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बहीखाता - 37

बहीखाता

आत्मकथा : देविन्दर कौर

अनुवाद : सुभाष नीरव

37

जन्मदिन

कभी-कभी कुछ दिन खुशी में भी बीत जाते। हम किसी तरफ घूमने निकल जाते। कोई बढ़िया किताब पढ़ते तो सार्थक बातें भी होतीं, पर बहस के अंत में इनकी दलील को ही सही माना जाता था। अमनदीप के घर बेटे का जन्म हुआ। चंदन साहब के घर पोता। अमनदीप से बच्चे की ख़बर सुनते ही चंदन साहब पोते को देखने के लिए जाने की तैयारी करने लगे। मुझे भी साथ जाना था। बहुत सारी लड़कियाँ देखने के बाद अमनदीप को इंडिया से एक लड़की सिम्मी पसंद आ गई थी। मैं उससे मिल चुकी थी। वह बहुत अच्छी लड़की थी। पिता-पुत्र की लड़ाई में सदैव तटस्थ रहती।

हमने मिठाई खरीदी और अस्पताल पहुँच गए। अलका भी आई हुई थी। सभी खुश थे। बच्चा-जच्चा दोनों ही सेहतमंद थे। बच्चा बहुत ही खूबसूरत था। मैंने भी उठाकर देखा। मुझे रूई जैसा लग रहा था। एक पल के लिए मेरे अजन्मे बच्चे मेरी आँखों के आगे से गुज़र गए। मैंने अपने आँसू अंदर ही दबा लिए। चंदन साहब ने पोते को गोदी में लेकर प्यार दिया। मैंने भी बच्चे को गोदी में लिया। बच्चा रोने लगा, मेरा मुँह भी साथ ही साथ रुआंसा हो उठा। अजीब-सा सुकून महसूस हो रहा था। दिल करता था, इसको गोदी में से न हटाऊँ। मैं तो दुनिया के बच्चे खिलाती रही थी, यह तो फिर भी अपने ही परिवार का सदस्य था। अमनदीप और सिम्मी ने उसका नाम अनीश रख दिया। यह नाम उन दोनों ने कई घंटों की मशक्कत के बाद खोजा था। हम काफ़ी देर तक अस्पताल में रहे। विजिटिंग टाइम खत्म हो रहा था। हम सभी उठकर चल पड़े। अमनदीप चाहता था कि हम उसके साथ घर चलें। अमनदीप ने हेज़ में ही अपना घर ले लिया था। हमें अमनदीप के साथ जाने की बजाय वापस वुल्वरहैंप्टन लौटना था। एक तो हमारा सफ़र लंबा था और दूसरे चंदन साहब का पीने का वक्त भी हो चुका था। पीकर वह कार नहीं चलाना चाहते थे। एकबार लाइसेंस गवां चुके थे, इस गलती को दोबारा नहीं दोहराना चाहते थे। हमारी लाई हुई मिठाई अभी भी कार में ही पड़ी थी। हमने ये डिब्बे निकालकर अमनदीप की गाड़ी में रख दिए और वुल्वरहैंप्टन के लिए रवाना हो गए।

कुछ दिनों के बाद हम फिर अमनदीप और सिम्मी को मिलने गए। इसी बहाने अनीश को भी मिल लेना था। अलका उस दिन भी वहीं पहुँच गई थी। हम बच्चे के लिए छोटा-सा सोने का कड़ा भी लेकर गए। चंदन साहब ने अपने हाथों कड़ा अनीश के हाथ में डाला। सिम्मी के डैडी और छोटी बहन भी वहाँ आए हुए थे। सब बच्चे के संग खेल रहे थे। भंगड़ा शुरू हो गया। सब बारी-बारी अनीश को उठा उठाकर नाचने लगे। सभी बहुत खुश थे कि घर में रौनक आई है। चंदन साहब और सिम्मी के डैडी आपस में बातें कर रहे थे। चंदन साहब ने अमनदीप को तीन हज़ार की बच्चे के नाम की एफ.डी. पकड़ाई। अमनदीप ने कहा, “कोई नहीं डैड, अभी अपने पास ही रखो। कौन-सी कहीं जा रही है, फिर ले लेंगे।”

