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बहीखाता - 42

बहीखाता

आत्मकथा : देविन्दर कौर

अनुवाद : सुभाष नीरव

42

घर से काउंसिल के फ्लैट तक

इस घर का किराया बहुत था। मुझ अकेली के लिए यह बोझ उठाना कठिन हो गया। न चाहते हुए भी मैंने काउंसिल के फ्लैट के लिए आवेदन कर दिया। अपना फ्लैट तो चंदन साहब के पास वापस जाने की सज़ा के तौर पर हाथ से निकल चुका था। अब काउंसिल ही एकमात्र विकल्प था जिसके किराये कम होते हैं। काउंसिल ने मुझे घर तो देना नहीं था, मेरे लिए फ्लैट ही काफ़ी था। मैंने आवेदन तो कर दिया था, पर फ्लैट कब मिलेगा, कुछ पता नहीं था। यह भी सुनिश्चित नहीं था कि मिलेगा भी या नहीं। हर कोई काउंसिल का घर या फ्लैट चाहता था। इस घर के किराये का बोझ कम करने के लिए मैंने कुछ लड़कियाँ अपने संग रख लीं। ये ई.एफ. नाम की आर्गनाइजेशन के अधीन स्कूलों में एक वर्षीय अंग्रेजी का कोर्स करने आई हुई थीं। इस प्रकार युरोप तथा अन्य देशों से विद्यार्थी आते ही रहते हैं। मुझे तीन लड़कियाँ मिल गईं। एक जर्मन, एक डैनिश और एक ब्राजीलियन। तीनों ही अपनी टीन ऐज में थीं और थीं भी बहुत चुलबुली। हर समय इधर-उधर दौड़ती भागती रहतीं और घर में रौनक-सी लगाये रखतीं। मैं सोचती कि किराये का किराया और साथ में चहल-पहल। इनमें से ब्राजीलियन लड़की तो मुझे मॉम ही कहने लग पड़ी। उसका मॉम कहना मुझे बहुत अच्छा लगता। बच्चे मुझे सदैव अच्छे लगते हैं, बल्कि बच्चों के लिए एक तड़प मेरे अंदर हमेशा सुलगती रहती है। बहुत पहले जो अबॉर्शन चंदन साहब ने मेरा करवा दिया था, उसकी टीस अभी भी मेरे अंदर टसकती थी। इस बारे में मैंने एक कविता लिखी थी जिसकी कुछ सतरें इस प्रकार हैं -

सपने में बच्चा शब्द

मुँह में आते ही

हड़बड़ाकर आँख खुलती है

और

नज़्म बनने लगती है।

इन लड़कियों के कारण घर में लगी रौनक का दूसरा पक्ष भी सहज ही दिखाई देने लग पड़ा। एक तो ये सफाई का बिल्कुल ध्यान नहीं रखती थीं, दूसरा - घर की किसी चीज़ की परवाह भी नहीं करती थीं। बाथरूम का शॉवर तोड़ दिया। और भी बहुत कुछ बिगाड़े रखती। जब मैं पूछती तो मानने को तैयार न होतीं। एकबार मेरे स्काई टी.वी. का बिल बहुत ही ज्यादा आ गया। होता यह था कि रात में उठकर वे फिल्में देखा करती थीं। मेरे सभी कागज-पत्र टेलीविजन पर ही पड़े रहते थे, उनमें से उन्होंने कोड नंबर खोज लिया था। मैंने बिल दिखाया तो वे माने ही न। मैंने आर्गनाइजेशन के पास शिकायत करने की धमकी दी तो वे मान गईं और मिलकर बिल अदा कर दिया।

