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उपरवर्णित (मेरी 5 लघुकथाएँ)

उपरवर्णित (मेरी 5 लघुकथाएँ) :-

डॉ. सदानंद पॉल की 5 लघुकथाएँ

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[1.]

अंधभक्ति पर प्रतिप्रश्न नहीं !

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चमगादड़ों की सभा देर रात में हुई और सर्वसम्मति से उल्लू को सभाध्यक्ष बनाया गया तथा उन्होंने सर्वमंत्रणा कर यह प्रस्ताव पारित किया कि जो कोई सूर्य (सच) के अस्तित्व को स्वीकारेगा एवं अँधेरा (अंधभक्ति) पर प्रश्न उठाएगा; उसे मारो, पीटो, कूटो और जेल भेजो.

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[2.]

अदृश्य मोब्लिंचिंग

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सम्पूर्ण देश में दो अक्टूबर से पूर्णरूपेण खुले में शौचमुक्त होने की सरकारी घोषणा हुई, उसी दिन बिहार में बाढ़ के कारण खुले में शौच कर रहे कुछ लोगों की पिटाई हुई, इनमें दो मरे. शहरी झंडेबरदारों का आक्रोश नदारद है यानी गाँव के लोग मरे हैं, इसलिए इसे बाढ़ से मरनेवालों की सूची में जोड़ दिया गया. अफ़सोस यह है, प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की बात छोड़िए, सोशल मीडिया में इस मोब्लिंचिंग को कोई नहीं उठाए. अगर ये मृतक दिल्ली, मुम्बई या धनाढ्यों के यहाँ के होते तो अबतक मोमबत्तियों के जुलूस निकल पड़ते !

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[3.]

मिसेज़ वफ़ादार

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जब से सरकार ने रेलवे प्लेटफार्म अथवा रेलवे कैंपस में अवस्थित टी-स्टॉल को मिट्टी के कुल्हड़ों में चाय व कॉफ़ी परोसने को लेकर घोषणा की है, तब से सुंदरता की मिसाल बन चुकी चायनीज़ कपों ने इन भद्दे कुल्हड़ों को येन-केन-प्रकारेण बेइज़्ज़त करने को लेकर हर मौके को बेकार जाने नहीं दे रही. तभी तो शहर में रेलवे जंक्शन के निकट ही चायनीज़ कपों के एक शोरूम के पास दो साल पहले भोलू की जो चाय दुकान खुली थी, वहाँ ऐसी ही रंग-बिरंगी कपों से चाय-कॉफी चुस्कते थे लोग ! इस बहाने शोरूम से ये कपें भी बहुतायत मात्रा में बिकने लगी थी. सरकार की इस घोषणा के बाद भोलू ने भी मिट्टी के कुल्हड़ों को भी दुकान में रखने लगे. कुल्हड़ से चाय का स्वाद सोहनी लगती है, जिससे कुल्हड़ की मांग बढ़ गयी. एक दिन किसी कारण भोलू की दुकान बंद थी, तब कुम्हार ने कुल्हड़ों की टोकरी को शोरूम के अंदर ही रख दिया और रात में शोरूम के अंदर गुस्से से फनफनाती सुंदर चायनीज़ कपों में से एक ने दुत्कारती हुई वहाँ रखी गई उन कुल्हड़ों से पिल पड़ी....

-छि: ! तुझे देखने से ही घिन्न आती है, किंतु ये आदमी फिर भी क्यों तुझे ओठों से लगाये रहते हैं ? लेकिन यह क्या, ये आदमी तो झटके से तुमसे संबंध-विच्छेद कर तुझे अविलंब चकनाचूर भी तो कर डालते हैं !

