Bikharte Sapne - 4 books and stories free download online pdf in Hindi

बिखरते सपने - 4

बिखरते सपने

(4)

‘‘मम्मी!....पापा.....कहां हो आप...?’’ घर में घुसते ही स्नेहा ने खुशी से चीखते हुए अपने मम्मी-पापा को पुकारा।

‘‘क्या हुआ स्नेहा, क्यों पागलों की तरह चीख रही हो...हयं...? उसके पापा ने उसके पास आकर कहा।

‘‘पापा, देखिए मुझे स्कूल से यह मिला है। उसने खुशी से अपने पापा को स्कूल से मिला प्रमाण-पत्र और ट्राॅफी दिखाते हुए कहा।’’

‘‘क्या है यह...?’’ पापा ने पूछा।

आज हमारे स्कूल में डिबेट काॅम्पिटिशन था। मैंने उसमें हिस्सा लिया और फस्र्ट आ गयी। यह उसी का प्रमाण-पत्र और ट्राॅफी है।’’

‘‘...तो मैं इसका क्या करु...हयं...? मैंने तुमसे कितनी बार कहा है, कि खेल-कूद करना और स्कूल के कार्यक्रमों में हिस्सा लेना लड़कियों का काम नहीं होता। लड़कियों का काम घर में काम करना होता है। लेकिन तुम्हारी समझ में कुछ नहीं आता है। बजाय पढ़ायी करने के बेकार की बातों में मन लगाती हो।’’

पापा की बात सुनकर स्नेहा का फूल-सा खिला चेहरा मुरझा जाता है।

‘‘अब यहां खड़ी-खड़ी मेरा मुंह देख रही हो, जाओ जाकर अपना काम करो।’’

इतना याद आते ही स्नेहा अन्दर से और टूट जाती है। उसकी आंखों में आंसू तैरने लगते हैं।

सपना और मिस्टर गुप्ता अपने बिस्तर पर लेटे हैं। मिस्टर गुप्ता को गहरी सोच में डूबा देखकर सपना कहती है, ‘‘किस सोच में डूबे हैं...?

सपना की बात पर मिस्टर गुप्ता भाव-विभोर होकर कहते हैं, ‘‘जानती हो, मेरे साथ आॅफिस में मिस्टर कपूर हैं, उनके बेटे का सिंगापुर की एक यूनीवर्सिटी में बी-टेक में सेलेक्शन हो गया है।’’

‘‘...तो इसमें इतना सोचने की क्या बात है..?’’ सपना ने कहा।

‘‘सपना, मेरी भी यही इच्छा है, कि जिस तरह मिस्टर कपूर अपने बेटे की कामयाबी को लेकर आजकल बेहद खुश हैं, उसी तरह मैं भी चाहता हूँ कि हमारा मुन्ना भी पढ़लिख कर हमारा नाम रोशन करे। ....मेरी हार्दिक इच्छा है कि हमारा मुन्ना भारत का एक बेहतरीन बैडमिन्टन खिलाड़ी बने। हम उसे टीवी के ऊपर खेलता हुआ देखें।’’

‘‘वो तो ठीक है। मैं भगवान से यही प्रार्थना करती हूं कि वह आपकी मनोकामना पूरी करे। आपने मुन्ना को लेकर जो भी सपने देखें हैं या देख रहे हैं, वह पूरे हों। लेकिन मुन्ना के साथ-साथ आप अपनी स्नेहा के बारे में भी सोचा करें। आप उसे बात-बात पर डांटते और झिड़कते हैं तो उसे बुरा लगता है। वह अपना मन छोटा कर जाती है। मालूम है आज शाम को जब से रैकिट को लेकर आपने से उसे डांटा है, तब से वह एकदम उदास और खामोश हो गयी है। मुझसे भी नहीं बोली है। उसने ठीक से खाना भी नहीं खाया।’’

