Benaam Aashiq books and stories free download online pdf in Hindi

बेनाम आशिक।



जिंदगी के ५०बे वसंत पार कर चुकी मैं यानी सुलभा ...जिंदगी कट रही थी । एक रूटीन में होता है न हम औरतो में ..बंध जाता है मन ..सुबह संजय की बेड टी से शुरू होती फिर नाश्ता उनका ऑफिस और मेरी टीवी सास - बहु के सीरियल और कभी - कभी किट्टी पार्टी और गॉसिप ।बेटे - बहु अपनी जिंदगी में मस्त दूसरे शहरो में अपने परिवारों में व्यस्त और पति अपने काम । ..दुनियॉ की नजरों में एक सुखी इन्सान थी मैं ।

..जिंदगी से कोई शिकायत भी नहीं थी पर जो खाली पन मेरे अंदर पल रहा था वो खुद मुझे भी नहीं पता था ...और शायद कभी चलता भी नहीं अगर वो सिलसिला न शुरू हुआ होता ।...वो बताने से पहले थोड़ा सा परिचय अपने पति का दे दू ..मेरे पति संजय शर्मा ..एक कम्पनी में ऊँची पोस्ट पर है।घर और ऑफिस वाली उनकी जिंदगी में मेरी जगह रसोई औरफैमली फंक्शन्स तक ही है । वो एक आम पति की तरह ही है जो सोचते है की पत्नी को एक अच्छा घर .संतान और एक क्रेडिट कार्ड दे दो बस।

...टीवी या मूवी में दिखने वाला रोमांस असल जिंदगी का हिस्सा कभी नहीं हो सकता।.उनसे कभी शिकायत नहीं रही जोमांगा वो उम्मीद से ज्यादा मिला फिर क्या था जो अतृप्त था ।उस दिन रोज की तरह ही दिन शुरू हुआ था। गर्मियों की शुरुआत हो चुकी थी ..पति को ऑफिस भेज कर काम वाली के साथ घर के काम ख़त्म ही कर रही थी जब वो पार्सल मिला ।....दीदी देखिये कुछ आया है .?मेरी काम वाली एक छोटा सा पैकेट ले कर आयी ;बेटे बहु कुछ न कुछ भेजते ही रहते है इसलिए आश्चर्य जैसी कोई बात नहीं थी ।पर पैकेट खोल कर लगा की शायद गलती से गलत एड्रेस पर आगया है।एक लव - नोट के साथ छोटा सा शीशा था ..।

""" कभी देखा है खुद को """" आज मेरी नजरों से देखो !दो तीन बार पढ़ा ।शीशे में खुद को देखा .कहीं -कहीं बालों के अंदर की चांदनी झलक रही थी ...उम्र की देहलीज अपने बारीक निशाँ अपने साथ ले आयी थी ..उस छोटे से शीशे मैं खुद को देख कर फिर से वो नोट पढ़ा फिर हँसी आगयी ।इस उम्र में लव - नोट जरूर किसी अवोध बालिका का नया- नया प्रेम परबान चढ़ने वाला है ।बेचारा आशिक जब पता चलेगा की उसका प्रेम- पत्र उसकी प्रियतमा की जगह मेरे पास है तो कैसा लगेगा ?फिर भूल गयी उस नोट को रख कर बात यही ख़त्म भी हो जाती अगर ये आखरी होता दूसरे दिन फिर वो ही पार्सल .....

एक छोटा सा नोट और लाल गुलाब का फूल ..""' आज आपने शीशा देखा क्या ?जब देखिये तब इस गुलाब को अपने बालो मे जगह दे दीजियेगा ।हे भगवान!!!! कौन है जिसके पार्सल मेरे घर आरहे है पूरी बिल्डिंग मे नयी बालाओं की लिस्ट भी निकाली पर शक भी करूँ तो किस पर ?बरहाल उस दिन वो गुलाब मेरे बालों की शोभा बड़ा रहा था .....उसदिन के बाद तो जैसे गिफ्ट्स और नोट्स की लाइन ही लग गयी शर्म सी आने लगी की मेरे काम वाली क्या सोचेगी ?

..पता नहीं क्या था उन नोट्स मे कब खुद को उन से जोड़ने करने लगी नहीं पता चला ...

बस उनकोफेंकने का मन नहीं होता था ..जो दिन सास बहु के सीरियल मे बीतते थे ;वो अब उन नोट्स को पढ़ कर बीतने लगे ।पहले संजय के जाने के बाद पूरा दिन उनके इंतजार मे बीतता था अब खुद को संवारने मे लगने लगा ....सुबह जागने लगी योग क्लास भी जॉइन कर ली कुछ ही हफ्तों मे असर दिखने भी लगा।अब तो जिस दिन वो नोट नहीं आता पूरा दिन बेचैनी मे बीतता ।कोई नाम पता कुछ भी तो नहीं होता था उस पर ।एक छोटा सा नोट और कभी लिपिस्टिक ,कभी कोई खुशबू वाला रुमाल और कभी कोई हेयर पिन ।वो मेरे लिए थी भी या नहीं पता नहीं पर अच्छा लगता था उन नोट्स को पढ़ना....

आजकल संजय भी नोटिस करने लगे मेरी ख़ुशी को और बच्चे भी ...एक १६ साल की बालिका की तरह मेरा खुद को शीशे मे निहारना और खुद मे खो जाना शायद उनसब को चकित कर देता।धीरे से मुस्कुरा कर फिर अपने काम मे लग जाते वो ।बच्चे बोलते माँ आप पहले से ज्यादा सुन्दर लगने लगी हो ..कुछ भी हो फिर भी एक अपराध बोध के साथ गुदगुदी भी होती मन में कि बेचारा आशिक जब उसको ये मालूम पड़ेगा की उसकी आशिकी की दूकान की ग्राहक ये बुढ़िया है तो क्या हालत होगी उसकी ?