मेज़ पर खाना लगा दिया गया। सभी ने खुशी खुशी खाना खाया। एक दूसरे से मजाक का दौर चलने लगा। घर में रौनक हो गई। रोटी वगैरह खाने के बाद अलका ने चंदन साहब से कहा कि वह अपने घर के लिए फर्नीचर खरीदना चाहती है। हम सभी फर्नीचर शॉप पर गए। अभी फर्नीचर देख ही रहे थे कि अचानक अमनदीप और अलका बहस करने लग पड़े। पता नहीं उनके बीच क्या हुआ, दोनों एक-दूजे को ऊँची आवाज़ में बोलने लगे। अलका अमनदीप को नीचा दिखाने के लिए कहने लगी कि वह भी बहुत कुछ जानती है, अमनदीप अपने आप को क्या समझता है। चंदन साहब ने बड़ी कठिनाई से दोनों को शांत करवाया। अब तक उनके घर में बहुत लड़ाई-झगड़े देखे थे, पर बहन-भाई की छोटी छोटी बिल्लियों-सी लड़ाई पहली बार देखने को मिल रही थी।

ऐसी ही अड़ियल लड़ाई एकबार फिर देखने को मिली थी, पर अब मुझे ऐसी लड़ाई से पहले जैसा डर नहीं लगता था। जब ये लड़ते तो मैं उस ओर ध्यान न देते हुए अपने आप को कहीं ओर व्यस्त कर लेती। तब अनीश चारेक महीने का था। हम हेज़ गए। रात में हमें अमनदीप के पास ही ठहरना था, चंदन साहब ने अलका को भी बुला रखा था। अमनदीप के घर जाने से पहले हम कुछ खाने के लिए किसी छोटे-से रेस्टोरेंट में गए। अलका वहाँ पहले से ही बैठी हमारी प्रतीक्षा कर रही थी। मेरी हैरानी की कोई सीमा न रही जब दोनों बाप-बेटी मिलकर अमनदीप के साथ झगड़ा करने की ऐसी योजना बनाने लगे जिससे अमनदीप और सिम्मी के मध्य लड़ाई की संभावना हो सकती थी। मैंने उनकी योजना में कोई हिस्सा न लिया। मुझे लालच था कि अनीश के साथ खेलूँगी। जाते ही मैंने अनीश को उठा लिया। हँसी-मजाक चल रहा था। शायद दारू भी पी जा रही थी। अचानक पिता-पुत्र किसी बात पर उलझ पड़े। चंदन साहब सिम्मी से कहने लगे, “यह तो तुझे भी पसंद नहीं करता था, कहता था हड्डियों का पिंजर है।” इतना कहने की देर थी कि अमनदीप को गुस्सा आ गया। उसे लगा, डैड उसका घर तोड़ना चाहते हैं। ज़ाहिर है, अमनदीप को इस हालत में गुस्सा आना ही था। सो, चंदन साहब को अंग्रेजी में गाली बकता वह उन्हें घर से निकल जाने के लिए कहने लगा। मेरी समझ में यह अमनदीप द्वारा अपने पिता को दी जाने वाली पहली गाली थी क्योंकि आज तक तो चंदन साहब ऐसा करते आए थे, पर यह उल्टी बात हो रही थी। अमनदीप ने चंदन साहब को एकदम घर छोड़ देने के लिए कहा। चंदन साहब की हैरानी उनके चेहरे से पढ़ी जा सकती थी कि उनके अपने बेटे ने उन्हें घर से निकल जाने के लिए कहा था जबकि वह इसी पुत्र को कई बार अपने घर से बाहर निकाल चुके थे। मैं अनीश के संग खेल रही थी। चंदन साहब ने एकदम वहाँ से चलने का हुक्म सुना दिया। हम उसी समय अमनदीप के घर से निकलकर मुश्ताक के घर चले गए। चंदन साहब बहुत अपसैट थे। मुझे कहने लगे, “क्या औरत है ? हम जिससे लड़ रहे हैं, तू उसी के बच्चे के साथ खेले जा रही है। ऐसी इम्मिच्योर औरत मैंने दुनिया में नहीं देखी।” पता नहीं मन में क्या आया, वहीं से वुल्वरहैंप्टन जाने के लिए उठ खड़े हुए। रास्ते भर वह चोट खाये सांप की तरह विष घोलते रहे। घर पहुँचकर उन्होंने शराब पी, पहले तो अमनदीप को फोन पर गालियाँ बकीं और न जाने क्या क्या बोले, फिर उन्होंने घर में पड़ी अमनदीप की सारी फोटो उठाकर डस्टबिन में डाल दीं। वह यही पर नहीं रुके, उन्होंने फैमिली एल्बम उठाई और उसमें से अमनदीप की सारी तस्वीरें काट डालीं। तस्वीरें भी इस प्रकार काटीं कि हर फोटो में बाकी के लोग रहने दिए और अमनदीप को निकाल दिया। देर रात तक यही काम करते रहे। सुबह उठकर मैंने देखा कि एल्बम की अजीब हालत की हुई थी। जिस तस्वीर में से अमनदीप की फोटो निकाली गई थी, उस तस्वीर का सत्यानाश हो गया था। मुझे अपनी तस्वीरों की चिंता होने लगी कि एक दिन इनका भी यही हाल होगा। मैंने इस विषय में चंदन साहब के साथ कोई बात न की। इनका मूड ठीक होने में कई दिन लग गए। अपने मूड को ठीक करने के लिए चंदन साहब ने एक और काम यह किया कि जो एफ.डी. वह अनीश के नाम बनवाकर लाए थे, उसे कैंसिल करवा दिया। शराब के दौर अब दिन के समय भी शुरू हो गए। जब भी शराब पीते, अमनदीप को गालियाँ देने लग पड़ते। मैं भी सोच रही थी कि अपने डैडी को गाली देकर अमनदीप ने बहुत बड़ी गलती की है। लेकिन प्यार की जंग में तो सब कुछ जायज़ होता है। फिर अमनदीप सच्चा भी था। अपना घर कोई भी बर्बाद नहीं करना चाहता। यह तो चंदन साहब ही थे जो अपने घर की सलामती के लिए कभी चिंतित नहीं हुए थे।