‘‘सपना, तुम स्नेहा की तुलना मुन्ना से क्यों करती हो...?...माना कि स्नेहा मुन्ना से उम्र में बड़ी होने के साथ-साथ पढ़ने-लिखने में भी होशियार है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि हम उसे सिर पे चढ़ा लें। वैसे भी स्नेहा चाहे जितना पढ़-लिख ले, खेल-कूद में कितना भी बड़ा इतिहास बना ले, उससे हमें क्या फायदा होगा...? आखिर में उसे जाना अपनी ससुराल ही है। दूसरी बात वह जितना अधिक पढ़ेगी, हमें उसके लिए उससे अधिक पढ़ा-लिखा लड़का ढूंढना पड़ेगा और मंहगी शादी करनी होगी, तो हम इतना पैसा कहां से लायेंगे...? फिर स्नेहा से हमारा वंश भी नहीं चलेगा, वंश तो मुन्ना से ही चलेगा। इसलिए जितना खयाल हम स्नेहा का रखेंगे, उतना खयाल अगर मुन्ना का रखेंगे, तो हमारा नाम रोशन होगा। वह हमें इज्जत और शोहरत दिलवाएगा। स्नेहा की क्या, वह तो खाएगी-पिएगी, हमारा अनाप-सनाप पैसा खर्च करवायेगी और बाद में उसकी शादी हो जायेगी। हम तो कंगाल हो जायेंगे सपना।’’

‘‘मिस्टर गुप्ता, कैसे बाप हैं आप...? अपनी बेटी के लिए इतनी घटिया सोच रखते हैं। आजकल तो लोग लड़कियों को लड़कों की बराबर समझते हैं। बल्कि अगर ये कहा जाये कि आजकल की लड़कियां, लड़कों से आगे निकल रही हैं, तो गलत न होगा। पाताल से लेकर आसमान तक नजर डाली जाये, तो हर क्षेत्र में लड़कियां कामयाबी की इबारत लिखती नजर आ रही हैं। और अपनी स्नेहा तो बहुत ही होशियार और क्रिएटिव है। उसके बारे में तो ऐसा मत सोचो।’’ सपना ने कहा।

‘‘तुम कुछ भी कहो सपना, पर मुझे आजकल की लड़कियों का निरंकुश और स्वतंत्र होना बिल्कुल पसंद नहीं है। मेरे खयाल से लड़कियों को इतनी छूट नहीं मिलनी चाहिए, कि वह हम पर राज करें। लड़कियों का जो दायरा है, उन्हें उसी में रहना चाहिए और वैसे भी लड़कियों को नियंत्रण में रखना बहुत जरूरी हो गया है। अगर हमने ऐसा नहीं किया तो उसका दिल बड़ा हो जाता है और वह अपनी मर्जी से घर से बाहर आना-जाना शुरू कर देती है, और तुम तो जानती हो कि आजकल लड़की का घर से बाहर निकलना, कितना खतरनाक हो गया है। अब तो कभी भी, किसी भी लड़की के साथ कब कोई घटना घट जाये कोई नहीं जानता। वैसे भी बच्चे को जितनी ढील दी जाती है वह पतंग की तरह उतना ही बढ़ता चला जाता है। और बढ़ते-बढ़ते गलत रास्तों पर निकल जाता है। सपना मैं नहीं चाहता कि हमारी स्नेहा हमारे नियंत्रण से बाहर निकले।’’

‘‘ऐसी बात नहीं है। हर बच्चे पे हर बात लागू नहीं होती है। यह जरूरी नहीं है कि हर बच्चा ढील देने से बिगड़ जाये। कभी-कभी बच्चे को वही करने देना चाहिए जो उसका मन करता हो, तभी बच्चा कुछ बन सकता है। और अगर उस पर अंकुश लगाया जाये, उसे बात-बात पर डांटा और झिड़का जाये या उसके काम की उपेक्षा और आलोचना की जाये तो उसके अन्दर हीन भावना आ जाती है और वह कंुठित हो जाता है।’’

‘‘सपना, तुम कहना क्या चाहती हो..?’’

‘‘यही कि अगर हमारी स्नेहा का रुझान खेल की तरफ है, तो उसे प्रोत्साहित करना चाहिए। हो सकता है बड़ी होकर वह खेल के क्षेत्र में महारत और शोहरत हासिल करके हमारा नाम रोशन करे।’’

‘‘सपना, तुम्हारा मतलब है कि हमारी स्नेहा जो करती है, उसे करने दूं..?

