Yaha unka bhi dil jod do books and stories free download online pdf in Hindi

यहां उनका भी दिल जोड़ दो




जिनके दिल टूटे हैं चलते कदम थमे हैं,
वो जीना जानते हैं |
ना जख्मों को सीना जानते हैं ||
तुम उन्हें भी अपना लो |प्यारे तुम
मेरी बात मान विश्व बंधुत्व का भाव लेकर,
जन- जन से बैर भाव छोड दो |
"यहा उनका भी दिल जोड़ दो" ||
हम सब के ओ प्यारे,
किस कदर हैं दूर किनारे।
जीत की भी
क्या आस रखते हैं मन मारे ?
ये मन मैले नहीं निर्मल हैं,
सबल न सही निर्बल हैं,
समझते हैं हम जिन्हें नीचे हैं,
वे कदम दो कदम ही पीछे हैं,
जो हिला दे उन्हें ऐसी आंधी का रुख मोड़ दो |
यहाँ भी दिल अपने दिल से जोड़ दो ||
दिल बिना क्या यह महफ़िल है,
क्या जीने के सपने हैं,
बेगाना कोई नहीं सब अपने हैं.
ये सब मन के अनुभव हैं,
नहीं हूँ अभी वो, पहले मैं था जो,
सुना था मैंने मरना ही दुखद है,
पर देखा लालसाओं के साथ जीना,
महा दुखद है.
फिर क्या है दुःख ?
क्या जीवन सार ?
सुख है सब के हितार्थ में,
जीवन - सार है अपनत्व में,
ऐसा अपनत्व जो एक दूजे का दिल जोड़ दे |
कोई गुमनाम न हो नाम जोड़ दे ||
वरना सब असार है चोला,
सब राम रोला भई सब राम रोला ||
. हम कलियुग के प्राणी हैं
सतयुग, त्रेता न द्वापर के,
हम कलयुग के प्राणी हैं।
हम- सा प्राणी हैं किस युग में ?
हम अधम देह धारी हैं।
हमारा युग तोप-तलवार
जन-विद्रोह का है।
सामंजस्य-शांति का नहीं
भेद-संघर्ष का है।
हमने सदियों से '' बसुधैव कुटुंबकम ''
की भावना छोड़ दिया।
और कलि के द्वेष पाखंड से
नाता जोड़ लिया।
हम काम क्रोध में कुटिल हैं,
परधन परनारी निंदा में लीन हैं।
हम दुर्गुणों के समुन्द्र में
कु-बुद्धि के कामी हैं।
सतयुग त्रेता न द्वापर के
हम कलयुग के प्राणी हैं।
हमारा हस्त खुनी पंजे का है
वे हमसे भिन्न स्वतंत्र रह पाएंगे ?
जब सजेगा सूर बम धमाकों का
तब क्या मृत उन मृत के लघु गीत गाएंगे ?
हमें तुम्हारे नारद की वीणा अलापते नहीं लगती
हमे तुम्हारे मोहन की मुरली सुनाई नहीं देती।
तुम कहते हो हमे अबंधन जीने दो।
अन्न जल सर्व प्रकृत का, आनंद रस पीने दो।
नहीं हम ही इस कलिकाल में सुबुद्धि के प्राणी हैं।
सतयुग,त्रेता न द्वापर के ''हम कलयुग के प्राणी हैं।''
मां की महिमा
माँ ! हम आये तेरे शरण में ,नित छुएं चरण, मम निवेदन स्वीकार करो !
यही है भाव भजन, मन लगी लगन, मम-जीवन निर्माण करो !

हम सब बाल पौधे माँ ! तू मा
मालिन साथ है |
तू जननी !हम लाल ,
सब तेरे हाथ हैं ||
जग सृजनी ! दे तूं जैसी आकृत,
सब तेरा प्रत्युपकार हैं |
हम सब कच्ची मिटटी,
तू सबका कुम्भकार है ||
तू भू की रानी! ,तू अम्बर की न्यारी माँ |
तुझमे बसी दुनिया सारी।
तुझमे तरी दुनिया सारी माँ ।।
हे स्नेहमयी माँ !
तेरी गोद में हमने सोया |
तेरी आचंल में हमने खाया !
तेरी आँचल में हमने खेला !
तुझ संग मिलकर हमने रोया !
तूने हमे कहा - आँखों का तारा !
हमने तुझे कहा – ध्रुव का तारा !!
' राम-कृष्ण, भीष्म –युधिष्ठिर तूने बनाया ||
सच है की कर्ण – अर्जुन, बुध्द-महावीर तूने ही बनाया |
तेरी महिमा अपार माँ ! तेरी महिमा अपार
हे नित्य माता ! तूने ही शंकर – रामानुजन, गाँधी – मालवीय
सबको हिय का अमीरस पिलाया ||
तेरी महिमा अपार माँ ! तेरी महिमा अपार........
हे माँ ! हमे भी शरण दो, मन की कुबुद्धि हर दो |
हे वर दायिनी वर दो , जीवन धीर – वीर कर दो |
माँ ! मेरे जीवन की बगिया, नित्य खिलती रहे |
तुझ से बनी सांसों की डोरियाँ चलती रहें ||
माँ ! तू बस इतना करम कर दो |
निज वत्स का इतना धरम कर दो ||
हमे झुकाएं शीश, तूं हमें शुभाशीष दे दो ||