Tumhari Pruthvi - letter books and stories free download online pdf in Hindi

तुम्हारी पृथ्वी - एक पत्र

ब्रह्माण्ड
(सौर मंडल)

मेरे प्यारे पृथ्वी वासियों,
ढेर सारा प्यार,
मैं प्रकृति हूं, मुझे पहचानते तो होगे ही? क्यूँ नहीं पहचानेंगे, भई इतने पत्थर दिल तो नहीं की बर्बाद भी किया और पहचान तक नहीं। मैंने कई संकेत दिए की अपनी बात समझा सकूं पर शायद तुम लोगों को सांकेतिक भाषा समझ में नहीं आती है तो सोचा क्यूँ ना अपनी ही तरह विलुप्ति के कगार पर खड़ी पत्र लेखन विधा में तुम्हें समझाया जाए। तो क्या लगता है मुझे कोसते हुए? ये ज़लज़ला, बाढ़, जंगल की आग, आसमानी आफत..बहुत कष्ट होता है ना? तुम्हारा बहुत नुकसान हो जाता होगा ना? कसूरवार कौन है? कभी सोचा है इस बारे में, एक दूसरे पर दोषारोपण करके कुछ नहीं होने वाला, इतने बड़े बड़े संकेत.. जलवायु परिवर्तन.. सब कुछ तबाही के कगार पर, मैने तो तुम्हें आसरा दिया तुमने क्या किया आशियाने को खुद ही आग लगा दिया। जिसे तुम "विकास" कहते हो, क्या किया उसके लिए, मेरी दुनिया उजाड़ने की कवायद चालू हो गई। इतना रासायनिक कचरा, इतना प्रदूषण.. अरे धरती बंजर हो रही है.. खाओगे क्या.. पत्थरों की इमारत? मेरी साँसों में इतना जहरीला धुआं भर दिया है, मेरी रग रग से पानी सूख रहा है। मेरा दम घुट रहा है, मुझे मार कर तुम जी जाओगे? समन्दर गुस्से में सुनामी बन गया है पर तुम ताकत की होड़ में बनाओ परमाणु कार्यक्रम और कचरा लाकर डाल दो समंदर के सीने में। याद रखो जो दोगे वो पाओगे, जो बोओगे वो काटोगे।
सुन्दर से आशियाने को बचाने के लिए सिर्फ बैठक कर सकते हो तुम लोग पर याद रखना समय रेत की तरह हाथ से निकल रहा है। मुझे आश्चर्य तब होता है की अपनी दुनिया बचाने की कोशिश छोड़ तुम नई दुनिया की खोज में निकल पड़े हो, बताया था मंगल भाई ने तुम्हें वहाँ पानी की खोज है। अरे समझते क्यूँ नहीं पाना आसान है सम्भालना मुश्किल, जल संरक्षण सीखो।मुझे क्या, सिर्फ मेरे करने से क्या होगा.. ये सोचते हुए आने वाली पीढ़ियों के लिए कुछ नहीं बचेगा, सब बर्बाद हो जाएगा।
मेरे आंसू तुम्हें दिखाई नहीं देते, मेरी चीख सुनाई देती है क्या? और कैसे इशारे दूँ। तुम्हें दुःख होता है तो तुम जान दे देते हो, गुस्से में जान ले लेते हो, तो अगर वही मैं करूँ तो?.. तो अब भी वक़्त है मेरे सब्र का इम्तेहान मत लो, ऐसा ना हो तुम्हारे मारने से पहले मैं खुद ख़ुशी कर लूं, तुम्हारा कोई ज्ञान, कोई विज्ञान फिर तुम्हें बचा ना पाएगा।मुझे मां कहते हो ना तो बस माँ के बर्दाश्त का बाँध मत तोड़ो।आशा है कि शायद विलुप्ति के कगार पर खड़े अपने भविष्य के लिए कुछ तो सोचोगे। मुझसे तो अब तुम्हारी और अपनी दुर्दशा देखी नहीं जाती। अब इसे मेरी विनती समझो या धमकी पर कदम तो उठाना ही होगा.. मैं तो उठा चुकी हूं, चाहते हो समय रहते सब सम्भल जाए तो तुम भी सार्थक कदम उठा लो.. यकीन मानो उतनी भी देर नहीं हुई है और अपने ही घर को युद्ध, बीमारी, आपदा और विपन्नता के हवाले करने में कोई समझदारी नहीं है।

तुम्हारी अपनी
- पृथ्वी (धरती)