच लेने से कोई पहाड़ नहीं टूट पड़ेगा । देव पुरुष बनकर आज की जिन्दगी की जंग नहीं जीती जा सकती ।’ दोस्तों के संग आने जाने वालों की नजरों से बचकर चार साल पहले वह बांस के इन्हीं झुरमुट के बीच बैठा था ।


‘नहीं । ये गलत है । सिगरेट पीना बुरी बात है । पापा को पता चलेगा तो गुस्सा होंगें ।’ दोस्तों के आग्रह को नकारते हुए उसने कहा ।


‘क्या बच्चों जैसी बातें कर रहा है । अब हम कॉलेज में आ गए है । ये मजे अब नहीं करेंगे तो कब करेंगे ? यहां एकान्त में हमें देखने वाला कोई नहीं है ।’


‘नहीं, मैं मम्मी पापा के विश्वास को तोड़ नहीं सकता । तुम लोगों को भी ऐसा नहीं करना चाहिए । मम्मी पापा की उम्मीदों पर खरा उतरना ही एक अच्छे संतान का कर्तव्य होता है ।’ उसकी बात कथित दोस्तों के ठहाकों बीच दबकर रह गई । वह वहां से उठकर जाने लगा तो उसके पीछे पीछे केशव भी वहां से उठकर खड़ा हो गया । बस यहीं से उसकी और केशव की दोस्ती की शुरुआत हुई थी ।

साथ साथ कॉलेज आते जाते दोनों ही काफी अच्छे दोस्त बन गए । उनके दोस्ती के दायरे कॉलेज तक सीमित न रह कर उनके अपने अपने परिवार तक विस्तृत थे । पढ़ाई पूरी होते ही केशव जॉब मिलने के बाद पूना चला गया ।


‘सॉरी केशव । मेरे मम्मी पापा को मेरे बाद सम्हाल लेना ।’ मन ही मन वह बुदबुदाया और साथ लायी कोल्ड ड्रिंक की बोतल का ढक्कन खोल लिया । जेब में से चूहे मारने की दवा निकालकर पूरी पुड़िया उसने कोल्ड ड्रिंक की बोतल में खाली कर दी । पेंट की जेब में हाथ डालकर अपने अंतिम पत्र के सलामत होने की पुष्टि करने के बाद कोल्ड ड्रिंक की बोतल उसने मुंह को लगा ली ।


तभी उसके मोबाइल की रिंगटोन बज उठी –‘देखा कांटों को फूलों पर सोते हुए , देखा तूफां को कश्ती डुबोते हुए । देख सकता हूं मैं कुछ भी होते हुए ,नहीं मैं नहीं देख सकता तुझे रोते हुए .....’


कोल्ड ड्रिंक की बोतल उसके हाथ से छूटकर दूर जा गिरी । रिंगटोन दो बार बजकर बंद हो गई । वह बदवहाश सा कुछ देर वहीं बैठा रह गया । कुछ देर बाद कांपते हाथों से उसने मोबाइल जेब में से निकाला और कुछ देर पहले आये नम्बर पर फोन जोड़ा ।


‘कहां हो भैया ? कितनी देर से आपको कॉल कर रही हूं । आपका इंटरव्यू था न साढ़े ग्यारह बजे तो पूछने के लिए फोन किया था । कैसा रहा ? ’ उसे बोलने का मौका दिए बिना ही राखी ने प्रश्नों की झड़ी लगा दी ।


‘हं !’ वह कुछ बोल न पाया ।


‘क्या हं ? बोलो न । पास हो गए न ?’ उससे जवाब न पाकर राखी ने उत्साह भरे स्वर में पुनः पूछा ।


राजीव के मुंह से शब्द नहीं निकल पाए ।


"बोलो न भैया । हर बात का सस्पेंस बना कर रखते हो ।"

"हं ... हां .... इस बार मैं सच में फेल होते होते रह गया । थोड़ी सी भी देर हो जाती न तो इस इंटरव्यू में भी मैं फेल हो जाता ।" उसकी आंखों से अश्रुधारा बहने लगी ।