कुछ दिन बाद अमनदीप का फोन आया। वह माफ़ी मांग रहा था, पर इन्होंने गालियाँ देकर फोन काट दिया। कुछ महीने और बीत गए कि सिम्मी का फोन आया। वह शायद क्रिसमस पर अनीश को मिलवाने के लिए आना चाहते थे। चंदन साहब उसके साथ बात करते हुए कुछ नरम हुए। कुछ दिन बाद क्रिसमस वाले दिन अमनदीप और सिम्मी अनीश को लेकर वुल्वरहैंप्टन पहुँच गए। चंदन साहब खुश थे। इन्होंने अमनदीप को माफ़ कर दिया था। कुछ देर बाद अलका भी पहुँच गई। अलका को देखकर मेरा माथा ठनका। पता नहीं, मेरे मन में यह बात क्यों घर कर गई थी कि जहाँ अलका, वहीं लड़ाई। उसके आने पर हम भी अच्छे-भले होने के बावजूद लड़ने-झगड़ने लग पड़ते थे। मैं अनीश के साथ खेल रही थी। शाम को अनीश की पहली क्रिसमस मनाने के लिए मैंने सांटा बनकर अनीश को खुश किया और सभी ने एक दूसरे को तोहफे भी दिए। सभी आपस में बातें कर रहे थे। सभी कह रहे थे कि अनीश बिल्कुल चंदन साहब जैसा है। अमनदीप अचानक बोला -

“डैड, मैं बचपन में कैसा लगता था ? अनीश जैसा ही ?”

“तू इतना सुंदर नहीं था।” चंदन साहब के कहने पर सभी हँस पड़े। अमनदीप भी खुलकर हँसा और बोला -

“डैड, आपके पास एल्बम होगी। उसमें मेरे बचपन की तस्वीरें होंगी, मैं देखना चाहता हूँ।”

“सुबह देख लेना।” बात आई-गई हो गई। सबने मिलकर क्रिसमस डिनर किया। काफ़ी देर तक हँसते-खेलते रहे। आखि़र सब सो गए।

अगली दोपहर अमनदीप ने एल्बम की फिर मांग की। चंदन साहब ने अल्मारी की ओर इशारा किया जहाँ एल्बम पड़ी थी। मुझे एकदम पता चल गया कि अब क्या होने वाला है। अमनदीप हैरान हुआ एल्बम की ओर देखता जा रहा था कि उसके बचपन की तस्वीरें कहाँ चली गईं। पूछने पर चंदन साहब ने बताया, “हाँ, मैंने फाड़ दीं। तूने मुझे गाली जो दी थी।” अमनदीप ने कहा, “डैड, आप मुझे सारी उम्र बिना किसी मतलब के गालियाँ देते रहे हो। ये तो मेरे बचपन की यादें थीं, उन्हें भी आपने तबाह कर दिया।” चंदन साहब ने कहा, “तो क्या हो गया ? मेरी कौन सी बचपन की फोटो थी।” अमनदीप की आँखों में आँसू आ गए। अमनदीप इतना परेशान हो गया कि एकदम सिम्मी और अनीश को लेकर वापस लंदन चला गया। उनके चले जाने के बाद चंदन साहब मेरी ओर उंगली करते हुए बोले -

“कैसी घटिया औरत है तू, जब भी मेरी और अमनदीप की बहस होती है, तू चुपचाप ड्रामा देखती रहती है।”

वे हमें अनीश के जन्मदिन का पहला कार्ड देने आए थे, यह हमें बहुत बाद में पता चला।

(जारी…)