कभी मन मे आता की पार्सल न लू और मना करू दूँ ,फिर दूसरे ही पल खुद को रोक नहीं पाती फिर एक नया नोट और प्यार की चासनी मे डूबा एक और गिफ्ट उसमें इंतजार कर रहा होता .....जो भी हो एक नया पन सा आगया था जिंदगी मे खुश रहने लगी थी ..दैहिक प्रेम से इतर ये प्रेम मेरी आत्मा को तृप्त कर रहा था ...कभी - कभी अपने कॉलेज लाइफ को रिवाइंड करके भी देख लेती पर कोई भी चेहरा नहीं दीखता जो मेरे इस अव्यक्त अभिव्यक्ति को स्पस्ट परिभाषित कर पाता...घर से निकलती तो अपने चारो तरफ चौकन्नी से नजरो से देखती पर सब नार्मल था फिर कौन इतनी फुर्सत मे था जो मेरे जैसी बिन फायदे की स्कीम पर अपना टाइम और पैसे बर्बाद कर रहा था ।

..खैर मैं अपने उस बेनाम आशिक का शुक्रिया अदा मन ही मन करना चाहती थी जिसने गलती से ही सही मुझे कम से कम कुछ टाइम के लिए अपने से प्रेम करना सीखा दिया था ।.वो दिन भी आया आज नोट थोड़ा सा लम्बा था .."" जन्मदिन मुबारक हो "" तो इसको पता है की आज मेरा जन्मदिन है ।संजय तो हर साल भूल जाते है ।आज भी बिना विश करे ही चले गए ..शाम को बोलेगे अपनी उम्र देखो अब हम दादा- दादी बन चुके है ।मैंने फिर से नोट पर नजरे गड़ा ली ।

"" मिलना है आपसे .मिलेगी मुझसे"" ..ये ड्रेस पहन कर आना मुझे अच्छा लगेगा ....अरे हद है न जान न पहचान मैं इस तरह की औरत नहीं हूँ वो सारे नोट्स तो मैंने किसी और के समझ कर रख लिए थे .।..जैसे भी हो संजय बहुत अच्छे पति है और दो जवान बच्चो की माँ हूँ।.गुस्से में भर कर ड्रेस और नोट को फर्श पर फेक कर रो पड़ी ।क्यों इतने दिनों से इस को प्रोत्साहन दिया तभी इतनी हिम्मत पड़ गयी इसकी ।मैं गुस्से में काँप रही थी ...लग रहा था जैसे किसी ने मुझे गलत समझा हो ।संजय के लिए प्यार हमेशा से था पर उस वक्त जितना महसूस हुआ पूरे जीवन में नहीं हुआ था ।..थोड़ी देर निढाल सी पड़ी रही फिर दुबारा नोट उठा कर पढ़ा उसमें एड्रेस दिया था ..आज सबक सीखा कर मानूँगी ...बच्चू गिफ्ट भेजना भूल जायेगा .....ड्रेस पहने का सवाल तो पैदा ही नहीं होता था। गुस्से में उसके लिखे सारे नोट्स और ड्रेस लेकर उस पते पर पहुंची ।

ज्यादा दूर नहीं था एक रेस्टोरेंट जैसी जगह थी जो लोग छोटे -मोटे फंक्शन्स करते है उनके लिए व्यबस्था होती थी यहाँ ..पर मुझे यहाँ क्यों बुलाया ? रिसेप्सनिस्ट मेरा नाम सुन कर मुस्कुरायी पता नहीं क्यों उसकी वो मुस्कान भी भेदपूर्ण लगी .....दूसरी मंजिल पर हॉल में मुझे भेज दिया गया ...कुछ मेजे और कुर्सिया लगे थे और हॉल किसी पार्टी के लिए तैयार हो रहा था ।मै चुपचाप थोड़ी देर वहां बैठी रही फिर गुस्से से मैंने मैनेजर से बात की तो बोला ...मैडम थोड़ी देर बस सर आते ही होंगे ।।

..खुद पर शर्म सी आरही थी की बिना सोचे समझे चली आयी ।तभी हॉल की लाइट चली गयी ।अँधेरे में वहां से भागी तभी किसी से टकराई ..बहुत परिचित सा स्पर्श था जैसे बरसों से जानती थी। तुम ठीक तो हो न? स्वर मेरे कानो में पड़ते है इससे पहले कुछ सोच पाती ... तभी लाइट आजाती है और पूरा हॉल मेरी सहेलियों और संजय के दोस्तों से भरा हुआ मिलता है ।जन्मदिन बहुत - बहुत मुबारक हो ..सब के समवेत स्वर हॉल में गूँजने लगते है ...मैं खुद को तब संजय की बाँहो में पाती हूँ ...ओह्ह तो अँधेरे में मैं संजय से टकराई थी ।जन्मदिन का केक और सारे दोस्त इंतज़ार कर रहे होते है ।बहुत कुछ पूछना चाहती थी पर कैसे तभी संजय मेरे कानो में कहते है।मेरी भेजी ड्रेस नहीं पहनी तुमने ?मेरे सारे सवालों का जवाब बिन कहे मिल गया ...मै अपने बेनाम आशिक के गलेमिल कर रो पड़ी ।

.कॉपीराइट - सुप्रिया सिंह ।