इतना सुन उन कुल्हड़ों में से एक ने बिल्कुल शांत स्वर में उस चायनीज़ कप से कहा-

बहन, मैं भले ही कुरूप हूँ, किंतु तुम्हारी तरह बेवफ़ा नहीं ! तुम जैसी गोरी-चिट्टी व सुंदरता की मल्लिका किसी एक प्रेमी के प्रति समर्पित नहीं रहती हो, क्योंकि तुम्हें तो कई ओठ रसपान के लिए चाहिए, परंतु मैं जिस प्रेमी को ओठ लगा लेती हूँ यानी उसे 'किस' कर लेती हूँ, उसके प्रति सम्पूर्ण प्रेम को अर्पित कर अपनी ज़िंदगी का भेंट चढ़ा देती हूँ, ताकि उक्त प्रेमी के प्रति वफ़ादर बनी रहूँ.....

-- मिस कुल्हड़ के प्रत्युत्तर से मिसेज़ कप को तो मानो लकवा मार गयी, क्योंकि यह वार्त्तालाप अब बंद हो चुकी थी.

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[4.]

नोबेल प्राइज इन इकोनॉमिक्स

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जब से सोशल मीडिया का चस्का लगा है, कई विचारों से अवगत हो रहा हूँ. कहीं से प्रेम मिल रहा है, तो कहीं से दुत्कार ! सभी फ़ेसबुकियों का टारगेट सरकार ही होती है यानी जिसकी वर्त्तमान में सत्ता होती है, उनके प्रति हम निष्ठुर हो जाते हैं. हम अपनी गलती को नजरअंदाज कर महँगाई, मोब्लिंचिंग आदि को लेकर उसे निकम्मा ठहराते हैं, भले ही हमारे गिरहबान के नीचे कालिख पुती हो....

मैं भी सरकार को गड़ियाने के उद्देश्य से फ़ेसबुक पर पोस्ट करने की सोच ही रहा था कि मकान के बाहर की गली में किसी बेचनेवालों की आवाज मेरे मानस-पटल से टकराई- ले लो, भाई ! ले लो !! सिर्फ़ 60 रुपये में सपरिवार बैठकर भरपेट खाओगे !

मैं इसे नजरअंदाज कर फ़ेसबुक पर पोस्ट करने को लेकर फिर सोचने लगा कि फिर से वही आवाज मेरे कानों टकराई.... शायद वो विक्रेता मेरे दरवाजे के ग्रिल को नॉक करने लगा था.... मेरी विचार-तंद्रा टूटी, सोचा- नियोजित शिक्षक के रूप में मुझे कई महीनों का वेतन नहीं मिला है. अच्छा ही है कि कोई डिब्बेवाला अगर इस महँगाई में सिर्फ़ 60 रुपये में ही सपरिवार भरपेट भोजन करा देते हैं ! घर पर 6 सदस्य भी तो है. तब मैंने उसे वहीं से आवाज़ लगाई-

वहीं ठहरो, भाई ! मैं अभी आकर गेट खोलता हूँ....

लुंगी को ठीक से व्यवस्थित कर मैं बाहर आया, तो देखा- उनके पास खाने के डिब्बे नहीं, अपितु ताड़ व खजूर के पत्ते, कुश आदि की कई रंग-बिरंगे चटाइयाँ थी !

मैंने उसे टोक ही दिया- ये क्या है ? खाने की सामग्री कहाँ है ? अभी तो तुम आवाज लगा रहे थे कि सिर्फ़ 60 रुपये में सपरिवार बैठकर भोजन करेंगे ! परंतु यहाँ तो चटाई देख रहा हूँ....

इस प्रश्न पर उन्होंने सीधा-सपाट जवाब दिया-

मेरे कहने का मतलब यह था कि चटाई बहुत बड़ी है, जो सिर्फ़ 60 रुपये में मिल रही है.... यह इतनी बड़ी है कि दस व्यक्ति भी इसपर बैठकर खा सकते हैं.... सर, मैंने तो यही सोचकर आवाज लगाई थी !