‘‘तो इसमें बुरा ही क्या है...? ...आजकल तो सरकार भी लड़कियों के खेल-कूद को बढ़ावा दे रही है। लड़कियों के शारीरिक, मानसिक और आर्थिक विकास के लिए नित नयी योजनाएं बना रही है। हमंे सरकार की इन योजनाओं का लाभ उठाना चाहिए।’’

‘‘सपना, तुम समझने की कोशिश क्यों नहीं करती हो...सरकार सिर्फ योजनाएं बनाती है, लेकिन अगर कोई लड़की मुसीबत में फंसती है या उसके साथ कोई ऊँच-नीच होती है, तो सरकार कुछ नहीं करती है। बस दुःख व्यक्त करके बैठ जाती है। भुगतना पीड़ित परिवार को ही पड़ता है।

‘‘नहीं सपना, स्नेहा को जो करना है, वो मेरी मर्जी से करना है। मैं उसे इतनी छूट नहीं दे सकता। हाँ, अगर मुन्ना की बात करो तो मैं मान सकता हूं। वैसे हमारा नाम मुन्ना ही रोशन करेगा। तुम देखना सपना, हमारा मुन्ना एक दिन बैडमिन्टन का चैम्पियन बनेगा...क्योंकि मैंने उसका खेल देखा है। उसका एक-एक स्टाॅक इतना नपा-तुला होता है, जैसे कोई तजुर्बेकार खिलाड़ी का होता है। मैंने अपने दोस्त रोहन से मुन्ना के लिए बात कर ली है। वह मुन्ना के स्कूल में खेल का टीचर है और बैडमिन्टन का सरकारी कोच भी है। वह भी मुन्ना को प्रशिक्षण देने के लिए राजी हो गया है।’’

‘‘देख लीजिए मिस्टर गुप्ता, मेरे खयाल से तो स्नेहा के ऊपर इतनी पाबंदी नहीं लगानी चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि हमारी स्नेहा कुंठित होकर हीन भावना की शिकार हो जाये।’’

सपना की बात पर मिस्टर गुप्ता तुनक कर कहते हैं,‘‘तुम कुछ भी कह लो सपना, पर तुम मेरी सोच को नहीं बदल पाओगी। मेरी नजर में स्नेहा लड़की है, तो बस लड़की है।

रात को देर से सोने की वजह से सुबह को स्नेहा की आँख मुश्किल से खुल पाती है। अनमने मन से वह घड़ी की तरफ देखती है और एकदम चैंक कर कहती है, ‘‘ओह माई गाॅड, सात बज गए और मैं अभी तक बिस्तर पर ही हूं, अगर स्कूल के लिए देर हो गयी तो पापा मेरी अच्छी खासी क्लास ले लेंगे। और ये मुन्ना का बच्चा बहुत चालाक है। चुपचाप उठकर चला गया मुझे उठाया भी नहीं।’’ कहती हुई वह फटाफट बाथरुम में जाकर नहा-धोकर स्कूल के लिए तैयार होती है।

उसी समय उसकी मम्मी की आवाज आती है, ‘‘स्नेहा....नाश्ता तैयार है आकर नाश्ता कर लो, नहीं तो स्कूल के लिए देर हो जायेगी...।’’

‘‘अरे मर गये, जिसका डर था वही हुआ।’’

‘‘क्या बात है सपना, स्नेहा कहां रह गयी...? उसे नाश्ता नहीं करना है क्या...?’’

‘‘मैंने कह तो दिया है, आ रही है।’’ कहते हुए सपना सबको नाश्ता परोसने लगती है।

डरी और सहमी हुई-सी सपना अपना बस्ता लेकर डायनिंग रूम में आती है और अपने पापा को टाईम विश करती है,‘‘गुड माॅर्निग पापा।’’

‘‘गुड मॉर्निंग, आज तैयार होने में इतनी देर कैसे हो गयी...?’’

‘‘अब हो गयी देर तो हो गयी। इन बातों को छोड़कर सब लोग नाश्ता करो और जाओ, वरना देर हो गयी तो मुझे बकोगे।’’ सपना ने मिस्टर गुप्ता की बात को काटते हुए कहा।

सपना के कहते ही सब लोग चुपचाप नाश्ता करने लगते हैं।

नाश्ता करने के बाद मिस्टर गुप्ता ने कहा, ‘‘चलो, मैं तुम दोनों को बाहर तक छोड़ आता हूं।’’

‘‘नो थैंक्स पापा, आप रहने दीजिए हम लोग चले जायेंगे।’’ कहते हुए स्नेहा ने अपना बस्ता उठाया और मुन्ना से बोली, ‘‘मुन्ना चलो...।’’

क्रमशः .......

बाल उपन्यास : गुडविन मसीह

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