दो और बातों की मैंने उन्हें मनाही की हुई थी - एक तो वे किसी ब्वॉय फ्रेंड को घर नहीं लाएँगी और दूसरा, घर में सिगरेट नहीं पियेंगी और रात में घर भी जल्दी आएँगी। दरअसल, ये उसूल उस आर्गनाइजेशन की ओर से ही बनाये गए थे। एक दिन मैं सुबह जल्दी उठी तो डैनिश लड़की के कमरे में से एक लड़का निकला। मुझे बहुत गुस्सा आया। मैंने उस लड़के को तो कुछ नहीं कहा, पर लड़की को बुला लिया और उसे यहाँ रहने की शर्तों के बारे में बताया। वह ब्वाॅय फ्रेंड को तो दुबारा नहीं लाई, पर रात में देर से आने लगी।

एक दिन मैंने ब्राजीलियन लड़की गैबी को सिगरेट पीते देख लिया। एक तो वह मुझे माॅम कहती थी और दूसरे चूंकि मुझे सिगरेटों से नफ़रत थी, मैंने उस लड़की को बुलाया और समझाने लगी। मेरी बात तो वह ध्यान से सुन रही थी, पर वह मेरी बात मानेगी भी कि नहीं, इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता था। अब उसने घर में स्मोक करना बंद कर दिया था, पर बाहर अभी भी करती थी। युरोपियन लड़कियाँ बहुत तेज़ होती थीं, पर यह लड़की बहुत अच्छी थी। मैं चाहती थी कि किसी तरह यह लड़की सिगरेट पीनी छोड़ दे। आर्गनाइजेशन वालों ने मुझसे कहा कि यदि लड़कियों को लेकर कोई छोटी-मोटी शिकायत है तो इनके माता पिता को फोन करके बता दो। मुझे दूसरी लड़कियों से अधिक गैबी (मार्लिया मैलच्युरी) की अधिक चिंता थी। यह कोई उम्र सिगरेट पीने की थी ? मैं यह भी सोचती कि यह सिगरेट मेरे पीछे पीछे ही चली आ रही है। मैं गैबी को बहुत रोकती, पर वह रुकती ही नहीं थी। एक दिन मैंने उसके माता पिता को फोन कर दिया। वे बेचारे मेरे से बात करने के लिए किसी दुभाषिये को ढूँढ़कर लाए। मेरी बात सुनकर वे बहुत खुश हुए कि मैं उनकी लड़की का इतना ध्यान रखती हूँ। वे कहने लगे कि जैसे भी हो, गैबी की सिगरेट पीने की आदत छुड़वाओ। मैं गैबी पर दबाव रखने लगी। मैं घर में होती तो अधिक समय उसको घर में ही उलझाये रखती। इस तरह उसको स्मोक करने का अवसर ही न मिलता। मेरे संग अधिक समय बिताने के कारण वह मेरे और भी करीब होने लगी। आहिस्ता-आहिस्ता उसकी सिगरेट छूट गई। एक बार उसके माता पिता इंग्लैड आए। वे विशेष तौर पर मुझसे मिलने आए थे। वर्ष भर बाद ये तीनों लड़कियाँ चली गईं, पर गैबी और उसके माता पिता के साथ मेरा लंबे समय तक राब्ता बना रहा।

एक साल बाद दूसरी लड़कियों ने आ जाना था। मैं सोच रही थी कि इस बार सिर्फ़ दो ही लड़कियों को रखूँगी। आर्गनाइजेशन वाले मुझे लिस्ट भेजने लगे। इन्हीं दिनों पत्र आ गया कि काउंसिल का एक फ्लैट खाली हुआ है, यदि मैं लेना चाहूँ तो ले सकती हूँ। मैं फ्लैट देखने गई। यह तो बहुत ही नज़दीक था, सिर्फ़ सड़क पार। शीघ्र ही मैंने किराये वाला घर छोड़ दिया और अपने फ्लैट में आ गई। यद्यपि यह भी किराये का ही फ्लैट था, पर इसका किराया घर के किराये से आधा था जिसे देना मेरे लिए कठिन नहीं था। और अच्छी बात यह हुई कि अब मुझे लड़कियाँ रखने की भी ज़रूरत नहीं थी और मेरे पास फालतू जगह भी नहीं थी।

(जारी…)