.... और इसे सुन मुझे अब अपने पर ज्यादा ही गुस्सा आने लगा था. कुछ अनहोनी मेरे हाथों न हो जाय, इसलिए उस चटाई विक्रेता को अँगुली के इशारे से वहाँ से रुख़सत होने को कह मैं वापस पैर अपने बेडरूम में आ गया..... बेडरूम के आलमारी के रैक पर रखा दादाकालीन रेडियो से भारतीय गरीबी पर रिसर्च को लेकर इस साल के अर्थशास्त्र का नोबेल पुरस्कार विजेता के बारे में समाचार प्रसारित हो रहा था....

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[5.]

मानवाधिकार हनन

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दशानन आज परेशान है और बाइक पर बदहवास भागे जा रहा है, इस कारण से नहीं कि उनकी आज हत्या होगी, क्योंकि उसे मालूम है कि प्रत्येक साल 'दशहरा' के दिन उसे भारत की धरती पर खुद हत्या करवाने आने पड़ते हैं, ऐसा त्रेतायुग से ही यमलोक से आदेश पारित है. दरअसल, दशानन उर्फ़ रावण की परेशानी का कारण यह है कि उनकी वास्तविक हत्या के बाद पुष्पक विमान कहाँ है, उन्हें पता नहीं है और इधर के सौ वर्षों में वे भारत की यात्रा 'बाइक' से ही करते आ रहे हैं. यह बाइक हवा में उड़ते हैं, जल में तैरते हैं और सड़क पर दौड़ते हैं ! इस साल की पहली सितम्बर से बाइक चलाना उनके लिए तो और भी जी का जंजाल बन गया है. 'दशहरा' के कारण आज दुपहिया शोरूम भी बंद है कि अचानक उन्हें एक खुली शोरूम दिखा, बाइक जैसे-तैसे लगाकर वे शोरूम के अंदर भागे और तब वहाँ दस सिरवाले व्यक्ति को देखकर सभी स्टाफ़ न सिर्फ़ चौंके, अपितु डर के मारे काँप गए, किन्तु उन्होंने कहा- 'डरिये मत, मैं भले ही रावण हूँ, किंतु मुझे आज अपनी हत्या करवाने मैदान जाना है, परंतु मेरे पास एक ही हेलमेट है, नौ और चाहिए, ताकि मोटर व्हीकल्स एक्ट 2019 के तहत बेरोकटोक हत्यास्थल पहुँच सकूँ !' शोरूम स्टाफ भी अभी शटर गिराकर रावण-वध कार्यक्रम देखने निकलने ही वाले थे कि रावण के अप्रत्याशित आगमन से उन स्टाफ में एक सीनियर स्टाफ ने थरथर काँपते हुए हाथ जोड़कर कहा- 'सर, 2 अक्टूबर से ही हेलमेट की शॉर्टिंग हो गई है और हमसब भी वहीं निकलने ही वाले थे कि आप साक्षात पधारे. डर तो लग रहा है, किंतु अच्छा भी लग रहा है कि राम को तो साक्षात नहीं देखा, पर रा... ओह... आपको लाइव देख रहा हूँ, सर ! हम यहाँ नौ स्टाफ हैं, सभी नौ के हेलमेट ले लीजिए, एक तो आप पहले से पहने है ही और ये सभी 9 गिफ़्ट हैं आपके लिए ! हमसब जब आपको साक्षात देख ही लिए और फिर मैं आपके इस ट्रैफिक नियमों के अनुपालन से प्रेरित हो अपने सभी स्टाफ की ओर से प्रण लेते हैं कि हत्या व वध व मर्डर दृश्य अब से नहीं देखूँगा, यह तो मानवाधिकार उल्लंघन का निकृष्टतम उदाहरण है !' रावण इस सीनियर स्टाफ की बातों को सुन भाव-विह्वल हो गए और फिर सभी दसों हेलमेट को ठीक से पहना, उनके हुक लगाया तथा यमलोक के आदेशानुपालन को साकार करने व सालाना हत्या कार्यक्रम में शामिल होने खुद के वधवाले मैदान की ओर बाइक की दिशा मोड़ दिए....

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